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राम कथा मंदाकिनी चित्रकूट चित चारू श्री रामचरित मानस गोस्वामी तुलसीदास जी प्रसंग
श्री राम जी की पावन कथा मंदाकिनी के समान परम पवित्र है निर्मल चित्त चित्रकूट है उनका सुन्दर प्रेम वन है जिसमे श्री राम जी माता सीता के साथ विहार करते है ।श्री राम कथा ज्ञान वैराग्य और योग के लिए गुरू के समान है संसार रूपी भयंकर रोगो का नाश करने हेतु अश्वनीय कुमार के समान है ।पाप सन्ताप और शोक का नाश करने के लिए तथा इस लोक एवं परलोक मे पालन करने वाली है ।भक्तो के मन रूपी वन मे बनने वाले काम क्रोध और कलियुग के पाप रूपी हाथियो को मारने के लिए शेर के समान है विषय रूपी सांप की जहर उतारने के लिए मंत्र एवं महामणि के समान है ।यह पावन कथा मनुष्य के ललाट पर लिखे दुर्भाग्य को मिटा देने मे समर्थ है ।अज्ञान रूपी अंधकार को मिटाने के लिए सूर्य की किरणो के समान है ।मनोवांछित फल देने मे कल्प वृक्ष के समान...
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राम निकाईं रावरी है सबही को नीक श्री रामचरित मानस गोस्वामी तुलसीदास जी प्रसंग 199
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श्री राम जी परम कृपालु है दीन दुखियो पर दया करने वाले है जिनकी कृपा से पत्थर तैर कर भालु बंदरो के प्रयास मे सेतु की रचना कर देते है । श्री राम जी अकारण ही कृपा करने वाले है वे सहज ही प्राणी के पापो को श्रमा कर देते है । उनके प्रति दास भाव रखने वाला प्राणी सदैव सु की अनुभूति करता है ।श्री राम जी ने भालु बंदर जैसे तुच्छ प्राणी को अपने समान पुज्य बना दिया ।श्री राम जी स्वभाव से प्राणी का कल्याण कर...
मोरि सुधारिहि सो सब भाँती जासु कृपा नहिं कृपाअघाती श्री रामचरितमानस गोस्वामी तुलसीदास जी प्रसंग 198
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कलियुग मे श्रीराम जी का नाम कल्पतरू के समान सभी इच्छा पूर्ण करने वाला है ।जिसके स्मरण मात्र से तुलसीदास जैसा भांग के सदृश प्राणी तुलसी के समान पवित्र हो गया ।तीनो लोको मे तीनो कालो मे राम के नाम का जप सभी पुण्य प्रदान करने वाला है ।सतयुग मे ध्यान से त्रेता मे यज्ञ से द्वापर मे पूजन से भगवान प्रशन्न होते है किन्तु कलियुग मे राम के नाम का जप ही समस्त पापो का समन करने वाला है। क्यो कि कलियुग मे प्...
सबरी गीध सुसेवकनि सुगति दीन्हि रघुनाथ श्री राम चरित मानस गोस्वामी तुलसीदास जी प्रसंग 197
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श्रीराम जी ने सबरी जटायु गीध आदि को उत्तम सेवको की ही मुक्ति दी किन्तु उनके नाम के जात से अनगिनत दुष्ट पापी भवसागर पार हो गये ।श्री राम ने विभीषण एवं सुग्रीव दोनो को शरण मे लिया किन्तु उनके नाम ने अनेको शोषितो वंचितो पापियो का कल्याण किया ।श्री राम जी ने बानर भालु की सेना एकत्र कर समुद्र मे पुल बांध कर रावण का बध करने मे घोर श्रम किया और अनेक कष्ट सहे किन्तु उनके नाम का स्मरण करते ही संसार रूपी...
राम एक तापस तिय तारी नाम कोटि खल कुमति सुधारी श्री रामचरित मानस गोस्वामी तुलसीदास जी प्रसंग 196
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श्री राम जी का नाम परब्रम्ह परमेश्वर के सगुण और निर्गुण स्वरूप दोनो से बङा है ।नाम का प्रभाव उनके किसी अन्य स्वरूप से बङा है ।श्री राम जी के नाम रूपी अमृत का पान करने वाला प्राणी भौतिक जगत मे समस्त सु प्राप्त करके अंत मे परम धाम को प्राप्त करता है । जिन्होने राम के नाम रूपी अमृत के सरोवर मे अपने मन रूपी मछली को संजोकर रखा है वे प्राणी अजर अमर है ।श्री राम जी ने भक्तो के कल्याण के लिए मानव शरीर ...
