महामति प्राणनाथजी प्रणित श्री तारतम सागर, श्री किरन्तन ग्रन्थ, प्र. ५८ औरंगजेवको ज्यादती पछि हिन्दू राजाहरुलार्इ धर्म रक्षाका लागि तयार हुन श्रीजीको आह्वान राजाने मलोरे राणें राए तणों, धरम जाता रे कोई दौड़ो । जागो ने जोधा रे उठ खडे़ रहो, नींद निगोड़ी रे छोड़ो।।१।। छूटत है रे खरग छत्रियों से, धरम जात हिंदुआन । सत न छोड़ो रे सत वादियो, जोर बढ़यो तुरकान।।२।। कुलिए छकाए रे दिलड़े जुदे किए, मोह अहं के मद माते । असुर माते रे असुराई करें, तो भी न मिले रे धरम जाते।।३।। त्रैलोकी में रे उत्तम खंड भरथ को, तामें उत्तम हिंदू धरम । ताकी छत्रपतियों के सिर, आए रही इत सरम।।४।। पन ने धारी रे पन इत ले चढ़या, कोई उपज्यो असुर घर अंस । जुध ने करनें उठया धरमसों, सब देखें खडे़ राज बंस।।५।। भरथ खण्ड रे हिंदू धरम जान के, मांगे विष्णु संग्राम अरथ । फिरत आप रे ढिंढोरा पुकारता, है कोई देव रे समरथ।।६।। असुर सत रे धरम जुध मांगहीं, सुर केहेलाए जो न दीजे । पूछो ने पंडितो रे जुध दिए बिना, धरम राज कैसे कहीजे।।७।। राज कुली रे रखन रजवट, जो न आया इन अवसर । धरम जाते जो न दौड़िया, ताए सूर कहिए क्यों कर।।८।। वेद ने व्याकरणी रे पंडित पढ़वैयो, गछ दीन इष्ट आचार । पीछे रे बल कब करोगे, होत है एकाकार।। ९।। सिध ने साधो रे संतों महंतो, वैष्णव भेख दरसन । धरम उछेदे रे असुरें सबन के, पीछे परचा देओगे किस दिन।।१०।। प्रगटे निसान रे धूमरकेतु खय मास, पर सुध न करे अजूं कोई इत। बेगेने पधारो रे बुध जी या समे, पुकार कहे महामत।।२१।। - महामति प्राणनाथजी प्रणित श्री तारतम सागर, श्री किरन्तन ग्रन्थ, प्र. ५८ श्रीकृष्ण कन्हैया लालकी जय । सदगुरु माहाराजकी जय। प्राणनाथ प्यारेकी जय ।
Parnamji
🎉🎉🎉
❤
Wow
बहुत सुंदर वाणी गायन प्रेम प्रणाम जी
🙏🙏
🙏🙏🙏
❤❤❤❤Prem pranamji ❤❤❤❤❤❤
Prannamji pyare sath ji ❤
પ્રેમ પ્રણામજી 🙏🙏❤️
Prem pranamji sathji
प्रेम प्रणाम जी सुन्दर वाणी गायन♥️♥️♥️🙏🙏🌹🌹🌹🌹
❤ pernam ji sunder sath ji ki charnao me koti koti pranam ji ❤❤❤❤❤❤❤❤❤❤
Prem pranam ji shravan& ranjet ji
❤❤❤❤
❤ પ્રેમ પ્રણામ જી ❤
Ranjeet bhaiya aur Shravan bhaiya ji ko humara koti koti Prem pranam ji 🙏🌹🙏
Pranaam ji🙏🙏
Pranamji ❤❤❤
🌹🙏🌹🙏🌹🙏
❤❤❤❤❤❤
जय श्री कृष्ण जय श्री कृष्ण जय श्री कृष्ण जय श्री कृष्ण जय श्री कृष्ण
🙏🏻
Respect in nijanand religion 🙏
महामति प्राणनाथजी प्रणित श्री तारतम सागर, श्री किरन्तन ग्रन्थ, प्र. ५८
औरंगजेवको ज्यादती पछि हिन्दू राजाहरुलार्इ धर्म रक्षाका लागि तयार हुन श्रीजीको आह्वान
राजाने मलोरे राणें राए तणों, धरम जाता रे कोई दौड़ो ।
जागो ने जोधा रे उठ खडे़ रहो, नींद निगोड़ी रे छोड़ो।।१।।
छूटत है रे खरग छत्रियों से, धरम जात हिंदुआन । सत न छोड़ो रे सत वादियो, जोर बढ़यो तुरकान।।२।।
कुलिए छकाए रे दिलड़े जुदे किए, मोह अहं के मद माते । असुर माते रे असुराई करें, तो भी न मिले रे धरम जाते।।३।।
त्रैलोकी में रे उत्तम खंड भरथ को, तामें उत्तम हिंदू धरम । ताकी छत्रपतियों के सिर, आए रही इत सरम।।४।।
पन ने धारी रे पन इत ले चढ़या, कोई उपज्यो असुर घर अंस । जुध ने करनें उठया धरमसों, सब देखें खडे़ राज बंस।।५।।
भरथ खण्ड रे हिंदू धरम जान के, मांगे विष्णु संग्राम अरथ । फिरत आप रे ढिंढोरा पुकारता, है कोई देव रे समरथ।।६।।
असुर सत रे धरम जुध मांगहीं, सुर केहेलाए जो न दीजे । पूछो ने पंडितो रे जुध दिए बिना, धरम राज कैसे कहीजे।।७।।
राज कुली रे रखन रजवट, जो न आया इन अवसर । धरम जाते जो न दौड़िया, ताए सूर कहिए क्यों कर।।८।।
वेद ने व्याकरणी रे पंडित पढ़वैयो, गछ दीन इष्ट आचार । पीछे रे बल कब करोगे, होत है एकाकार।। ९।।
सिध ने साधो रे संतों महंतो, वैष्णव भेख दरसन । धरम उछेदे रे असुरें सबन के, पीछे परचा देओगे किस दिन।।१०।।
प्रगटे निसान रे धूमरकेतु खय मास, पर सुध न करे अजूं कोई इत।
बेगेने पधारो रे बुध जी या समे, पुकार कहे महामत।।२१।।
- महामति प्राणनाथजी प्रणित श्री तारतम सागर, श्री किरन्तन ग्रन्थ, प्र. ५८
श्रीकृष्ण कन्हैया लालकी जय ।
सदगुरु माहाराजकी जय।
प्राणनाथ प्यारेकी जय ।
आपके श्रो चरणो मे कोटी कोटी प्रेम प्रणाम जी
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Prem pranamji sathji
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