Scindia Royal Family | Dussehra Celebration in india | History of Gwalior Dusshera

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  • Опубликовано: 11 июн 2024
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    ग्वालियर में शाही दशहरे की शुरुआत लगभग ढाई सौ वर्ष पहले सिंधिया राज परिवार ने की थी. हालांकि राजतंत्र चले जाने के बाद भी सिंधिया परिवार आज भी अपनी परंपरा को उसी शाही अंदाज में मनाते चले आ रहे हैं.
    ग्वालियर में इस शाही दशहरे की मनाने की परम्परा ढाई सौ वर्ष पहले सिंधिया परिवार के तत्कालीन महाराज दौलत राव सिंधिया (Maharaj Daulat Rao Scindia) ने शुरू की थी. दरअसल, महाराज दौलत राव ने अपनी राजधानी मालवा से हटाकर ग्वालियर लाने की खुशी में इसकी शुरुआत की थी. यहां उन्होंने गोरखी स्थित अपने महल में अपने कुलगुरु बाबा मंसूर शाह का स्थान बनवाया और मांढरे की माता के नीचे मैदान को दशहरा मैदान के रूप में चयनित किया था. पहले जब सिंधिया राज परिवार गोरखी स्थित महल में रहता था तो दशहरा को हाथी, घोड़ा और पैदल सैनिकों के साथ महाराज का दशहरा उत्सव महाराज बाड़ा से शुरू होता था. इस दौरान सिंधिया राज्य की सैन्य शक्ति का भी प्रदर्शन किया जाता था.
    देश के स्वतंत्र हो जाने के बाद राज परिवार का शाही तामझाम खत्म हो गया और महल की तरफ से होने वाला आयोजन हिन्दू दशहरा समिति के नाम से आयोजित होने लगा. इसमें शमी पूजन के बाद सिंधिया परिवार के पुरुष मुखिया अपने परंपरागत शाही लिबास में भव्य चल समारोह के साथ दौलतगंज में आयोजित होने वाले दशहरा मिलान समारोह में पहुंचते थे. इतना ही नहीं माधव राव सिंधिया भी कुछ सालों तक इस आयोजन में जाते रहे और संक्षिप्त सम्बोधन भी देते थे, लेकिन बाद में ये आयोजन बंद हो गया, लेकिन सिंधिया परिवारा का शमी पूजन दशहरा समारोह आज भी पहले की तरह जारी रहा.
    शमी पूजन परम्परा अभी भी जारी
    सिंधिया परिवार का परंपरागत दशहरे पर होने वाले शमी पूजन की परम्परा आज भी बदस्तूर जारी है. दशहरा पर सिंधिया परिवार के महाराज और युवराज महान आर्यमन सिंधिया सुबह मंसूर साहब की पूजा -अर्चना करने जाते हैं और शाम को परंपरागत शाही लिबास में सिंधिया महाराजा के लिए तय वस्त्र और आभूषण और तलबार लेकर मांडरे की माता के नीचे स्थित दशहरा मैदान में पहुंचते हैं. वहीं महाराष्ट्र से आये कुल पुरोहित दशहरा पूजन कराते हैं. इसके बाद सिंधिया तलवार से शमी वृक्ष की डाल को प्रतीकात्मक स्पर्श करके काटते हैं फिर इसकी पत्तियां लूटने की होड़ मचती है और फिर लोग यह पत्ती सिंधिया को भेंट कर उन्हें दशहरे की मुबारकवाद देते हैं.

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