सहज समाधी कैसे घटे?|Sahaj Samadhi kaise?
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- Опубликовано: 19 ноя 2018
- Sahaj Samadhi Kaise
On our spiritual journey we have a desire to reach somewhere, a state of deep samadhi maybe. Here is a beautiful and unlimited response to such a question and such a desire.
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चैतन्यजी आपने बहोत अच्छा विश्लेशन करके समझाया. आपको कोटी कोटी प्रणाम.धन्यवाद धन्यवाद धन्यवाद!
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🕉 Itna clear Itna clear Samjhana bahut hi Khoob Hai Anand aur atmik Shanti milati hai aapko sunkar s*** s*** Naman karta hun🌹🙏🙏
बहुत ही बढ़िया बताया धन्यवाद चैतन्य जी
Bohot achhi vani m samjhaya aapne isi tarah anay aadhyatmik gyan charchao ko aur granthon k gyan ko hindi m hi samjhaya kare bohot aanand milta h agyan k aur sandeh badal chhat jaate h, pranam aapko aur namaha shivaya 🙏🙏🙏
Every time I watch your videos, I always get answers to my questions. Mahadev and baba is helping me through you. Thank you! 😊🙏
दिल पाटी सफा किया, उस पर गुरु गुरु लिख दिया ।
The best of best explanation of Dhyan Sadhna...om Chatanya Namah🙏🙏🙏
Cool video,Great contents-ध्यान और समाधी का एकमात्र मतलब है-The ultimate relaxation,मन, बुद्धी,विचार, संस्कार के साथ बने identification को relese karana ,समाधी का अर्थ समता मे आ ज।ना , सहज होना….Thanks🕉️ चैतन्यम नमः🙏😌
Mai 20year hua meditation ke course Kiya lekin apaka meditation ne muje miracle kar diya samaghika anubhav Aaj muje first time hua apako bahut Ghanyavad koti koti pranam
Perfect,great,Aapne bilkul Sahi Kaha hai,"kuch Pana"yahi to block hai bas Kuch Karna Nahi bas ho Jana hai,,great explaination
बुद्ध ने जब अपनी आखिरी खुद को जानने की उत्सुकता छोड़ दी तभी उन्हें निर्वाण प्राप्त हुआ। ओशो ने भी कहा कि खोजियों को कभी समाधि प्राप्त नहीं होती। ध्यान को मन की संतुष्टि के साथ जोड़ देना या शांति के एक निश्चित मॉडल की प्राप्ति का साधन के रूप में करना मनको अतृप्त ही रखता हैं। जीवन के सभी अनुभवों में हमारे भीतर पड़े साक्षी स्वरुप की अनुभूति होने देना ही निर्वाण है।
मेरा स्वरूप ही शांति है।मन के सारे निर्बंध हटा देने से हलचल शांत हो जाती है आपके विचार लाजवाब है।
ओशो को बहुत अच्छा दिमाग से सुना अपने।
बहुत बहुत धन्यवाद आभार आपका। बहुत स्पष्ट वर्णन। To move beyond identifications
Absoiute truth. Because every desirre throws you to the next desire.During our life we have done nothoing except fuifiment desires .
Very nice
Understood
pranam chaitanyaji.your profound wisdom explained in very simple language gives immense courage and clarity to seekers.
🙏🙏 बहुत सुंदर विवेचन sirji
Pranam gurudev
चाह गई ममता मिटी, मनवा भया बेपरवाह
जिसको कछु न चाहिए वह शाहनके शाह ।।
जब सब इछाओको होता है त्याग तब परम शांति आने लगती है उसीको कहते है समाधि स्वरूप!
Nice
इच्छा रहित, प्रयास रहित,🙏 बहुत-बहुत धन्यवाद, शत-शत नमन करता हूं
Bhut aachi video h sir ji.thanku
Very true,,संध्या वंदन
Koti koti Naman sadguru 🙏 avm Charan sparsh 🎉🎉🙏🙏🎉🎉🙏🎉🙏🙏 Happy new year 2021 sadguru
Bilkul Sahiiiiiiiiiii Kaha Aapne, mn poori Tarah dahmat aaapkev ek ek shabd aur bhav se .
Charan sparsh 🙏🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹
Thanks for the clearing the myths about meditation
🙏🙏🌹🌹
Satya vachan 🙏
Aum Shiv Aum 🌹🙏🌹
Chaitanya Darshan means "Samadhi."
Thanks grateful for your help in this spiritual experiences and best of all.
