कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय की Ph.D उपाधि हेतु ऋषिराज द्वारा लिखे हुए शोधोपाधि ग्रन्थ का समूल खण्डन २

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  • Опубликовано: 17 дек 2024

Комментарии • 70

  • @parbhakarprasad153
    @parbhakarprasad153 Год назад

    तन्मते पोपटमते*पूर्वत्रासिद्धम्* इत्यत्र पूर्वशब्दस्य कोर्थ:?इति विवेचनीयम्,

  • @RakeshKr19422Pandey
    @RakeshKr19422Pandey Год назад

    सादर प्रणाम गुरु जी🙏🏻💐👳🏻

  • @brijyadav9886
    @brijyadav9886 2 года назад

    Namah sanskritay 🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏

  • @Deepak.Vatsya
    @Deepak.Vatsya 2 года назад

    साधु समाहितम् अस्मदीयप्रियगुरुवरश्रीविष्णुकान्तपाण्डेयवर्यैः।

  • @ananthakrishnan5674
    @ananthakrishnan5674 2 года назад

    उत्तमम्।

  • @Deepak.Vatsya
    @Deepak.Vatsya 2 года назад +1

    पाणिनीयं महाशास्त्रं पदसाधुत्वलक्षणम्।
    सर्वोपकारकं ग्राह्यं कृत्स्नं त्याज्यं न किञ्चन।।
    इति स्मरतु पोपटजी

  • @VivekSharma-pq5wi
    @VivekSharma-pq5wi Год назад

    आक्षेपकर्ता अपवादविधिं ज्ञातुं‌ न‌ शक्तवान् ,एषा‌ विधिः व्याकरणस्य‌ सामान्याध्येता छात्र:अपि‌ जानाति‌,समाधातृपक्ष:सम्यकरूपेण‌ भ्रान्त्या‌ उन्मूलनं‌ कृतवान्।

  • @manojkumartanwar6132
    @manojkumartanwar6132 2 года назад +8

    जिस ग्रंथ का रहस्य माता जी की कृपा से उनके सानिध्य में रहने वाले अबोध बालक भी आसानी से समझ लेते है और उसी बात की एक ग्रंथि को सुलझाने में बरसों व्यतीत करना कहाँ की बुद्धिमानी है। ऐसे में क्यों विदेश जाकर अपना समय खराब किया है?
    ऐसे मिथकों का भाड़ा फोड़ अवश्य ही होना चाहिए। गुरुदेव आपने अपनी औजस्वी वाणी और सोदाहरण प्रमाणों से हस्तमालकमिव स्पष्ट कर दिया।

  • @eswaranvk2081
    @eswaranvk2081 2 года назад +8

    This's the right time to propagate Sanskrit language.Students are benefited by the controversy created by PhD scholar Mr Rishi Raj. The whole world is awakened. We're touched by Rishiraj's dictum "IN PANINI I TRUST". Rishiraj genuinely loves Sanskrit Regards.

    • @RajeshSilswal
      @RajeshSilswal 2 года назад +2

      Completely agree! I think this is helping Sanskrit a lot. माता पुष्पा दीक्षित् जी की विलक्षणता तक मैं ऋषि राज जी की वजह से पहुँचा।

  • @vivekpadhiyar4295
    @vivekpadhiyar4295 2 года назад +12

    १) ऋषिनामा जनोयं भाषते यत् इयं समस्या पूर्वतनैः न ज्ञाता। अतः इदं स्पष्टं यत् इयं समस्या नासीत्। अनेन स्वयं काचित् समस्या उद्भाविता समाहिता च। अधुना रवं करोति यत् २५०० वर्षपूर्वं या समस्या आसीत् सा तेन समाहिता।
    २) स वदति तस्य काचित् आचार्या द्वादशकक्षाध्ययनकाले आसीत्। तामयं पृष्टवान् कञ्चित् प्रश्नम्। सा उत्तरं दातुम् अक्षमा। तदा अनेन निर्णीतं यदियं समस्या मया समाधेया। परन्तु तस्याः तद्विषये अज्ञानमस्ति चेत् इदं वक्तुं न शक्यते यत् इयं समस्या पाणिनीयव्याकरणजगति प्रारम्भतः आसीदिति। कस्याश्चिद् अज्ञानं संस्कृतजगतः अज्ञानमिति वक्तुं न शक्यते।
    ३) किमियं समस्या पतञ्जलिना कैयटेन नागेशेन वा न ज्ञाता। किम् काशिकाकारेण न्यासकारेण पदमञ्जरीकारेण वा न ज्ञाता। संस्कृतव्याकरणस्य यावन्तो विद्वांसः अभूवन् तेषु कोपि समस्यामपि न जानाति इति वक्तुं शक्यते वा।
    ४) किमयं जनः संस्कृतस्य ग्रन्थेषु क्वापि इयं समस्या उल्लिखिता समाहिता वा नास्ति इति वक्तुं शक्नोति। किं तेन सर्वे ग्रन्था अधीता यावता। काचित् समस्या अस्ति चेत् तस्याः समाधानं पूर्वं क्वापि नास्ति इति प्रतिपादनोत्तरं खलु केनापि वक्तव्यम् यत् समाधानं नास्ति इति। यदि अनेन ताः सर्वाः टीकाः नाधीताः तर्हि कथमयं ब्रूते यदियं समस्या तेन समाहिता इति।

