Durga Chalisa | Namo Namo Durge | DS7

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  • Опубликовано: 28 июн 2024
  • नमो नमो दुर्गे सुख करनी ।
    नमो नमो दुर्गे दुःख हरनी
    नमो नमो दुर्गे सुख करनी ।
    नमो नमो दुर्गे दुःख हरनी ॥
    निरंकार है ज्योति तुम्हारी ।
    तिहूँ लोक फैली उजियारी ॥
    शशि ललाट मुख महाविशाला ।
    नेत्र लाल भृकुटि विकराला ॥
    रूप मातु को अधिक सुहावे ।
    दरश करत जन अति सुख पावे ॥ ४
    तुम संसार शक्ति लै कीना ।
    पालन हेतु अन्न धन दीना ॥
    अन्नपूर्णा हुई जग पाला ।
    तुम ही आदि सुन्दरी बाला ॥
    प्रलयकाल सब नाशन हारी ।
    तुम गौरी शिवशंकर प्यारी ॥
    शिव योगी तुम्हरे गुण गावें ।
    ब्रह्मा विष्णु तुम्हें नित ध्यावें ॥ ८
    रूप सरस्वती को तुम धारा ।
    दे सुबुद्धि ऋषि मुनिन उबारा ॥
    धरयो रूप नरसिंह को अम्बा ।
    परगट भई फाड़कर खम्बा ॥
    रक्षा करि प्रह्लाद बचायो ।
    हिरण्याक्ष को स्वर्ग पठायो ॥
    लक्ष्मी रूप धरो जग माहीं ।
    श्री नारायण अंग समाहीं ॥ १२
    क्षीरसिन्धु में करत विलासा ।
    दयासिन्धु दीजै मन आसा ॥
    हिंगलाज में तुम्हीं भवानी ।
    महिमा अमित न जात बखानी ॥
    मातंगी अरु धूमावति माता ।
    भुवनेश्वरी बगला सुख दाता ॥
    श्री भैरव तारा जग तारिणी ।
    छिन्न भाल भव दुःख निवारिणी ॥ १६
    केहरि वाहन सोह भवानी ।
    लांगुर वीर चलत अगवानी ॥
    कर में खप्पर खड्ग विराजै ।
    जाको देख काल डर भाजै ॥
    सोहै अस्त्र और त्रिशूला ।
    जाते उठत शत्रु हिय शूला ॥
    नगरकोट में तुम्हीं विराजत ।
    तिहुँलोक में डंका बाजत ॥ २०
    शुम्भ निशुम्भ दानव तुम मारे ।
    रक्तबीज शंखन संहारे ॥
    महिषासुर नृप अति अभिमानी ।
    जेहि अघ भार मही अकुलानी ॥
    रूप कराल कालिका धारा ।
    सेन सहित तुम तिहि संहारा ॥
    परी गाढ़ सन्तन पर जब जब ।
    भई सहाय मातु तुम तब तब ॥ २४
    अमरपुरी अरु बासव लोका ।
    तब महिमा सब रहें अशोका ॥
    ज्वाला में है ज्योति तुम्हारी ।
    तुम्हें सदा पूजें नरनारी ॥
    प्रेम भक्ति से जो यश गावें ।
    दुःख दारिद्र निकट नहिं आवें ॥
    ध्यावे तुम्हें जो नर मन लाई ।
    जन्ममरण ताकौ छुटि जाई ॥ २८
    जोगी सुर मुनि कहत पुकारी ।
    योग न हो बिन शक्ति तुम्हारी ॥
    शंकर आचारज तप कीनो ।
    काम अरु क्रोध जीति सब लीनो ॥
    निशिदिन ध्यान धरो शंकर को ।
    काहु काल नहिं सुमिरो तुमको ॥
    शक्ति रूप का मरम न पायो ।
    शक्ति गई तब मन पछितायो ॥ ३२
    शरणागत हुई कीर्ति बखानी ।
    जय जय जय जगदम्ब भवानी ॥
    भई प्रसन्न आदि जगदम्बा ।
    दई शक्ति नहिं कीन विलम्बा ॥
    मोको मातु कष्ट अति घेरो ।
    तुम बिन कौन हरै दुःख मेरो ॥
    आशा तृष्णा निपट सतावें ।
    मोह मदादिक सब बिनशावें ॥ ३६
    शत्रु नाश कीजै महारानी ।
    सुमिरौं इकचित तुम्हें भवानी ॥
    करो कृपा हे मातु दयाला ।
    ऋद्धिसिद्धि दै करहु निहाला ॥
    जब लगि जिऊँ दया फल पाऊँ ।
    तुम्हरो यश मैं सदा सुनाऊँ ॥
    श्री दुर्गा चालीसा जो कोई गावै ।
    सब सुख भोग परमपद पावै ॥ ४०
    देवीदास शरण निज जानी ।
    कहु कृपा जगदम्ब भवानी ॥
    ॥दोहा॥
    शरणागत रक्षा करे,
    भक्त रहे नि:शंक ।