नाम जीह जपि जागहिं जोगी बिरति बिरंचि प्रपंच बियोगी श्री रामचरित मानस गोस्वामी तुलसीदास प्रसंग 195
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गोस्वामी तुलसीदास जी कहते है हे मन यदि तू भीतर और बाहर दोनो का अंधकार दूर करना चाहता हे तो तो मु रूपी द्वार की जीभ रूपी देहली पर राम नाम रूपी मणि दीप को धारण कर ले जो परमात्मा के गूढ रहस्य को जानना चाहते है वे नाम को जीभ मे धारण कर जान ही लेते है ।जो लोग कष्ट मे राम नाम का जाप करते है उनका कष्ट पल भर मे नष्ट हो जाता है ।
बरषा रितु रघुपति भगति तुलसी सालि सुदास श्री रामचरित मानस गोस्वामी तुलसीदास प्रसंग 194
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जो जल एवं उसकी लहर तथा वाणी एवं उसके भाव जैसा भिन्न-भिन्न प्रतीत होते हुए भी एक है ऐसे श्री राम जी के चरणो मे शत शत नमन। जिनके नाम का उलटा जप कर आदिकवि वाल्मीकि जी अमर हो गये ।जिनके नाम का जप भगवान शिव तथा माता पार्वती रात दिन करते है जिनके नाम के प्रभाव से शिव अर्धनारीश्वर हो गये ऐसे श्री राम जी के नाम के प्रभाव का वर्णन नही किया जा सकता ।राम नाम इस लोक मे सु देने के साथ ही मोक्ष प्रदान करने व...
प्रनवउॅ पवन कुमार खल बन पावक ग्यान घन श्रीराम चरित मानस गोस्वामी तुलसीदास जी प्रसंग 193
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मै पवनसुत हनुमान जी को प्रणाम करता हूॅ जो दुष्ट रूपी वन को भस्म करने हेतु अग्नि के समान है जो ज्ञान की प्रति मूर्ति है जिनके हृदय रूपी भवन मे श्री राम जी माता सीता एवं अनुज लक्ष्मण सहित अनवरत विद्यमान है ।वानर राज सुग्रीव रीछ राज जामवंत राक्षस राज विभीषण और अंगद जी के भी सुन्दर चरणो की वंदना करता हूॅ इसके साथ ही इस चराचर जगत मे रहने वाले समस्त प्राणी जो राम को प्रति सेवा भाव रखते है उनकी भी मै ...
महाबीर बिनवउॅ हनुमाना राम जासु जस आप बखाना श्रीराम चरित मानस गोस्वामी तुलसीदास प्रसंग 192
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मै अवध नरेश महाराज दशरथ के चरणो की वंदना करता हूॅ जिन्होने श्री राम जी के वन गमन पर उनकी विरहवेदना मे अपने प्राण त्याग दिये। महाराज जनक के चरणो की वंदना करता हूॅ जो श्री राम जी का दर्शन करने के उपरान्त अपने छिपाये गये योग और भोग को प्रकट कर दिया ।भाईयो मे सर्व प्रथम मै भरत जी की वंदना करता हूॅ जिनका नियम व व्रत अतुल्य है जिनका मन श्री राम जी के चरणो मे भौरे के समान आसक्त है ।श्री लक्ष्मण जी जो ...
बंदऊॅ अवधपुरी अति पावनि सरजू सरि कलि कलुष नसावनि श्री राम चरित मानस गोस्वामी तुलसीदास जी प्रसंग 191
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गोस्वामी तुलसीदास जी कहते है कि यदि भगवान शंकर और माता पार्वती की मुझ पर तनिक भी कृपा हो तो मेरे द्वारा की गई कविता का प्रभाव सच हो ।वह अयोध्या पुरी तथा कलियुग के प्रभाव को समाप्त करनै वाली सरजू धन्य है वे अवधपुरी के वासी भी धन्य है जिन पर श्री राम जी का अपार प्रेम है । सीता माता की निन्दा करने वाले उस अविवेकी धोबी तथा उसके जैसी विचार धारा के लोगो के पाप को क्षमा कर जिसे परम धाम का अधिकारी बना ...
