Samavsharan hota haiसमवशरण और जिन होते हैं जिन्न नही जिन्न तो भुत को कहा जाता है जिन यानि जिन्होने अपनी इन्द्रियों को जीत लिया अपने मन पर विजय प्राप्त करने वाला जिन,जिनेन्द्र भगवान🙏
@@vikkiraj3318 jain dharm prachin samay me pure vishwa tk faila hua tha aur jis Siriya ki aap bat kr rhe hain wahan bhi ye jain dhrm hi hai jo bdlkr baudh dhrm ho gya hai
जिन्न नहीं कृपया जिन कहें . बहुत सुंदर विभेद किया है , व्याख्या की है परंतु भगवान बाहुबली तथा भरत - भारत नहीं ' के बीच हुये युद्ध का वर्णन यूं करें कि उनमें जलयुद्ध हुआ , दृष्टि युद्ध हुआ और मल्ल युद्ध हुआ था . सेनाओं मे कोई युद्ध नही हुआ था . यह एक आदर्श उदाहरण सेनाओं में युद्ध न कराके पर स्पर युद्ध करके हार - जीत तय करना . जैन आख्यान का सपूर्ण नहीं , खंडित रूप आया है पर सुविख्यात मायथोलोजिस्ट श्री देवदत्त पटनायक जी को जैन धर्म को वारे में सुनना सुखद और ज्ञान वर्द्धक लगा । मैंने भगवान रिषभदेव / आदिनाथ प्रथम तीर्थंकर की अम्यर्थना जो आचार्य मानतुंग स्वामी ने संस्कृत के 48 काव्यों मे की थी / उसका हिन्दी में काव्यातंरण किया हे । मेरी कृति का नाम मनः प्रणाम है । मेरी प्रार्थना है कि आप भक्तामर स्तोत्र पर अवश्य लिखें / कहें । आप अनुमति देंगे तो मैं आपको अपनी कृति प्रेषित कर दूंगा । देवेन्द्र कुमार जैन सेवा निवृत्त जिला जज । अयोध्या नगर भोपाल मो .9826312428.
Bahut hi acche aur sankshipt mein bataya devduttji ne jain dhatm ke baare mein. Unka sabhi dharm ka accha abhyas hain. Sarv dharm sambhav. 🙏🙏every religion is unique great and for welfare of human beings🙏😊
स्वर्ग की अप्सरा नहीं यही अयोध्या में उनके राजमहल में नृत्यांगना ना च रही थी उसकी मृत्यु हो गई तुरन्त दूसरी नृत्यांगना उपस्थित हुईं सभा में किसी को समझ नहीं आया कि पहली नृत्यांगना की मुत्थु होगी लेकिन ऋषभदेव को ज्ञान में आ गया था और उनको वैराग्य हो गया ।
सभी धर्मोंका तुलनात्मक अभ्यास करना बहुतही कठिन चिज है , जो देवदत्त पटनाईक जी ने की है l उनकी मैं सराहना करता हूं l उन्हे लंबी और आरोग्यपूर्ण आयु मिले l
It is wonderful talk on Jain concepts. Tirthankars are the enlightened or awakened souls. They propound Jain religion in their times. After death they become Paramatma.
I read this book at Crossword , and me being Jain was curious to find a Book on Jainism. Jainism has very very deep roots of Knowledge : Samyak Gyan. But the way he portrays Principles of Jainism, it;s very surface level Knowledge . It requires very deep knowledge to even attempt to write on Jainism. I would suggest the author to Spend more sessions with the Jain monks, as they are always happy to Spread knowledge and that too without any Monetary expectations(unlike other Sadhus) coz We believe in 'Aparigraha'. This book mentions just few basics on Jainism. But I would appreciate the Author that he has atleast brought Jainism to limelight again, it needs to be carried ahead. GOod luck , Jai Jinendra.
आपके भास्कर मे रविवार को छपने वाले लेख पढता हूं, आप आचार्य हस्तीमलजी महाराजसाहब की "जैन धर्म का मौलिक इतिहास जरूर पढें", इसमें मानव सभ्यता के युगलिक, कुलकर काल से लेकर श्रमण,( निग्रंथ) धर्म के बारे मे बहूत जानकारी मिलेगी, स्थानकवासी परम्परा मे बहूत बड़े आचार्य है हस्तीमल जी महाराजसाहब।।
Devdatta ji, your understanding of the subject is truly admirable and enlightening. The depth of your knowledge keeps viewers engaged and inspired. However, similar to the host, I found myself struggling to stay awake towards the end of the conversation. Keep up the great work!
