राजयोग मेडिटेशन - १ परमधाम की यात्रा - Hindi.. BK Anil Kumar

Поделиться
HTML-код
  • Опубликовано: 2 ноя 2024
  • वर्तमान परिस्थितियाँ चिंता और अनिश्चितता को जीवन में ला रही हैं। जो कभी सुरक्षित था आज हर गुजरते दिन के साथ एक नया बदलाव ला रहा है। यदि आप अक्सर चिंतित और थके हुए रहते हैं; मन की शांति खोज रहे हैं तो राजयोग मेडिटेशन आपके भय से निपटने के लिए एकमात्र साधन है। निश्चिंत, निर्भय जीवन की गुरुकिल्ली - राजयोग
    योग के कई प्रकार हैं जैसे १) राजयोग २) हठयोग ३) ज्ञान योग ४) बुद्धि योग ५) भक्तियोग ६) मंत्र योग (जप योग) ७) तंत्र योग ८) कर्मयोग ९) सन्यास योग १०) तत्व योग इत्यादि ।
    हम सभी योगयुक्त जीवन जी रहे हैं जो आध्यात्मिक अर्थ में दो तत्वों का जोड़ अथवा मिलन है एक जो याद करता है दूसरा जिसे याद किया जाता है । उदाहरण के तौर पर जिससे हम योग लगाते हैं वह व्यक्ति या ईश्वर ( राजयोग ) कर्म (कर्मयोग ) या ईश्वरीय ज्ञान (ज्ञानयोग)
    या भक्ति ( भक्तियोग ) या श्वास ( प्राणायाम ) अथवा भौतिक शरीर (हठयोग ) या कोई भौतिक वस्तु जैसे कि मोमबत्ती की लौ हो सकता है ।
    राजयोग इन सभी से सर्वश्रेष्ठ है क्योंकि यह आत्मा और परमात्मा का योग (स्नेह मिलन) है जिसमें आत्मा के जन्मजन्मान्तर की प्यास मिट जाती है, जन्मजन्मान्तर के विकर्म विनाश हो जाते हैं, आत्मा के सभी गुण व शक्तियां जागृत हो जाती है तथा भविष्य में राजाओं का राजा बनते हैं । राजयोग में सभी योग समायें हुए हैं ।
    अतः योग जीवन है जिसे दिन के किसी समय कुछ समय के लिए किसी विशेष आसन धारण कर बैठने तक सीमित नहीं किया जा सकता । मूल रूप से, किसी चीज या व्यक्ति को याद करना ही योग है । योग शब्द को शारीरिक व्यायाम तक सीमित नहीं रखा जाना चाहिए जो कि योग की एक संकीर्ण व्याख्या है । अपने स्वयं की देह पर केन्द्रित करना भी अति आवश्यक है पर यह योगी जीवन का एक पहलु है । अपने दिन के शुरुआत में ही शुद्ध एवं रचनात्मक स्त्रोत पर मन को केन्द्रित करना जिसमें ईश्वर भी शामिल हो यही संपूर्ण एवं व्यापक योगी जीवनशैली है ।
    मनुष्य के सर्वांगीन विकास में तन व मन का स्वस्थ होना जरुरी है । तन के स्वास्थ्य के लिए हठयोग तो मन के स्वास्थ्य के लिए राजयोग उतना ही आवश्यक है जो सर्व योगों में सर्वश्रेष्ठ है क्योंकि मन की स्वस्थता तन की स्वस्थता का आधार है । मन सशक्त तो तन भी शक्तिशाली हो जाता है । इसलिए कहा भी गया है “जैसा मन वैसा तन या फिर मन जीते जगतजीत” । आत्मा हमारे शरीर में बैटरी के समान कार्य करती है जो हमारे नकारात्मक व व्यर्थ संकल्पों तथा विकर्मों द्वारा तीव्रता से डिस्चार्ज हो जाती है जिससे आत्मा के दिव्य गुणों और शक्तियों में न्यूनता आ जाती है जिसके परिणामस्वरूप वह कमजोर बन विकारों के अधीन हो जाती है । इसलिए योग द्वारा उसे हर रोज चार्ज करना आवश्यक है । मन शक्तिशाली बनता है सर्वशक्तिमान परमात्मा की याद द्वारा शक्ति प्राप्त करने से । राजयोग में हम अपने मन-बुद्धि को परमात्मा से जोड़ने की विधि सीखते हैं । यह हमारे मन के चिंता, भय, तनाव आदि को दूर करता है । राजयोग विचारों को शांतिपूर्ण और स्थिर बनाने का अति सहज मार्ग है । इसके द्वारा हमें जीवन के हर परिस्थिति में खुश रहने की शक्ति प्राप्त होती है ।