होइहहिं राम चरन अनुरागी कलिल रहित सुमंगल भागी श्री रामचरित मानस गोस्वामी तुलसीदास जी प्रसंग 190
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श्रीराम चरित मानस के प्रणेता गोस्वामी जी कहते है कि बुद्धिमान लोग उसी कविता का आदर करते है जो सरल हो तथा जिसमे पवित्र चरित्र का वर्णन किया गया हो ।जिसे सुनकर शत्रु भी अपना स्वाभाविक वैर छोडकर सराहना करने लगे ।ऐसी कविता पवित्र बुद्धि से ही लिखी जा सकती है ।हे कवि एवं ज्ञानी जन आप तो राम चरित्र रूपी मानसरोवर के सुन्दर हंस है ।मेरी विनती एवं सुन्दर रूचि को देखते हुए मुझपर कृपा करे ।मै उन वाल्मीकि ...
अति अपार जे सरित बर जौं नृप सेतु कराहिं श्रीराम चरित मानस गोस्वामी तुलसीदास जी प्रसंग 189
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श्री राम जी के गुणो का गान सरल नही है ।जिस प्रकार अत्यन्त विशाल नदियो पर किसी राजा द्वारा पुल बना देने से छोटी चींटी भी उस पुल पर चढ कर नदी को पार कर लेती है उसी प्रकार पूर्व मे किए गये श्री राम जी की लीलाओ का वर्णन हमारे लिए मार्ग दर्शन करेगा । हे कवियो ऋषि मुनियो आप सभी प्रशन्न होकर मुझे यह वरदान दीजिए का संत सभा मे मेरी इस रचना का सम्मान हो । संत जन जिस कविता का सम्मान नही करते वह कविता कभी ...
एक अनीह अरूप अनामा अज सच्चिदानंद पर धामा श्री राम चरित मानस गोस्वामी तुलसीदास जी प्रसंग 188
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विप्रो पिता परमेश्वर स्वरूप मर्यादापुरुषोत्तम श्री राम जी की महिमा का गान सरस्वती शेष शिव ब्रम्हा वेद पुराण नही कर सकते ।जिन्हे नेति नेति कहा गया ।जिनका गुणगान ए सभी नही कर सके ।श्री राम जी की लीलाओ एवं उनके गुणो का गान अकथनीय है किन्तु भजन के प्रभाव से उनके गुणो के अंश मात्र का गान किया जा सकता है ।वे परम पिता परमेश्वर के स्वरूप है जो इच्छा अनिच्छा से परे है । जिनका न तो कोई रूप है और न ही नाम...
जे जनमे कलिकाल कराला करतब बायस बेस मराला श्री रामचरित मानस गोस्वामी तुलसीदास प्रसंग 187
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श्री रामचरित मानस मे निहित कविता रूपी मणियो की माला जो श्री राम जी के पावन चरित्र रूपी धागे मे पिरोई गई है ।इस माला को धारण करने वाला प्राणी सदैव परम आनन्द को प्राप्त करता है ।इस कलियुग मे जन्म लेने वाले प्राणी जो काग के समान अनेको अवगुण धारण किए हुए है ।तथा जिनका बाह्य आवरण स्वच्छ है ऐसे ढोंगी पाखंडी लोग वेदांग मार्ग का त्याग कर कुमार्ग पर चल रहे है ।तथा संत के वेष मे अपने को राम भक्त कहलाने क...