❤️जैनों की मूल मान्यताएँ❤️ जैन धर्म अन्य धर्मों से भिन्न व स्वतंत्र धर्म है जो अनादि काल से चला आ रहा है और अनंत काल तक चलता रहेगा। 1. यह लोक अनादि अनंत तथा अकृत्रिम है। चेतन अचेतन छह द्रव्यों से भरा है। अनंतानंत जीव भिन्न-भिन्न है। अनंतानंत परमाणु जड़ हैं। 2. लोक के सर्व ही द्रव्य स्वभाव से नित्य है, परंतु अवस्था के बदलने की अपेक्षा अनित्य हैं। 3. संसारी जीव प्रवाह की अपेक्षा अनादि से जड़, पाप-पुण्यमय कर्मों के शरीर संयोगसे पाये हुए, अशुध्द हैं। 4. हर एक संसारी जीव स्वतंत्रता से अपने अशुध्द भावों द्वारा कर्म बांधता है और वही अपने शुध्द भावों से कर्मों का नाश कर मुक्त हो सकता है। 5.जैसे भोजन पान स्थूल शरीर में स्वयं रुधिर वीर्य बनकर अपने फल को दिया करता है, ऐसेही पाप-पुण्यमय सूक्ष्म शरीर स्वयं पाप पुण्य फल प्रकट करके आत्मा में क्रोधादि व दुःख सुख झलकाया करता है। कोई परमात्मा किसी को दुःख सुख नहीं देता। 6.मुक्त जीव या परमात्मा अनंत हैं।उन सबकी सत्ता भिन्न-भिन्न है ,कोई किसी में मिलता नहीं। सब ही नित्य स्वात्मानंद का भोग किया करते है तथा फिर कभी संसार अवस्था में नहीं आते। 7.साधक गृहस्थ या साधुजन मुक्ति-प्राप्त परमात्माओं की भक्ति व आराधना अपने परिणामों की शुध्दि के लिए करते हैं।उनको प्रसन्न कर उनसे फल पाने के लिए नहीं। 8.मुक्ति का साक्षात साधन अपने ही आत्मा को परमात्मा के समान शुध्द गुण वाला जानकर-श्रध्दान करके-और सब प्रकारका राग,द्वेष,मोह त्याग करके उसी का ध्यान करना है क्योकि राग,द्वेष, मोह से कर्म बंधते हैं। इसके विपरीत वीतराग भावमयी आत्मसमाधि से कर्म झड़ते या नाश हो जाते हैं। 9.अहिंसा परम धर्म है।साधु इसको पूर्णता से पालते है। गृहस्थ यथाशक्ति अपने-अपने पद के अनुसार पालते हैं। धर्म के नाम पर मांसाहार, शिकार, शौक आदि व्यर्थ कार्यों के लिये जीवों की हत्या नहीं करते हैं। 10. भोजन शुध्द,ताजा(मांस, मदिरा, मधु रहित) व पानी छना हुआ लेना उचित है। 11. क्रोध,मान, माया लोभ इन आत्मा के शत्रुओं को दूर करना चाहिये। 12. साधु के नित्य छह कर्म ये हैं- सामायिक या ध्यान, प्रतिक्रमण (पिछले दोषों की निन्दा), प्रत्याख्यान (भविष्य में आगामी दोष त्याग की भावना) स्तुति, वंदना, कायोत्सर्ग (शरीर की ममता त्यागना)। 13.गृहस्थों के नित्य छह कर्म ये हैं:देव-पूजा, गुरु-भक्ति, शास्त्र पठन, संयम, तप और दान। 14.दिगंबर साधु परिग्रह व आरम्भ नहीं रखते। वे अहिंसा,सत्य, अस्तेय, ब्रह्मचर्य, परिग्रह-त्याग इन पांच महाव्रतों को पूर्ण रूप से पालते हैं। 15.गृहस्थों के आठ मूल गुण हैं-मदिरा,मांस,मधु का त्याग तथा एक देश यथाशक्ति अहिंसा,सत्य, अस्तेय, ब्रह्मचर्य व परिग्रह-प्रमाण इन पांच अणुव्रतों का पालना। जैन धर्म में मूल मान्यताओं के विपरित मान्यताओं को मिथ्यात्व कहा गया हैं।
जैनिज्म.... अहिंसा व तीर्थंकरों की जानकारी सराहनीय लगी। कृपा कर मांसाहार, रात्रि भोजन त्याग, व उपवासों के विषय मे जानकारी दीजिए सर......वर्तमान में अन्तर्मना आचार्य प्रसन्न सागर जी महाराज ने जिनज्म के सबसे बड़े तीर्थ पर 586 दिन के मौन साधना व उपवास किये इस पर आप की प्रतिक्रिया आप के समझ जानना चाहूंगा सर😊
केवलज्ञान क्या हैं कोई लिखित tecords नही हैं, दिगंबर jaino के मानना हैं की केवलज्ञान के बारे में लिखी हुई सारे रिकॉर्ड खो suke हैं, और। भविष्य में भी कोई केवलज्ञान प्राप्त नहीं करेगा, इस तरह केवलज्ञान सिर्फ एक लीजेंड बन के रह गैया हैं
@@brc123321केवल्य ज्ञान कोई limited knowledge का नाम नही है इसे कही लिपिबद्ध किया ही नही जा सकता है यह अनंत से शून्य तक प्रसारित है आम भाषा मे कहे तो वह स्टेट जब आपके सारे प्रश्न खतम हो जाए आपके पास सारे सोल्यूशन ही सोल्यूशन हो.. उत्तर ही उत्तर हो.. "संपूर्ण ज्ञान" हो जाए वही केवल्य ज्ञान है
बुद्ध ने कहा है... अपो दीपो भव... तुम्हारा जीवन तुम्हे ही सवारणा पडेगा... तुम ही तुम्हारे जीवन के निर्माता हो... दुःखी तुम हो तुम्हे ही ज्ञान के सहायता से दुःख से मुक्ती प्राप्त करनी पडेगी. जय श्री कृष्णा, नमो बुध्दाय, जय जिनेंद्र 🙏🙏🙏
बोहुत कम लोग उस रास्ते में सफलता के साथ चल सकता हैं, ज्यादातर लोगों को भगवान/ईश्वर और आइन/कानून साहिए, नहीं तो समाज अनाचार बेयभिचार और अपराधियो से भर जाता हैं।
आप बहुत ही अच्छा समझा रहे हो ,पर आप अभी भी जैन धर्म को ओर अच्छे से समझेंगे तो ओर भी अच्छा होगा, क्युकी इस विडीयो मे बहुत कुछ अधुरा है , जो आप जानते है या नही पता नहीं, पर आप ओर अच्छे से जानेंगे तो बहुत अच्छा होगा। क्युकी अधुरा ज्ञान झहेर समान होता है। ऐ तो आप धर्म के बारे मे बता रहे हो ,तो संपूर्ण जानो। प्रणाम
@@mohitjain9997Sri Krishna ki archaeological evidence hain, Dwarka sehar ke ruins samudra ke niche, bohut saare artifacts bhi mile hain, kuch Mahabharat ke kahani ae milte hain
10:55 भूत याने पुराना भूतकाल निकालने से लढाई-झघडा मतलब भूत का प्रकोप 25:30 जो दुसरो पर विजय प्राप्त करता है ओ विर कहते है जो खुदपर विजय प्राप्त करता है ऊसे महाविर कहते है
Tirthankar is one who has attained " Keval Gyan", Who knows all, who has gained victory over hunger, all five senses, whose "jinvaani " teaches the path to achieve the ultimate release,attain moksha. Hence Saraswati in the form of jinvaani is worshipped.
