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आत्मबोध
Индия
Добавлен 2 ноя 2007
प्रणाम,
इस चैनल पर हम आध्यात्मिक और ज्ञानमार्ग से सम्बंधित विषयों पर चर्चा करते हैं। मैं भी आप की तरह इस मार्ग पर चलने वाला एक साधारण साधक हूँ, एक दूसरे से जुड़ने से लाभ होगा और जो नये जिज्ञासु और साधक हैं उनकी सहायता होगी।
टेलिग्राम ग्रुप पर सप्ताह में एक बार सत्संग करते हैं, यानी हर शनिवार को सुबह ७ से ८ बजे तक। उसका लिंक है -
t.me/aatmbodh
यदि कोई सीधे संपर्क करना चाहते हैं तो टेलेग्राम में इस एड्रैस पर संदेश भेज सकते हैं -
@Ashwin_aatmbodh
We also have English language telegram group "Blissful Awareness". The link is -
t.me/blissfulawareness
🙏🙏🙏
अश्विन / Ashwin
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सत्संग १४७ - ध्यान विधि - बाबरे जगत स्वप्नवत है।
सत्संग १४७, २१ जुलाई २४
ध्यान विधि - बाबरे जगत स्वप्नवत है।
मृत्यु क्या है? हम मृत्यु नजदीक से देखकर भी बोध को उपलब्ध क्यों नहीं हो पाते हैं?
----- आदित्य मिश्रा।
इस वीडियो में इस विषय पर चर्चा करी गई है।
यदि कोई सत्संग में जुड़ना चाहता है तो हम हर शनिवार सुबह ७ से ८ बजे टेलिग्राम पर सत्संग करते हैं, जिसमें कोई भी भाग ले सकता है, उसका लिंक है:
t.me/aatmbodh
ध्यान विधि - बाबरे जगत स्वप्नवत है।
मृत्यु क्या है? हम मृत्यु नजदीक से देखकर भी बोध को उपलब्ध क्यों नहीं हो पाते हैं?
----- आदित्य मिश्रा।
इस वीडियो में इस विषय पर चर्चा करी गई है।
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सत्संग १४६ - वो जागरण क्या है जो हम नहीं साध सकते हैं?
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सत्संग १४६, २० जुलाई २४ १) व्यक्तित्व के तथ्य को जान लेना ही उसका अंत कैसे है? २) किसी चीज की व्याख्या भी क्यों करना, क्योंकि व्याख्या करना भी ईश्वर पर, खुद पर अविश्वास ही दर्शाता है? ३) जोखिम में मन स्थगित हो जाता है, पर वह होश नहीं है। वो जागरण जो हम नहीं साध रहे हैं, वो होश है। कृपया इसे थोड़ा और समझाएं। ४) क्या वेदांत में किसी भी तरह की प्रतिस्पर्धा एक हिंसा है? यह मैं इसलिए पूछ रहा हूं क्य...
सत्संग १४५ - होश और साक्षी में क्या भेद है?
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सत्संग १४५, १३ जुलाई २४ १) स्वार्थ एक बड़ा शब्द है। बुद्ध भी स्वार्थी हैं और एक चोर भी स्वार्थी है, फर्क सिर्फ उनकी मान्यता में है। बुद्ध के लिए पूरी दुनिया उनकी है, जबकि एक चोर के लिए सिर्फ उसका शरीर। समाज की नज़र में स्वार्थी होना एक बहुत गलत बात है, लेकिन सच इसके विपरित है। एक बात मुझे स्पष्ट है की अध्यात्म में स्वार्थी होना कोई बुरी बात नहीं मानी जाती है, बल्कि साधक सबसे बड़ा स्वार्थी होता ...
