दुर्लभ है पृथ्वी पर गजमुक्ता का मिलना~वास्तविक गजमणि का सटीक परीक्षण कैसे करें~एक रहस्यमयी विश्लेषण

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  • Опубликовано: 20 янв 2025
  • "गजमुक्ता क्या है और इसके दर्शन किसे हो सकते हैं- एस्ट्रोलॉजर पं प्रमोद गौतम"
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    आगरा, शनिवार,13 जुलाई 2024
    "क्या गजमुक्ता के वास्तविक दर्शन सम्भव हैं, मेरे अनुसार नहीं, क्योंकि ये स्वर्ग में स्थित इंद्र के हाथी ऐरावत में ही यह मणि सम्भव हो सकती है, पृथ्वी लोक के किसी अन्य हाथी में यह दिव्य मणि सम्भव नहीं हो सकती है, लेकिन कुछ पौराणिक ग्रंथों में कहा गया है कि जो हाथी पृथ्वी लोक पर यदि पुष्य नक्षत्र में पैदा होता है, विशेकर सोमवार या रविवार को उनमें ये दिव्य गजमुक्ता पाया जा सकता है, लेकिन हजारों हाथियों में हमें क्या पता चलेगा कि, कौन सा हाथी पुष्य नक्षत्र में पैदा हुआ है, कुल मिलाकर यह स्वर्ग की दिव्य मणि है, जिसके दर्शन भी दिव्य कृपा से किसी अलौकिक शक्तियों युक्त दिव्य ऋषि की कृपा से जरूर सम्भव हैं, जो कि हिमालय क्षेत्र में पाए जाते हैं, कुल मिलाकर मुझे दिव्य गजमुक्ता के दर्शन वर्ष 2008 में एक दिव्य ऋषि की कृपा से हुए थे," उनके कहे हुए शब्दों को ही में लिख रहा हूँ, क्योंकि में एक एस्ट्रोलॉजर होने के साथ-साथ पत्रकार भी हूँ, तो मेरे मन-मस्तिष्क में इस दिव्य गजमणि के सन्दर्भ में कुछ अनसुलझे रहस्यमयी प्रश्न थे, लेकिन मेरे उन प्रश्नों की जिज्ञासाओं को भी दिव्य ऋषि ने शांत किया था और मुझे पूर्ण प्रमाण के साथ वास्तविक गजमुक्ता के दर्शन कराए थे, तब मुझे पूर्ण विश्वास हुआ कि ऋषि ने जिस गजमुक्ता के मुझे दर्शन कराए हैं वो वास्तविक गजमुक्ता है, जो कि सिर्फ स्वर्ग लोक के हाथी ऐरावत में ही सम्भव है।
    कुल मिलाकर गज अर्थात हाथी के माथे के भीतर की मणि गज मुक्ता कही जाती है जो कि वर्तमान समय मे धरतीं पर नही मिलतीं हाँ देवलोक/स्वर्ग के हाथियो में गज मुक्ता मणि होती है। जैसे इन्द्र के हाथी ऐरावत में यह दिव्य मणि पायी जाती है। भारतीय पारंपरिक विश्वास के अनुसार मुक्ता (मोती) गज, मेघ, वराह, शंख, मत्स्य, सर्प, शक्ति और वेण, आठ साधनों से प्राप्त होते हैं। जो कि प्रकृति के द्वारा निर्धारित होते हैं।
    कुल मिलाकर हम यह समझ सकते हैं कि गजमुक्ता के सन्दर्भ में मान्यता है कि गजमुक्ता मोती हाथी के मस्तक से प्राप्त होता है। इसका आकार आँवले के फल के समान तथा शुभ्रवर्ण होता है, इसे सभी मोतियों में श्रेष्ठ माना गया है। मान्यता है कि जिस किसी के पास यह मोती होता है, उसे जीवन में किसी प्रकार की कोई विघ्न या बाधा नहीं आती है। लेकिन इसके दर्शन किसी भाग्यशाली को ही प्राप्त होते हैं, क्योंकि मेरा स्वयं का रविवार को पुष्य नक्षत्र में आषाढ़ मास की गुप्त नवरात्रि का जन्म है, इसलिए पूर्वजन्म के दिव्य संस्कार के कारण मुझे वास्तविक गजमुक्ता के दर्शन वर्ष 2008 में एक दिव्य ऋषि की कृपा से हुए थे, वो भी पूर्ण प्रमाण के साथ, फिर मैनें ऋषि की आज्ञानुसार उस दिव्य गजमुक्ता के दुर्लभ फ़ोटो को अपने कैमरे में कैद कर लिया था, जिसको मैनें फिर कई वर्षों बाद बृज मण्डल ब्यूरो चीफ होने के नाते से दैनिक जनवाणी के धर्म एवम अध्यात्म के पेज संस्कार पर प्रकाशित करवाया था, उपरोक्त आर्टिकल में आप सभी वास्तविक गजमुक्ता के दिव्य दर्शन कर सकते हैं।
