इतिहास क्या है ? - ई. एच. कार - (अध्याय 1 : इतिहासकार और उसके तथ्य) (4)
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- Опубликовано: 6 фев 2025
- आप मुझे (ई एच कार को) एक व्यक्तिगत संस्मरण सुनाने की इजाजत दें। जब मैं विश्वविद्यालय में, कई साल पहले, प्राचीन इतिहास का अध्ययन कर रहा था तो मेरे विशेष अध्ययन का एक विषय था, 'फारस युद्धकाल का यूनान।' मैंने इस विषय से संबंधित पंद्रह बीस पुस्तकें अपनी आलमारी में जुटा लीं और यह मान बैठा कि अपने विषय से संबंधित तमाम तथ्य, जो उन पुस्तकों में एकत्र हैं, अब मेरी मुट्ठी में हैं। मान लीजिए कि उन पुस्तकों में मेरे विषय से संबंधित तमाम सामग्री और तथ्य जो उस समय तक उपलब्ध हो सकते थे, मुझे प्राप्त थे। यह बात लगभग सच भी थी, मगर उस समय मेरा ध्यान इस बात की ओर नहीं गया कि मुझे तथ्यों के चुनाव की उस प्रक्रिया की जांच करनी चाहिए, जिसके अनुसार हजारों हजार सामान्य तथ्यों के बीच से उन पुस्तकों में प्राप्त तथ्यों को चुना गया होगा और उन्हें इतिहास के तथ्यों का दर्जा दिया गया होगा। मुझे लगता है कि आज भी प्राचीन तथा मध्यकालीन इतिहास का यह एक प्रमुख आकर्षण है कि हम अक्सर इस भ्रम के शिकार हो जाते हैं कि उस काल के तमाम तथ्य हमारी पहुंच की परिधि में सुविधापूर्वक प्राप्त हैं। ऐतिहासिक तथ्यों तथा दूसरे सामान्य तथ्यों के बीच जो खाई निरंतर बनी रहती है, वह हमारे दिमाग से गायब हो जाती है क्योंकि हम यह मान लेते हैं कि जो थोड़े से तथ्य हमें प्राप्त हैं- वे सब ऐतिहासिक तथ्य हैं। प्राचीन तथा मध्यकालीन इतिहास पर काम करने वाले इतिहासकार जे बी बरी ने एक बार कहा था कि 'प्राचीन तथा मध्यकालीन इतिहास की पुस्तकें अंतरालों से भरी पड़ी हैं।' इतिहास को एक 'बड़ी आरी' कहा गया है जिसके कई दांत गायब हैं, लेकिन यहां असली कठिनाई अंतराल की नहीं है। पाँचवीं सदी ईसा पूर्व के यूनान की हमारी तस्वीर आज भी अपूर्ण है। इसलिए नहीं कि किसी दुर्घटनावश इसके तमाम छोटे टुकड़े गायब हो गए हैं बल्कि इसलिए कि यह तस्वीर कमोबेश एथेंस नगर में रहने वाले एक छोटे से ऐतिहासिक दल ने प्रस्तुत की है। एक एथेंस नागरिक की नजरों में पाँचवीं सदी का यूनान कैसा था? इसके बारे में हमें काफी कुछ पता है मगर किसी स्पार्टा नागरिक, कोरिथिया या थिबी नागरिक की नजरों में उस समय इतिहास का वास्तविक रूप क्या था? इसके बारे में हमें प्रायः कुछ भी नहीं मालूम। किसी फारसी या गुलाम या किसी दूसरे एथेंस के प्रवासी की निगाहों में वह तस्वीर क्या थी, इसकी बात तो हम छोड़ ही दें।
हमारी तस्वीर का खाका पहले से हमारे लिए तय कर दिया गया था और उसकी रेखाओं का चुनाव कर लिया गया था। ऐसा किसी दुर्घटनावश नहीं हुआ बल्कि जाने अनजाने एक विशेष दृष्टिकोण वाले लोगों द्वारा हुआ जिन्होंने केवल उन्हीं तथ्यों का चुनाव किया जो उनके दृष्टिकोण का समर्थन करते थे और जिस दृष्टिकोण को ये भविष्य के लिए छोड़ जाना चाहते थे। (ऐतिहासिक परिप्रेक्ष्य जानने का अर्थ है -उन सामाजिक, सांस्कृतिक, बौद्धिक और भावनात्मक स्थितियों को समझना जिन्होंने