🚩🚩सोलहकारण भावना से तीर्थंकर 🚩🚩 🌟⭐️🌟⭐️🌟⭐️🌟⭐️🌟⭐️🌟⭐️🌟 जिनको बार-बार भाया जाए, उन्हें भावना कहते हैं। संख्या में १६ होने से इन्हें सोलहकारण भावना कहते हैं। ये तीर्थंकरप्रकृति का बंध कराने में कारण हैं। 🚩 🚩 🚩 🚩 १. दर्शनविशुद्धि-पच्चीस मल दोष रहित विशुद्ध सम्यग्दर्शन को धारण करना। 🚩🚩🚩 २. विनयसम्पन्नता-देव, शास्त्र, गुरु तथा रत्नत्रय की विनय करना। 🚩🚩🚩 ३. शील व्रतों में अनतिचार-व्रतों और शीलों में अतिचार नहीं लगाना। 🚩🚩🚩 ४. अभीक्ष्ण ज्ञानोपयोग-सदा ज्ञान के अभ्यास में लगे रहना। 🚩🚩🚩 ५. संवेग-धर्म और धर्म के फल में अनुराग होना। 🚩🚩🚩 ६. शक्तितस्तप-अपनी शक्ति को न छिपाकर तप करना। 🚩🚩🚩 ७. शक्तितत्याग-अपनी शक्ति के अनुसार आहार आदि दान देना। 🚩🚩🚩 ८. साधुसमाधि-साधुओं का उपसर्ग आदि दूर करना या समाधि सहित मरण करना। 🚩🚩🚩 ९. वैयावृत्यकरण-व्रती, त्यागी आदि की सेवा वैयावृत्ति करना। 🚩🚩🚩 १०. अरिहंत भक्ति-अरिहंत भगवान की भक्ति करना। 🚩🚩🚩 ११. आचार्य भक्ति-आचार्य की भक्ति करना। 🚩🚩🚩 १२. बहुश्रुत भक्ति-उपाध्याय परमेष्ठी की भक्ति करना। 🚩🚩🚩 १३. प्रवचन भक्ति-जिनवाणी की भक्ति करना। 🚩🚩🚩 १४. आवश्यक अपरिहाणि-छह आवश्यक क्रियाओं को सावधानी से पालना। 🚩🚩🚩 १५. मार्ग प्रभावना-जैन धर्म का प्रभाव फैलाना। 🚩🚩🚩 १६. प्रवचन वत्सलत्व-साधर्मी जनों में अगाध प्रेम करना। 🚩🚩🚩 इन सोलह भावनाओं में दर्शन-विशुद्धि भावना का होना बहुत जरूरी है। फिर उसके साथ दो, तीन आदि कितनी भी भावनाएँ हों या सभी हों, तो तीर्थंकर प्रकृति का बंध हो सकता है। तीर्थंकर प्रकृति के बाँधने वाले जीव के परिणामों में जगत के सभी प्राणियों के उद्धार की करुणापूर्ण भावना बहुत तीव्र हुआ करती है। 💦🚩💦🙏💦🚩💦 (संकलक:आनंद जैन कासलीवाल) 卐卐卐卐卐卐卐卐卐卐卐卐卐卐卐卐卐卐卐卐卐卐
I respect mr.patnaik but knowledge about bhagwan rishabhdev is not completely correct... bhagwan Rishbha dev swarg nhi gye the ,wo khud ayodhya ke raja the or unke darbar me nilanjana nam ki nrityagna nach rhi thi or nachte nachte death ho gyi jise dekhkar unhe vairagya hua tha....ki jeevan ka koi bharosa nhi hai.....unhe already moksh ka gyan tha
@@ddeevvaallBro he said but what he said is not correct as per Jainism. In jainism, people of manusha gati can't go in dev gati or dev lok. But dev and devis can come in madhya lok.
Har dharm mein ved bha kiya gaya hai Kahin man ke against mein to kahin women ke against mein Har dharm ko samaye ke sath khud ko paribartan kar na chahiye Jain dharm mein bahut sare sundar pratha hain but kuch aise bhi pratha hai jo aj ke jamane mein paribartan hona chahiye . Personally I don't like Jainism But as a history student I have great admire towards lord mahavir He is the first person who speak against social injustices at that time
@@parijainparijain3044 dabba sampradai hai. khud ki koi bhasha bhi nahi hai aur apne aap ko pracheen manta hai. ramayan aur mahabahrat tod marod ke gobar Kar rakha hai. musalmaano ke aas paas is chote se sampradai ne pankh lehrane shuru kiye. everything is made up no facts nothing.
Sir your knowledge about rishab devji is not correct. Please do not spread misinformation about Jainism. Please update your knowledge from a proper learned monk of Jainism
Isko viswaas mat kijiye. Yeh Left Liberal Marxist/Communist hai aur isi agenda se hi Sanatan Dharm aurShastron ka galat interpret karke haani pahunchata hai.