    गजमुक्ता के उपरोक्त रहस्यमयी तथ्यों के आधार पर, वर्ष 2008 में दिव्य ऋषि की कृपा से स्वर्ग की गजमणि के स्वयं दर्शन करने के बाद मेरे मन-मस्तिष्क में एक प्रश्न आया फिर मैनें अपनी जिज्ञासा को शांत करने के लिए दिव्य ऋषि से एक प्रश्न पूछा, "गुरुदेव जिस प्रकार सूर्य के उत्तरायण में सोमवार या रविवार को पृथ्वी लोक पर पुष्य नक्षत्र में जन्मे किसी विरले हाथी के मस्तिष्क में दिव्य गजमणि का मिलना, पौराणिक शास्त्रों के अनुसार यदि सम्भव है तो क्या किसी मनुष्य का जन्म यदि सूर्य के उत्तरायण में पृथ्वी लोक पर सोमवार या रविवार को पुष्य नक्षत्र में हुआ हो, तो क्या उस मनुष्य की भृकुटि में भी जिसे हम कुंडलिनी शक्ति का छठवां, आज्ञा चक्र भी कहते हैं, उस मनुष्य के आज्ञा चक्र पर भी कोई दिव्य मणि होने की संभावना हो सकती है," मैनें ये महत्वपूर्ण प्रश्न अपनी जिज्ञासा की संतुष्टि के लिए दिव्य ऋषि से किया था, तब गुरुदेव ने जवाब दिया, हाँ ऐसा सम्भव है "क्योंकि पुष्य नक्षत्र में जो कोई भी जन्म लेता है, उसकी आत्मा ब्रह्माण्ड के ऊपर स्थित दिव्य लोकों से पृथ्वी पर मनुष्य रूप में जन्म लेती हैं," लेकिन वो आत्मा पुष्य नक्षत्र में किस दिव्य लोक से आयी है, इसका आँकलन करना बड़ा मुश्किल होता है। "लेकिन जो दिव्य आत्मा सूर्य के उत्तरायण में यदि सोमवार, गुरुवार एवम रविवार को पुष्य नक्षत्र में विशेष माह एवम विशेष तिथि में मनुष्य रूप में जन्म लेती हैं, वो साधारण आत्म-ज्योति नहीं होती हैं, वो ज्यादातर उच्च लोकों से ही आती हैं, और उनके मस्तिष्क में दिव्य मणि होने की संभावना अधिक है"
    कुल मिलाकर मेरे रहस्यमयी प्रश्न का उत्तर मुझे दिव्य ऋषि के शब्दों के द्वारा प्राप्त होने के बाद मेरी रहस्यमयी जिज्ञासा शांत हो गयी, "लेकिन मैनें दिव्य ऋषि को अपनी तरफ से नहीं बताया था कि मेरा स्वयं का जन्म भी सूर्य के उत्तरायण में रविवार को पुष्य नक्षत्र में ही हुआ है, लेकिन मुझे अपने रहस्यमयी प्रश्न का वास्तविक उत्तर एक दिव्य ऋषि के द्वारा मिल गया था, क्योंकि आषाढ़ शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि को गुप्त नवरात्रि की अवधि में पुष्य नक्षत्र में जब मेरा जन्म हुआ था, तब मेरी भृकुटि पर एक लंबा लाल तिलक मेरे जन्म होते ही स्वतः ही आया था," ये बात मेरी पूज्य माताजी मुझे बचपन में बताया करती थीं, हो सकता है मेरे जन्म के रहस्यमयी तथ्यों के सन्दर्भ में हिमालय के दिव्य ऋषि स्वयं अपनी अंतर्दृष्टि से समझ गए हों, ये में नहीं कह सकता हूँ, ऐसा सम्भव भी हो सकता है और नहीं भी।-@
    एस्ट्रोलॉजर पं प्रमोद गौतम
    वरिष्ठ पत्रकार
    चेयरमैन- वैदिक सूत्रम टाइम्स
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