Jai Gurudev 🙏🌹
Ultimat sir 🙏🙏🙏🙏
Thank u for sharing your wisdom and giving clarity to seekers...
🕉️ Namha Shivaye 🙏🌹
Very nice explaination chaitanya ji. Thanks alot.
Pranam Chaitanya Ji
Bhaut hi sundar tarika se samjaya hai, Mai ne bhi bhaut course kiye hai per....
Bhaut bhaut dhanyawad 🙏🙏🙏
Parnam Chaitanya ji
Ultimate relaxation is deeply Silent
means SAMADHI. I am very glad grateful thanks.
Very well said.hari om.
Bahut upkar vala gan diyon krupaya hindi vedio ki krupa kijiye th dil se pranam
Very well explained...
समझ को समझ से समझना है मुशकिल । क्यों की समझ की समझ से समझते नही ।
Bahut dhanyabad
Nice sir ji..
Truth well said
Nice👌👌🙏
आज पहली बार गूंगे को गुड़ का स्वाद मिला। कैसे बताऊं,ज़बान नहीं है।
Thank you sir 🙏👍
namashkar sir, actually i had some doubt which got cleared
thanks .....🌹🌹
Ommm ....
I impresse u sir
🌹
Nice
🙏
Pranam,
Sadho sahaj samadhi bhali,Kabir das ji.
Aahobhav 🙏
Rupali
V nice
आपने अच्छी तरह समझाया है ।आभार
🙏🙏🙏🙏
na disha na kaal na paaya na khoya na gyaan na bandhan na jiya na mara main hi hoon woh main hoon shava main hoon shiva
YES
👌👌👌👌
🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏
🙏🙏🙏
एक बार 1990 में केदारनाथ जी गई थी मन्दिर शाम को आरती के समय वहाँ बहुत भीड़ थी आरती शुरू हो गई थी ज़ोर ज़ोर से घण्टे बज रहे थे एकदम से खड़े खड़े ही बिल्कुल blank थी जब आॅख खुली तो सभी लोग जा चुके थे कुछ ही लोग घूम रहे थे , उस दौरान क्या हुआ कुछ मालूम नहीं इतनी आवाज़ के बीच कोई आवाज नहीं सुनाई दी , आप बता सकते हैं यह क्या था🙏🙏
Bahut ahha hai ji bat karneka dil hai g iskeliy kyakarna ji
Guruji ! Pranam.zack of all trades masters of none. Ican,t live without yoga but ican,t proceed in this way.mind is going to be zam.nither i die nor ilive.how shall i proceed.
Manifestation का साधना मे कितना उपयोग होता है
नमस्कार ,सर ओम् नमः शिवाय मंत्र जप करता हू ध्यान करते समय शिव स्वरूप हो जाता हू.
,🙏🙏
Hello sir .
I am depression patient from last 20 years . Practicing vipassana since last 2 years . Medicine is also taking .
Pls guide me 🙏🙏🙏
Sir, How to drop sanskar or Man (consiouness) before dhyan to be occurred....or first dhyan then as a result of dhyan sanskar or man will get dropped.......which one of the two is the right way
☀ *Our Journey* 🌞
*जीवात्मा* यानी ऐसी आत्मा जो किसी शरीर में होती है जबकि *आत्मा* परमात्मा का अंश होती है वह स्वयं परमात्मा नहीं क्योंकि वह *सतो, रजो और तमो गुणों से* मिली होती है, जिसके कारण वह *आत्मा* होती है, इसे ही *कारण शरीर* कहा जाता है।
जब *यह आत्मा यानी परमात्मा का अंश* अपने कारण शरीर का त्याग करता है, *तब आत्मा में उपस्थित अंश/शुद्ध चेतना में परिलक्षित होता है।*
*जैसे: सन्त कबीर, हरिदास ठाकुर और मीरा बाई।* 🙏🏻
*हम सभी परमात्मा के अंश हैं, जो कारण शरीर द्वारा आत्मा बने हुए हैं।*
इसी वजह से हम सभी *आत्मायें* (जो शरीर को धारण करने वालीं हैं) और *जीवात्माएं* (जो शरीर को धारण कर चुकी हैं) कर्म क्षेत्र पर कर्म करने के लिये उत्तरदायित्व हैं।