Bharat has been the bed rock of growth of Sanatana Dharm, Buddhism and Jainism. All these paths of understanding cosmic consciousness and rebirth lead us to understanding of “Bhram”. These paths are part of our Itihas. These are no more myths. These branches have grown from time to time. Devdutt ji is cashing on the Bollywood name and has a habit, to have personal gains. He is by now a part of the group of Pseudo seculars and pleases Abrahamic faith followers by demeaning Sanatana Sanskriti. Shastr̥arth does not mean fighting with each other having different opinion on a subject. But he says people performing Shastr̥arth were fighting. It is unfortunate Bharat has a chain of Jaichands, from time to time. We should abandon listening him and reading his text, hence forth. Jagaran Manch is requested to avoid him in near future. Attaining swarg&moksha is departure from physical need not one becomes intoxicated by abundance, as said by Devdutt ji. Jeevatma is a part of param-atma. Sohamsoo! Aham-brahmasmi! Mahadev Bless Us All! JAI VAASUDEV KUTAMBUKAM!
Samavsharan hota haiसमवशरण और जिन होते हैं जिन्न नही जिन्न तो भुत को कहा जाता है जिन यानि जिन्होने अपनी इन्द्रियों को जीत लिया अपने मन पर विजय प्राप्त करने वाला जिन,जिनेन्द्र भगवान🙏
अरब में महायान बौद्ध धम्म में बुद्ध को बुत बोला जाता था, और वही सीरीया में महायान बौद्ध धम्म में बुद्ध को जिन बोला जाता हैं।
@@vikkiraj3318 jain dharm prachin samay me pure vishwa tk faila hua tha aur jis Siriya ki aap bat kr rhe hain wahan bhi ye jain dhrm hi hai jo bdlkr baudh dhrm ho gya hai
@@vikkiraj3318😊😊😊😊😊😊😊😊😊😊😊😊😊😊😊😊😊
@@Universal_Call जैन तो महायान का शाखा हैं।
Q
जिन्न नहीं कृपया जिन कहें . बहुत सुंदर विभेद किया है , व्याख्या की है परंतु भगवान बाहुबली तथा भरत - भारत नहीं ' के बीच हुये युद्ध का वर्णन यूं करें कि उनमें जलयुद्ध हुआ , दृष्टि युद्ध हुआ और मल्ल युद्ध हुआ था . सेनाओं मे कोई युद्ध नही हुआ था . यह एक आदर्श उदाहरण सेनाओं में युद्ध न कराके पर स्पर युद्ध करके हार - जीत तय करना .
जैन आख्यान का सपूर्ण नहीं , खंडित रूप आया है पर सुविख्यात मायथोलोजिस्ट श्री देवदत्त पटनायक जी को जैन धर्म को वारे में सुनना सुखद और ज्ञान वर्द्धक लगा ।
मैंने भगवान रिषभदेव / आदिनाथ प्रथम तीर्थंकर की अम्यर्थना जो आचार्य मानतुंग स्वामी ने संस्कृत के 48 काव्यों मे की थी / उसका हिन्दी में काव्यातंरण किया हे । मेरी कृति का नाम मनः प्रणाम है । मेरी प्रार्थना है कि आप भक्तामर स्तोत्र पर अवश्य लिखें / कहें । आप अनुमति देंगे तो मैं आपको अपनी कृति प्रेषित कर दूंगा ।
देवेन्द्र कुमार जैन सेवा निवृत्त जिला जज । अयोध्या नगर भोपाल
मो .9826312428.
Bahut hi acche aur sankshipt mein bataya devduttji ne jain dhatm ke baare mein. Unka sabhi dharm ka accha abhyas hain. Sarv dharm sambhav. 🙏🙏every religion is unique great and for welfare of human beings🙏😊
स्वर्ग की अप्सरा नहीं यही अयोध्या में उनके राजमहल में नृत्यांगना ना च रही थी उसकी मृत्यु हो गई तुरन्त दूसरी नृत्यांगना उपस्थित हुईं सभा में किसी को समझ नहीं आया कि पहली नृत्यांगना की मुत्थु होगी लेकिन ऋषभदेव को ज्ञान में आ गया था और उनको वैराग्य हो गया ।
bahut bahut dhanyawad madam aur sir aise video jaari rakha Jo love u ❤❤❤❤❤
सभी धर्मोंका तुलनात्मक अभ्यास करना बहुतही कठिन चिज है , जो देवदत्त पटनाईक जी ने की है l उनकी मैं सराहना करता हूं l उन्हे लंबी और आरोग्यपूर्ण आयु मिले l
बहुत सुन्दर विवरण है। आप तत्वों को बड़े गहनता से जानते है। खूब अनुमोदना, 💐
आदरणीय देवदत्त पटनायक जी
सादर वंदन प्रणाम
आपका बौद्धिक अध्यात्मिक ज्ञान को कोटिक सलाम अभिनंदन
बहुत बहुत अच्छा
आपके समझाने का तरीका बहुत ही प्रभाव शाली है
मैं आपसे बहुत ही।प्रभावित हु
It is wonderful talk on Jain concepts. Tirthankars are the enlightened or awakened souls. They propound Jain religion in their times. After death they become Paramatma.
प्रत्येक आत्मा में परमात्मा बनने की योग्यता विद्यमान है,पर वह आवृत्त है।महान पुरुषार्थ द्वारा उसे प्रकट किया जा सकता है।
I read this book at Crossword , and me being Jain was curious to find a Book on Jainism. Jainism has very very deep roots of Knowledge : Samyak Gyan. But the way he portrays Principles of Jainism, it;s very surface level Knowledge . It requires very deep knowledge to even attempt to write on Jainism. I would suggest the author to Spend more sessions with the Jain monks, as they are always happy to Spread knowledge and that too without any Monetary expectations(unlike other Sadhus) coz We believe in 'Aparigraha'. This book mentions just few basics on Jainism. But I would appreciate the Author that he has atleast brought Jainism to limelight again, it needs to be carried ahead. GOod luck , Jai Jinendra.
