जिस ग्रंथ का रहस्य माता जी की कृपा से उनके सानिध्य में रहने वाले अबोध बालक भी आसानी से समझ लेते है और उसी बात की एक ग्रंथि को सुलझाने में बरसों व्यतीत करना कहाँ की बुद्धिमानी है। ऐसे में क्यों विदेश जाकर अपना समय खराब किया है? ऐसे मिथकों का भाड़ा फोड़ अवश्य ही होना चाहिए। गुरुदेव आपने अपनी औजस्वी वाणी और सोदाहरण प्रमाणों से हस्तमालकमिव स्पष्ट कर दिया।
This's the right time to propagate Sanskrit language.Students are benefited by the controversy created by PhD scholar Mr Rishi Raj. The whole world is awakened. We're touched by Rishiraj's dictum "IN PANINI I TRUST". Rishiraj genuinely loves Sanskrit Regards.
यह सब विषय ठीक है किन्तु हम लोगों ने व्याकरण आदि शास्त्रों की समसामयिक उपयोगिता के लिए कोई विशेष प्रयत्न नहीं किया इसे स्वीकार करना चाहिए और इस प्रकार वैश्विक स्तर पर शास्त्र को ख्यापित करने वालों के प्रति कृतज्ञता ज्ञापित करते हुए खण्डन-मण्डन की शिष्ट परम्परा का निर्वहन होना चाहिए
Ek hi stage par bada bade sanskrit vidwano ko bulaye or ish popat or uski Cambridge University ki advisor ko bhi jishse ki isko itna sab sikhaya jaye ki dubara sanskrit bhasa se ched chaad karne ki koshish samast vishwa mei koi dubara na kar sake
I wish the learned professor had made a more systematic, structured presentation using slides. If thesis was written English, why not discuss in English--to reach a wider audience? In any event, is there anger at least partly because a young researcher has chosen to take a different path?
इसको एक कमेंट के रूप में लिख कर उसी पत्रिका में भेजा जाए तो हो सकता है राजपोपट जी को अपने शोध पत्र में सुधार के लिए बाध्य किया जा सकता है। वीडियो से मैगजीन का खंडन मुश्किल होगा और जवाब भी नहीं मिलेगा।
Pranam Mataji. Thank you for this effort. It is a great rebuttal to someone daring to call our Rishi parampara wrong. Colonial mindset will never change.. Thank you Mataji for this series and Vishnukant Mahodaya.. It gives me good points to take on the debate on the ground 🙏
जिस ग्रंथ का रहस्य माता जी की कृपा से उनके सानिध्य में रहने वाले अबोध बालक भी आसानी से समझ लेते है, ऐसे में क्यों विदेश जाकर अपना समय खराब किया है? ऐसे विद्वानों का भाड़ा फोड़ अवश्य ही होना चाहिए। गुरुदेव आपने अपनी वाणी हस्तमालकमिव स्पष्ट कर दिया।
महोदय, खण्डन करने से पहले तथ्यों को समझ लेवें, व्याकरण के सूत्र महर्षि पतंजलि ने नहीं बल्कि महर्षि पाणिनि ने दिये हैं। जिस सूत्र का शोध प्रबंध में ज़िक्र है,वह सूत्र भी महर्षि पाणिनि का है, महर्षि पतंजलि का नही😀😀😀
तन्मते पोपटमते*पूर्वत्रासिद्धम्* इत्यत्र पूर्वशब्दस्य कोर्थ:?इति विवेचनीयम्,
सादर प्रणाम गुरु जी🙏🏻💐👳🏻
Namah sanskritay 🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏
साधु समाहितम् अस्मदीयप्रियगुरुवरश्रीविष्णुकान्तपाण्डेयवर्यैः।
उत्तमम्।
पाणिनीयं महाशास्त्रं पदसाधुत्वलक्षणम्।
सर्वोपकारकं ग्राह्यं कृत्स्नं त्याज्यं न किञ्चन।।
इति स्मरतु पोपटजी
आक्षेपकर्ता अपवादविधिं ज्ञातुं न शक्तवान् ,एषा विधिः व्याकरणस्य सामान्याध्येता छात्र:अपि जानाति,समाधातृपक्ष:सम्यकरूपेण भ्रान्त्या उन्मूलनं कृतवान्।
जिस ग्रंथ का रहस्य माता जी की कृपा से उनके सानिध्य में रहने वाले अबोध बालक भी आसानी से समझ लेते है और उसी बात की एक ग्रंथि को सुलझाने में बरसों व्यतीत करना कहाँ की बुद्धिमानी है। ऐसे में क्यों विदेश जाकर अपना समय खराब किया है?
