अरहंत सुमर मन बावरे || arahant sumar man baavare || Mangal Bhakti Suman || Jain Bhajan || Jainism

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  • Опубликовано: 10 сен 2024
  • अरहंत सुमर मन बावरे.......
    अरहंत सुमर मन बावरे अन्तर प्रभु लौ लाव रे ॥ अरहंत ॥ टेक ॥
    नरभव पाय अकारथ खोवै, विषय भोग जु बढ़ाव रे ।
    प्राण गये पछितैहै मनवा, छिन छिन छीजै आव रे ॥ अरहंत ॥ १ ॥
    जुवती तन धन सुत मित परिजन, गज तुरंग रथ चाव रे।
    यह संसार सुपन की माया, आँख मीचि दिखराव रे ॥ अरहंत ॥ २ ॥
    ध्याव ध्याव रे अब है अवसर आतम मंगल गाव रे ।
    'द्यानत' बहुत कहाँ लौं कहिये, और न कछू उपाव रे ॥ अरहंत ॥३ ॥
    रचयिता: कविवर द्यानतराय जी
    Source: मंगल भक्ति सुमन
    जीवन पथ दर्शन || ब्र. श्री रवीन्द्रजी ‘आत्मन्’
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