मन,बुद्धी,चित्त,अंहकार चारो जड हे, आत्मा के प्रकाशसे चलायमान हे मगर आत्मा के घेर कर बैठे हे अपने ध्यान को ऊपर उठने नही देते सक्ल्प ,विक्ल्प मे फँसाय रहते हे इन्दरियो के घाट पर भोग भोगने हेतु गिराते रहते हे अतह मन रूपी घौडे को बस मे कर आत्म धुन के साथ लगाना ही आत्मा को चारो चॉन्डाल चोकडी से निकलकर रुहानी मन्डले मे ले जाने का एक मात्र उपाय हे गुरू के आशिर्वाद से रास्ता मिलने पर समंभव हे ा जय गुरू देव
Sankalpa (Sanskrit: संकल्प) means conception or idea or notion formed in the heart or mind, solemn vow or determination to perform, desire, definite intention, volition or will.[1] In practical terms, the word, Sankalpa, means the one-pointed resolve to do or achieve; and both psychologically and philosophically, it is the first practical step by which the sensitivity and potentiality of the mind is increased; it is known as the capacity to harness the will-power and the tool to focus and harmonise the complex body-mind apparatus.
@@rajalol2069Vikalpa (विकल्प):-[vi-kalpa] (lpaḥ) 1. m. Error, ignorance; alternative; doubt. Vikalpa (विकल्प) in the Sanskrit language is related to the Prakrit words: Viappa, Vigappa.
Do you think brain and mind are two different entities, related entities, or independent entities? Do you think that memories are stored in the brain or mind?
वेद माता गायत्री को ब्रह्मविद्या प्रदात्री कहा गया है, सद्बुद्धि और विवेक कि जननी। विवेक होता है सत्य को आचरण मे अपनाने मे, जो झूठ को अपने आचरण मे अपनाये हुवे हैं, और योग (मनुष्य अंग) चुराने के लिए, 'ज्ञान का तप', श्रद्धा कि परीक्षा कह कर कूयोग चढाये, अपने मन कि आवाज कि जगह मोहन चढाये, योग मे भी गलत आचरण हो, असत्य वाणी, अनाधिकृत लोगों द्वारा योग चुरवायें, उनमे अभी विवेक नहीं, हां चतुर और स्याने हो सकते हैं, लेकिन 'ब्रह्मविद्या' के जानकार नहीं, उसके लिये जीवन मे 'राम' बनना पडता है,,, ऋषि परंपरा के नाम से शिष्यों के यहां छल कर औलाद पैदा करने वाले, नरमेघ के नाम से मनुष्य अंगों कि चोरी करने वाले, खुद 'नौकर' हैं, और अपने मालिक को 'सद्गुरू' कह कर प्रचारित करनेवाले कम से कम सद्ज्ञान या ब्रह्मविद्या के अधिकारी नहीं हो सकते,,, आद्य शंकराचार्य प्रशनोत्तर रत्नमालीका मे एक शब्द मे शिष्य को जवाब देते हैं कि गुरू रक्षती। काकभुशुण्डिजी कि कथा याद होगी, शिव के क्रुद्ध हो जाने पर भी काकभुशुण्डिजी के गुरूजी ने शिव जी से प्रार्थना कि थी कि माफ कर दे, मैंने यह प्रसंग इसलिये लिखा कि वैसे भी इस दुनिया मे कहा जाता है कि "क्षमा बडन को चाहिए,,,", लेकिन शांतिकुंज अपने छल कपट पर घमंड करता है, वह सोचता है वह सत्य कि भी जबान पकड लेगा, मैं ईमानदार हूं इसलिये आप लोगों कि बात आप लोगों से ही करता हूं, जबकि शांतिकुंज ने मेरा सारा योग, 'सांसें' तक चुरा रहा है लगातार कूयोग चढा कर मेरा और मेरे संबंधियों का योग निकाल रहा है, और जानता हूं,,, न आप लोगों मे कोई जिम्मेदारी से पूछेगा भी नहीं कि 'क्या बात है',,,क्योंकि आप लोग सत्य के साथ ईमानदार नहीं हैं... एक बात और आद्य शंकराचार्य प्रश्नोत्तर रत्नमालिका में कहते हैं की वह क्या जिससे प्रेरित हो कर मनुष्य पाप करता है, उसका जवाब दिया की "मान" है वह चीज जिस से प्रेरित हो मनुष्य पाप करता है, और अगर मान झूठा हो तो और ज्यादा पाप करवाता है।
संकल्प- विकल्प मन का काम है । वेदांत दर्शन में संकल्पविकल्प- आत्मकम् मनः, - कहा गया है । अध्यवसाय-आत्मिका बुद्धिः -.निर्णय बुद्धि करती है। जो जिसका अंश होता है उसमें वही गुण होते हैं जैसे लोहे के टुकडे से एक अंश काट लिया जाए तो जो गुण लोहे में होंगे वही गुण उस से कटे हुए टुकड़े में होंगे । यदि आत्मा ईश्वर का अंश है तो ईश्वर सर्वव्यापक है , आनंद स्वरूप है , निराकार है, सर्वशक्तिमान है, तो यही गुण आत्म में होने चाहिए। लेकिन आत्मा न तो सर्वशक्तिमान् है , न सर्वव्यापक । फिर आत्मा परमात्मा का अंश कैसे हुआ ?