सत्संग १४४ - प्रेम पियाला जो पिए, सीस दक्षिणा देय।
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सत्संग १४४, ६ जुलाई २४ १) सहजपने की शुरुआत कैसे की जाए, खासकर उनके लिए जो प्रयास करते करते थक गए हैं, और कुछ नहीं सूझता? २) अब तक मैं सत्संग, मार्गदर्शन, गुरु, शास्त्र आदि से बचता आया हूं। जहां तक मुझे लगता है इसका कारण यह है कि यह सभी चाहे वो सत्संग हो, या मार्गदर्शन, या शास्त्र हों, या गुरु, सभी हमें निश्चित दिशा में मोड़ देते हैं और मन पुनः संस्कारित होने लगता है। यह भी एक तरह की असहजता और अ...
सत्संग १४३ - बोध क्या है? मैं ही सब कुछ कैसे हूं?
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सत्संग १४३, २९ जून २४ १) क्या बोध के भी कई चरण हैं, या इसे बुद्धत्व भी कहा जा सकता है? २) अगर मैं सबकुछ हूं, तो मुझे सभी शरीरों का अनुभव एक साथ क्यों नहीं होता? ३) कुछ भी न पाने के लिए अध्यात्म है, वो अवस्था जहां कुछ भी न हो। तो हम वो पहले से हैं, ये सोच सकते हैं, या ये अनुभव करना जरूरी है? ४) कुछ बातें खुद अनुभव करके ही समझ सकते हैं, कोई ये बातें दुसरे को कैसे समझा सकता है? ५) मुझे लगता है कि ...
सत्संग १४२ - वो देखना क्या है जिसमें कोई देखने वाला ना हो?
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सत्संग १४२, २२ जून २४ १) दृष्टा के दर्शन नहीं हो सकते, तो उसका बोध होना कैसे संभव है? २) यदि शरीर में दर्द हो रहा है, तो इसका अनुभव किसे हो रहा है, शरीर को या दृष्टा को? ३) यदि कोई स्मृति ना रहे, क्या तब भी कुछ बचेगा? ४) विज्ञान भैरव तंत्र की विधियों का क्या प्रयोजन है? इस वीडियो में इस विषय पर चर्चा करी गई है। यदि कोई सत्संग में जुड़ना चाहता है तो हम हर शनिवार सुबह ७ से ८ बजे टेलिग्राम पर सत्सं...
सत्संग १४१ - उपदेश सारम्, रमन महर्षि। सूत्र २६ - ३०, आत्म स्वरूप में स्थिति, भाग - ६
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सत्संग १४१, १५ जून २४ आत्म संस्थितिः स्वात्म दर्शनं । आत्म निर्द्वयात् आत्म निष्ठता ॥26॥ आत्म स्वरूप में स्थिति ही आत्म स्वरूप का दर्शन है, यह दो अलग-अलग बातें नहीं हैं, क्योंकि आत्म स्वरूप या चुनाव रहित होश अद्वैत है, यही अपने स्वरूप में उत्पन्न सम्यक निष्ठा है। आत्म स्वरूप में स्थिति, आत्म दर्शन, नैसर्गिक होश या आत्म निष्ठा, ये अलग अलग बातें नहीं हैं, क्योंकि आत्म स्वरूप अद्वैत है, उसमें दो ह...
सत्संग १४० - उपदेश सारम्, रमन महर्षि। सूत्र २१ - २५, होश ही सत्य है, भाग - ५
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सत्संग १४०, ८ जून २४ १) इदम अहं पदः अभिख्यम अनु अहम् । अहम लीनके अपि अलय सत्तया ॥21॥ इस तरह से हृदय में स्फूरित हुआ पूर्ण सत्य ही परम है, अखंड है, अटूट है, अविभाजित शुद्ध अहम या चुनाव रहित होश है। आभासीय अहम के विलीन हो जाने पर भी, स्वस्फुरित अलय सत्ता विद्यमान ही रहती है, वह स्वयंभू है, क्योंकि वह अलय सत्ता यथार्थ का धरातल है, जहां पर आभासीय अहम प्रकट होता है और विलीन होता है। विग्रह इन्द्रिय ...