Jai jinendra..
If u need to know about basics of Jainism...go to sanganer rajasthan...got some easy litrature
Read the chehdala book first if you want to gain good knowledge on Jainism.😊
Hello is just a byproduct of the analytical mind who can only find the surface, no experience, no deep wisdom, just a rhetoric
@@vivekjain2261which book? Can you name it?
@@vking4535- Chehdala book
बहुत बढ़िया समझाया Mythology विश्वाश पर आधारित है ।।
आपके भास्कर मे रविवार को छपने वाले लेख पढता हूं, आप आचार्य हस्तीमलजी महाराजसाहब की "जैन धर्म का मौलिक इतिहास जरूर पढें", इसमें मानव सभ्यता के युगलिक, कुलकर काल से लेकर श्रमण,( निग्रंथ) धर्म के बारे मे बहूत जानकारी मिलेगी, स्थानकवासी परम्परा मे बहूत बड़े आचार्य है हस्तीमल जी महाराजसाहब।।
आपने बहुत ही अच्छा तरंह से समझाने की कोशिश आपको बहुत बहुत धन्यवाद और अनुमोदना
Ati anand hua yeh samvaad sun kar. Keep posting more such talks.
Devdatta ji, your understanding of the subject is truly admirable and enlightening. The depth of your knowledge keeps viewers engaged and inspired. However, similar to the host, I found myself struggling to stay awake towards the end of the conversation. Keep up the great work!
Great samvaad, kudos to Devadutt ji.
Very nicely described. Good information about Jainism in a short period. जय जिनेन्द्र 🙏
Thanks Devadatta Ji, for nicely explaining few of the concepts in Jainism in short.
सब अपना अपना चिंतन अपनी अपनी कल्पनाएँ हैं। सभी धर्मों में यही बात है।
❤️जैनों की मूल मान्यताएँ❤️
जैन धर्म अन्य धर्मों से भिन्न व स्वतंत्र धर्म है जो अनादि काल से चला आ रहा है और अनंत काल तक चलता रहेगा।
1. यह लोक अनादि अनंत तथा अकृत्रिम है। चेतन अचेतन छह द्रव्यों से भरा है। अनंतानंत जीव भिन्न-भिन्न है। अनंतानंत परमाणु जड़ हैं।
2. लोक के सर्व ही द्रव्य स्वभाव से नित्य है, परंतु अवस्था के बदलने की अपेक्षा अनित्य हैं।
3. संसारी जीव प्रवाह की अपेक्षा अनादि से जड़, पाप-पुण्यमय कर्मों के शरीर संयोगसे पाये हुए, अशुध्द हैं।
4. हर एक संसारी जीव स्वतंत्रता से अपने अशुध्द भावों द्वारा कर्म बांधता है और वही अपने शुध्द भावों से कर्मों का
नाश कर मुक्त हो सकता है।
5.जैसे भोजन पान स्थूल शरीर में स्वयं रुधिर वीर्य बनकर अपने फल को दिया करता है, ऐसेही पाप-पुण्यमय सूक्ष्म शरीर स्वयं पाप पुण्य फल प्रकट करके आत्मा में क्रोधादि व दुःख सुख झलकाया करता है। कोई परमात्मा किसी को दुःख सुख नहीं देता।
6.मुक्त जीव या परमात्मा अनंत हैं।उन सबकी सत्ता भिन्न-भिन्न है ,कोई किसी में मिलता नहीं। सब ही नित्य स्वात्मानंद का भोग किया करते है तथा फिर कभी संसार अवस्था में नहीं आते।
7.साधक गृहस्थ या साधुजन मुक्ति-प्राप्त परमात्माओं की भक्ति व आराधना अपने परिणामों की शुध्दि के लिए करते हैं।उनको प्रसन्न कर उनसे फल पाने के लिए नहीं।
8.मुक्ति का साक्षात साधन अपने ही आत्मा को परमात्मा के समान शुध्द गुण वाला जानकर-श्रध्दान करके-और सब प्रकारका राग,द्वेष,मोह त्याग करके उसी का ध्यान करना है क्योकि राग,द्वेष, मोह से कर्म बंधते हैं। इसके विपरीत वीतराग भावमयी आत्मसमाधि से कर्म झड़ते या नाश हो जाते हैं।
9.अहिंसा परम धर्म है।साधु इसको पूर्णता से पालते है।
गृहस्थ यथाशक्ति अपने-अपने पद के अनुसार पालते हैं।
धर्म के नाम पर मांसाहार, शिकार, शौक आदि व्यर्थ कार्यों के लिये जीवों की हत्या नहीं करते हैं।
10. भोजन शुध्द,ताजा(मांस, मदिरा, मधु रहित) व पानी छना हुआ लेना उचित है।
11. क्रोध,मान, माया लोभ इन आत्मा के शत्रुओं को दूर करना चाहिये।
12. साधु के नित्य छह कर्म ये हैं- सामायिक या ध्यान,
प्रतिक्रमण (पिछले दोषों की निन्दा), प्रत्याख्यान (भविष्य में आगामी दोष त्याग की भावना) स्तुति, वंदना, कायोत्सर्ग
(शरीर की ममता त्यागना)।
13.गृहस्थों के नित्य छह कर्म ये हैं:देव-पूजा, गुरु-भक्ति, शास्त्र पठन, संयम, तप और दान।
14.दिगंबर साधु परिग्रह व आरम्भ नहीं रखते। वे अहिंसा,सत्य, अस्तेय, ब्रह्मचर्य, परिग्रह-त्याग इन पांच महाव्रतों को पूर्ण रूप से पालते हैं।
15.गृहस्थों के आठ मूल गुण हैं-मदिरा,मांस,मधु का त्याग तथा एक देश यथाशक्ति अहिंसा,सत्य, अस्तेय, ब्रह्मचर्य व परिग्रह-प्रमाण इन पांच अणुव्रतों का पालना।
जैन धर्म में मूल मान्यताओं के विपरित मान्यताओं को मिथ्यात्व कहा गया हैं।
JAY JINEDRA
Jai Jinendra
Ati sundar .....
