माँ चंद्र घंटा की कथा।

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  • Опубликовано: 17 окт 2023
  • हिंदू शास्त्र के अनुसार जब देवताओं और असुरों के बीच लंबे समय तक युद्ध चल रहा था तब असुरों का स्वामी महिषासुर ने देवताओं पर विजय प्राप्त कर इंद्र का सिंहासन छीन लिया और खुद स्वर्ग का स्वामी बन बैठा। इसे देखकर सभी देवता गण काफी दुखी हुए। स्वर्ग से निकाले जाने के बाद सभी देवतागण इस समस्या से निकलने के लिए त्रिदेव ब्रह्मा, विष्णु और महेश के पास गए। वहां जाकर सभी देवताओं ने असुरों के किए गए अत्याचार और इंद्र, चंद्रमा, सूर्य, वायु और अन्य देवताओं के सभी छीने गए अधिकार के बारे में भगवान को बताया।
    देवताओं ने भगवान को बताया कि महिषासुर के अत्याचार के कारण स्वर्ग लोक तथा पृथ्वी पर अब विचरन करना असंभव हो गया है। तब यह सुनकर ब्रह्मा, विष्णु और भगवान शिव शंकर अत्यंत क्रोधित हो गए। उसी समय तीनो भगवान के मुख से एक ऊर्जा उत्पन्न हुई। देवतागणों के शरीर से निकली हुई उर्जा भी उस ऊर्जा से जाकर मिल गई।
    यह ऊर्जा दसों दिशाओं में व्याप्त होने लगी। तभी वहां एक कन्या उत्पन्न हुई। तब शंकर भगवान ने देवी को अपना त्रिशूल भेट किया। भगवान विष्णु ने भी उनको चक्र प्रदान किया। इसी तरह से सभी देवता ने माता को अस्त्र-शस्त्र देकर सजा दिया। इंद्र ने भी अपना वज्र एवं ऐरावत हाथी माता को भेंट किया।
    सूर्य ने अपना तेज, तलवार और सवारी के लिए शेर प्रदान किया। तब देवी सभी शास्त्रों को लेकर महिषासुर से युद्ध करने के लिए युद्ध भूमि में आ गई। उनका यह विशाल का रूप देखकर महिषासुर भय से कांप उठा। तब महिषासुर ने अपनी सेना को मां चंद्रघंटा के पर हमला करने को कहा। तब देवी ने अपने अस्त्र-शस्त्र से असुरों की सेनाओं को भर में नष्ट कर दिया। इस तरह से मां चंद्रघंटा ने असुरों का वध करके देवताओं को अभयदान देते हुए अंतर्ध्यान हो गई।
    पूजा के समय आप मां चंद्रघंटा को सेब और केले का भोग लगा सकते हैं. इसके अलावा मां चंद्रघंटा को दूध से बनी मिठाई का भोग भी बहुत पसंद है।
    जय माँ चंद्र घंटा की।
    जय गौ माता की

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