ऐसे मिथकों का भाड़ा फोड़ अवश्य ही होना चाहिए। गुरुदेव आपने अपनी औजस्वी वाणी और सोदाहरण प्रमाणों से हस्तमालकमिव स्पष्ट कर दिया।
This's the right time to propagate Sanskrit language.Students are benefited by the controversy created by PhD scholar Mr Rishi Raj. The whole world is awakened. We're touched by Rishiraj's dictum "IN PANINI I TRUST". Rishiraj genuinely loves Sanskrit Regards.
Completely agree! I think this is helping Sanskrit a lot. माता पुष्पा दीक्षित् जी की विलक्षणता तक मैं ऋषि राज जी की वजह से पहुँचा।
१) ऋषिनामा जनोयं भाषते यत् इयं समस्या पूर्वतनैः न ज्ञाता। अतः इदं स्पष्टं यत् इयं समस्या नासीत्। अनेन स्वयं काचित् समस्या उद्भाविता समाहिता च। अधुना रवं करोति यत् २५०० वर्षपूर्वं या समस्या आसीत् सा तेन समाहिता।
२) स वदति तस्य काचित् आचार्या द्वादशकक्षाध्ययनकाले आसीत्। तामयं पृष्टवान् कञ्चित् प्रश्नम्। सा उत्तरं दातुम् अक्षमा। तदा अनेन निर्णीतं यदियं समस्या मया समाधेया। परन्तु तस्याः तद्विषये अज्ञानमस्ति चेत् इदं वक्तुं न शक्यते यत् इयं समस्या पाणिनीयव्याकरणजगति प्रारम्भतः आसीदिति। कस्याश्चिद् अज्ञानं संस्कृतजगतः अज्ञानमिति वक्तुं न शक्यते।
३) किमियं समस्या पतञ्जलिना कैयटेन नागेशेन वा न ज्ञाता। किम् काशिकाकारेण न्यासकारेण पदमञ्जरीकारेण वा न ज्ञाता। संस्कृतव्याकरणस्य यावन्तो विद्वांसः अभूवन् तेषु कोपि समस्यामपि न जानाति इति वक्तुं शक्यते वा।
४) किमयं जनः संस्कृतस्य ग्रन्थेषु क्वापि इयं समस्या उल्लिखिता समाहिता वा नास्ति इति वक्तुं शक्नोति। किं तेन सर्वे ग्रन्था अधीता यावता। काचित् समस्या अस्ति चेत् तस्याः समाधानं पूर्वं क्वापि नास्ति इति प्रतिपादनोत्तरं खलु केनापि वक्तव्यम् यत् समाधानं नास्ति इति। यदि अनेन ताः सर्वाः टीकाः नाधीताः तर्हि कथमयं ब्रूते यदियं समस्या तेन समाहिता इति।
Pranaam 🙏
सत्यकयन् भवान्
माता जी व आपका कार्य बहुत ही प्रशंसनीय है आप दोनों को सादर प्रणाम🙏🙏
प्रणौमि आचार्यान् 🙏
बहुत ही अच्छे गुरु जी
🙏💐गुरुं नमति प्रज्ञा
इस देश में संस्कृत का व्याकरण महर्षि पाणिनि ने लिखा , मगर अब तो हाल यह है कि लोग ऋषि ( ऋषि राज ) की बात को ही मानने को तैयार नहीं है ।
प्रणाम माताजी । झूट खंडन करने के धन्यवाद ।
जय जगन्नाथ
गुरूजी को सादर प्रणाम 🙇♂️🙏
अयं शोधप्रबन्ध: सर्वथा वर्जनीय: । यत: असाधु: सिद्धान्त: तत्र भूरि परिलक्ष्यते।
Pranam
यह सब विषय ठीक है किन्तु हम लोगों ने व्याकरण आदि शास्त्रों की समसामयिक उपयोगिता के लिए कोई विशेष प्रयत्न नहीं किया इसे स्वीकार करना चाहिए और इस प्रकार वैश्विक स्तर पर शास्त्र को ख्यापित करने वालों के प्रति कृतज्ञता ज्ञापित करते हुए खण्डन-मण्डन की शिष्ट परम्परा का निर्वहन होना चाहिए
🙏🙏
प्रणामा:
प्रणाम 🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏
वाह पोपट वाह!!