जैन सनातन धर्म का ही एक अंग है, कोई स्वतंत्र धर्म नहीं. ये बकवास अपने ढाई ग्राम भेजे में से बाहर निकाल दो, भला होगा
@@karan_93jain dharm sanatan ka ang nahi balki sanatan hi hai sanatan hi viksit hokàr bhinna bhinna roopo me astitwamaan hai
(Nairobi)🙏JaiJinendra 🙏Aap ka Aabhar Dhanyavad 🙏👌👍
बहुत ही सुन्दर ब्याख्यान😊
Mai Jain hu,but jitni acchi tarah se aapne jainism ko samjhaaya utna to mai bhi nahi bata paati. Aapko saadar naman sir.
I am proud Jain 🙏🏻
Aaj ke academics mein mahatvakaksha ke baare mein Sikhaya jaata hai ,santosh ke baare mai nahi
So true
Thanks to the lady to allow the guest to speak without interrupting.
अदभुत........ 😮 Amazing...... Beautiful💐 🙏👌
इतना आसान नहीं है जैन धर्म की विशालता और गहराई को समझना। जैन धर्म यानि ब्रम्हांड का समर्पण ज्ञान यानी आज के साइंस से कहीं विशाल और गहरा।
बहुत सुंदर ढंग से अपने जैन धर्म के बारे में समझाया है
Happy to see that some one telling to all of us about Jainism.
जैन फ़िलोसॉपी
इसकी बुक मैं बहुत चेंजेस चाहिए और कोई तो इनके कनॉलेज को करेक्ट करवाना चाहिए जिससे सही जानकारी अन्य लोगो तक पहुँचे👆
जैनिज्म.... अहिंसा व तीर्थंकरों की जानकारी सराहनीय लगी। कृपा कर मांसाहार, रात्रि भोजन त्याग, व उपवासों के विषय मे जानकारी दीजिए सर......वर्तमान में अन्तर्मना आचार्य प्रसन्न सागर जी महाराज ने जिनज्म के सबसे बड़े तीर्थ पर 586 दिन के मौन साधना व उपवास किये इस पर आप की प्रतिक्रिया आप के समझ जानना चाहूंगा सर😊
बहुतही सुंदर जानकारी आपने दी है l
Superb video and covering ancient Bharat History as well.
Sirji ne Bollywood ke bareme bahut sahi kaha hai
दिगंबर जैन धर्म परंपरा पर और अभ्यास जरूरी है अनेक आचार्य गुरुदेव से यह ज्ञान मिलेगा
Extraordinary explanation
Thank you for good knowlege.
Bahut badhiya knowledge apse mila sir
His knowledge is as good as his inspiration
Well, Very True, Excellent Descriptions 📝💯💐🌹👌
Very well explained sir🙏 🙏
बहुत अच्छे सुंदर ढंग से अपने जैन धर्म के बारे मेंसमझाया
धन्यवाद बहुत सुन्दर
Very nice discussion about Jainism
आपको भारत बाहुबली के बीच हुए अहिंसक तीनों युद्ध के बारे में जानकारी देते तो बहुत अच्छा रहता l
Bhut bhut sadhuwad🎉❤😊
अद्भुत 👌
Beautifully explained sir superb 🙏
Devdutt❤❤❤❤
Very good. Explained in very simple language
Jai jinendra 🙏🙏🙏🙏
TNX really good explanation must listen intently
Superb logical and true ❤❤
Jainism का बहुत सटीक विश्लेषण
Nahi.... Kafi baate wrong hai... Par kuch sahi hai
Good light on me. Santosh Mila sunke.thx
तीर्थंकर को संपूर्ण ज्ञान होता है जिसे केवलज्ञान कहते है ।और हर एक आत्मा में परमात्मा बनने की क्षमता होती है । सिर्फ अभवी आत्मा को छोड़कर
केवलज्ञान क्या हैं कोई लिखित tecords नही हैं, दिगंबर jaino के मानना हैं की केवलज्ञान के बारे में लिखी हुई सारे रिकॉर्ड खो suke हैं, और। भविष्य में भी कोई केवलज्ञान प्राप्त नहीं करेगा, इस तरह केवलज्ञान सिर्फ एक लीजेंड बन के रह गैया हैं
@@brc123321केवल्य ज्ञान कोई limited knowledge का नाम नही है इसे कही लिपिबद्ध किया ही नही जा सकता है यह अनंत से शून्य तक प्रसारित है
आम भाषा मे कहे तो वह स्टेट जब आपके सारे प्रश्न खतम हो जाए आपके पास सारे सोल्यूशन ही सोल्यूशन हो.. उत्तर ही उत्तर हो.. "संपूर्ण ज्ञान" हो जाए वही केवल्य ज्ञान है
Jagat Satyam, Brahma Mithya!
grt efforts!! however, jainism is much deeper than this!! santosh is described well!!
jai jinendra 🙏
बुद्ध ने कहा है... अपो दीपो भव... तुम्हारा जीवन तुम्हे ही सवारणा पडेगा... तुम ही तुम्हारे जीवन के निर्माता हो... दुःखी तुम हो तुम्हे ही ज्ञान के सहायता से दुःख से मुक्ती प्राप्त करनी पडेगी.