Jeev Jeevshakti vishista Brahma ka ansh hai doosre shabdo me Aatma Yani jeevatma parmatma ka vibhinnansh hai Jeev tatva Vichar book download kr padhiye Hare Krsna Jai Shree Radheshyam Jai Shree Sitaram Hare Krsna 🌹🙏
Parnaam to Manishi ji. Naman. 🙏🙏🙏👏
Pronam Guruji ❤❤❤
Bahut Dhanyabat🙏🌹🎄
मन,बुद्धी,चित्त,अंहकार चारो जड हे, आत्मा के प्रकाशसे चलायमान हे मगर आत्मा के घेर कर बैठे हे अपने ध्यान को ऊपर उठने नही देते सक्ल्प ,विक्ल्प मे फँसाय रहते हे इन्दरियो के घाट पर भोग भोगने हेतु गिराते रहते हे अतह मन रूपी घौडे को बस मे कर आत्म धुन के साथ लगाना ही आत्मा को चारो चॉन्डाल चोकडी से निकलकर रुहानी मन्डले मे ले जाने का एक मात्र उपाय हे गुरू के आशिर्वाद से रास्ता मिलने पर समंभव हे ा जय गुरू देव
संकल्प विकल्प कया है??
Sankalpa (Sanskrit: संकल्प) means conception or idea or notion formed in the heart or mind, solemn vow or determination to perform, desire, definite intention, volition or will.[1] In practical terms, the word, Sankalpa, means the one-pointed resolve to do or achieve; and both psychologically and philosophically, it is the first practical step by which the sensitivity and potentiality of the mind is increased; it is known as the capacity to harness the will-power and the tool to focus and harmonise the complex body-mind apparatus.
@@rajalol2069Vikalpa (विकल्प):-[vi-kalpa] (lpaḥ) 1. m. Error, ignorance; alternative; doubt. Vikalpa (विकल्प) in the Sanskrit language is related to the Prakrit words: Viappa, Vigappa.
Hari Om guruji
प्रात स्मरणीय परम वन्दनीय माता जी,परम पूज्य गुरुदेव के चरणों में शत शत नमन, 🙏🙏🙏 पूजनीय विश्वेश्वर जी को शत शत नमन ।
जय श्री राम
जय गुरुदेव
डॉ भानु प्रताप सिंह भदौरिया गायत्री परिवार गोहद चौराहा भिंड मध्य
Ati sunder👌👌👍👍👃pranam
Pranaampranaam
Verywellexplaind
Bahut beautiful atama parmatama da gain
Swagatam. Namaskaram. Dhanyavadagalu. Quite clearly explained.
प्रणाम के साथ,बहुत सुंदर मार्गदर्शन
Jay guru dev kotish pranam
Jai parm pujya guru dev mata ji adarniya pujyaniya bhisahi ko charna espars
🎉🎉🎉🎉
Jay gurudcv
Bahut achha explanations, aapko sat sat naman.
धन्यवाद आदरणीय वीरेश्वर भाईसाहब
Excellent, explanation....
Thank you very much MAHARAJ...
Jai Gurudev!
Charansparsh babuji tq tq so much
Do you think brain and mind are two different entities, related entities, or independent entities? Do you think that memories are stored in the brain or mind?
