सठ सुधरहिं सतसंगति पाई पारस परस कुधात सुहाई श्री रामचरित मानस गोस्वामी तुलसीदास जी प्रसंग 179
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- Опубликовано: 9 фев 2025
- सत्संग का प्रभाव विलक्षण है संत समाज रूपी तीर्थ राज प्रयाग मे स्नान करने वाला प्राणी सदेह धर्म अर्थ काम मोक्ष रूपी चारो फल सहज ही प्राप्त कर लेता है ।सत्संग के प्रभाव से कौआ रूपी मूर्ख प्राणी भी कोयल के समान ज्ञान वान हो जाता है । इस संसार के समस्त कीर्ति यश बुद्धि एवं बडप्पन पाने वाले प्राणी सत्संग के कारण ही प्रसिद्ध हो चुके है ।सत्संग के अभाव मे प्राणी विवेक नही प्राप्त कर सकता ।सत्संग आनन्द की जङ है इसमे मानव कल्याण निहित है ।
दुष्ट भी सत्संग के प्रभाव मे आकर सुधर जाते है ।जिस प्रकार पारस पत्थर के छू जाने से लोहा सोना बन जाता है उसी प्रकार से सत्संग के प्रभाव मे आकर मनुष्य ज्ञान वान बन जाता है ।कभी कभी संत भी दुर्भाग्य वस कुसंगति मे पङ जाते है किन्तु उन पर कुसंग का प्रभाव उसी प्रकार नही पङता जिस प्रकार सांप के मस्तक मे स्थित मणि पर सर्प के विष का पडाव नही पङता ।
सत्संग की पहचान कोई विवेक शील ही कर सकता है ।किसी मनुष्य को सत्संग तभी मिल सकता है जब उस पर परम पिता परमेश्वर स्वरूप श्री राम जी की कृपा होगी ।
संसार के समस्त प्राणियो पर परब्रम्ह परमेश्वर स्वरूप श्री राम जी की कृपा अनवरत बनी रहे