जब तक हम कर्मबन्धन में रहेंगे तब तक हम चाहते हुए भी अपनी *निर्वाण* अवस्था को प्राप्त नहीं कर सकते। 🤷🏻♂
*हमारे कर्म - देश, काल और वातावरण के आधार पर निर्धारित होतें हैं।*
जहाँ हमें जीवित रहने और अपनी आकांक्षाओं को पूर्ण करने का तरीका बताया और सिखया जाता है।
इसका चयन भी *हम* (आत्मा) करतें तो ज़रूर हैं किंतु *वातावरण* (सतयुग,त्रेता, द्वापर और कलयुग) के प्रभाव से वशीभूत होकर।
यह system automatic predefined होता है और इसका execution तब तक नहीं हो पाता जब तक कि परमात्मा का अंश, आत्मा नहीं बन जाता।
इस अंश के कारण ही आत्मा अजर, अमर और अविनाशी है, क्योंकि परमात्मा पहले से ही अजन्में हैं।
*यही वजह है कि आत्मा की कभी मृत्यु नहीं होती है।*
🔥 *सही और गलत*🔥
यह सिर्फ़ आत्मओं और जीवात्माओं के लिये होता है किंतु जिन्होंने अपनी *निर्वाण* अवस्था प्राप्त कर चुकी है, उनके लिये कुछ भी सही और गलत नहीं होता क्योंकि ऐसा होने पर उन्हें सुख और दुःख की अनुभूति नहीं होगी क्योंकि वे इन दोनों अनुभवों से ऊपर चले जाते हैं जिसे *Sacral Nirvana* 🧘🏻♂की अवस्था (bliss अर्थात आनंद) 🧘♀कहतें हैं। इस वजह से वे संसार में होते हुए भी नहीं होते।
*परमात्मा* के लिए सिर्फ़ एक चीज़ होती है और वह है *धर्म* जिसे सनातन कहा जाता है 🙏🏻 क्योंकि यह तब से है जब से परमात्मा है यानी पहले से ही।
💥 *क्या है सनातन धर्म* ✅
सर्वे भवन्तु सुखिन: सर्वे सन्तु निरामया: ।
सर्वे भद्राणि पश्यन्तु मा कश्चिद् दु:ख भाग्भवेत् ॥
अर्थ : सभी सुखी हों, सभी निरोगी हों, सभी को शुभ दर्शन हों और कोई दु:ख से ग्रसित न हो।
*निष्कर्ष*
जो आत्माएं, प्रेतात्माएं और जीवात्माएं इस धर्म का अनुसरण करतीं है, वे सदगति को प्राप्त होतें हैं और जो नहीं करतीं हैं, उन्हें अधर्मियों की श्रेणी में रखा जाता है, जिसमें सर्वप्रथम उनका स्थूल शरीर नष्ट किया जाता है।
इसके उपरांत उन्हें जब दोबारा मानव देह मिलती है तो उन्हें फिर से एक और अवसर दिया जाता है अपनी सदगति करने का।
*प्रत्येक मनुष्य का अंतिम लक्ष्य होता है सर्वप्रथम sacral निर्वाण अवस्था को प्राप्त करना और फिर आत्मा को कारण शरीर से विमुक्त कर अंश में रूपांतरित होकर परमात्मा में एकाकार होना।*
Pranam Chaitanya ji 🙏
Sir vichar chahe jo bhi ho chahe sansaar ya adhyatm, wo to nature se aarhe hai mtlb kya unme humara koi jor hai ya control hai?? Me ye puchna chah rahi hu k hum ichchha nahi karenge ya ichchha ka vichar nahi aaega to hum us oar ko kese jaenge??? Matlab ki hum jo bhi kar re ya jo bhi ho raha hai wo hum nahi kar rhe ,to ye jo ichchha h paane ki ye humare haatho m kese hogi????
आध्यात्म में कुछ खोया जाता है, पाया नहीं जाता है 👏👏 कोटी कोटी नमन 🙏
अध्यात्म में कुछ खोया नहीं जाता, सब पाया ही जाता है।
@@badrilalnagar9232 जी आप खोते हो अहंकार , खोते हो वासनाएँ , खोते हो शरीर का मोह !
Guruji 🙏🏼.
Yaani Dhyaan ka koi lakshya nahi hona chahiye ........ aur hame jo achieve karna hai woh hai nirvichaar state ... Guruji?
Yes.
⏳ *Time* ⌛
*What is Time?*
The invention of *Time* has DONE *_IN THE PRESENCE OF US (SUPREME SOUL)_*
IF YOU HAVE ONE QUESTION==> *when?* IN YOUR MIND.