सत्संग १३९ - उपदेश सारम्, रमन महर्षि। सूत्र १६ - २०, आत्म अन्वेषण, भाग - ४
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सत्संग १३९, १ जून २४ १) दृश्य वारितं चित्तम आत्मनः । चित्व दर्शनं तत्त्व दर्शनं ॥16॥ ऐसा योगी फिर देखते हुए भी नहीं देखता, या उसको जो दिखता है उसमें कोई देखने वाला नहीं होता है, वह मन दर्शन करते हुए भी अपने स्वरूप में, यानी होश में ही स्थित रहता है। दृश्य के यथावत दर्शन में, नैसर्गिक होश में, या तत्व के दर्शन में कोई भेद नहीं है। दृश्य का सम्यक दर्शन ही तत्व, अज्ञेय सत्ता का दर्शन है, यानी वहां...
सत्संग १३८ - उपदेश सारम्, रमन महर्षि। सूत्र ११ - १५, मन का नाश, भाग - ३
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सत्संग १३८, २५ मई २४ १) वायु रोधनात् लीयते मनः । जाल पक्षिवत् रोध साधनम् ॥11॥ प्राणायाम करने से मन थोड़ी देर के लिए विलीन हो जाता है, या शांत हो जाता है, पर वह ऐसा ही है जैसे किसी पक्षी को किसीने बलपूर्वक जाल में बांध दिया हो। चित्त वायव चित्त क्रिया युता । शाखयोः द्वयी शक्ति मूलका ॥12॥ प्राण ही मन है। क्रिया और मन एक ही हैं, हर क्रिया सूक्ष्म रूप में मन से ही प्रारंभ होती है। प्राण और मन, क्रि...
सत्संग १३७ - उपदेश सारम्, रमन महर्षि। सूत्र ६ - १०, हृदय स्थल में स्थिति, भाग - २
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सत्संग १३५, १८ मई २४ १) उत्तम स्तवाद उच्च मंदतः । चित्तजं जप ध्यानम उत्तमम् ॥6॥ जप कई तरह का होता है, ऊंचे स्वर में बोलकर के किया जाने वाला, या फिर मध्यम स्वर में किया जाने वाला। पर चित्त में ऐसा जप चले जहां पर कोई जप करने वाला ही ना हो, जो होश में किया गया जप हो, वही सबसे उत्तम जप है, वही ध्यान स्वरूप है। आज्य धारया स्रोतसा समम् । सरल चिन्तनं अविरलतः परम् ॥7॥ सहज ध्यान एक तेल की धारा की तरह अट...
सत्संग १३६ - उपदेश सारम्, रमन महर्षि। सूत्र १ - ५, कर्म और भक्ति, भाग - १
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सत्संग १३५, १८ मई २४ १) कर्तुः आज्ञया प्राप्यते फलम्। कर्म किम् परम्, कर्म तत् जडम्॥1॥ कर्म जड़ हैं, इसलिए एक जीवंत नियम है, जिसके अनुसार सभी कर्म और उनके फल घटते हैं। तो जो नियम से बंधा है, वह श्रेष्ठ कैसे हो सकता है, और जो नियम से बंधा है, वह कर्म वास्तव में जड़ है। कृति महा उदधौ पतन कारणम् । फलम अशाश्वतम् गति निरोधकम् ॥2॥ कर्म वासनाओं के कारण होते हैं, इसलिए वह मुक्ति का कारण नहीं हैं। कोई भ...
सत्संग १३५ - होश को कैसे बनाए रखा जाए?
