ईश्वर निराकार है तो पत्थर में प्राण प्रतिष्ठा कैसे ? LIVE - चर्चा
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- Опубликовано: 8 янв 2024
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You are great professor I admire you iam learning so much from your class. Thank you for sharing your intelligence within everyone who are interested learning.
गुरजीकेचरईणो में कोटी कोटी प्रणाम आप केकृपा से सदियों से फैले अंधकार मे एक मशाल जलाकर सच्चाई का ज्ञान कराने की
कोशिश के लिए सप्रेम धन्य वाद🎉🎉🎉🎉🎉❤❤😅😅😅😅😅
To fir ishvar kaun hai
😊😊@@GajanandMohbe-yn5nn
पाहन पूजे हरि मिले तो मैं पूजू पहाड़ या से तो चकिया भली पीस खाए संसार
गीता में कहा गया है कि है अर्जुन इस दुनिया मैं केवल दो ही तत्व हैं ,एक सत और दूसरा असत आत्मा सत्य है, नित्य है ,पुरातन है ,सनातन है अजन्मा है, अविनाशी है और केवल वही जानने योग्य है ,बाकी इस संसार में सब मिथ्या है । हे अर्जुन उस आत्मज्ञान को जानने के लिए किसी आत्मज्ञानी गुरु की शरण में जा । पत्थरों की पूजा से आत्मज्ञान कभी नहीं हो सकता है ।हे अर्जुन !उस सनातन आत्मा को पहचान। उस आत्मा को किसी और विधि तंत्र मंत्र उपवास , जप तप, योग संन्यास से नहीं जाना जा सकता
आपको प्रणाम है. आपने सटीक और सही है. वर्णन 100% सत्य है. ईश्वर का मुख्य स्वरूप निराकार है. निराकार की पूजा नहीं हो सकती, ध्यान कर सकते हैँ, परन्तु ध्यान तब कर सकते हैँ, जब आपने इसे देख लिया हो. निराकार की समझ साकार सद्गुरु ही दे सकते हैँ. निराकार अनन्त है, इसे नापा नहीं जा सकता. कर्म काण्ड के द्वारा तू मुझको नहीं जान सकता ( गीता शास्त्र ) निरंकार हमारे अन्दर भी है, बाहर भी है. सगुण हमेशा नहीं रहेगा. निराकार में तब विलीन होंगे, जब आपने निराकार स्वरूप क़ो जान लिया हो. तीनों गुणों से से परे है. आत्म स्वरूप क़ो जान लेने के बाद ही कह सकते हैँ, तत्वम् असि. तू वही है. (उपनिषद )
I am also agree with this message
गुरु एक् राह दिखता है । प्रणाम ज्ञान को होना चाहिए। जिस पर चल कर इन्सान ईश्वर तक पहुंचता है । गुरु एक साधन बनता में है । जिस का आदर सम्मान होना चाहिए। पूजा भक्ति नही। पूजा के योग्य केवल एक शक्ति ही है । जिसका न जन्म हुआ न ही वह कभी समाप्त होगी। वह ही कर्म फल दाता हैं । जो सर्व व्यापक हर जगह है उसके सिवाय और कोई कर्म फल दाता नही है । गुरु का ईश्वर से सम्पर्क होना अति जरुरी है तब ही वह ईश्वर तक पहुँचा पाएगा। आज समाज मे गुरु को ईश्वर से उंचा दिखाया जाता है यह इन्सान की अज्ञानता है ।
तीन गुणों की भक्ति में ,भूल पड़ा संसार।
कहे कबीर निज नाम बिन, कैसे लागे पार।।
जेसे एक सिक्के के दो पहलू हैं । इसी तरह अदृष्य और सदृश्य दो होते हुए एक है । एक होते हुए अनेक है । तभी ईश्वर को सर्व रुप्णी कहा गया है । अदृष्य के गुण अलग है सदृश्य के गुण अलग है । अदृष्य को सदृश्य बनने के लिए शरीर की आवश्यकता पडती है । अदृष्य रुप भी अपने आप मे अपूर्ण है । जो दिखता नही इन्सान उसकी बात केसे कर सकता है । जब वह दिखे गा। अपने गुणों का प्रदर्शन करे गा । तभी मलुम होगा कि उसके तीन गुण है या इस से अधिक है ।