  • @jahnavidadhich1765
    @jahnavidadhich1765 2 года назад +3

    Pranaam 🙏

  • @ManishKumar-tp1oe
    @ManishKumar-tp1oe 2 года назад +1

    सत्यकयन् भवान्

  • @kailashchandrasharma1033
    @kailashchandrasharma1033 2 года назад +3

    माता जी व आपका कार्य बहुत ही प्रशंसनीय है आप दोनों को सादर प्रणाम🙏🙏

  • @narendramaharshi
    @narendramaharshi 2 года назад +3

    प्रणौमि आचार्यान् 🙏

  • @kailashchandrasharma1033
    @kailashchandrasharma1033 2 года назад

    बहुत ही अच्छे गुरु जी

  • @dr.prajna4899
    @dr.prajna4899 2 года назад +2

    🙏💐गुरुं नमति प्रज्ञा

  • @natthulalanuragi6829
    @natthulalanuragi6829 Год назад

    इस देश में संस्कृत का व्याकरण महर्षि पाणिनि ने लिखा , मगर अब तो हाल यह है कि लोग ऋषि ( ऋषि राज ) की बात को ही मानने को तैयार नहीं है ।

  • @vimalasrecipes2740
    @vimalasrecipes2740 2 года назад +1

    प्रणाम माताजी । झूट खंडन करने के धन्यवाद ।

  • @dgkjg3456
    @dgkjg3456 2 года назад +1

    जय जगन्नाथ

  • @श्याममिश्र-थ8य
    @श्याममिश्र-थ8य 2 года назад +2

    गुरूजी को सादर प्रणाम 🙇‍♂️🙏

  • @dr.biswaranjanpanda1625
    @dr.biswaranjanpanda1625 2 года назад +1

    अयं शोधप्रबन्ध: सर्वथा वर्जनीय: । यत: असाधु: सिद्धान्त: तत्र भूरि परिलक्ष्यते।

  • @AjayPandey-lz1oj
    @AjayPandey-lz1oj 2 года назад +2

    Pranam

  • @amitlal7653
    @amitlal7653 2 года назад +10

    यह सब विषय‌ ठीक है किन्तु हम लोगों ने व्याकरण आदि शास्त्रों की समसामयिक उपयोगिता के लिए कोई विशेष प्रयत्न नहीं किया इसे स्वीकार करना चाहिए और इस प्रकार वैश्विक स्तर पर शास्त्र को ख्यापित करने वालों के प्रति कृतज्ञता ज्ञापित करते हुए खण्डन-मण्डन की शिष्ट परम्परा का निर्वहन होना चाहिए

  • @NSSSEducationAcademy
    @NSSSEducationAcademy 2 года назад +2

    🙏🙏

  • @gavishskt
    @gavishskt 2 года назад +1

    प्रणामा:

  • @balvyasanandji9620
    @balvyasanandji9620 2 года назад +2

    प्रणाम 🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏

  • @kesarisingh4801
    @kesarisingh4801 2 года назад

    वाह पोपट वाह!!

  • @dikshasharma6655
    @dikshasharma6655 2 года назад +1

    Namste mata ji

  • @ramsagartiwari8721
    @ramsagartiwari8721 2 года назад +28

    पोपट जी के तथाकथित अभूतपूर्व अनुसंधान का गुब्बारा भारतीय गुरु शिष्य परंपरा के वैयाकरणों की कुशाग्रता से फुस्स होता प्रतीत हो रहा है।

  • @maheshpatel_2310
    @maheshpatel_2310 2 года назад

    यथार्थ

  • @hitulav
    @hitulav 2 года назад

    Please make these videos in simple to understand language and also in English with examples for wider circulation.