    मैं आया तेरी शरण में,
    मातु लिजिये अंक ॥
    ॥ इति श्री दुर्गा चालीसा ॥॥
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    निरंकार है ज्योति तुम्हारी ।
    तिहूँ लोक फैली उजियारी ॥
    शशि ललाट मुख महाविशाला ।
    नेत्र लाल भृकुटि विकराला ॥
    रूप मातु को अधिक सुहावे ।
    दरश करत जन अति सुख पावे ॥ ४
    तुम संसार शक्ति लै कीना ।
    पालन हेतु अन्न धन दीना ॥
    अन्नपूर्णा हुई जग पाला ।
    तुम ही आदि सुन्दरी बाला ॥
    प्रलयकाल सब नाशन हारी ।
    तुम गौरी शिवशंकर प्यारी ॥
    शिव योगी तुम्हरे गुण गावें ।
    ब्रह्मा विष्णु तुम्हें नित ध्यावें ॥ ८
    रूप सरस्वती को तुम धारा ।
    दे सुबुद्धि ऋषि मुनिन उबारा ॥
    धरयो रूप नरसिंह को अम्बा ।
    परगट भई फाड़कर खम्बा ॥
    रक्षा करि प्रह्लाद बचायो ।
    हिरण्याक्ष को स्वर्ग पठायो ॥
    लक्ष्मी रूप धरो जग माहीं ।
    श्री नारायण अंग समाहीं ॥ १२
    क्षीरसिन्धु में करत विलासा ।
    दयासिन्धु दीजै मन आसा ॥
    हिंगलाज में तुम्हीं भवानी ।
    महिमा अमित न जात बखानी ॥
    मातंगी अरु धूमावति माता ।
    भुवनेश्वरी बगला सुख दाता ॥
    श्री भैरव तारा जग तारिणी ।
    छिन्न भाल भव दुःख निवारिणी ॥ १६
    केहरि वाहन सोह भवानी ।
    लांगुर वीर चलत अगवानी ॥
    कर में खप्पर खड्ग विराजै ।
    जाको देख काल डर भाजै ॥
    सोहै अस्त्र और त्रिशूला ।
    जाते उठत शत्रु हिय शूला ॥
    नगरकोट में तुम्हीं विराजत ।
    तिहुँलोक में डंका बाजत ॥ २०
    शुम्भ निशुम्भ दानव तुम मारे ।
    रक्तबीज शंखन संहारे ॥
    महिषासुर नृप अति अभिमानी ।
    जेहि अघ भार मही अकुलानी ॥
    रूप कराल कालिका धारा ।
    सेन सहित तुम तिहि संहारा ॥
    परी गाढ़ सन्तन पर जब जब ।
    भई सहाय मातु तुम तब तब ॥ २४
    अमरपुरी अरु बासव लोका ।
    तब महिमा सब रहें अशोका ॥
    ज्वाला में है ज्योति तुम्हारी ।
    तुम्हें सदा पूजें नरनारी ॥
    प्रेम भक्ति से जो यश गावें ।
    दुःख दारिद्र निकट नहिं आवें ॥
    ध्यावे तुम्हें जो नर मन लाई ।
    जन्ममरण ताकौ छुटि जाई ॥ २८
    जोगी सुर मुनि कहत पुकारी ।
    योग न हो बिन शक्ति तुम्हारी ॥
    शंकर आचारज तप कीनो ।
    काम अरु क्रोध जीति सब लीनो ॥
    निशिदिन ध्यान धरो शंकर को ।
    काहु काल नहिं सुमिरो तुमको ॥
    शक्ति रूप का मरम न पायो ।
    शक्ति गई तब मन पछितायो ॥ ३२
    शरणागत हुई कीर्ति बखानी ।
    जय जय जय जगदम्ब भवानी ॥
    भई प्रसन्न आदि जगदम्बा ।
    दई शक्ति नहिं कीन विलम्बा ॥
    मोको मातु कष्ट अति घेरो ।
    तुम बिन कौन हरै दुःख मेरो ॥
    आशा तृष्णा निपट सतावें ।
    मोह मदादिक सब बिनशावें ॥ ३६
    शत्रु नाश कीजै महारानी ।
    सुमिरौं इकचित तुम्हें भवानी ॥
    करो कृपा हे मातु दयाला ।
    ऋद्धिसिद्धि दै करहु निहाला ॥
    जब लगि जिऊँ दया फल पाऊँ ।
    तुम्हरो यश मैं सदा सुनाऊँ ॥
    श्री दुर्गा चालीसा जो कोई गावै ।
    सब सुख भोग परमपद पावै ॥ ४०
    देवीदास शरण निज जानी ।
    कहु कृपा जगदम्ब भवानी ॥
    ॥दोहा॥
    शरणागत रक्षा करे,
    भक्त रहे नि:शंक ।
    मैं आया तेरी शरण में,
    मातु लिजिये अंक ॥
    ॥ इति श्री दुर्गा चालीसा ॥
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