जो दिखे सो विनशै है, नाम धरा सो जाय।
कबीर सोई तत्व गहो, जो सतगुरु दिया बताय ।।
शगुन की सेवा करूं ,निर्गुण का धर् ध्यान।
सगुण निर्गुण से भी परे, वहाँ गोरख दत्त न राम।।
पलटु पूजे आत्मा, नित आए, नित जाए।
पत्थर पूजे मूर्खा, हाथ जोड़े, खिसियाए।।
कोई सगुन में रम रहा कोई निरगुण रे ठहराय अटपट चाल कबीर कि मो से कही न जाय💐🌹💐🌹🙏🏻🙏🏻🙏🏻 आप जो ये सब बोल रहे हो वो भी सगुण ही है ओर जीस निरगुण कि आप बात कर रहे हो वो सबसे पर है🙏🌷🙏🌷
सगुण निर्गुण दोनों से न्यारा जानेगा कोई जानन हारा
@@purnanandatri4112 धनयवाद 🙏🏻🙏🏻💐🌹 ॐ तत सत
हालांकि, मैं आर्यसमाजी हूं, निराकार को मानता हूं, लेकिन, आपका जो तरीका था, समझाने का वो गजब था/आर्यसमाजियों की भी पृष्टभूमि पौराणिक है, इसमें आर्यसमाज का दोष नहीं है/व्यक्तिगत दोष ही सकता है/❤
आर्य समाज ने निराकार अवधारणा नहीं दी।
वो तो उन्होंने वेदों में से निराकार मंत्र , श्लोक, ऋचाएं छांट छांट कर अपना पंथ बना दिया और जानबूझकर वेदों के साकार स्वरूप मंत्र, स्त्रोत, ऋचाएं अपने सत्यार्थ प्रकाश में सम्मिलित नहीं की। कुछ श्लोको के अर्थ, तात्पर्य ही बदल दिए। तत्कालीन ब्रिटिश शासन का प्रभाव जो था तभी तो मूर्ति पूजा, मंदिर, प्रेम भक्ति छूटेगी उसके बाद ही कन्वर्जन हो सकेगा। क्योंकि राम भक्त, कृष्ण भक्त, गणेश भक्त, दुर्गा भक्त, हनुमान भक्त ... आदि समर्पित भक्तों को ईसाई बनाना कठिन था। निराकार तो ईसाई बनकर गॉड को ही ब्रह्म मान कर उपासना कर सकता है।
😅
@@user-wy2sc4kh1g 🙏
@@user-wy2sc4kh1g🙏
सृष्टि को चलाने वाली एक ताकत है । उसने ही समय 2 पर महान आत्माओं को धरा पर भेजकर अपने बारे में इन्सान को ज्ञान करवाया है । उसने ही महान आत्माओं के माध्यम से अपना नया नाम, नया रुप, नया मकाम स्थापित करवाया है । एक का ज्ञान दुसरे के ज्ञान से मेल क्यो नही हो पता। यह धर्म तब बने । जब एक धर्म में कमिया आई , तो ईश्वर ने इन्सान को सही राह दिखाने के लिए दुसरी महान को धरा पर भेजा। फिर वह दुसरा धर्म बना। एसे ही यह धर्मों की स्थान हुई। एक धर्म आया तो दुसरे ने बिरोध किया। अब सब धर्म अपना मार्ग भटक चुके है । अब महान आत्मा संसार को सही दिशा नही दिखा सकती। अब वह खुद दिखएगा जिसे सब अदृष्य कहते हैं ।
आपके द्वारा दिया गया ज्ञान वाकई में अमल योग्य है
🙏Pranam.Aap ka sujhab bahat achha laga.Jay shreeram.
" મને હી પૂજા...મન હી ધૂપ " આચાર્ય રજનીશ ( ઓશો ) નું પુસ્તક વાંચી લેશો.... આખું આ વ્યાખ્યાન સમજાઈ જશે......
Pranav, so clearly scientifically explained. Thank u.
जहां विश्वास है वहां ईश्वर है जिस जगह आप को विश्वास नहीं है वहां आपको ईश्वर नहीं है
अगर कोई जगह कोइ वस्तु है तो है, नही है तो नही है ,उसमे विश्वास बीच में कहा से आया! जैसे पवन, बिजली सब दीखती नहीं है,पर हर कोई महसूस करते हैं, धन्यवाद
चार अठारह नौ पढ, छह पढ़ खोया मूल।
कबीर मूल जाने बिना, ज्यों पक्षी चंडूल।।
Dr.Santosh Kumar Mohanty 🇮🇳
Hari Om 🕉️ Tat Sar ‼️You I Woh ‼️ Tat Purushaya Vidhmahe Mahadevaya Dhimahee Tanno Shiva Prachodayat ‼️ 23/01/2024.