जय श्री कृष्णा, नमो बुध्दाय, जय जिनेंद्र 🙏🙏🙏
बोहुत कम लोग उस रास्ते में सफलता के साथ चल सकता हैं, ज्यादातर लोगों को भगवान/ईश्वर और आइन/कानून साहिए, नहीं तो समाज अनाचार बेयभिचार और अपराधियो से भर जाता हैं।
Jai. Jinendra
All these religions have roots in Hinduism Sanatan dharma is mother off all
TQ sir apne bhut achche se samjhaya
Dave Devdas ji🎉🎉🎉
Patnayak ji you are great
VERY INTERSTING
VERY WELL EXPLAINED
WOULD LIKE TO HEAR MORE FROM YOU
❤jay jinendra❤
Very nice🙏🏻🙏🏻🙏🏻
Only Tirthankar were able to conquer their Senses.
No one can do that, no one. I really mean No One.
Thats why they were Tirthankars 🙏
Very nicely explained sir.
Thankyouu
आप बहुत ही अच्छा समझा रहे हो ,पर आप अभी भी जैन धर्म को ओर अच्छे से समझेंगे तो ओर भी अच्छा होगा, क्युकी इस विडीयो मे बहुत कुछ अधुरा है , जो आप जानते है या नही पता नहीं,
पर आप ओर अच्छे से जानेंगे तो बहुत अच्छा होगा।
क्युकी अधुरा ज्ञान झहेर समान होता है।
ऐ तो आप धर्म के बारे मे बता रहे हो ,तो संपूर्ण जानो।
प्रणाम
अच्छा है। आर्कियोलॉजिकल एविडेंस भी दे दिया जाय प्लीज।
Kis cheez ka?
@@mohitjain9997 जिससे सवाल है वह समझ गए हैं
@@sanand8767 bhagwan ram krishna ka archeological evidence hum kaha se de tumko wo shraddhame hai
@@mohitjain9997Sri Krishna ki archaeological evidence hain, Dwarka sehar ke ruins samudra ke niche, bohut saare artifacts bhi mile hain, kuch Mahabharat ke kahani ae milte hain
Awesome narration
Want book to read ..
I will surely do
Nice to heard ❤
Respect ,,,,
Very nice explanation
Jainism par charcha sukhad hai. Mr. Patnayak ko badhai.
देवदत्त भईया जी, क्षमा चाहूँगा पर आप जिसको विश्वास कह रहे हैं उसे आस्था कहते हैं। आस्था = मानना(कल्पना, अनुमान),,, विश्वास = जानना(प्रामाणित ज्ञान)
जय मां भारती 🕉️🕉️🚩🚩🇮🇳🇮🇳❤️✌️
10:55 भूत याने पुराना भूतकाल निकालने से लढाई-झघडा मतलब भूत का प्रकोप
25:30 जो दुसरो पर विजय प्राप्त करता है ओ विर कहते है जो खुदपर विजय प्राप्त करता है ऊसे महाविर कहते है
There are 5 major principles of Jains
Aparigrah
Ahimsa
Asteya
Satya
Bramhacharya
ANEKANTWAAD is also a JAIN'S PHILOSOPHY
रोचक विषय।
श्रमण परम्परा ब्राह्मण/वैदिक परम्परा से प्राचीन है यह बात सबूतों के साथ साबित किया जा सकता है ।
Amazing
Tirthankar is one who has attained " Keval Gyan", Who knows all, who has gained victory over hunger, all five senses, whose "jinvaani " teaches the path to achieve the ultimate release,attain moksha. Hence Saraswati in the form of jinvaani is worshipped.
Good episode
Devduttji jain dharm me koi Kalpana nahin hai. It is a scientific dharm. It is art of living. Jiyo aur jeene do. Don't harm anyone
❤
🚩🚩सोलहकारण भावना से तीर्थंकर 🚩🚩
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जिनको बार-बार भाया जाए, उन्हें भावना कहते हैं।
संख्या में १६ होने से इन्हें सोलहकारण भावना कहते हैं। ये तीर्थंकरप्रकृति का बंध कराने में कारण हैं।
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१. दर्शनविशुद्धि-पच्चीस मल दोष रहित विशुद्ध सम्यग्दर्शन को धारण करना।
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२. विनयसम्पन्नता-देव, शास्त्र, गुरु तथा रत्नत्रय की विनय करना।
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३. शील व्रतों में अनतिचार-व्रतों और शीलों में अतिचार नहीं लगाना।
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४. अभीक्ष्ण ज्ञानोपयोग-सदा ज्ञान के अभ्यास में लगे रहना।
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५. संवेग-धर्म और धर्म के फल में अनुराग होना।
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६. शक्तितस्तप-अपनी शक्ति को न छिपाकर तप करना।
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७. शक्तितत्याग-अपनी शक्ति के अनुसार आहार आदि दान देना।
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८. साधुसमाधि-साधुओं का उपसर्ग आदि दूर करना या समाधि सहित मरण करना।
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९. वैयावृत्यकरण-व्रती, त्यागी आदि की सेवा वैयावृत्ति करना।
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१०. अरिहंत भक्ति-अरिहंत भगवान की भक्ति करना।
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११. आचार्य भक्ति-आचार्य की भक्ति करना।
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१२. बहुश्रुत भक्ति-उपाध्याय परमेष्ठी की भक्ति करना।
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१३. प्रवचन भक्ति-जिनवाणी की भक्ति करना।
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१४. आवश्यक अपरिहाणि-छह आवश्यक क्रियाओं को सावधानी से पालना।
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१५. मार्ग प्रभावना-जैन धर्म का प्रभाव फैलाना।
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१६. प्रवचन वत्सलत्व-साधर्मी जनों में अगाध प्रेम करना।
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इन सोलह भावनाओं में दर्शन-विशुद्धि भावना का होना बहुत जरूरी है। फिर उसके साथ दो, तीन आदि कितनी भी भावनाएँ हों या सभी हों, तो तीर्थंकर प्रकृति का बंध हो सकता है। तीर्थंकर प्रकृति के बाँधने वाले जीव के परिणामों में जगत के सभी प्राणियों के उद्धार की करुणापूर्ण भावना बहुत तीव्र हुआ करती है।
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(संकलक:आनंद जैन कासलीवाल)
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I respect mr.patnaik but knowledge about bhagwan rishabhdev is not completely correct... bhagwan Rishbha dev swarg nhi gye the ,wo khud ayodhya ke raja the or unke darbar me nilanjana nam ki nrityagna nach rhi thi or nachte nachte death ho gyi jise dekhkar unhe vairagya hua tha....ki jeevan ka koi bharosa nhi hai.....unhe already moksh ka gyan tha
Right said, Mr Patnayak pls elaborate your knowledge about jaìnism futher
Ara listen properly he clearly said he visited swarg on invitation of indra
@@ddeevvaallBro he said but what he said is not correct as per Jainism.
