Class 8.36। कर्म बन्ध विज्ञान - आपकी चाल-ढाल किस कर्म पर निर्भर करती है सूत्र 11
HTML-код
- Опубликовано: 2 окт 2024
- Class 8.36 summary
विहायोगति नामकर्म के वर्णन में हमने जाना कि
इसके माध्यम से विहायस् यानि आकाश में गति अर्थात् गमन होता है
वस्तुतः पक्षियों का आकाश में उड़ना
सरीसृप जाति के जीवों का जमीन पर घिसटना
और मनुष्य आदि का कदम उठा कर चलना भी इसी में आता है
हमारा एक-एक step उठाकर चलना भी विहायोगति ही है
क्योंकि हम पृथ्वी पर जोर डालकर
चलते तो आकाश में ही हैं
यह विहायोगति दो प्रकार की होती है
शुभ या प्रशस्त
और अशुभ या अप्रशस्त
प्रशस्त गति हमको अच्छी लगती है
उनकी चाल, step उठाने का ढंग थोड़ा अच्छा लगता है
जैसे हंस, हाथी, घोड़े, मयूर और सिंह की चाल
अप्रशस्त गति हमको अच्छी नहीं लगती
जैसे ऊँट का उचक-उचक कर चलना
या कुत्ते, सियार, लोमड़ी की चाल
मनुष्यों में हमें अलग-अलग चाल दिखाई देती हैं
जिसे हम प्राणियों से compare कर प्रशस्त या अप्रशस्त कहते हैं
हमने जाना शरीर आदि अन्य नामकर्म की तरह ही, चलने का ढंग या विहायोगति भी हमारे करने से नहीं होती
अपितु स्वभाव से होती है
हम टोकने से handwriting तो संभाल सकते हैं
पर विहायोगति change नहीं कर सकते
क्योंकि यह सीखने की चीज नहीं है
यह कर्म के उदय से है
हमें न इससे बाधित होना है और न इसको बाधा पहुँचानी है
थोड़ी देर के लिए हम बनावटी या stylish चाल तो चल सकते हैं
जैसे फेरे लेते समय
या ramp पर चलते समय
लेकिन अपनी natural speed और style को नहीं बदल सकते
हमें सभी नामकर्म का परिचय अच्छे ढंग से पकड़ में आता है
क्योंकि ये सब चीजें शरीर में घटित होती रहती हैं
प्रत्येक शरीर नामकर्म के उदय से एक शरीर का स्वामी एक ही जीव होता है
सूत्र में ‘सेतराणि’ - ‘स इतर’ यानि इसके उलटे भी साथ में लेना, ऐसा भाव आता है
प्रत्येक शरीर का just opposite साधारण शरीर होता है
इसमें एक शरीर के स्वामी अनेक जीव होते हैं
यह निगोद शरीर की स्थिति है
यहाँ एक के जन्म लेने से अनन्तों का जन्म होता है
एक के लिए आहार होने से अनन्तों का आहार होता है
एक की श्वास चलने से अनन्तों की श्वास चलती है
और एक के शरीर का घात होने पर सब के शरीर का घात होता है
यह सिर्फ एकेन्द्रिय वनस्पतिकायिक जीवों के एक भेद में होता है
अन्य सभी जीव प्रत्येक शरीर वाले होते हैं
अर्थात् वे अपने शरीर का आभास करते हैं
उसमें जीते हैं
और शरीर का घात होने पर मर जाते हैं
पृथ्वी, जल, अग्नि और वायु में प्रत्येक शरीर वाले जीव होते हैं
वनस्पतिकायिक में दोनों तरीके के जीव होते हैं
साधारण शरीर वाली साधारण वनस्पति
और प्रत्येक शरीर वाली प्रत्येक वनस्पति
साधारण वनस्पति को अनन्तकाय, अनन्तकायिक भी कहते हैं
क्योंकि इसमें अनन्त निगोद राशि होती है
प्रत्येक वनस्पति में जीव अपने एक शरीर का स्वामी होता है
इसमें अपेक्षाकृत कम निगोद जीव राशि होती है
त्रस नामकर्म के उदय से जीव दो इन्द्रिय आदि पर्यायों को प्राप्त करता है
और इनके शरीर में रक्त, मांस, चर्म आदि बनने लग जाते हैं
इसके विपरीत स्थावर नामकर्म के उदय से जीव एकेन्द्रिय
पृथ्वी, जल, अग्नि, वायु और वनस्पति पर्याय प्राप्त करता है
इसके शरीरों में रक्त, मांस इत्यादि नहीं होता
त्रस नामकर्म को शुभ और स्थावर नामकर्म को अशुभ माना जाता है
Tattwarthsutra Website: ttv.arham.yoga/
Om Urham Namah
108,Shri Pranamyasägarji Maharaj ke charno mein Namostu
नमोस्तु गुरूदेव आचार्य श्री जी की जय हो श्री 1008 पारस नाथ जी की जय हो 🙏🙏🙏🙏🙏
Namostu gurudev
Namostu maharaj ji🙏🙏🙏
Nmostu gurudev 🙏🙏🙏
अर्हं योग प्रणेता पूज्य गुरूवर श्री प्रणम्यसागरजी महाराज की जय जय जय 🙏💖🙏💖🙏💖
आत्म वैभव के धनी , प्रातः स्मरणीय मुनि श्री १०८ प्रणम्य सागर जी महामुनिराज के पूज्यपाद में कोटि - कोटि नमोस्तु भगवन 🙏🙏🙏
Namostu guruver bhagwan. Jai ho shree pranamya sagar maharaj shree ji ki
🙏🏻🙏🏻
🙏🙏🙏
Answer 3 . Aprasastra vihoyay gati
Muni Pranamya sagarji maharaj ji ko hum sab ki ore se baarambaar koti koti namostu from Sunil Sushma jain pariwaar sahit
Namostu Gurudev 🙏🏻 🙏🏻 🙏🏻
Namostu gurudev 🙏🙏🙏
Namostu gurudev 😊
Nomostu gurudev.
Namostu gurudev
Namostu gurudev