आप को आर्यसमाजियो से शास्त्रार्थ करना चाहिए
सर आपकी प्रस्तुति बहुत अच्छी है सर से दिल से धन्यवाद करता हूं
Sahi bat jo kuchh bhi jana ja sakta hai o sab sakar hi hai
Thanks good analysis of Dharma ,aapko koty koty naman
Bhawan nirakar sakar jyoti sabroop sarve shati man h.Mandir ke murti kewal motivate karti h.guru sakar Roop who bhee guide karta h.Appne ko perivatan karna h.Hum to dhyan karte h.Bhawan hamare andher h,dil me ahsas.karna h.Dhyan se he gyan milta h,without karm u will not get any thing.Dhayan or karm he main h.very difficult marg h.yeh manav ke manne par h,maoo to pathar hhe bhagwan h.U are 100.percent right.and outstanding.viswash he main h.
Excellent Shastrartha
Exactly same things you have said as revealed to me in meditation.
OM Shanti
हम स्वयं एक मन्दिर हैं,हम स्वयं एक मूर्ति भी है, हमारी मूर्ति में प्राण प्रतिष्ठा कैसे हुई यही ज्ञेय है।
कोटि कोटि प्रणाम वंदन अभिनंदन 🙏
निराकार है इसलिए ही प्राणप्रतिष्ठा कि जाती हैं,,!
श्री मद् भगवद्गगीता मे भगवान् श्रीकृष्ण ने कहा है -उसमे उल्लेख है कि -क्षर ब्रह्म, अक्षर
ब्रह्म परब्रह्म दोनो के मुल है । अनन्त ब्रह्मांण्ड परब्रह्म के साकार शरीर है ,इसे ही
क्षर ब्रह्म जाता है और अनन्त ब्रम्हांड मे व्याप्र विशाल चेतना परब्रह्म के चेतना है,
इसे ही अक्षर ब्रह्म कहा जाता है ।इससे साबित होता है कि ईश्वर साकार और निराकार
दोनो है ।
Jay Gyan gru kripa
Satya mew jayate
Excellent discription of saakar thanks a lot
निराकार का - नि: + अहंकार:अर्थात जहां से आकार का सृजन होता है वही निराकार है।
निः+ आकार:--निराकार:
Very very good analysis panditji thanks
खुशबू आ नहीं सकती कभी कागज के फूलों से
You are 100% True Guruji 💐🙏
रूप न रेख न रंग, प्रभु तीन गुणों से भिन्न
आत्मज्ञान बिना नर भटके ,कभी मथुरा कभी काशी
बहुत सुंदर बातThanks।
Dhanyawad 🌹🙏🌹
कौन कसे और कौन कसावे, कौन जो ले छुड़ाय
कर्म कसे और काल कसावे, सतगुरु ले छुड़ाएं
At home the pooja we daily do is essentially call Devta in our place.welcome and stuti.we believe that he will listen to our faith and give ashirwad. At the end of pooja we do visarjan and thank . Next day we again give a call
.In temples Devte is permanent all tim e for pooja
Great day
Maharaj ji aapne sab kuchh clear ker diya hai. Aapko koti koti koti koti naman. Please inform the date of Rohtak visit which is in Feb. 2024 as told by your goodself to me over phone. Pranam maharaj ji.
True.
I also have no ISHTA DEV/DEVI.
I Pray to various Roop n BHAV
Ishta is a direction.
hence during journey you select a direction , doesn't mean other directions are less or bad.
Isht dev is a State at 7th dimension and you can connect to this dimension via a devta representing that particular frequency.
Hence Shiva represents total tyag and immersion in universal consciousness.
Vishnu represents the attribute and emmotions related to caring and feeding.
Lord Krishna represents the emotion of condition less loyalty in personal friendship and zero tolerance of Anti social anti dharmik attitudes.
Dattatraya represents a attitude to learn from experience and grow and help many others to grow along with.
Devi represents a mothers emotion and caring for ones child.
You need to select a devta closest to your mind set to grow spiritually.
Nirakar is like just only electricity.
