सत्संग १३५ - होश को कैसे बनाए रखा जाए?

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  • Опубликовано: 9 май 2024
  • सत्संग १३५, ११ मई २४
    १) साक्षी और सूक्ष्म शरीर में क्या फर्क है? क्या सुक्ष्म शरीर ही अनुभवकर्ता है, और मरणोपरांत यही अनुभव यादों के साथ पृथ्वी पर ही रह जाते हैं? कृपया मार्ग दर्शन करें।
    २) जब साक्षी सभी अनुभवों का अनुभव करता है, और सूक्ष्म शरीर मन बुद्धि का अनुभव करता है, तो कैसे समझें की हम जिसको साधने की कोशिश कर रहे हैं, वो साक्षी है या सूक्ष्म शरीर, क्योंकि एक तरह से, अनुभव तो दोनों ही करते हैं?
    ३) मैं एक विचार है, या मैं हूँ ही नहीं, ये अनुभव में कैसे आये?
    ४) क्या साक्षी भाव और अनुभवक्रिया एक ही है?
    ५) जिस शून्य की अवस्था की बात होती है, वो बुद्धि से परे है, लेकिन ये सब पढ़ना और समझना इसी बुद्धि से हो रहा है, तो फिर कैसे उस शून्य को समझा जाये? हम बुद्धि से ही तो सोचते समझते हैं।
    ६) जो लोग दूसरों का हमेशा अच्छा करते हैं, किसी के बारे में बुरा नहीं सोचते हैं, उनको दुख क्यों मिलता है?
    ७) प्रेम-प्रेम सब कोइ कहैं, प्रेम न चीन्है कोय।
    जा मारग साहिब मिलै, प्रेम कहावै सोय॥
    कबीर साहेब कहते हैं कि प्रेम करने की बात तो सभी करते हैं, पर उसके वास्तविक रूप को कोई समझ नहीं पाता, क्योंकि प्रेम को किसी परिभाषा, सीमा, या बुद्धि में नहीं बांधा जा सकता, उसका कोई लक्षण नहीं है, उसका कोई लक्ष्य भी नहीं है। यह बात भी प्रेम के संदर्भ में सही नहीं है कि उसका कोई लक्षण नहीं है, लक्ष्य नहीं है या परिभाषा नहीं है।
    जिस रस्ते पर आप स्वयं को खोकर, स्वयं से मिल जाओ, जहां दर्शन तो हो पर दर्शन करने वाला कोई ना रहे, जहां होश तो हो पर होश में आने वाला कोई ना रहे; उसको प्रेम कह सकते हैं।
    ८) क्या बुद्धि से हम सच नहीं जान सकते हैं?
    ९) क्या साक्षी भाव चित्त वृत्ति है?
    १०) हमें कैसे पता चलेगा कि ज्ञान या बुद्धि का त्याग कब करना है? बुद्धि का त्याग स्वैच्छिक है या अनैच्छिक?
    ११) चेतना बार बार चली जाती है, इसे कैसे बनाए रखें?
    १२) क्या कभी विचार खत्म हो सकते हैं? विचारों के पार कैसे जा सकते हैं?
    इस वीडियो में इस विषय पर चर्चा करी गई है।
    यदि कोई सत्संग में जुड़ना चाहता है तो हम हर शनिवार सुबह ७ से ८ बजे टेलिग्राम पर सत्संग करते हैं, जिसमें कोई भी भाग ले सकता है, उसका लिंक है:
    t.me/aatmbodh

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