ज्ञानवर्धक व्याख्यान गुरु जी! आपने पाखंडी आध्यात्मिक नेताओं और ज्योतिषियों के शिकार श्रोताओं की आँखें खोल दी हैं। हर शब्द ने सिन्हा गुरुजी की स्मृति को जीवंत कर दिया। धन्यवाद!
अति उत्तम प्रेरणादायी विचार, आज अपने देश को ऐसे विचारों के प्रचार प्रसार करने वाले और उन्हें आत्मसात करने वालों की जरूरत है। सही कहा है चित्र नहीं चरित्र की उपासना कीजिए
बहुत सुन्दर व्याख्यान। परशुराम जी पर एकेडेमिक कार्य की अत्यधिक आवश्यकता है। पहले गुजरात के विद्वान कन्हैयालाल मुंशी जी तथा बाद में राजस्थान के प्रोफेसर विश्वम्भरनाथ जी ने गम्भीरतापूर्वक कार्य किया था। हिमाचल से प्रोफेसर जस्टा जी ने भी। तदुपरान्त वह किंचित मंद हो गया। आदरणीय आचार्य जी ने वे सब स्मृतियाँ पुनः जीवित कर दीं। महाराष्ट्र में पारखे जी ने परशुराम कवच आदि ग्रंथों को पुनः प्रकाशित करने का काम शुरू किया था। आचार्य जी ने ये बहुत उचित कहा कि महापुरुष समष्टि के होते हैं। वे किसी सीमा में बांधे नहीं जा सकते। मन को बड़ा करके ही सर्वसमाज को इसपर काम करना चाहिए। उत्कल और अरुणाचल का वन्य समाज शायद कहीं अधिक गहरे सूत्र दे पाए !
This channel is followed by a lot of people with Academic interests. Please don’t misuse this channel to pedal only mythology! Guruji’s memory should be kept alive via academic and epistemological discourse 🙏🏼
जय श्रीपरशुरामजी 🙏🏼
ज्ञानवर्धक व्याख्यान गुरु जी! आपने पाखंडी आध्यात्मिक नेताओं और ज्योतिषियों के शिकार श्रोताओं की आँखें खोल दी हैं। हर शब्द ने सिन्हा गुरुजी की स्मृति को जीवंत कर दिया। धन्यवाद!
अति उत्तम प्रेरणादायी विचार, आज अपने देश को ऐसे विचारों के प्रचार प्रसार करने वाले और उन्हें आत्मसात करने वालों की जरूरत है। सही कहा है चित्र नहीं चरित्र की उपासना कीजिए
आपने कितना अच्छे ढंग से मेरे तमाम शंका का समाधान कर दिया। आपको साधुवाद
HariOM Ji, ChaturvediJi is superb Ji. Impressed with his GYAN and Energy. Jai Ho Dev Vipravar.
Quite thoughtful. Very much appreciated. Dhanyavadagalu. Namaskaram.
अतिसुंदर🙏
💥‼️नवरात्रि की शुभकामनाएं‼️💥
बहुत सुन्दर व्याख्यान। परशुराम जी पर एकेडेमिक कार्य की अत्यधिक आवश्यकता है। पहले गुजरात के विद्वान कन्हैयालाल मुंशी जी तथा बाद में राजस्थान के प्रोफेसर विश्वम्भरनाथ जी ने गम्भीरतापूर्वक कार्य किया था। हिमाचल से प्रोफेसर जस्टा जी ने भी। तदुपरान्त वह किंचित मंद हो गया। आदरणीय आचार्य जी ने वे सब स्मृतियाँ पुनः जीवित कर दीं। महाराष्ट्र में पारखे जी ने परशुराम कवच आदि ग्रंथों को पुनः प्रकाशित करने का काम शुरू किया था। आचार्य जी ने ये बहुत उचित कहा कि महापुरुष समष्टि के होते हैं। वे किसी सीमा में बांधे नहीं जा सकते। मन को बड़ा करके ही सर्वसमाज को इसपर काम करना चाहिए। उत्कल और अरुणाचल का वन्य समाज शायद कहीं अधिक गहरे सूत्र दे पाए !
आपका नाम बाद में देखा अमन भाई, पहले टिप्पणी पढ़ी और विचार आया कि आपको भेजता हूं
वाह !! माँ के किरीट पर ही वार हुआ है 🙏🙏
Mahaguru aaj ati korodhit hain 😮😮
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