Bhool bhulaiya Lucknow || भूल भुलैया || Lucknow bada imambada || bhool bhulaiya ka rahashya

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  • Опубликовано: 30 сен 2024
  • Bhool bhulaiya Lucknow || भूल भुलैया || Lucknow bada imambada || bhool bhulaiya ka rahashya
    Helo friends in this video I am going to tell you about bada imambada which is also known as bhool bhoolaiya and it is build in 1784 by nawab Asif ud-daulah..
    Bara Imambara, also known as Asfi Imambara is an imambara complex in Lucknow, India built by Asaf-ud-Daula, Nawab of Awadh in 1784. Bara means big. This imambara is the second largest after the Nizamat Imambara.
    Facts About Bara Imambara: लखनऊ स्थित बड़ा इमामबाड़ा यहां के प्रमुख ऐतिहासिक स्थलों में से एक है, यह शहर की संस्कृति और समृद्ध विरासत का प्रतीक है। इसका निर्माण 1784 ई. में अकाल राहत परियोजना के तहत अवध क्षेत्र के नवाब आसफ-उद-दौला द्वारा कराया गया था। इसे नवाब की कब्र के लिए आसफी इमामबाड़ा और भ्रामक रास्‍तों के कारण भूल-भुलैया भी कहा जाता है। गोमती नदी के किनारे स्थित बड़ा इमामबाड़ा की वास्‍तुकला, ठेठ मुगल शैली को प्रदर्शित करती है जो पाकिस्‍तान में लाहौर की बादशाही मस्जिद से काफी मिलती जुलती है और इसे दुनिया की सबसे बड़ी पाचंवी मस्जिद भी माना जाता है।
    क्‍यों बनाया गया बड़ा इमामबाड़ा
    अवध क्षेत्र के अंदर वर्ष 1784 में भयंकर अकाल पड़ा। जिसके बाद राहत परियोजना के तहत इसका निर्माण शुरू किया गया, जिससे लोगों को रोजगार मिले। कहा जाता है कि इस इमामबाड़ा का निर्माण और अकाल दोनों ही 11 साल तक चले। इमामबाड़ा के निर्माण में करीब 20,000 श्रमिक शामिल थे। इसका केंद्रीय हॉल दुनिया का सबसे बड़ा वॉल्टेड चैंबर बताया जाता है। बड़ा इमामबाड़ा को हालांकि भूल भुलैया के नाम से ज्‍यादा ख्याति प्राप्त है। इस विशाल इमामबाड़ा का गुंबदनुमा ह\ल 50 मीटर लंबा और 15 मीटर ऊंचा है। उस जमाने में इसके निर्माण में कुल 8 से 10 लाख रुपये की लागत आई थी।
    बड़ा इमामबाड़ा से जुड़ी रोचक तथ्‍य
    1. बड़ा इमामबाड़ा को भूल भुलैया के नाम से भी जाना जाता है, अंदर जाने के लिए यहां 1000 से भी ज्यादा छोटे-छोटे रास्तों का जाल है, वहीं बाहर निकलने के लिए सिर्फ 2 रास्‍ते हैं। यहां आकर अच्छे से अच्छा पर्यटक भी रास्ता भूल जाता है।
    2. इमामबाड़े में एक और सुंदर संरचना है जिसे बावड़ी कहा जाता है यह पांच मंजिला सीढ़ीदार कुआं है। जो पूर्व में नवाबी युग की देन माना जाता है। यह बावड़ी गोमती नदी से जुड़ी हुई है। पानी के ऊपर सिर्फ दो मंजिले ही दिखते हैं,
    3. इसकी सबसे रोचक बात यह है कि यह ना तो पूरी तरह से मस्जिद है और ना ही मकबरा है। कमरों का निर्माण और दीवारों के उपयोग में सशक्त इस्लामी प्रभाव स्पष्ट रूप से झलकता है।
    4. इस भवन में कुल 3 विशाल कक्ष है और इनकी दीवारों के बीच छुपी हुई लंबी-लंबी गलियां हैं जो लगभग 20 फीट तक मोटी हैं।
    5. बड़ा इमामबाड़ा की छत पर जाने के लिए 84 सीढ़ियां हैं जो ऐसे रास्तों से होकर जाती हैं जो किसी भी अनजान व्यक्ति को भ्रम में डाल दें, इसलिए इसे भूलभुलैया भी कहा जाता है।
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