पुरुष के संयोग से प्रकृति विकसित नहीं विकृति होती है l अहंकार, मन, बुद्धि, इन्द्रिय, महाभूत मूल प्रकृति के विकार है l मूल प्रकृति और पुरुष दोनों ही निष्क्रय और निर्विकार है l निष्क्रिय मूल प्रकृति का जब पुरुष से संयोग होता है तब प्रकृति में क्रिया और विकृति आरम्भ होती है गुणों के कारण l महतत्व पहला विकार जब अहंकार में विकृत होता है तब जीवात्मा का उदय होता है जो अपने को कर्ता मान लेता है l
सांख्य दर्शन के मूल ग्रंथ- सांख्य सूत्र और सांख्य कारिका है । श्री मदभगवद्गीता में सांख्य आधारित चर्चा है । श्रीमद्भागवत महापुराण तृतीय स्कन्द में भी सांख्य चर्चा है ।
Jahan koi arth ka talmel nahi hai prakrity or purush dono hi chaitan hai yahi ved ghyan hai beena chai ki upstithi ke chaitan awastha nahi ho sakti yahi gud ghyan hai
अति महत्वपूर्ण विडीयो इस अद्भुत ज्ञान के लिये हम आपके बहुत बहुत आभारी है ।
Thanks for your timely reporting sir jai sai sri ram Dhanyavad
kabir.darshan.and.sankhy.darshan.
Koti koti pronam 🙏🏻🙏🏻🙏🏻
ओम् तत् सत् गुरु जी को टी को टी नमन
Nice sir . Spread your knowledge sir.
तन्मै मनः शिव संकल्पमस्तु । अच्छे सुविचार से संकल्प करके अच्छे कार्य के लिये अग्रेषित होवे ।
Guruji koti koti naman 🙏🙏🙏
bahut uttam
मोक्ष प्राप्त करना यानि उस पुरूष ( चैतन्य ) को प्राप्त करना है । बहुत ही म।त्वपूर्ण प्वाइन्ट हमेशा याद रखना है ।
Hari om g excellent
bahut hi achhe se samjhte ho guru g koti koti dhanyavaad
बहुत ही सुन्दर!
Jai Ho Jai Ho Jai Ho.
Shree Manish Devjee.
Aapka bahut bahut dhanyawad.
Humne aapse bahut kuch samja hey.
🙏🕉️🙏🕉️🙏🕉️
OM TAT SAT 🌷🌷🙏🙏🌷🌷💐
Bahut sundar guruji 🙏
Om nmh shivayh
Thank you sir
Great explaintion...
🕉
superb
Pranam Guruji 🙏🙏🙏🙏🙏
Good analysis
ji sat chit anand guruji 🙏
Namaskar ! Dhanyavad.💜🕉
मैं बैरी बूडन डरा, रहा किनारे बैठ।🌿🌺
Giyangamn herdso sarwase.
Pranam sir thanku
gjb vyakhyan guru g 🙏🙏
🙏🙏🙏🙏🙏
Thank you so much
Karam se kese mukt honge guruji 🙏
🙏🙏
Thank 🌹🌹 you very much 🙏
Aap sir ☀️ sun ka udahran dete
Nice......
पुरुष के संयोग से प्रकृति विकसित नहीं विकृति होती है l अहंकार, मन, बुद्धि, इन्द्रिय, महाभूत मूल प्रकृति के विकार है l मूल प्रकृति और पुरुष दोनों ही निष्क्रय और निर्विकार है l निष्क्रिय मूल प्रकृति का जब पुरुष से संयोग होता है तब प्रकृति में क्रिया और विकृति आरम्भ होती है गुणों के कारण l महतत्व पहला विकार जब अहंकार में विकृत होता है तब जीवात्मा का उदय होता है जो अपने को कर्ता मान लेता है l
दुखो से मुक्ति का उपाय चैतन्य को प्राप्त करना ।
बहुत सुन्द
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सांख्य दर्शन का मूल ग्रन्थ कोनसा है?
।।नमस्कार।।
सांख्य दर्शन के मूल ग्रंथ- सांख्य सूत्र और सांख्य कारिका है । श्री मदभगवद्गीता में सांख्य आधारित चर्चा है । श्रीमद्भागवत महापुराण तृतीय स्कन्द में भी सांख्य चर्चा है ।
श्वेता श्वत्तर उपनिषद्
प्रकृति जड़ और ज्ञान शून्य निष्क्रियहै
nice
मै पुरूष हूँ या प्रकृती ? जानना किसको है ?
प्रकृती को या पुरूष को ?
क्या मन चित्त अंहकार बुद्धी प्रकृती और पुरूषसे अलग है क्या ?
जी ये पुरुष से अलग ही है किंतु पिरुष से संसर्ग कर प्रकृति ने विकसित किया है इनको
@@DivyaSrijan मै कोन हूँ ?
प्रकृती हूँ या पुरूष ? या दोनो मिलकर(प्रकृती और पुरूष का संयोग) मैं बना हूँ?
बिल्कुल प्रकृति पुरुष के संयोग से ही जीव बना है ।
Sir aap Apne lecture ko ek play list m arrange kr dijye
यह कल शाम तक हो जाएगा अभी व्यस्तता वश कंप्यूटर पर बैठने का समय नही है ।
Prakit ka adhishthata Brahm hai? To kya prakritt ko parmatma ki shakti kaha ja sakta hai?
सांख्य व चार्वाक दर्शन में पहले कोन सा आया।
Nice video.. thank you...
Gratitude
@@DivyaSrijan Mahat kya hai?
१४:४० पुरुष अगर निष्क्रिय है तो भोग भोगने की क्रिया कैसे करता है, और भोग भोक्ता है तो पुरुष को निष्क्रिय कैसे कह सकते है?
Ritambhara pragya gyan ka ayathan hai
Kya sir purush hi atama hai....
अब प्रकृति को चला रहा यानि उपभोग करने वाला है चैतन्य ।
मोक्ष ओर के कैवल्या की अनुभूति क्या है जी
Nirgun purus ek or bahu kaya hay?
जीवात्मा क्या है?
Purush ke age bhi jake dekhe kabhi
Purus niskriya to purus kayde bhog karte hay
पुरुष को पुरुष ही क्यों प्राप्त करता है? जबकि उसके अतिरिक्त सब जड़ प्रकृति के अलावा कुछ भी नहीं है।
Nari ko prakriti kyon kaha jata hai?
अंहकार क्या है ?
दु:खोका अंतही मोक्ष कहा गया हैं क्या ?
अहँकार का अंत मोक्ष कहा गया है ।
@@DivyaSrijan But Ahankar to Mahat (Buddhi) se aaya hai, to kya buddhi ka bhi antt ho jayega. ????
Pl correct your views PURUSH IS NOT ONE it is many PRAKRITI is lone
पुरुष प्रकृति के बंधन में क्यों आता है
प्रकृति मे स्वयंम् का सामर्थ्य नही इस कारण ये जङ कहलाई ।
Jahan koi arth ka talmel nahi hai prakrity or purush dono hi chaitan hai yahi ved ghyan hai beena chai ki upstithi ke chaitan awastha nahi ho sakti yahi gud ghyan hai
आत्मा एक है या अनेक
Ek