Sagun is like a bulb or any appliances
You need to buy those appliance closest to your requirements
eg a laundry man needs washing machine.
Hoteliers need dish washers.
House wife needs a hand mixer etc.
so going to all directions is going nowhere.
its like a man having a power line at home and not purchased any appliance, remains in dark
बहुत सुंदर
I Liked
प्रणाम गुरू जी को चरण स्पर्श गुरू जी
प्रणाम तभी सफल होता है । जब वह ज्ञान अपने जीवन मे लागू करे। एक ईश्वर ही पूजा के योग्य है । गुरु आदरनीय है पूजनीय नही।
❤YES❤
अखंडे सचिदानंदे निर्बिकल्प रुपीनी ।स्थिते द्वितीयभाबेस् कथं पूजाबिधी यसे
पूजा पत्थर माला लक्कड़ तीर्थ में सब पानी ।
कहे कबीर सुनो भाई साधु ,चारों वेद कहानी।।
इश्वर निराकार भी है प्राण प्रतिष्ठा भी सही है सौ बात की एक बात तर्क वितर्क ये सब दिमागी उपज है,चतुराई से तर्क से भगवान नही मिलते सिर्फ भाव होना चाहिए 😊
Bhagvan.shiv.ji.prahmand.ke.sabse.shrest.gyani.hai.unhone.bhagvan.ke..samarh.ko.sarv.byapak..kha.hai.nirakar.kahi.bhi.nahi.kha.hai.aatma.parmatma.ka.ak.ansh.matr.hai.esliy.parmatma.aatma.ko.apne.aap.me.samahkarte.hai.jai.shiv.shambhuji.aadi.sad.guru.ji
Very nice
Ham sare jeev he iswer ki sakar murti hen sakar se nira kar nikla he hamari atma nirakar ha hamara sareer sakar he apki me he tum sab ki me tumhe do banati ha
सगुण निर्गुण दोनों से न्यारा जानेगा कोई जानन हारा
Atama hi brahm hai
जय श्री गणेश
ॐ नमो लक्ष्मी नारायणाय
Jay Shri Ram
जय श्री राम जी ❤
ॐ नमो बजरंग बली जी की जय हो ❤
जंयगूरउदंव
❤
Joy guru dada
सत्यार्थ प्रकाश में ईश्वर को निराकार बताया गया है क्या यह सही है या गलत
Great information guru ji 🙏 naman 🙏 ♥️
Love you gurudev ji 🙏 ❤️
मंत्र तंत्र झूठे हैं ,इनमें उलझो मत कोई।
सार शब्द जाने बिना, कागा न हंसा होई।।
ईश्वर स्वरूप निराकार है, सांगून साकार ईश्वर जीव उद्धार के लिये साकर होते है, लेकिन पथर मे नहीं आवतरते
जिस प्रकार इस्लाम में बहुत सारे महापुरुष हुए जो नबी और पैगम्बर कहलाए । सब समय समय पर अवसरानुसार ग्यान देने आए। उसी तरह सनातन धर्म में अंशावतार आये। इनके इलावा सबसे मह्त्वपूर्ण विगयानी आये जिन्होंने बडी मेहनत से अनुसंधान कर नये नये अविष्कार किए ताकि जनमानस सुखी रहे। राजाओं ने प्रगति का गल्त इस्तेमाल किया । लडे फौज नाम सरदार का। नाम तो राजनितिक लोंगों का होता है। निराकार से सब बन रहा है और निराकार में समाता जा रहा है। माध्यम तो साकार है। मन और भाव और इसके उपर की रचना निराकार है। जैसे जैसे भाषा में बांध लिया साकार की तरफ बढ़ना शुरू हो गया ।सुक्ष्म, स्थूल में रंग रूप, आकार, से साकार बना।
प्रार्थना करने के लिए जरूरी है
आपने सही कहा भावनाएं गलत भी हो सकती है
Nirakar nirgun ko dekhna kaise aur isliye sadharan logon keliye ek moorthi per man laga kar Puja Archana keliye Ved Dharma prabhod kiyaa
हवा निराकार है , तो प्राण वायु कैसे हो सकती है। यही कहना चाह रहे ने आप। निराकार का अर्थ है इनविजिबल। प्राण यानी ऑक्सीजन। ये तो सब जगह व्याप्त है। इसलिए पत्थर भी प्रतिष्ठित हो सकता है जी। जय सिया राम 🙏
ईश्वरके निराकार स्वरूपामे श्रुष्टि व्यापार नहीं होता, साकार कि ही उपासना कर सकते है :!