Namste mata ji
पोपट जी के तथाकथित अभूतपूर्व अनुसंधान का गुब्बारा भारतीय गुरु शिष्य परंपरा के वैयाकरणों की कुशाग्रता से फुस्स होता प्रतीत हो रहा है।
यथार्थ
Please make these videos in simple to understand language and also in English with examples for wider circulation.
माता जी को सादर प्रणाम 🙏
सम्पूर्ण व्याकरण सम्प्रदाय की प्रतिष्ठा पर हुए कुठाराघात की हम सभी भर्त्सना करते हैं।
Namste guruji
घोर निंदा करते हैं
पॉपट जी की
Cambridge wale rajpoot mirchi khake mar jayega🤣🤣🤣🤣
अष्टाध्यायी ध्यानेन पठनीया। अस्माकं गुरुपरम्परा रक्षणीया। सा अभ्रान्तास्ति। ऋषिराजेन लिखितोऽयं शोधप्रबन्ध: सर्वथा वर्जनीय: ।
एकलव्य बनने के लिए भी आस्था का होना अत्यावश्यक है ,शायद पोपट जी यह भी नहीं जानते।
गुरु परंपरा से प्राप्त नही है इसलिए
Yeh aapse kisne kahaa ki Popat ji mein aastha nahi hai? Aap unhein personally jaante hain kya?
पौपट चौपट हैं। भारत की आत्मा पर चोट, दुस्साहस है। इनके शोध-कुप्रबंध कहीं मिशनरियों की करामात तो नहीं....?
IMHO: it is better to 'study' & 'understand' the entire thesis in detail, in order to get into a 'rebuttal mode'
Ek hi stage par bada bade sanskrit vidwano ko bulaye or ish popat or uski Cambridge University ki advisor ko bhi jishse ki isko itna sab sikhaya jaye ki dubara sanskrit bhasa se ched chaad karne ki koshish samast vishwa mei koi dubara na kar sake
पोपट भैया ने जो vipratishedhekaryam में जो उदाहरण दिया वो भी गलत है
I wish the learned professor had made a more systematic, structured presentation using slides. If thesis was written English, why not discuss in English--to reach a wider audience? In any event, is there anger at least partly because a young researcher has chosen to take a different path?