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सत्संग १३५, ११ मई २४ १) साक्षी और सूक्ष्म शरीर में क्या फर्क है? क्या सुक्ष्म शरीर ही अनुभवकर्ता है, और मरणोपरांत यही अनुभव यादों के साथ पृथ्वी पर ही रह जाते हैं? कृपया मार्ग दर्शन करें। २) जब साक्षी सभी अनुभवों का अनुभव करता है, और सूक्ष्म शरीर मन बुद्धि का अनुभव करता है, तो कैसे समझें की हम जिसको साधने की कोशिश कर रहे हैं, वो साक्षी है या सूक्ष्म शरीर, क्योंकि एक तरह से, अनुभव तो दोनों ही करत...
सत्संग १३४ - काम में होश हो सकता है,पर होश कोई काम नहीं।
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सत्संग १३४, २५ अप्रैल २४ १) जीवन का उद्देश्य क्या है, और हम यहां क्यों हैं? २) यदि में अपने लिए कुछ अच्छा सोचता हूं तो क्या में स्वार्थी कहलाऊंगा? यदि अपने लिए सबसे अच्छा सोचना स्वार्थ नहीं है तो वास्तव में स्वार्थ क्या है? क्योंकि ये तो मैं जानता हूं कि अपने लिए सबसे बेहतर उम्मीदें रखना स्वार्थ नहीं सेल्फ लव है। तो फिर स्वार्थ क्या होता है, जिसे लोग बुरा बताते हैं? ३) यह मैं का अलग एंटिटी के र...
सत्संग १३३ - याथाभूत दर्शन - ज्ञान और भक्ति का अभिनव संगम है।
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सत्संग १३३, १४ अप्रैल २४ १) "किसी चीज को जस का तस बिना बांटे एक साथ देखना, ज्ञान का, ध्यान का और भक्ति का एक अभिनव संगम है। ज्ञान और भक्ति जहां अभेद हो जाते हैं, वह है यथाभूत दर्शन। जस का तस देखते हुए, यदि अंदर प्रेम का सागर नहीं लहराने लगे, तो वह अन्यथाभूत दर्शन है। जो इस पद के मर्म को जीवन में घोल लेगा, उसके लिए ज्ञान और भक्ति की पराकाष्ठा सहज ही उपलब्ध होती चली जाती है।" कृपया इसको थोड़ा विस...
सत्संग १३२ - सुमिरन सुरति लगाय के, मुख ते कछू न बोल।
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सत्संग १३२ - सुमिरन सुरति लगाय के, मु ते कछू न बोल।
सत्संग १३१ - ना भोग कर मुक्ति है, ना भाग कर मुक्ति है।
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सत्संग १३१ - ना भोग कर मुक्ति है, ना भाग कर मुक्ति है।
सत्संग १३० - तन को जोगी सब करें, मन को बिरला कोई।
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सत्संग १३० - तन को जोगी सब करें, मन को बिरला कोई।
सत्संग १२९ - मेरा मुझ में कुछ नहीं, जो कुछ है सो तेरा।
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सत्संग १२९ - मेरा मुझ में कुछ नहीं, जो कुछ है सो तेरा।
सत्संग १२८ - शीश कटाए हाथ धरी, सो आए घर माही।
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सत्संग १२८ - शीश कटाए हाथ धरी, सो आए घर माही।
सत्संग १२७ - अद्वैत यानी एकांत, एक का अंत।
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सत्संग १२७ - अद्वैत यानी एकांत, एक का अंत।
सत्संग १२६ - ज्ञान का अंत है समर्पण, जो है सो है।
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सत्संग १२६ - ज्ञान का अंत है समर्पण, जो है सो है।
सत्संग १२५ - प्रेम ही ब्रह्म, प्रेम ही जीवन, प्रेम ही धर्म है।
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सत्संग १२५ - प्रेम ही ब्रह्म, प्रेम ही जीवन, प्रेम ही धर्म है।
सत्संग १२४ - बिना डाली और पाती के फूल खिला है।
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सत्संग १२४ - बिना डाली और पाती के फूल खिला है।
सत्संग १२३ - जो प्यास बुझ गई, वो प्यास कभी थी ही नहीं।
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सत्संग १२३ - जो प्यास बुझ गई, वो प्यास कभी थी ही नहीं।
सत्संग १२२ - चोरी करके तू भग जावे, पकड़ने वाला तू का तू।
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सत्संग १२२ - चोरी करके तू भग जावे, पकड़ने वाला तू का तू।
सत्संग १२१ - यह तट वह तट एक है - प्रेम, प्रज्ञा या बुद्धत्व एक है।
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सत्संग १२१ - यह तट वह तट एक है - प्रेम, प्रज्ञा या बुद्धत्व एक है।
सत्संग १२०, प्रेम रस जो चाखी ले, समुंद्र मीठा हुई जाए।
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सत्संग १२०, प्रेम रस जो चाखी ले, समुंद्र मीठा हुई जाए।
सत्संग ११९, हरि बिन क्या है तेरा, जिसे तू कहता मेरा मेरा!!
