शरीर के सातों चक्र जागृत होने पर अहं-ब्रह्मास्मि की पदवी प्राप्त होती है~एक विश्लेषण-पं प्रमोद गौतम

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  • Опубликовано: 5 янв 2025
  • शरीर के सातों चक्र जागृत होने पर अहं-ब्रह्मास्मि की सर्वोच्च पदवी दिव्य कृपा से प्राप्त हो जाती है, छठवें एवं सातवें चक्र के संदर्भ में वैज्ञानिक पद्धति के माध्यम से एक प्रामाणिक विश्लेषण-पं प्रमोद गौतम।-‪@astrologerpramodgautamchai5923‬
    हमारे शरीर के छठवें आज्ञा चक्र के जाग्रत होने पर साधक को दिव्य दृष्टि प्राप्त होती है, इस दिव्य दृष्टि से व्यक्ति क्या-क्या देख सकता है, आज्ञा चक्र के संदर्भ में एक रहस्यमयी आध्यात्मिक विश्लेषण।-@
    एस्ट्रोलॉजर पं प्रमोद गौतम
    आध्यात्मिक हीलर/वरिष्ठ पत्रकार
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    कुण्डलिनी शक्ति का छठवां, आज्ञा चक्र एक सार्वभौमिक सत्य है और यह सभी मनुष्यों में होता है, हमारे माथे के एकदम बीचों-बीच जहाँ हमारी अति सूक्ष्म इड़ा-पिंगला-सुषुम्ना नाड़ियां मिलती हैं लेकिन दुर्भाग्य से यह आज्ञा चक्र कुछ ही सिद्ध योगियों का पूर्ण जागृत होता है और बाकी कुछ लोगों में यह पूर्ण जागृत न होकर केवल स्पंदित अवस्था में रहता है और इसी अवस्था से पूर्ण जागृत अवस्था में आपको आने के लिए निरंतर साधना-रत रहना पड़ता है, ध्यान और समाधि की चिर-अवस्था को प्राप्त होना पड़ता है। अध्यात्म क्षेत्र के विद्वान और साधक इस आज्ञा चक्र को तीसरी आँख भी बोलते हैं जिसके खुलने से इस ब्रहांड के कई सारे अनदेखे रहस्य आप साक्षात देख पाने में सक्षम हो जाते हैं, वहीँ हमारे वैज्ञानिक विचारधारा के लोग इस आज्ञा चक्र को पीनियल या पिट्यूटरी ग्रंथि भी बोलते हैं, लेकिन आज तक इस ग्रंथि का होना और इसका सही कार्य उद्देश्य वैज्ञानिक पता नहीं कर सके हैं |
    कुल मिलाकर यही वह चक्र है जो साधना में सबसे महत्वपूर्ण बताया गया है क्यूंकि बाकी के सारे चक्र जैसे मूलाधार, स्वाधिष्ठान, विशुद्धि आदि इसी अजना चक्र से जुड़े होते हैं और ऊर्जा प्रवाह के जरिये यह चक्र एक-एक करके बाकी के चक्रों को बेधता हुआ, एवम शुद्धि करता हुआ उनको जाग्रत करता जाता है। बताया गया है कि पूर्वजन्म में अगर आपकी साधना रही होगी तो इस जन्म में साधना आज्ञा चक्र से ही शुरू होगी लेकिन बाकी के चक्र स्वतः खुलते जाएंगे। वैसे जितना ऊर्जा स्पंदन का अनुभव मैंने पूर्वजन्म के संस्कारों के कारण अपने जाग्रत आज्ञा चक्र पर किया है उससे उलट अनाहत चक्र आपको कुछ ऐसा अनुभव प्रतीत करवाएगा जैसे कि आपके सीने के ऊपर कोई पहिया हवा में लगातार घूमता रहता हो लेकिन यहाँ भी आज्ञा चक्र ही आगे रहता है जैसे की वह सभी चक्रों का राजा हो।
