राम भक्ति जहॅ सुरसरि धारा श्री रामचरित मानस गोस्वामी तुलसीदास जी प्रसंग 178
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- Опубликовано: 9 фев 2025
- इस धरती पर संत एवं गुरू साक्षात परमात्मा के दृष्टव्य स्वरूप है
संतोष का चरित्र अत्यन्त शुभ एवं कल्याण प्रदान करने वाला है । अज्ञान रूपी अंधकार का समन कर ज्ञान रूपी प्रकाश पुंज प्रसारित करने वाले गुरू एवं संत ही होते है ।जो सदैव अपनी परवाह न करके परोकार ही सोचते है ।जिस प्रकार कपास अपने अस्तित्व को नष्ट करके भी सूत के रूप मे परिवर्तित होकर शरीर की रक्षा करता है उसी प्रकार संत हृदय व्यक्ति भी सदैव अपनी परवाह न कर समाज के कल्याण की सोचता है । इसी प्रकार गुरू भी परम पिता परमेश्वर का इस धरा पर जागृत एवं दृश्य स्वरूप है । जिसके ज्ञान रूपी अमृत का पान करके प्राणी के अन्तर्मन मे व्याप्त अहंकार रूपी अंधकार क्षण भर मे नष्ट हो जाता है ।और उसे भगवत प्राप्ति का मार्ग आसानी से मिल जाता है । गुरू के चरणो मे लगी हुई धूल उसी प्रकार मनुष्य के तत्वज्ञान रूपी चक्षु को खोल देती है जिस प्रकार अंजन नेत्र विकार को नष्ट कर देता है ।
सत्संग रूपी अमृत का पान करके प्राणी के समस्त विकार स्वतः ही नष्ट हो जाते है। इस संसार मे गुरू की खोज भी भगवान के खोज जैसी है ।
संसार के समस्त प्राणियो पर परब्रम्ह परमेश्वर स्वरूप श्री राम जी की अनवरत कृपा बनी रहे