  • @abhadwivedisuk5309
    @abhadwivedisuk5309 2 года назад +10

    माता जी को सादर प्रणाम 🙏
    सम्पूर्ण व्याकरण सम्प्रदाय की प्रतिष्ठा पर हुए कुठाराघात की हम सभी भर्त्सना करते हैं।

  • @dikshasharma6655
    @dikshasharma6655 2 года назад

    Namste guruji

  • @DrVinaySharma
    @DrVinaySharma Год назад

    घोर निंदा करते हैं
    पॉपट जी की

  • @vanhannu
    @vanhannu 2 года назад +2

    Cambridge wale rajpoot mirchi khake mar jayega🤣🤣🤣🤣

  • @dr.biswaranjanpanda1625
    @dr.biswaranjanpanda1625 2 года назад

    अष्टाध्यायी ध्यानेन पठनीया। अस्माकं गुरुपरम्परा रक्षणीया। सा अभ्रान्तास्ति। ऋषिराजेन लिखितोऽयं शोधप्रबन्ध: सर्वथा वर्जनीय: ।

  • @abhadwivedisuk5309
    @abhadwivedisuk5309 2 года назад +5

    एकलव्य बनने के लिए भी आस्था का होना अत्यावश्यक है ,शायद पोपट जी यह भी नहीं जानते।

    • @jagannathvajpayee8115
      @jagannathvajpayee8115 2 года назад

      गुरु परंपरा से प्राप्त नही है इसलिए

    • @sidddddddddddddd
      @sidddddddddddddd 2 года назад

      Yeh aapse kisne kahaa ki Popat ji mein aastha nahi hai? Aap unhein personally jaante hain kya?

  • @satyamsundar5
    @satyamsundar5 2 года назад +1

    पौपट चौपट हैं। भारत की आत्मा पर चोट, दुस्साहस है। इनके शोध-कुप्रबंध कहीं मिशनरियों की करामात तो नहीं....?

  • @k-prasad-h
    @k-prasad-h 2 года назад +4

    IMHO: it is better to 'study' & 'understand' the entire thesis in detail, in order to get into a 'rebuttal mode'

  • @dr.gyansharma6458
    @dr.gyansharma6458 2 года назад

    Ek hi stage par bada bade sanskrit vidwano ko bulaye or ish popat or uski Cambridge University ki advisor ko bhi jishse ki isko itna sab sikhaya jaye ki dubara sanskrit bhasa se ched chaad karne ki koshish samast vishwa mei koi dubara na kar sake

  • @arya.bharat5409
    @arya.bharat5409 2 года назад +1

    पोपट भैया ने जो vipratishedhekaryam में जो उदाहरण दिया वो भी गलत है

  • @gareebmanus2387
    @gareebmanus2387 2 года назад +8

    I wish the learned professor had made a more systematic, structured presentation using slides. If thesis was written English, why not discuss in English--to reach a wider audience? In any event, is there anger at least partly because a young researcher has chosen to take a different path?

  • @BHUSanskrit
    @BHUSanskrit 2 года назад +2

    व्याकरण को अक्षरशः पढ़ाने का भी कष्ट करें गुरुदेव 🙏🙏

  • @LokeshSharmaa
    @LokeshSharmaa 2 года назад +2

    नमोनमः
    अस्मिन् खण्डने सार्थकता नास्ति। वक्त्रा ऋषिराजस्य लेखस्य अभिप्रायः न अवगतः।
    विप्रतिषेदः द्वौ प्रकारकौ -
    १. प्रथमप्रकारे द्वे सूत्रे एकस्मिन्नेव प्रत्यये उपरि कार्यं करोति।
    २. द्वितीयप्रकारे एकं सूत्रं अङ्गे कार्यं करोति द्वितीयं प्रत्यये उपरि कार्यं करोति।
    यदा प्रथमप्रकारकः विप्रतिषेदः भवति तदा तु अपवाद-उत्सर्गः भवति इति ऋषिराजस्य मतम्।
    किन्तु यदा द्वितीयस्थितिः भवति तस्मिन् विषये ऋषिराजः उक्तवान् यत् परं नाम दक्षिणपदम्।

    • @UnmeshSharma
      @UnmeshSharma 2 года назад

      अस्य खण्डनस्य अयाथार्थ्यम् अनन्तरं पश्यामः। प्रथमतः भवता शुद्धं संस्कृतं ज्ञातव्यम्।