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सत्संग ११९, हरि बिन क्या है तेरा, जिसे तू कहता मेरा मेरा!!
सत्संग ११८, दृष्टिकोण से मुक्त जीवन उन्मुक्त है।
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सत्संग ११८, दृष्टिकोण से मुक्त जीवन उन्मुक्त है।
बहुत बहुत वंदन गुरु जी🙏
@@kanchankhanna1 🙏🙏🙏
❤❤
❤❤❤❤
@@rameshnakarmi6184 🙏🙏
❤❤❤❤
ॐॐॐ ❤❤
@@puspabhattarai4488 🙏🙏
व्याख्या क्यों करना , ईश्वर पर ख़ुद पर अविश्वाश
@@suncitybalaghat जी आप सही कह रहे हैं, यदि मौलिक बात समझ आ गई, यह अंतर्दृष्टि है कि जानने वाला उससे अलग नहीं है जो जाना जा रहा है, तो किसी व्याख्या की आवश्यकता की कोई जरूरत नहीं है।
@@ashushinghal प्रणाम
@@suncitybalaghat 🙏🙏🙏
Bahut sahi tarike se btaya bhaiya ji🙏🙏🙏
@@yogitabirari9544 🙏🙏
🕉️🕉️🕉️🙏🙏🙏🙏🌄👌💗
@@anandas1183 🙏🙏
Parnaam 🙏🙏 Aap ki baat bilkul sahi h Aap se yeh janna chahti hu ki dhyan ki vidhi kya h Mai kaisy dhyan ka aarambh kru
@@sangeeta4430 किसी भी विधि की अपनी एक सीमा है, यहां बात समझ की है कि यह "मैं" क्या है, जो ध्यान करना चाहता है। मैं ध्यान नहीं कर सकता हूं, ध्यान घटता है, जब सम्यक दृष्टि प्रकट होती है कि मैं ही मिथ्या है।
आप जी द्वारा प्रश्नों के जो उत्तर दिये गए वे मेरे मन को शांति देने वाले हैं। क्योंकि वे सत्य हैं। क्योंकि सिर्फ मैं ही एक ऐसा है। जिसके होने से ही से ही मुझे सब कुछ प्राप्त हुआ है। जैसे: -- सूरज चाँद धरती आकाश घर द्वार नाते रिश्ते लेकिन लोग उसको कुछ नहीं समझते। जिस समय वह मुझसे पीठ करेगा , मेरी औकात एक बद्वूदार कचड़े से भी खराब होगी।
सबसे बड़ा भ्रम मैं ही है, कि मेरी कोई अलग सत्ता है जो उससे भिन्न है जो जाना जा रहा है, या जो जान रहा है। यानी जो जान रहा है वह वही है जो जाना जा रहा है, मैं जैसा कुछ नहीं होता। 🙏🙏🙏
4:00 5:30 6:30 🔐
प्रेम नमन ❤🙏🙏🙏
🙏🙏🙏
Aap sabhi ko naman,,,,,,,..