Om
Well explained many thanks
🌹🌻🏵️🌹..... जय गुरुदेव.....🙏🙏🙏🙏
Jaigurudev ...hey yugrishi hameaisey jnan sadaiva aapse milthey rahe🙏🙏🙏🙏
Jay gurudev🙏 pranam🙏
वेद माता गायत्री को ब्रह्मविद्या प्रदात्री कहा गया है, सद्बुद्धि और विवेक कि जननी।
विवेक होता है सत्य को आचरण मे अपनाने मे, जो झूठ को अपने आचरण मे अपनाये हुवे हैं, और योग (मनुष्य अंग) चुराने के लिए, 'ज्ञान का तप', श्रद्धा कि परीक्षा कह कर कूयोग चढाये, अपने मन कि आवाज कि जगह मोहन चढाये, योग मे भी गलत आचरण हो, असत्य वाणी, अनाधिकृत लोगों द्वारा योग चुरवायें, उनमे अभी विवेक नहीं, हां चतुर और स्याने हो सकते हैं, लेकिन 'ब्रह्मविद्या' के जानकार नहीं, उसके लिये जीवन मे 'राम' बनना पडता है,,, ऋषि परंपरा के नाम से शिष्यों के यहां छल कर औलाद पैदा करने वाले, नरमेघ के नाम से मनुष्य अंगों कि चोरी करने वाले, खुद 'नौकर' हैं, और अपने मालिक को 'सद्गुरू' कह कर प्रचारित करनेवाले कम से कम सद्ज्ञान या ब्रह्मविद्या के अधिकारी नहीं हो सकते,,, आद्य शंकराचार्य प्रशनोत्तर रत्नमालीका मे एक शब्द मे शिष्य को जवाब देते हैं कि गुरू रक्षती। काकभुशुण्डिजी कि कथा याद होगी, शिव के क्रुद्ध हो जाने पर भी काकभुशुण्डिजी के गुरूजी ने शिव जी से प्रार्थना कि थी कि माफ कर दे, मैंने यह प्रसंग इसलिये लिखा कि वैसे भी इस दुनिया मे कहा जाता है कि "क्षमा बडन को चाहिए,,,", लेकिन शांतिकुंज अपने छल कपट पर घमंड करता है, वह सोचता है वह सत्य कि भी जबान पकड लेगा, मैं ईमानदार हूं इसलिये आप लोगों कि बात आप लोगों से ही करता हूं, जबकि शांतिकुंज ने मेरा सारा योग, 'सांसें' तक चुरा रहा है लगातार कूयोग चढा कर मेरा और मेरे संबंधियों का योग निकाल रहा है, और जानता हूं,,, न आप लोगों मे कोई जिम्मेदारी से पूछेगा भी नहीं कि 'क्या बात है',,,क्योंकि आप लोग सत्य के साथ ईमानदार नहीं हैं...
एक बात और आद्य शंकराचार्य प्रश्नोत्तर रत्नमालिका में कहते हैं की वह क्या जिससे प्रेरित हो कर मनुष्य पाप करता है, उसका जवाब दिया की "मान" है वह चीज जिस से प्रेरित हो मनुष्य पाप करता है, और अगर मान झूठा हो तो और ज्यादा पाप करवाता है।
Dhanyawad guruji aapne bahut achhe se samjhaya jay shree mahakal
Bahut badiya sir
Thanks gurudev 🙏🙏🙏🙏
Pranam guruji🙏
Karishye Vachnam Tawa
संकल्प- विकल्प मन का काम है । वेदांत दर्शन में संकल्पविकल्प- आत्मकम् मनः, - कहा गया है । अध्यवसाय-आत्मिका बुद्धिः -.निर्णय बुद्धि करती है।
जो जिसका अंश होता है उसमें वही गुण होते हैं जैसे लोहे के टुकडे से एक अंश काट लिया जाए तो जो गुण लोहे में होंगे वही गुण उस से कटे हुए टुकड़े में होंगे ।
यदि आत्मा ईश्वर का अंश है तो ईश्वर सर्वव्यापक है , आनंद स्वरूप है , निराकार है, सर्वशक्तिमान है, तो यही गुण आत्म में होने चाहिए।
लेकिन आत्मा न तो सर्वशक्तिमान् है , न सर्वव्यापक । फिर आत्मा परमात्मा का अंश कैसे हुआ ?
Atmaa chetan hai amar hai swatantra hai parmeshwar swatantra hai parm chetan hai bhagwan ka ansh nahi hai atma
Jeev Jeevshakti vishista Brahma ka ansh hai doosre shabdo me Aatma Yani jeevatma parmatma ka vibhinnansh hai Jeev tatva Vichar book download kr padhiye Hare Krsna Jai Shree Radheshyam Jai Shree Sitaram Hare Krsna 🌹🙏
Very nice 👌👌👌👌
Dhnywad
Thanks
कोई इस पर एक डिटेल PDF दे सके ताकि इसको दीर्घ उत्तरीय प्रश्न मे लिखा जा सके
🌹✌️🙏
🙏
🙏🙏🙏
चित्त का संबंध है -
a) महत् (बुद्धि ) से
b) अहंकार से
c) मन से
d) उपयुक्त सभी से
कृपया इसका उत्तर बतायें ।
Sir aapka number
Guru dev ke charno me pranam , Jay ho Gurudev! Aapane sab clear kara diya , Ap knha se ho gurudev ,Kya aap ke Drashan ho sakate hain Gurudev
🙏
🙏🙏🙏