    • @LokeshSharmaa
      @LokeshSharmaa 2 года назад

      @@UnmeshSharma कृपया मम त्रुटयः दर्शयतु।

    • @Ayurvedanarayanan
      @Ayurvedanarayanan 2 года назад +1

      @@LokeshSharmaa त्रुटयः दर्शयतु इत्यप्यशुद्धः प्रयोगः। त्रुटयः इति प्रथमा । अत्र कर्मणि द्वितीया स्यात्। तद्रूपं त्रुटीः इति। त्रुटीः दर्शयतु इति स्यात्। भवतः लेखने बहवोऽसाधुप्रयोगाः सन्ति।

    • @LokeshSharmaa
      @LokeshSharmaa 2 года назад

      @@Ayurvedanarayanan आम्। क्षमताम् महोदय। त्रुटीः इति भवितव्यम् तत्र।

    • @Ayurvedanarayanan
      @Ayurvedanarayanan 2 года назад +1

      अधुना भवल्लेखस्थानि (सम्पादनानन्तरस्थानि) कानिचन दोषान्तराणि प्रदर्श्यन्ते, शुद्धः पाठः कोष्ठकान्तः। विप्रतिषेदः द्वौ प्रकारकौ (विप्रतिषेधः द्विप्रकारकः / विप्रतिषेधस्य द्वौ प्रकारौ), द्वे सूत्रे... करोति (द्वे सूत्रे ... कुरुतः), सूत्रं अङ्गे (सूत्रम् अङ्गे), विप्रतिषेदः (विप्रतिषेधः)

  • @satyravratastrology9823
    @satyravratastrology9823 2 года назад +1

    Ye hi problem hai Indian emotional teachers ki.
    They don't debate on facts

  • @aryayashwantmehta
    @aryayashwantmehta 2 года назад +1

    Chiranjeevi bhav. Church ki chaal ho sakti thi.... Aapka dhanyavaad

  • @amith0tube
    @amith0tube 2 года назад +7

    आपसे मेरा निवेदन है श को स इत्यादि मत बोलिये बहुत दिक्कत होती है

  • @nirvikardashora3946
    @nirvikardashora3946 2 года назад

    इसको एक कमेंट के रूप में लिख कर उसी पत्रिका में भेजा जाए तो हो सकता है राजपोपट जी को अपने शोध पत्र में सुधार के लिए बाध्य किया जा सकता है। वीडियो से मैगजीन का खंडन मुश्किल होगा और जवाब भी नहीं मिलेगा।

  • @janr08
    @janr08 2 года назад +4

    Pranam Mataji. Thank you for this effort. It is a great rebuttal to someone daring to call our Rishi parampara wrong. Colonial mindset will never change.. Thank you Mataji for this series and Vishnukant Mahodaya.. It gives me good points to take on the debate on the ground 🙏

  • @appunnimk
    @appunnimk 2 года назад +1

    Please study his thesis first and criticise. I respect your knowledge. But please choose the right examples.

    • @arun6291
      @arun6291 Год назад

      He is reading Popat's research paper .

  • @manojkumartanwar6132
    @manojkumartanwar6132 2 года назад +1

    जिस ग्रंथ का रहस्य माता जी की कृपा से उनके सानिध्य में रहने वाले अबोध बालक भी आसानी से समझ लेते है, ऐसे में क्यों विदेश जाकर अपना समय खराब किया है?
    ऐसे विद्वानों का भाड़ा फोड़ अवश्य ही होना चाहिए। गुरुदेव आपने अपनी वाणी हस्तमालकमिव स्पष्ट कर दिया।

  • @CV0006
    @CV0006 2 года назад +1

    महोदय,
    खण्डन करने से पहले तथ्यों को समझ लेवें,
    व्याकरण के सूत्र महर्षि पतंजलि ने नहीं बल्कि महर्षि पाणिनि ने दिये हैं।
    जिस सूत्र का शोध प्रबंध में ज़िक्र है,वह सूत्र भी महर्षि पाणिनि का है, महर्षि पतंजलि का नही😀😀😀

  • @MrBpsubedi
    @MrBpsubedi Год назад

    www.repository.cam.ac.uk/bitstream/handle/1810/332654/Accepted%20Version.pdf?sequence=2&isAllowed=y

  • @DrVinaySharma
    @DrVinaySharma Год назад

    🙏💐

  • @mohansonawane6339
    @mohansonawane6339 2 года назад

    🙏🙏🙏🙏