सत्संग १३४ - काम में होश हो सकता है,पर होश कोई काम नहीं।

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  • Опубликовано: 16 окт 2024
  • सत्संग १३४, २५ अप्रैल २४
    १) जीवन का उद्देश्य क्या है, और हम यहां क्यों हैं?
    २) यदि में अपने लिए कुछ अच्छा सोचता हूं तो क्या में स्वार्थी कहलाऊंगा? यदि अपने लिए सबसे अच्छा सोचना स्वार्थ नहीं है तो वास्तव में स्वार्थ क्या है?
    क्योंकि ये तो मैं जानता हूं कि अपने लिए सबसे बेहतर उम्मीदें रखना स्वार्थ नहीं सेल्फ लव है। तो फिर स्वार्थ क्या होता है, जिसे लोग बुरा बताते हैं?
    ३) यह मैं का अलग एंटिटी के रूप में विलीन हो जाने पर विशेष ध्यान क्यों दिया जाता है? क्या ऐसा होता भी है, या बस आदमी को हिंसा करने से रोकना इसका उद्देश्य है?
    क्या यह इसलिए है कि अगर वो पूरे संसार को मैं मान लेगा, तो कभी हिंसा नहीं कर पाएगा, जब वह ताकतवर होगा। क्या आप मेरी बात समझ पा रहे हैं?
    ४) मैं का ज्ञान सुनने मे, समझने में तो बहुत अच्छा लगता है, बिना मैं के जीने का तरीका भी समझ में आता है। जीवन बहुत सरल और बिना बाह्य अवरोध के जीना बड़ा आसान मालूम पड़ता है।
    परन्तु जब वास्तविक जीवन में, चुनौतियों में, दुख में, या विकट परिस्थितियों में प्रयोग करते हैं, तो मन में बस प्रयोग की मानसिक व्याख्या ही चलती रहती है।
    बिना किसी निंदा स्तुति के वर्तमान विचार देखने की कला (ना की जो विचार बीत गया है इसका बिना निंदा स्तुति के क्या होगा, उसकी मानसिक व्याख्या) कैसे विकसित हो सकती है?
    इस वीडियो में इस विषय पर चर्चा करी गई है।
    यदि कोई सत्संग में जुड़ना चाहता है तो हम हर शनिवार सुबह ७ से ८ बजे टेलिग्राम पर सत्संग करते हैं, जिसमें कोई भी भाग ले सकता है, उसका लिंक है:
    t.me/aatmbodh

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