    एक नितांत सच यह है कि जिसको भी कुछ ऐसा देखना है जो ब्रहाण्ड के रहस्यमयी वातावरण का अनुभव एवं साक्षात दर्शन करवाता है तो वह यह आज्ञा चक्र ही है, तो जितना आप आज्ञा चक्र पर ध्यान साधने में पारंगत होते जायेंगे उतने ही नित नए रहस्यों और आयामों को आप अपनी खुली आंखों से देख पाएंगे। चूँकि बंद आँखों से ध्यान करते समय लोगों को कई बार लगता है कि सब भ्रम है या मष्तिष्क में होने वाली रासायनिक, यौगिक क्रियाओं का परिणाम है तो मैं कहूंगा कि आप खुली आँखों से त्राटक का अभ्यास कीजिये और एक दिन आएगा जब आपके काफी भ्रम दूर होने लगेंगे, आपको दिखेगा कि कैसे परमेश्वर निराकार होते हुए भी हमको साक्षात दिखते हैं, कैसे इसी पृथ्वी पर एक अदृश्य अवस्था में कुछ अलग ही संसार बसा हुआ है और ये वैज्ञानिक इनको ढूंढने अंतरिक्ष में निकल पड़ते हैं जबकि सब यहीं है हमारे आस-पास बस आपको वह अवस्था प्राप्त करनी होगी इन सभी रहस्यों को देखने, समझने और जानने के लिए।
    आप सभी ने अपने जीवन में कितने ही लोगों से अब तक सुना होगा कि अमुक संत-महात्मा त्रिकालदर्शी हैं या थे तो वो सही सुना है क्यूंकि यही वो सिद्ध पुरुष हैं जो साधना के उच्चतम स्तर को प्राप्त करते हुए स्वयं भगवान् तुल्य हो जाते हैं, ना केवल इनका आज्ञा चक्र पूर्णतः जाग्रत होता है बल्कि सभी और बाकी के चक्र भी इनके जागृत होते हैं।
    मेरे व्यक्तिगत जीवन में आज्ञा चक्र की वह विशेषता जिसने मुझे सबसे ज्यादा प्रभावित किया वो यह है, जब यह चक्र स्पंदित हो जाग्रत अवस्था की और त्वरित हो तब यह लगातार 24 घंटे-सातों दिन-बारह महीने यह काम करता है और बावजूद इसके साधक को इससे कोई ख़ास परेशानी नहीं महसूस होती बल्कि एक अलग ही तरह का आनंद, नशा, शरीर पृथ्वी से कुछ फ़ीट ऊपर हवा में, ऊर्जा का औरा या कहो कि ऊर्जा का घेरा चेहरे के चारों तरफ, हाथों से, पैरों से निकलता, बहता और फिर वापस आज्ञा चक्र के केंद्र में वापिस टक्कर मारता रहता है। ऐसे में अगर किसी को इन सब चक्रों के बारे में अगर कुछ भी जानकारी न हो तो यह अमुक व्यक्ति के लिए परेशानी का कारण बन सकता है इसलिए पहले से ही यह सब जानकारी रखनी होगी तब ही आगे बढ़ना है आपको।
    कुल मिलाकर आज्ञा चक्र के संदर्भ में उपरोक्त मेरे द्वारा लिखे गए सभी रहस्यमयी अनुभवों से आप स्वयं एकाग्रचित होकर अपने आज्ञा चक्र को जाग्रत करने की कोशिश कर सकते हैं, आज्ञा चक्र के द्वारा स्वयं जान सकते हो, भगवान् ने मनुष्य को बनाया ही इसी सबके लिए है लेकिन साथ ही माया में भी उलझा रखा है ताकि पात्रता जांची-परखी जा सके और उसी के अनुरूप पात्र साधक को ज्ञान और सिद्धियां प्राप्त हो सकें। तो हो सके तो खुद के बारे में जानना शुरू करो, साधना में रम जाओ अपने शरीर के चक्रों को जगाओ।
    कुल मिलाकर शरीर के सातों चक्र जागृत होने पर अहं-ब्रह्मास्मि की सर्वोच्च पदवी दिव्य कृपा से प्राप्त हो जाती है, अहं-ब्रहास्मि संस्कृत का शब्द है जो हिन्दू धर्म शास्त्र के चार वाक्यों में से एक है। जो मनुष्य ईश्वर की खोज के समय कठोर साधना करता है तब उस व्यक्ति के शरीर में स्थित कुण्डलिनी शक्ति के सातों चक्र धीमे धीमे जाग्रत होने लग जाते हैं या पूर्वजन्म में की हुई साधनाओं के फलस्वरूप किसी व्यक्ति के पास अलौकिक शक्ति और ज्ञान दिव्य कृपा से पूर्वजन्म के संस्कारों के कारण आ जाता है, लेकिन इस तरह की दिव्य स्थिति सम्पूर्ण विश्व में केवल एक फीसदी व्यक्तियों में ही होती है। जय श्रीकृष्णा

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