आपको भी। 🙏🙏🙏
Me ka kendra mann hai mann gira to Satya pragat hai pranam sir.
जी, अध्यात्म बहुत सरल है, यही मूल अंतर्दृष्टि है। 🙏🙏
तोते को समझो सब समझ आ जाएगा मन तोता है जब तक मन शेष है संसार रहेगा मन के मरते ही संसार विदा
जी बिलकुल सही कहा आपने। 🙏🙏🙏
कुछ बाते अनुभव खुदकोही समजता ये दुसरेको कैसे समजा शकते एसा मेरा गहण प्रश्न है
कुछ बाते अनुभव खुदकोही समजता ये दुसरेको कैसे समजा शकते एसा मेरा गहण प्रश्न है
जी आपने सही कहा है, यहां कोई किसी को कुछ समझा नहीं सकता है। जो भी कहा जाता है वो एक इशारा मात्र है, जो की बिल्कुल गलत भी हो सकता है। इसीलिए जो भी कहा गया है उसे अपने आप जांचे परखें, कि क्या वास्तव में आपका सत्य क्या है, और वहीं से शुरुआत करें। 🙏🙏
माध्यम से ऊपर की मालुमत आपका यही प्रश्न सबसे अहम लगता गुरुदेव
मुझे लगता हम विश्व ही है जो हम विश्व को नहि पहचानते वैसे खुदकोही नही पहचानते
मैं विश्व ही हूं, कहीं यह बात भी कोई विचार तो नहीं क्या यह आपका अपना अनुभव है? हम खुद को नहीं पहचानते यह बात बिल्कुल सही है, और हम क्या हैं, इसको सीधा सीधा जानना मात्र ही अध्यात्म है। 🙏🙏
बहुत अच्छा मै इसकी ही इंतिजार कर रही थी
🙏🙏🌷🌷
Aap ke paas apna bhi kuch h ki bas dusre ka hi dohraye jaye ge
जी आप सही कह रहे हैं, इतना तो स्पष्ट है कि मेरा अपना कुछ नहीं है, सब दोहराव ही है। 🙏🙏
Bilkul thik baat h yahi mera bhi anubhaw h awor sabhi gyani yogi ka bhi yahi anubhaw h CHITA BUDDHI KA JAB LAY HO JATA H tab kaiwalya h
Bahut khoob
🙏🙏🙏
Jai Ho Bala ji ki jai ho
🙏🙏🙏
Bhaut acha bahut sundar
🙏🙏
स्वप्न शरीर से स्वप्न जगत में रमण!
🙏🙏
Meine aaj pahli baar suna aap ko..bhut achha btate ho aap..😊
🙏🙏
Hosh mei vishram hai..anand hai..lekin..na chahte hue bhi..baar baar mn aa jata hai..😮
जी उसको भी स्वीकार करना अच्छा है कि ऐसा है। 🙏🙏
Mei ke bina jo jeevan hai..vo ek khumari si hai..hosh se bhri behoshi..vo hi to jeevan hai.....