व्याकरण को अक्षरशः पढ़ाने का भी कष्ट करें गुरुदेव 🙏🙏
नमोनमः
अस्मिन् खण्डने सार्थकता नास्ति। वक्त्रा ऋषिराजस्य लेखस्य अभिप्रायः न अवगतः।
विप्रतिषेदः द्वौ प्रकारकौ -
१. प्रथमप्रकारे द्वे सूत्रे एकस्मिन्नेव प्रत्यये उपरि कार्यं करोति।
२. द्वितीयप्रकारे एकं सूत्रं अङ्गे कार्यं करोति द्वितीयं प्रत्यये उपरि कार्यं करोति।
यदा प्रथमप्रकारकः विप्रतिषेदः भवति तदा तु अपवाद-उत्सर्गः भवति इति ऋषिराजस्य मतम्।
किन्तु यदा द्वितीयस्थितिः भवति तस्मिन् विषये ऋषिराजः उक्तवान् यत् परं नाम दक्षिणपदम्।
अस्य खण्डनस्य अयाथार्थ्यम् अनन्तरं पश्यामः। प्रथमतः भवता शुद्धं संस्कृतं ज्ञातव्यम्।
@@UnmeshSharma कृपया मम त्रुटयः दर्शयतु।
@@LokeshSharmaa त्रुटयः दर्शयतु इत्यप्यशुद्धः प्रयोगः। त्रुटयः इति प्रथमा । अत्र कर्मणि द्वितीया स्यात्। तद्रूपं त्रुटीः इति। त्रुटीः दर्शयतु इति स्यात्। भवतः लेखने बहवोऽसाधुप्रयोगाः सन्ति।
@@Ayurvedanarayanan आम्। क्षमताम् महोदय। त्रुटीः इति भवितव्यम् तत्र।
अधुना भवल्लेखस्थानि (सम्पादनानन्तरस्थानि) कानिचन दोषान्तराणि प्रदर्श्यन्ते, शुद्धः पाठः कोष्ठकान्तः। विप्रतिषेदः द्वौ प्रकारकौ (विप्रतिषेधः द्विप्रकारकः / विप्रतिषेधस्य द्वौ प्रकारौ), द्वे सूत्रे... करोति (द्वे सूत्रे ... कुरुतः), सूत्रं अङ्गे (सूत्रम् अङ्गे), विप्रतिषेदः (विप्रतिषेधः)
Ye hi problem hai Indian emotional teachers ki.
They don't debate on facts
Chiranjeevi bhav. Church ki chaal ho sakti thi.... Aapka dhanyavaad
आपसे मेरा निवेदन है श को स इत्यादि मत बोलिये बहुत दिक्कत होती है
इसको एक कमेंट के रूप में लिख कर उसी पत्रिका में भेजा जाए तो हो सकता है राजपोपट जी को अपने शोध पत्र में सुधार के लिए बाध्य किया जा सकता है। वीडियो से मैगजीन का खंडन मुश्किल होगा और जवाब भी नहीं मिलेगा।
Pranam Mataji. Thank you for this effort. It is a great rebuttal to someone daring to call our Rishi parampara wrong. Colonial mindset will never change.. Thank you Mataji for this series and Vishnukant Mahodaya.. It gives me good points to take on the debate on the ground 🙏
Please study his thesis first and criticise. I respect your knowledge. But please choose the right examples.
He is reading Popat's research paper .
जिस ग्रंथ का रहस्य माता जी की कृपा से उनके सानिध्य में रहने वाले अबोध बालक भी आसानी से समझ लेते है, ऐसे में क्यों विदेश जाकर अपना समय खराब किया है?
ऐसे विद्वानों का भाड़ा फोड़ अवश्य ही होना चाहिए। गुरुदेव आपने अपनी वाणी हस्तमालकमिव स्पष्ट कर दिया।
महोदय,
खण्डन करने से पहले तथ्यों को समझ लेवें,
व्याकरण के सूत्र महर्षि पतंजलि ने नहीं बल्कि महर्षि पाणिनि ने दिये हैं।
जिस सूत्र का शोध प्रबंध में ज़िक्र है,वह सूत्र भी महर्षि पाणिनि का है, महर्षि पतंजलि का नही😀😀😀
www.repository.cam.ac.uk/bitstream/handle/1810/332654/Accepted%20Version.pdf?sequence=2&isAllowed=y
🙏💐
🙏🙏🙏🙏