सिंहस्थ कुंभ प्रवचन- 8 (भाग - 3)

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  • Опубликовано: 8 фев 2025
  • आत्मा का अनुभव: ब्रह्मज्ञान की ओर एक यात्रा
    यह प्रवचन आत्मा की खोज और ब्रह्मज्ञान की प्राप्ति पर केंद्रित है। वक्ता ने वेदांत के सिद्धांतों और ध्यान की प्रक्रियाओं के माध्यम से आत्म-साक्षात्कार के मार्ग को समझाया है।
    आत्मा क्या नहीं है?
    वक्ता ने निषेध के मार्ग द्वारा आत्मा की व्याख्या की है। उन्होंने बताया कि आत्मा इंद्रियां, मन, बुद्धि और अहंकार नहीं है। यह "मैं" भाव भी नहीं है, क्योंकि यह नींद में अनुपस्थित रहता है।
    आत्मा का अनुभव कैसे करें?
    वक्ता ने ध्यान के माध्यम से आत्मा के अनुभव करने पर जोर दिया है। उन्होंने बताया कि ध्यान में जो कुछ भी अनुभव होता है, उसे देखना और समझना महत्वपूर्ण है। प्रकाश, अंधेरा, रंग, शून्य - ये सब आते-जाते रहते हैं, लेकिन देखने वाला, अनुभव करने वाला हमेशा मौजूद रहता है। यही आत्मा है।
    मन की उपस्थिति और अनुपस्थिति का अवलोकन करें।
    इंद्रियों के अनुभवों से परे जाएं।
    परिवर्तन के साक्षी बनें।
    ब्रह्मज्ञान और मुक्ति
    वक्ता ने बताया कि ब्रह्मज्ञान की प्राप्ति के बाद मुक्ति स्वतः ही प्राप्त हो जाती है। ब्रह्मज्ञान प्राप्त व्यक्ति की मुक्ति किसी और के अधीन नहीं रहती। अज्ञान और भ्रम मिट जाने पर, शरीर और विषय अपने आप ही व्यवस्थित हो जाते हैं।
    पाखंड और उपनिषद
    वक्ता ने पाखंड के विरुद्ध उपनिषदों के महत्व पर भी प्रकाश डाला है। उन्होंने कहा कि उपनिषद पाखंड को पनपने नहीं देते। इसलिए उपनिषदों की कसौटी पर खरा उतरने वाला ईश्वर नहीं है, बल्कि वह है जिसके द्वारा सब कुछ जाना जाता है।
    चेतना का स्वरूप
    वक्ता ने चेतना को सर्वव्यापी बताया है। उन्होंने कहा कि चेतना केवल शरीर के भीतर ही सीमित नहीं है, बल्कि वह बाहर भी व्याप्त है। जैसे आकाश घड़े के भीतर और बाहर दोनों जगह होता है, वैसे ही चेतना भी सर्वत्र विद्यमान है।
    ध्यान की प्रक्रिया
    वक्ता ने ध्यान की एक सरल प्रक्रिया भी बताई है:
    1. श्वास निकालकर झुकें और थोड़ी देर रुकें।
    2. श्वास लेते हुए सीधे हो जाएं।
    3. आंखें बंद करके आज्ञा चक्र पर ध्यान केंद्रित करें।
    4. जो कुछ भी दिखाई दे, उसे देखें और यह भी देखें कि देखने वाला कौन है।
    अंतिम संदेश
    वक्ता ने श्रोताओं को अहंकार छोड़कर ब्रह्मभाव में स्थित होने का संदेश दिया है। उन्होंने कहा कि "तुम ब्रह्म हो" इस भावना के साथ ध्यान करने से आत्म-साक्षात्कार संभव है.

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