जी बिलकुल, जिसने जीया उसने जाना। 🙏🙏
Speechless..kar diya..❤
🙏🙏
🙏🙏🌷🌷
Om
Sakshi aur sukshma sharir mein kya fark h? Kya sukshma sharir hi anubhav karta h aur marnoparant yahi anubhav yado k sath Prithvi par rah jate h Kripaya marg darshan karein
१) साक्षी और सूक्ष्म शरीर में क्या फर्क है? साक्षी एक परिकल्पना है कि जो बदलता नहीं है और सभी अनुभवों का अनुभव करने वाला है। सुक्ष्म शरीर यानी मन, बुद्धि, अहंकार का एक मिलन। ये सब भी बदलते हैं, और साक्षी इन सब परिवर्तनों के साथ नहीं बदलता। २) क्या सुक्ष्म शरीर ही अनुभवकर्ता है, और मरणोपरांत यही अनुभव यादों के साथ पृथ्वी पर ही रह जाते हैं? कृपया मार्ग दर्शन करें। अनुभवकर्ता और साक्षी एक ही बात है। शरीर मुख्य रूप से तीन तरह के होते हैं, स्थूल, सूक्ष्म और कारण शरीर। पृथ्वी पर कोई अनुभव नहीं रह जाते हैं, पृथ्वी भी एक अनुभव के रूप में ही जानी जाती है। सभी अनुभवों का संकलन स्मृति के रूप में संस्कारों की तरह से होता है, जो भौतिक नहीं होते हैं। 🙏🙏
Guru ji ek aur prashna h ki jab Sakshi sabhi anubhavo ka anubhav karta h aur sukshma sharir man budhi aadi ka anubhav karta h to kaise samjhe ki ham jisko sadhne ki koshish kr rahe h vo Sakshi h ya sukshma sharir kyonki anubhav to dono hi krte h ek tarah se
@@purnimasharma677 सुक्ष्म शरीर अनुभव है, और जो अनुभव है वो अनुभव नहीं कर सकता है। यदि हम बचे हुए हैं, जो किसी को साधने का प्रयास कर रहा है, तो वह एक मन का ही हिस्सा है, यानी वह सूक्ष्म शरीर ही है। वहां जहां कोई साधने वाला ना रहे, वहां पर सूक्ष्म शरीर और साक्षी में कोई भेद नहीं रह जाता है। इसलिए मूल चीज को पकड़िए कि वह क्या है जो साधने का प्रयास कर रहा है? किसको साधा जा रहा है, वह तो गौण बात है, उसका कोई महत्व नहीं है। इसपर हम अगले शनिवार सुबह ७ बजे होने वाले सत्संग में भी बात करेंगे, जो टेलीग्राम ग्रुप पर होता है। उसमें कोई भी जुड़ सकता है। t.me/aatmbodh
@@purnimasharma677 इन प्रश्नों पर इस वीडियो पर भी बात करी है। ruclips.net/video/mLhJ_nZkS-g/видео.htmlsi=gLn_rzLCXS1VBWjh
🕉️
Aho aho bhav🌹🙏🏻🙏🏻🙏🏻🌹
Om
🌸🌸🙏🙏
Om
यंयंलंलंलंलं
प्रणाम आशु जी आपसे निवेदन था कि मैं आपको ऑनलाइन मंच पर आमंत्रित करना चाहता हूं, जब भी आप के सुविधा हो, जब भी आपके पास समय हो, कृपया उत्तर की प्रतीक्षा में।
नमस्ते ये कौनसा मंच है। 🙏🙏
@@ashushinghal 🙏 उत्तर देने के लिए धन्यवाद, Ulm (universal life management) आप वक्ता बन कर आ सकते है, अथवा प्रश्न कर्ता बन कर भी आ सकते है, आप बहुत सुलझे हुए और अनुभवी है, जो लोग आपसे जुड़े है उन्हें और बाकि दर्शको को इस चर्चा से बहुत लाभ मिलेगा। Date and time आप तय करें, जब भी आप के पास समय हो।
@@GURJEETGUPTA आपसे बात करके स्पष्टता आयेगी, कृपया आप मुझे टेलीग्राम ऐप पर संपर्क करें। @Ashwin_aatmbodh 🙏🙏