स्याम सुरभि पय बिसद अति गुनद करहिं सब पान श्रीराम चरित मानस गोस्वामी तुलसीदास जी प्रसंग 186
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जिस प्रकार गाय का रंग काला होने पर भी उसका दूध अत्यन्त गुणकारी होने के कारण सभी उसका पान करते है उसी प्रकार जिस कविता मे श्रीराम जी के गुणो का गान होता है वह कविता रस हीन होने पर भी परम कल्याण कारी हो जाती है ।मणि माणिक एवं मोती अपने जन्म स्थान पर गौरव नही प्राप्त करते बल्कि वे राजा के मुकुट एवं नारी के अंग मे ही सुशोभित होते है
बिधु बदनी सब भाँति सॅवारी सोह न बसन बिना बर नारी श्री रामचरित मानस गोस्वामी तुलसीदास जी प्रसंग 185
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बिधु बदनी सब भाँति सॅवारी सोह न बसन बिना बर नारी श्री रामचरित मानस गोस्वामी तुलसीदास जी प्रसंग 185
कबित बिबेक एक नहि मोरे सत्य कहउॅ लिखि कागद कोरे श्री राम चरित मानस गोस्वामी तुलसीदास जी प्रसंग 184
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कबित बिबेक एक नहि मोरे सत्य कहउॅ लिखि कागद कोरे श्री राम चरित मानस गोस्वामी तुलसीदास जी प्रसंग 184
सीय राम मय सब जग जानी करउॅ प्रनाम जोरि जुग पानी श्रीराम चरित मानस गोस्वामी तुलसीदास प्रसंग 183
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सीय राम मय सब जग जानी करउॅ प्रनाम जोरि जुग पानी श्रीराम चरित मानस गोस्वामी तुलसीदास प्रसंग 183
जङ चेतन गुन दोष मय विश्व कीन्ह करतार श्रीराम चरित मानस गोस्वामी तुलसीदास जी प्रसंग 182
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जङ चेतन गुन दोष मय विश्व कीन्ह करतार श्रीराम चरित मानस गोस्वामी तुलसीदास जी प्रसंग 182
सुधा सुरा सम साधु असाधू जनक एक जग जलधि अगाधू श्री रामचरित मानस गोस्वामी तुलसीदास प्रसंग 181
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सुधा सुरा सम साधु असाधू जनक एक जग जलधि अगाधू श्री रामचरित मानस गोस्वामी तुलसीदास प्रसंग 181
संत सरल चित जगत हित जानि सुभाउ सनेहु श्री रामचरित मानस गोस्वामी तुलसीदास प्रसंग 180
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संत सरल चित जगत हित जानि सुभाउ सनेहु श्री रामचरित मानस गोस्वामी तुलसीदास प्रसंग 180
सठ सुधरहिं सतसंगति पाई पारस परस कुधात सुहाई श्री रामचरित मानस गोस्वामी तुलसीदास जी प्रसंग 179
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सठ सुधरहिं सतसंगति पाई पारस परस कुधात सुहाई श्री रामचरित मानस गोस्वामी तुलसीदास जी प्रसंग 179
राम भक्ति जहॅ सुरसरि धारा श्री रामचरित मानस गोस्वामी तुलसीदास जी प्रसंग 178
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राम भक्ति जहॅ सुरसरि धारा श्री रामचरित मानस गोस्वामी तुलसीदास जी प्रसंग 178
मूक होइ बाचाल पंगु चढइ गिरिवर गहन श्रीराम चरित मानस गोस्वामी तुलसीदास जी प्रसंग 177
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मूक होइ बाचाल पंगु चढइ गिरिवर गहन श्रीराम चरित मानस गोस्वामी तुलसीदास जी प्रसंग 177
मुद मंगलमय संत समाजू जो जग जंगम तीरथ राजू श्री रामचरित मानस गोस्वामी तुलसीदास प्रसंग 176
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मुद मंगलमय संत समाजू जो जग जंगम तीरथ राजू श्री रामचरित मानस गोस्वामी तुलसीदास प्रसंग 176
भलो भलाइहि पै लहइ लहइ निचाइहि नीच श्रीराम चरित मानस गोस्वामी तुलसीदास प्रसंग175
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भलो भलाइहि पै लहइ लहइ निचाइहि नीच श्रीराम चरित मानस गोस्वामी तुलसीदास प्रसंग175
बिधि बस सुजन कुसंगत परहीं फनि मनि सम निज गुन अनुसरहीं श्री रामचरित मानस गोस्वामी तुलसीदास प्रसंग 174
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बिधि बस सुजन कुसंगत परहीं फनि मनि सम निज गुन अनुसरहीं श्री रामचरित मानस गोस्वामी तुलसीदास प्रसंग 174
जो सहि दुख पर छिद्र दुरावा बंदनीय जेहिं जग जस पावा श्री रामचरित मानस गोस्वामी तुलसीदास प्रसंग173
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जो सहि दु पर छिद्र दुरावा बंदनीय जेहिं जग जस पावा श्री रामचरित मानस गोस्वामी तुलसीदास प्रसंग173
बंदउॅ नाम राम रघुवर को हेतु कृसानु भानु हिमकर को श्री रामचरित मानस गोस्वामी तुलसीदास जी प्रसंग 172
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बंदउॅ नाम राम रघुवर को हेतु कृसानु भानु हिमकर को श्री रामचरित मानस गोस्वामी तुलसीदास जी प्रसंग 172
नवधा भगति कहऊ तोहिं पाहीं श्रीराम चरित मानस गोस्वामी तुलसीदास जी प्रसंग 171
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नवधा भगति कहऊ तोहिं पाहीं श्रीराम चरित मानस गोस्वामी तुलसीदास जी प्रसंग 171