हर रविवार || माँ सुरकंडा || का दरबार 🙏🏻

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  • Опубликовано: 5 фев 2025
  • किए यज्ञ कुण्ड में अपने प्राण त्याग दिए थे, तब भगवान शंकर देवी सती के मृत शरीर को लेकर पूरे ब्रह्माण के चक्कर लगा रहे थे। इसी दौरान भगवान विष्णु ने अपने सुदर्शन चक्र से सती के शरीर को 51 भागों में विभाजित कर दिया था, जिसमें सती का सिर इस स्थान पर गिरा था, इसलिए इस मंदिर को श्री सुरकंडा देवी मंदिर कहा जाता है। सती के शरीर भाग जिस जिस स्थान पर गिरे थे इन स्थानों को शक्ति पीठ कहा जाता है।
    3) मंदिर से जुड़ी विशेष बातें
    पौराणिक कथाओं के अनुसार, देवी सती ने उनके पिता दक्षेस्वर द्वारा किए यज्ञ कुण्ड में अपने प्राण त्याग दिए थे, तब भगवान शंकर देवी सती के मृत शरीर को लेकर पूरे ब्रह्माण के चक्कर लगा रहे थे। इसी दौरान भगवान विष्णु ने अपने सुदर्शन चक्र से सती के शरीर को 51 भागों में विभाजित कर दिया था, जिसमें सती का सिर इस स्थान पर गिरा था, इसलिए इस मंदिर को श्री सुरकंडा देवी मंदिर कहा जाता है। सती के शरीर भाग जिस जिस स्थान पर गिरे थे इन स्थानों को शक्ति पीठ कहा जाता है।
    सुरकंडा देवी मंदिर की एक खास विशेषता यह बताई जाती है कि भक्तों को प्रसाद के रूप में दी जाने वाली रौंसली की पत्तियां औषधीय गुणों भी भरपूर होती हैं। धार्मिक मान्यता के अनुसार इन पत्तियों से घर में सुख समृद्धि आती है। क्षेत्र में इसे देववृक्ष का दर्जा हासिल है। इसीलिए इस पेड़ की लकड़ी को इमारती या दूसरे व्यावसायिक उपयोग में नहीं लाया जाता।
    सुरकंडा देवी मंदिर की एक खास विशेषता यह बताई जाती है कि भक्तों को प्रसाद के रूप में दी जाने वाली रौंसली की पत्तियां औषधीय गुणों भी भरपूर होती हैं। धार्मिक मान्यता के अनुसार इन पत्तियों से घर में सुख समृद्धि आती है। क्षेत्र में इसे देववृक्ष का दर्जा हासिल है। इसीलिए इस पेड़ की लकड़ी को इमारती या दूसरे व्यावसायिक उपयोग में नहीं लाया जाता।
    सिद्वपीठ मां सुरकंडा मंदिर पुजारी रमेश प्रसाद लेखवार का कहना है कि वैसे तो हर समय मां के दर्शन कर पुण्य लाभ प्राप्त होता है, लेकिन गंगादशहरे व नवरात्र के मौके पर मां के दर्शनों का विशेष महत्व माना गया है। मां के दर्शन मात्र से समस्त कष्टों का निवारण होता है। जहां गंगादशहरे पर विशाल मेला लगता है और दूर-दूर से लोग मां के दर्शन करने मंदिर पहुंचते है।
    सिद्वपीठ मां सुरकंडा मंदिर पुजारी रमेश प्रसाद लेखवार का कहना है कि वैसे तो हर समय मां के दर्शन कर पुण्य लाभ प्राप्त होता है, लेकिन गंगादशहरे व नवरात्र के मौके पर मां के दर्शनों का विशेष महत्व माना गया है। मां के दर्शन मात्र से समस्त कष्टों का निवारण होता है। जहां गंगादशहरे पर विशाल मेला लगता है और दूर-दूर से लोग मां के दर्शन करने मंदिर पहुंचते है।
    केदारखंड व स्कंद पुराण के अनुसार राजा इंद्र ने यहां मां की आराधना कर अपना खोया हुआ साम्राज्य प्राप्त किया था। इस कारण ऐसा माना जाता है कि जो भी सच्चे मन से माता के दर्शन करने यहां आता है मां उसकी सारी मनोकामनाएं पूरी करती हैं।