In jainism, people of manusha gati can't go in dev gati or dev lok.
But dev and devis can come in madhya lok.
Dharm means business aur kuch nahi
Lord Mahavira social justice ke liye bahut reform laye theey lekin aj ki pidhi alag disha mein ja raha hai
Har dharm mein ved bha kiya gaya hai
Kahin man ke against mein to kahin women ke against mein
Har dharm ko samaye ke sath khud ko paribartan kar na chahiye
Jain dharm mein bahut sare sundar pratha hain but kuch aise bhi pratha hai jo aj ke jamane mein paribartan hona chahiye . Personally I don't like Jainism
But as a history student I have great admire towards lord mahavir
He is the first person who speak against social injustices at that time
Jai jinendra
आप कैसे लोगों को बुलाते हैं भाई। यह तो खतरनाक आदमी है
Please correct yourself its SAMAVSHARAN
24 Tirthankar Names are
1. Rishabhdev (Adinath)
2. Ajithnath
3. Sambhavnath
4. Abhinandan nath
5. Sumatinath
6. Padmaprabha
7. Suparshvanath
8. Chandraprabha
9. Pushpadant
10. Shitalnath
11. Shreyasnath
12. Vasupujya
13. Vimalnath
14. Ananthnath
15. Dharmanath
16. Shatinath
17. Kunthunath
18. Arahnath
19. Mallinath
20. Munisuvratnath
21. Naminath
22. Neminath
23. Parshvanath
24. Mahavir (Vardhaman)
Jai jinendra
imaginary ...
@@ManOfSteel1 tumhe PTA hi kya hai kon imaginary hai or kon yatarth Satya (anadiii)
@@parijainparijain3044 dabba sampradai hai. khud ki koi bhasha bhi nahi hai aur apne aap ko pracheen manta hai. ramayan aur mahabahrat tod marod ke gobar Kar rakha hai. musalmaano ke aas paas is chote se sampradai ne pankh lehrane shuru kiye. everything is made up no facts nothing.
Jaidatar Tirthankaro ke naam ke piche 'nath' shabda judi hui hain. Nath sampraday ki tarah hi dhyaan pe jaida imporance dete hain
jai Jinendra 🙏🏻🙏🏻 .... Jain Dharam K Liye Koi Achche se Jain Muni Ko He Bula Lete...
Sir your knowledge about rishab devji is not correct. Please do not spread misinformation about Jainism. Please update your knowledge from a proper learned monk of Jainism
It's not about his knowledge, it's about the lesson.
सरस्वती की प्राप्ति हेतु, स्वाध्याय की कुंजी का प्रयोग करें।
Jai Jinendra
he's a crook.
यह एक मिशनरी है, जैन धर्म का ध्यान तो किसी जैन ऋषी, मुनी ही दें सकते हैं।
Isko viswaas mat kijiye. Yeh Left Liberal Marxist/Communist hai aur isi agenda se hi Sanatan Dharm aurShastron ka galat interpret karke haani pahunchata hai.
Bharat has been the bed rock of growth of Sanatana Dharm, Buddhism and Jainism.
All these paths of understanding cosmic consciousness and rebirth lead us to understanding of “Bhram”.
These paths are part of our Itihas. These are no more myths. These branches have grown from time to time.
Devdutt ji is cashing on the Bollywood name and has a habit, to have personal gains.
He is by now a part of the group of Pseudo seculars and pleases Abrahamic faith followers by demeaning Sanatana Sanskriti.
Shastr̥arth does not mean fighting with each other having different opinion on a subject.
But he says people performing Shastr̥arth were fighting.
It is unfortunate Bharat has a chain of Jaichands, from time to time.
We should abandon listening him and reading his text, hence forth.
Jagaran Manch is requested to avoid him in near future.
Attaining swarg&moksha is departure from physical need not one becomes intoxicated by abundance, as said by Devdutt ji.
Jeevatma is a part of param-atma.
Sohamsoo!
Aham-brahmasmi!
Mahadev Bless Us All!
JAI VAASUDEV KUTAMBUKAM!
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जैन धर्म में परिग्रहण को पाप माना जाता है। पर सबसे जयादा जैन समाज ही करता है।