सवा सेर गेहूँ- मुंशी प्रेमचंद की लिखी कहानी | Sava Ser Gehun-A Story By Munshi Premchand

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  • Опубликовано: 6 фев 2025
  • 🔸 मुंशी प्रेमचंद का जीवन परिचय (संक्षेप में)
    मुंशी प्रेमचंद (31 जुलाई 1880 - 8 अक्टूबर 1936) हिंदी और उर्दू साहित्य के महान कथाकार थे। उनका असली नाम धनपत राय श्रीवास्तव था। उनका जन्म उत्तर प्रदेश के वाराणसी जिले के लमही गाँव में हुआ। कठिन परिस्थितियों में पले-बढ़े प्रेमचंद ने शिक्षा के साथ-साथ अध्यापन कार्य किया।
    उनकी लेखन शैली यथार्थवादी थी, जिसमें उन्होंने समाज की समस्याओं, गरीबी, शोषण और जातिवाद को उजागर किया। उनकी पहली रचना “सोज़-ए-वतन” पर ब्रिटिश सरकार ने प्रतिबंध लगाया।
    प्रमुख कृतियाँ:
    • उपन्यास: गोदान, गबन, कर्मभूमि, रंगभूमि, निर्मला
    • कहानियाँ: ईदगाह, कफन, शतरंज के खिलाड़ी, पंच परमेश्वर
    प्रेमचंद को हिंदी साहित्य का “उपन्यास सम्राट” कहा जाता है। उनका निधन 8 अक्टूबर 1936 को हुआ। उनकी रचनाएँ आज भी समाज को प्रेरणा देती हैं।
    🔸 कहानी का सरांश-
    यह कहानी एक सीधे-सादे और ईमानदार किसान शंकर की है, जो अपने जीवन में सवा सेर गेहूँ उधार लेने की छोटी-सी घटना के कारण भारी कर्ज़ और अंततः आजीवन गुलामी का शिकार हो जाता है।
    शंकर एक मेहनती किसान है, लेकिन आर्थिक तंगी और साधनहीनता के बावजूद वह अपनी ईमानदारी और सरलता से जीवन जीता है। एक दिन एक साधू को खिलाने के लिए उसने पुरोहित जी से सवा सेर गेहूँ उधार लिया। उसने इसे कई बार अनाज के रूप में चुकाने की कोशिश की, लेकिन पुरोहित जी ने इसे नहीं माना। सात साल बाद पुरोहित जी ने ब्याज समेत सवा सेर गेहूँ का हिसाब साढ़े पाँच मन के रूप में पेश किया।
    शंकर ने मेहनत से कुछ राशि चुकाई, लेकिन कर्ज़ चुकता नहीं हो पाया। ब्याज के बढ़ते बोझ ने उसे पूरी तरह तोड़ दिया। अंततः पुरोहित जी ने उसे कर्ज़ के बदले अपनी उम्रभर की मज़दूरी के लिए बाध्य कर दिया।
    शंकर ने बीस साल तक गुलामी की, लेकिन कर्ज़ फिर भी खत्म नहीं हुआ। उसकी मौत के बाद पुरोहित जी ने यह कर्ज़ उसके बेटे पर थोप दिया, जो आज भी गुलामी कर रहा है।
    यह कहानी आर्थिक शोषण, सामाजिक अन्याय और भोले लोगों की तकलीफ़ों को दर्शाती है, जिसमें कर्ज़ और लालच का अमानवीय चेहरा सामने आता है।
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