अर्थक्रियावाद (Pragmatism)
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- Опубликовано: 7 фев 2025
- परन्तु औद्योगिक क्रान्ति के बाद से हम जगत् को हिलाना चाहते हैं और उसे हिलाने के लिए नए-नए औजारों का आविष्कार कर रहे हैं और स्वयं उसके चारों ओर जल्दी से जल्दी चक्कर लगाने के प्रयत्न कर रहे हैं। आधुनिक मानव उपकरण-निर्माता है और अर्थक्रियावादी ने इस आशय से लाभ उठाकर यह सोचता हैं कि प्रकृति भी उपकरण निर्माता है तथा विकास स्वयं प्रयोग की एक ऐसी प्रक्रिया है जो हमें ऐसे नवीन उपकरणों की खोज करने का संकेत करती है, जिनसे प्राणी अपने उद्देश्यों को प्राप्त कर सके, अपने हितों की पूर्ति कर सके। बुद्धि स्वयं एक ऐसा ही उपकरण अथवा साधन है जो प्रकृति के विकास के प्रयोगों का परिणाम है। यहाँ तक कि दर्शनशास्त्र स्वयं ही अपने आपमें अब अन्तरंग महत्व और प्रतिष्ठा का विषय नहीं माना जाता वरन् उसे भी सामाजिक हित के लिए एक उपकरण माना जाता है।
औद्योगिक क्रान्ति के पश्चात, मानव ने जगत् को एक नया दृष्टिकोण देने का प्रयास किया है। नवीन खोजों, वैज्ञानिक अन्वेषणों और तकनीकी सुधारों ने लोगों को सशक्त बनाया है, जिससे वे अपने चारों ओर उत्सुकता से चक्कर लगाने का प्रयास कर रहे हैं। आधुनिक मानव अब नए नए उपकरणों का निर्माता बन गया है, जिसने अपनी बुद्धि का उपयोग करके यांत्रिक और सूचना-स्रोतों का विकास किया है। यह प्रक्रिया केवल औजारों की खोज नहीं है, बल्कि यह मानव के विकास की एक स्वाभाविक प्रक्रिया है, जिसमें बुद्धि या कृत्रिम बुद्धि एक महत्वपूर्ण साधन के रूप में कार्य करती है।
इस संदर्भ में, दर्शनशास्त्र का स्वरूप भी बदलता नजर आता है। यह अब केवल ज्ञान और सत्य की खोज नहीं रह गया है, बल्कि इसे सामाजिक हित के लिए एक उपकरण माना जाने लगा है। अर्थक्रियावाद के सिद्धांतों ने इसे अधिकतम व्यावहारिकता और सामाजिक त्रुटियों की पहचान का माध्यम बना दिया है। इस दृष्टिकोण से, दर्शन केवल एक शास्त्रीय ज्ञान नहीं रह गया, बल्कि यह व्यावहारिक समस्याओं के समाधान में सहायक हो गया है।
हालांकि, इस दृष्टिकोण को स्वीकृति देने में कुछ कठिनाई आ सकती है। यह सब बहुत आनन्ददायक प्रतीत होता है। यह दर्शनशास्त्र का ताजा व नवीन मत है जिसमें विलक्षण व्यावहारिक संभावनाएँ हैं। किन्तु यह सम्भव है कि हमारे पहले दावे को संदेह की परछाई में देखा जाए। यह बात कुछ उलझन पैदा करने वाली है। यह संदेह उत्पन्न करता है कि क्या हम दर्शन को अब तक जिस रूप में जानते आये हैं, वह सच में सही है? न केवल ज्ञान और सत्य की खोज, बल्कि 'हित' और 'प्रयोगिता' जैसे तत्वों का समावेश इसमें उलझन उत्पन्न कर सकता है। शायद, यही कारण है कि दर्शन का अध्ययन अब पिछले शोधों की तुलना में अधिक जटिल हो गया है। इसका कारण यह है कि अब तक हम दर्शनशास्त्र को बिल्कुल ही भिन्न ढंग से देखते रहे हैं। हम उसे ज्ञान तथा सत्य की खोज और जगत् को समझने का प्रयत्न करने वाला विज्ञान ही समझते रहे। हम उसे ज्यादातर विज्ञान ही समझते रहे जो