Rcnkufombu@@GURJEETGUPTA
thankfully nice vdo gurudev
🙏🙏🙏
🙏🙏🙏
🙏🙏
लेकिन ओशो जी तो बोलते थे की सब कुछ पूर्व निर्धारित है
यहां भी यही कहा गया है। 🙏🙏
Apka bhaut bhaut dhanyawad humare questions ke answers Dene ke liye.🙏✨
🙏🙏🙏
साधु साधु साधु 🎉🎉🎉
Advait means ek se adhik
गलत अर्थ
उपनिषद में यदि अज्ञेय कहा तो उसी उपनिषद में सा आत्मा सा विज्ञेयः भी कहा गया । आप नव अद्वैतियों की समस्या यह है कि आप एक शब्द , एक प्रक्रिया , एक रट को पकड़े रहते हैं । आप विचार मार्ग की बात करते हैं और आपको विचार मार्ग की पद्धति का कोई ज्ञान नहीं । असंप्रदायिकों को कौन समझाए ! नमस्ते 🙏
जी आप सही हैं, आपका आभार अपनी बात साझा करने के लिए। 🙏🙏
अद्वैत का अर्थ एकांत या एक का अंत नही होता नव अद्वैतियो ! अद्वैत का अर्थ है : दो नही । एति ( इण गतौ धातु ) एति इति एकः । एति का अर्थ है जाता है या अनुगत है । एक दो में अनुगत है तीन में है अनंत संख्याओं में एक अनुगत है । इसलिए कहा अद्वैत या सर्वं खल्विदं ब्रह्म । आशु जी आपकी कही अधिकांश बातों का श्रुति सम्मत ऋषि जनों की प्रज्ञा शील वाणी से सप्रमाण खण्डन किया जा सकता है । क्योंकि सब बातें हवा हवाई हैं । वेदांत का ही लक्षण है : वेदांतो नाम उपनिषद प्रमाणम । माना कि आपका अंतः करण सत्वाधिकता के कारण सात्विक बातें कर रहे है जिसका अर्थ आत्म ज्ञान नही ।लेकिन जिस उद्देश से आप चर्चा में लगे हैं ( ज्ञान देने ) उस उद्देश्य हेतु जिस पद्धति पर आप चल रहे हैं : बुद्धि का समर्पण , पंडित , शून्यता , सब एक ही बात करते हैं , एकांत है , शास्त्र का कोई प्रयोजन नहीं बस बात समझनी है वगैरह वगैरह 😂 यह काम नही करेगा । आप गोल गोल घूम कर एक ही बात पर आते हैं शून्य है, कुछ नही है , सब शांत है , साक्षी है , अज्ञेय है , मैं हूं , मौन है । मन की किसी अवस्था को आप आत्मज्ञान समझ बैठे हैं । नव अद्वैतियो के पास आध्यात्मिक शिक्षण की एक कुशल पद्धति नही है । आप मेरे चिर परिचित मित्र हैं मैं तो आपको सलाह दूंगा कि किसी सांप्रदायिक गुरु से अद्वैत वेदांत की विधिवत शिक्षा लें और इस व्यर्थ प्रलाप के प्रपंच में न फंसे ।। हरि 🕉️
जी आभार अपना मत रखने के लिए। मेरा मत तो यही है कि किसी भी ठोस निष्कर्ष पर नहीं आना चाहिए, बाकी आप परम ज्ञानी हैं और मैं आपको नमन करता हूं। 🙏🙏🙏
@@ashushinghal जी फिलहाल तो मैं मित्र भाव से आपसे वार्तालाप कर रहा हूं किसी परमज्ञानी को बाजू में ही रहने दें । मैने कई ज्ञानी जनों से सुना है कि आत्मज्ञान हाथ पर रखे आंवले की तरह (ठोस निष्कर्ष ) साफ साफ स्पष्ट ज्ञान है । आप यदि स्वयं निष्कर्ष विहीन हैं तो दूसरों को संशयरहित करने हेतु क्यों उद्यत हैं ? खैर आप मेरी इस बात को भी टाल दें लेकिन मेरा आग्रह आपके काम आएगा । 🙏हरि ॐ
@@user-cz2ud8on5i जी प्रभु। 🙏🙏
जब बुद्धि का समर्पण करते हैं तो वलीनता की स्थिति बन जाती है
जी हां।