    योगेश्वर परमात्मा शिव द्वारा प्रतिपादित राजयोग ही वास्तव में भारत का प्राचीन राजयोग है जिसकी शिक्षा संगमयुग पर याने कलियुग अंत व सतयुग आदि पर मिलती है । इसमें किसी वस्तु या देहधारियों से,, देह के किसी अंग विशेष से सम्बन्ध न जोड़ कर स्वयं को आत्मिक स्वरुप से मन बुद्धि को सीधे निराकार परमात्मा के वास्तविक स्वरुप में एकाग्र करना होता है जिससे आत्मा के सभी विकर्म नष्ट हो कर वह गुणों व शक्तियों से भरपूर हो जाती है । इससे चित्त वृत्तियों का निरोध स्वतः ही हो जाता है । सहज ही परमात्म अनुभूति होती है । सबसे बड़ी प्राप्ति तो यह होती है कि आत्मा पावन बनती है तथा जीवन में देवत्व प्रकट होने लगता है । जबकि पतंजलि कृत योग में आत्मिक स्वरुप व परमात्म स्वरुप की स्पष्ट चर्चा नहीं है । राजयोग एक ऐसा योग विधि है जो कर्मकांड या मंत्र रहित है जिसका अभ्यास किसी भी पृष्ठभूमि वाले कहीं भी आसानी से कर्म करते हुए भी कर सकते हैं । इसलिए इसे सहजयोग वा कर्मयोग भी कहते हैं ।
    संगम युग में परमधाम निवासी गीता के भगवान योगेश्वर निराकार ज्योतिर्बिंदु परमपिता परमात्मा ( शिव, अल्लाह, खुदा, जेवोहा, ओंकार ) को अपने वचन अनुसार साधारण मनुष्य तन में हर कल्प पुनः अवतरित होकर अनेक धर्म विनाश व एक सत आदि सनातन देवी देवता धर्म (स्वर्ग) की पुनर्स्थापना कर ईश्वरीय ज्ञान, प्राचीन राजयोग और ५ तत्वों सहित सभी आत्माओं को पावन बनाने का ईश्वरीय कर्तव्य निर्वाह करना पड़ता है, जिससे विश्व की सभी आत्माओं को आत्मा, परमात्मा, सृष्टि चक्र, आत्मा के निवास स्थान के सत्य स्वरुप का ज्ञान प्राप्त होकर मुक्ति जीवनमुक्ति का ईश्वरीय जन्मसिद्ध अधिकार प्राप्त होता है । विश्व की सभी आत्मायें घोर नर्क के दुःख, अशांति, पीड़ाओं से मुक्ति पा लेते हैं और यह संसार पुनः स्वर्ग, बहिश्त वा हेविन में परिवर्तन हो जाता है ।
    On Godly Service,
    BK Anil Kumar
    pathakau71@gmail.com
    Also visit my blog for related and many more articles at
    godlyknowledge...
    visit my website at
    sites.google.c...
    Other useful video links:
    ओम - महत्व, लाभ व ड्रिल • ओम - महत्व, लाभ व ड्रि...
    अष्ट शक्तियाँ ड्रिल • अष्ट शक्तियाँ ड्रिल -...
    7 गुण स्वमान २१ बार • 7 गुण स्वमान २१ बार - ...
    अंतिम समय - कंबाइंड स्वरुप योगाभ्यास • अंतिम समय - कंबाइंड स्...
    आत्मिक स्मृति अभ्यास • अंतिम समय - कंबाइंड स्...
    चार धाम ड्रिल • चार धाम ड्रिल - Hindi....
    #Omshantichannel #Madhuban-GyanYog #BKRahulMeditation #shivbabasongs #YogaStages #EightStagesofYoga #YogaJourney #Meditation #Rajyogameditation #ommandali #StressManagement #GodlyKnowledgeTreasures

Комментарии • 57