बिल्कुल उदासीन भाव से चीजों का आलोचनात्मक परीक्षण तथा उनकी व्याख्या करता है। उनकी व्याख्या करने से हमारा तात्पर्य उनका मूल्यांकन करना, किसी उद्देश्य से नहीं, वरन् आपस में एक का दूसरे से तथा उनका पूर्ण से सम्बन्ध देखना था। अतः इन "हितों", "व्यावहारिक उपयोगिताओं", "सन्तोषों" और "फलों" के बलात् प्रवेश हो जाने से उलझन पैदा हो गई है। निश्चय ही, मनुष्य के हितों, मूल्यों तथा सन्तोषों का अध्ययन एक बहुत आकर्षक विषय है, ठीक वैसा ही आकर्षक जैसा कि व्यावहारिक विज्ञान, जो कि व्यावहारिक मानवीय समस्याओं पर सैद्धान्तिक विज्ञान का प्रयोग करता है, तथा जिसने धन-वैभव, पद और सुख के पीछे भागने वाले एक विशाल जनसमूह का ध्यान आकर्षित किया है, किन्तु हमने दर्शन को कभी इस रूप में नहीं देखा।
फिर भी, हमें इस आधुनिक आन्दोलन के चश्मे से देखने का अवसर नहीं छोड़ना चाहिए। उदाहरण के लिए, जेम्स द्वारा प्रस्तुत 'प्रेगमेटिज्म' ने इसे एक महत्वपूर्ण दिशा दी है। यह न केवल ज्ञान का एक नए तरीके से ग्रहण करना सिखाता है, बल्कि सामाजिक और व्यक्तिगत दोनों ही स्तरों पर इसके महत्व को स्पष्ट करता है। जेम्स का तर्क साफ-सुथरा और लोकतांत्रिक है, जो सभी के लिए सुलभ है।
यदि यहाँ वास्तव में कोई कठिनाई हो तो भी हमें इस समय नजरअंदाज कर देनी चाहिए और यह देखना चाहिए कि क्या हम इस नवीन आन्दोलन की अंतरात्मा को पकड़ सकते हैं। यह दर्शन निश्चय ही बहुत प्रसिद्ध हो गया है और हम चारों तरफ जेम्स डिवी तथा उनके शिष्यों के नाम सुना करते हैं। अर्थक्रियावाद चाहे सच्चा दर्शन हो अथवा न हो किन्तु वह महत्त्वपूर्ण अवश्य है और एक अर्थक्रियावादी के लिए उसका महत्त्वपूर्ण रहना ही उसके सत्य होने का प्रमाण है, चाहे अन्त में हम उसके मूल्य के विषय में कुछ भी निष्कर्ष निकालें। हमें इस तथ्य को स्वीकार करना चाहिए कि दर्शनशास्त्र के ऊपर सामान्यतः इसका बहुत अच्छा प्रभाव रहा है और यह दर्शन को अनेक शाब्दिक सूक्ष्मताओं तथा रहस्यपूर्ण अपकर्षणों से छुटकारा दिलाता है और व्यावहारिक ज्ञान को सुदृढ़ तथ्यों के संकुचित मार्ग की ओर आगे खिसकाता है।
उपागम का मार्ग:
पाठक के लिए जेम्स की पुस्तिका प्रेगमेटिज्म अध्ययन आरम्भ करने के लिए अच्छी होगी। इस समस्त आन्दोलन की तीव्र प्रगति अधिकांशतः जेम्स द्वारा उसकी सशक्त रूप से सुरक्षा करने से हुई है। इसने वास्तविक मनुष्य को वास्तविक भाषा में भाषण दिया जिसे सभी लोग समझ सकते थे। वे कहते थे कि यह तत्त्वमीमांसा नहीं है। यह आनन्ददायक तथा दुखदायक दोनों ही के विषयों में स्पष्ट तथा नग्न सत्य है। यह एक अच्छे लोकतंत्रीय दर्शन के समान प्रतीत होता है।
अत: यदि हम वर्तमान में अकादमिक ज्ञान से परे जाकर सामाजिक वास्तविकताओं की ओर देखें तो आधुनिक तर्क हमें एक नवीन दिशा प्रदान करता है और इस तर्क को समझना, यह एक निश्चित झलक देता है कि कैसे दर्शन को अब एक सामाजिक उपकरण के रूप में देखना चाहिए। यह दर्शन को एक नई मजबूती और पहचान प्रदान करता है, जो तकनीकी युग में अत्यधिक प्रासंगिक बनता जा रहा है।