अतीत में लोगों के जीवन और कार्यों को आकार दिया। लेकिन आज हम जानते हैं कि इतिहास के अध्ययन के लिए कई दृष्टिकोण होते हैं। इतिहास के अध्ययन में वस्तुनिष्ठता और वैज्ञानिकता से लेकर व्यक्तिपरकता और कथा-आधारित, आख्यान-आधारित, मिथकों से प्रेरित दृष्टिकोण अपनाए जाते हैं। इतिहास के अध्ययन में कई बार इन दृष्टिकोणों का इस्तेमाल किया जाता है, जैसे: कलात्मक दृष्टिकोण, मार्क्सवादी दृष्टिकोण, साम्राज्यवादी दृष्टिकोण, राष्ट्रवादी दृष्टिकोण, उपाश्रयी दृष्टिकोण। आपको आश्चर्य होगा कि चिन्तक, विचारक घटनाओं को जिस रूप में प्रस्तुत करते हैं, वह आमजन हेतु वैसी ही बन जाती है। जैसे शाह बानो के केस में सुप्रीम कोर्ट के फैसले को उल्टी दिशा में मोड़ने वाले राजीव गांधी उदारवादी माने जाते हैं और तीन तलाक से मुक्ति दिलाने वाले वर्तमान प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को कुछ चिन्तकों द्वारा रूढ़िवादी बताते हैं।)
इसी प्रकार मध्यकालीन इतिहास पर किसी आधुनिक पुस्तक में हम पढ़ते हैं कि 'मध्ययुग के लोग धर्म से गहरे जुड़े हुए थे' तो मैं सोचता हूं कि हमें इस तथ्य का पता कैसे चला या कि क्या यह कथन सच भी है। मध्यकालीन इतिहास के तथ्य के रूप में हमें जो कुछ मिलता है, उसका चुनाव ऐसे इतिहासकारों की ऐसी पीढ़ियों द्वारा किया गया था जिनके लिए धर्म का सिद्धांत और व्यवहार एक पेशा था। इसीलिए उन्होंने इसे अत्यंत महत्वपूर्ण माना और इससे संबंधित हर चीज लिख गए। इसके अतिरिक्त जो दूसरी चीजें थीं उनका ज्ञान बहुत कम हुआ। रूसी क्रांति ने रूसी किसान की अत्यंत धार्मिक तस्वीर को नष्ट कर दिया। मध्यकालीन मनुष्य की यह धार्मिक तस्वीर, सच्ची हो या झूठी, तोड़ी नहीं जा सकती क्योंकि उसके बारे में हमें आज जो भी तथ्य प्राप्त हैं हमारे लिए उनका चुनाव बहुत पहले ऐसे लोगों द्वारा किया गया जो धर्म में विश्वास रखते थे और चाहते थे कि कि दूसरे भी उनमें "विश्वास" करें। तथ्य का एक बहुत बड़ा भाग, जिसमें शायद हमें इसका विरोधी प्रमाण मिलता, नष्ट हो चुका है और पुनः कभी नहीं पाया जा सकता। इतिहासकारों की अनेक व्यतीत पीढ़ियों के मृत हाथों ने, अज्ञात लेखकों तथा तिथिविदों ने हमारे अतीत का सांचा पूर्व-निश्चित तरीके से गढ़ दिया है जिसके खिलाफ किसी सुनवाई की कोई संभावना नहीं है। प्रोफेसर बैरेकलो जो मध्ययुगीन इतिहास के आत्म-प्रशिक्षित अध्येता हैं, कहते हैं 'हम जो इतिहास पढ़ते हैं, हालांकि वह तथ्यों पर आधारित है, ठीक ठीक कहा जाए तो एकदम यथातथ्य नहीं है, बल्कि स्वीकृत फैसलों का एक सिलसिला है।
ऐतिहासिक तथ्यों और सामान्य तथ्यों के बीच की खाई अक्सर अनदेखी होती है। जैसे हम केवल एथेन्सवासियों के सीमित दृष्टिकोण से इतिहास को देखते हैं और कई महत्वपूर्ण दृष्टिकोण नदारद रह जाते हैं,जैसे स्पार्टा, कोरित्थिया या अन्य। शायद आज का सबसे बड़ा सवाल यह है कि क्या हमें वह सच्चाई प्राप्त हो पाई, जो समय की गहराइयों में छिपी हुई है? विशेष दृष्टिकोणों द्वारा चुने गए तथ्यों के पीछे, जो वास्तविकता है, वह अक्सर हमारी पहुंच से बाहर हो जाती है।