    केदारखंड व स्कंद पुराण के अनुसार राजा इंद्र ने यहां मां की आराधना कर अपना खोया हुआ साम्राज्य प्राप्त किया था। इस कारण ऐसा माना जाता है कि जो भी सच्चे मन से माता के दर्शन करने यहां आता है मां उसकी सारी मनोकामनाएं पूरी करती हैं।
    मां के दरबार से बद्रीनाथ, केदारनाथ, तुंगनाथ, चौखंबा, गौरीशंकर, नीलकंठ आदि सहित कई पर्वत श्रृखलाएं दिखाई देती हैं। मां सुरकंडा देवी के कपाट साल भर खुले रहते हैं।
    मां के दरबार से बद्रीनाथ, केदारनाथ, तुंगनाथ, चौखंबा, गौरीशंकर, नीलकंठ आदि सहित कई पर्वत श्रृखलाएं दिखाई देती हैं। मां सुरकंडा देवी के कपाट साल भर खुले रहते हैं।
    वायु मार्ग: यहां से सबसे नजदीकी हवाई अड्डा जौलीग्राट है। यहां से बस या टैक्सी मिल जाएगी।
    रेलमार्ग: यहां से सबसे नजदीक रेलवे स्टेशन ऋषिकेश, हरिद्वार व देहरादून है। यहां से आप बस या टैक्सी से मंदिर तक पहुंच सकते हैं
    सड़क मार्ग: मां सुरकंडा मंदिर पहुंचने के लिए हर जगह से वाहनों की सुविधा है। देहरादून से वाया मसूरी होते हुए 73 किमी दूरी तय कर कद्दूखाल पहुंचना पड़ता है। यहां से दो किमी पैदल दूरी तय कर मंदिर पहुंचना पड़ता है। ऋषिकेश से वाया चंबा होते हुए 82 किमी की दूरी तय कर भी यहां पहुंचा जा सकता है।
    यात्री सुविधा: यहां यात्रियों के ठहरने के लिए धर्मशालाओं की सुविधा है।
    वायु मार्ग: यहां से सबसे नजदीकी हवाई अड्डा जौलीग्राट है। यहां से बस या टैक्सी मिल जाएगी।
    रेलमार्ग: यहां से सबसे नजदीक रेलवे स्टेशन ऋषिकेश, हरिद्वार व देहरादून है। यहां से आप बस या टैक्सी से मंदिर तक पहुंच सकते हैं
    सड़क मार्ग: मां सुरकंडा मंदिर पहुंचने के लिए हर जगह से वाहनों की सुविधा है। देहरादून से वाया मसूरी होते हुए 73 किमी दूरी तय कर कद्दूखाल पहुंचना पड़ता है। यहां से दो किमी पैदल दूरी तय कर मंदिर पहुंचना पड़ता है। ऋषिकेश से वाया चंबा होते हुए 82 किमी की दूरी तय कर भी यहां पहुंचा जा सकता है।
    यात्री सुविधा: यहां यात्रियों के ठहरने के लिए धर्मशालाओं की सुविधादेवभूमि उत्तराखंड के टिहरी जनपद में स्थित जौनुपर के सुरकुट पर्वत पर सुरकंडा देवा का मंदिर है। यह मंदिर देवी दुर्गा को समर्पित है जो कि नौ देवी के रूपों में से एक है। यह मंदिर 51 शक्ति पीठ में से है।

Комментарии • 6

  • @DemonGaming9pj
    @DemonGaming9pj Месяц назад +1

    Jai maa surkanda maa Jai maa kali maa ❤

  • @Alone_golu_negi789
    @Alone_golu_negi789 4 месяца назад +1

    ❤❤❤❤❤❤

  • @PradeepSinghPanwar-dv8ep
    @PradeepSinghPanwar-dv8ep 4 месяца назад +1

    Jai mata di 🙏

  • @dipikarawat1819
    @dipikarawat1819 4 месяца назад +1

    Jai maa baghwati surkanda suri ❤

  • @RashamLal-u4g
    @RashamLal-u4g 4 месяца назад +2

    🕉️🌹🔱 jai maa surkanda shri maa ke charno ❤️🙏🌸🌹me mera parnaam ❤️ jai maa bhagwati ❤️🙏🙏🙏🙏🌸🌹Jai maa 👏

  • @swatirawat3911
    @swatirawat3911 4 месяца назад +1

    Maa 😢❤