Then time comes in your life in the form of - *present, past and future.*
Otherwise you are out of the *Time Illusion.*
सेकंड, घंटे, महीने, साल, शतक, शताब्दी, युग, कल्प, जैसे अनेक शब्द आपको सुनने मिलेंगें।
जिसमे आप *समय* की एक अत्यंत सूक्ष्म इकाई से लेकर विशालतम इकाई तक पहुंच सकतें हैं।
पर ना तो सूक्ष्म इकाई की और ना ही दीर्घ इकाई की कोई सीमा है।
*क्योंकि दोनों ही अनंत हैं।*
आप देखिये कि किस तरह घड़ी के second वाली सुई पूरे एक घंटे में एक पूरा चक्र लगा लेती है और एक घंटा बीत जाता है।
इसके बाद वह पुनः यही चक्र दोहराती है। इसे ही हम चक्र समझते हैं but हकीकत तो यह है कि अब इस चक्र में वही घंटा नहीं होता है बल्कि बदल जाता है।
क्योंकि चक्र सूक्ष्म ईकाई हुई और घंटा दीर्घ इकाई
अब एक वर्ष में 365 दिन दीर्घ इकाई हुई और यही घंटा जो पहले दीर्घ था अब सूक्ष्म हो गया।
💥 *सारांश* 💥
जिसे हम चक्र समझ रहें हैं जैसे : सतयुग, त्रेतायुग, द्वापरयुग और कलयुग वास्तव में देखने पर यह एक चक्र के समान नज़र आतें हैं but यह एक अनंत कालावधि है।
इसलिए कोई भी चीज़ अचानक नहीं होती है बल्कि यह एक अनादि काल से चले आ रहे *निर्धारित घटना क्रम* जिसे हम *नियति* के नाम से जानतें हैं, का ही एक चरण है।
प्रत्येक घटना हमारे अतीत से जुड़ी है लेकिन विस्मृति के कारण हमारे साथ जो घटता है वह हमारे लिए अचानक प्रतीत होता है।
जब योग द्वारा हम निर्बीज अवस्था में जातें हैं, तो हमें इस अवधि की शुरुआत और अंत समझ में आता है।
*Start Point*
इसकी शुरुआत होती है जब ईश्वर के हम *अंश* "सतो+रजो+तमो" से मिलकर *आत्मा* बन जातें हैं; जिसे *कारण शरीर* कहा जाता है।
यहीं से हम *नियति* के दायरे में आ जातें हैं और हमारा *कर्मक्षेत्र* निर्धारित होता है। इसी वजह से हम बिना कर्म किये नहीं रह सकते। हमारे प्रत्येक कर्म के पीछे भी कोई ना कोई *कारण* निहित होता है।
*End Point*
इसकी समाप्ति होती है, जब हम सर्वप्रथम स्थूल फिर सूक्ष्म और अंत मे कारण शरीर से भी मुक्त हो कर पुनः आत्मा से ईश्वर के अंश में परिवर्तित होकर उनका हिस्सा बन जातें हैं।
जिससे हमारा प्रत्यक्ष अस्तित्व कुछ भी शेष नही रह जाता है और हम *अहम ब्रह्मास्मि* हो जातें हैं। जिसे मोक्ष कहा जाता है।
यह है हमारे जीवन की पूर्ण यात्रा।
🔥 *वृत्ति और पुनरावृत्ति में भ्रांति* 🔥
वृत्ति: हमारे जीवन काल मे प्रतिदिन रात और दिन होता है। इस क्रम को वृत्ति कहतें है जो निर्धारित है।
पुनरावृत्ति में भ्रांति: प्रतिदिन जब हम tv पर news देखतें हैं या अखबार पढ़ते हैं, तो वही खबर नहीं होती।
अर्थात जो कुछ भी हमारे जीवन मे हो रहा है वह अब दोबारा कभी नही होगा। जगह वही हो सकती है, लोग भी वही हो सकतें हैं but घटनाक्रम कुछ और ही होगा।
Common stuff.
ART OF LIVING SAHAJ SAMADHI course ka anubhav 1 baar jarur kare dheere dheere saare ans milte jayenge 🙏🙏🙏🙏🙏😇😇😍
देह वासना, लोक वासना, शास्त्र वासना से मुक्ति हो तो बात बने.
Aap ki video v auroon jasi hi haa koi fark nahi
Jab Tak Sansarik Aadhi Byadhi se Mukt Nahin honge tab Tak Aadhyatmik Samadhi Ka Sapna Dekhna MANORANJAN HAI.
🙏
आपने ध्यान का तरीका तो बताया नही..
आप जैसे व्यक्ति से बकवास जैसा शब्द सुनना अच्छा नहीं लगा
🙏
🙏