मन्दिर मूर्ति प्रतिष्ठा ये नराकार भाव का प्रतीक रूपहै और यै समझना है साकार से।
👌🏻👌🏻👌🏻👏🏻👏🏻👏🏻🙏🏻🙏🏻🙏🏻
God is every where
Sreeman.ji.ko.koti.koti.parnam.satya.vadi.hai.aap.ki
ॐ नमो पार्वतीपते हर हर महादेव ❤
कबीर जितनी आत्मा ,उतने शालिग्राम।
बोलनहारा पूजिए, पत्थर से क्या काम ।।
🙏🌺🙏
पत्थर की मूर्ति में प्राण प्रतिष्ठा तो पंडितों की कमाई का जरिया है
ओउम् कटारिया जी! आप स्वयं अन्य लोगों की कमाई का जरिया है . आपको विद्या सिखाकर शिक्षक फीस वसूली करते हैं और सदगुरु दक्षिणा. सरकार आपसे विभिन्न कर, टैक्स लगाकर कमाई करती है, उसको वोटर नागरिकों पर खर्च कर शासन करने का अधिकार प्राप्त कर प्रचुर मात्रा में अपनी कमाई करती है🙏💕🎉 परमशान्ति🙏🎉
Bhai lagata tum ko Bhagawan पर vishawas nahi
Sharddha nahi hai to kuch nahi
मूर्ति बड़ी या मूर्तिकार ,चित्र बड़ा या चित्रकार
Aap chakhyosi Upanishads and tratak sadhna ke upar video kare
आप कैसे जाने की ईश्वर निराकार है
No doubt GOD is formless but there is animated or inanimate form without his presence.
राम ने पत्थर को इंसान बना दिया था और इन कलयुगी इंसानों ने राम को ही पत्थर बना दिया पाखंड का नाश हो विश्व का कल्याण हो
Bahut sundar mathama ji
श्रीकृष्ण ईश्वरका साकार अवतार है
Bagvan nirakar hi hai Jan jarurat paditho aakar bhi llaythey hai.sab youg kay log aalag hooray hai.kalyoug kay log aalag hai. Bagvan Ko dhyan karl nay kay liyay koi aakar Kim jaruray hai. Sab apnay man ko dhyan may nahi laga sakthey. Shaun ko puja karthey karthey Jab bagvan may man akakar hota hai. Tab vo nirakar may bagva have daykhta hai. Man ko stir karnay kay liyay murti jaruri hai.
कहो दिए के चित्र से, कैसे मिटे अंधियार
चलिए गुरु जी आप बता दीजिए हवा का क्या रूप है
Niraakaar ka Sadhna Karte Karte Sapnon Mein Sakar Mein pahunch jaaoge aur Sakar ka Puja Karte Karte niraakaar Mein pahunch jaaoge
हमारी मूर्ति को किसने तराशा है ये शास्त्र हमें बताये क्या?जो हमनै लीखा है
🎉 आज पानी पत्थर जल पदार्थ में परमात्मा नहीं है।
भगत के भाव में परमात्मा है। भगत का भाव जहां लग जाएगा परमात्मा को वहीं उपस्थित होना पड़ेगा इसलिए कहावत है भगवान भगत के बस में।
गीता में भगवान श्री कृष्ण ने खुलकर बताया है आज पानी पत्थर जलवायु जाकर निराकार साकार सपने में व्यापक है।
Muri bajrayan sakha ki dhyan bidhi hai. Des bandhe chittasya dharana.
किसने कहा है कि ईश्वर निराकार है ईश्वर तो आकार में है जैसे सूर्य चन्द्रमा पृथ्वी अग्नि जल वायु आकाश गंगा ये सब प्रतयक्ष है जो ईश्वरीय हैं और इनके बिना जीवन संभव नहीं है ।जय श्री हरि
गलत व्याख्या की गई है । ...
❤😊😊❤
mere Bhai Surya aur chandrama tumhari chetna me hai 😮samjho
गूरूजीजजोज्ञानआपसेमीलाअमूलयहै
पाखंड में कछु नहीं रे साधु भाई पाखंड में कछु नहीं
Hare Krishna nirakar sakar ko nanhi bana sakta Geeta ji ko pado
Jis tarah pani nirakar he ham pani ko akar dete he koi matka me to koi glas me bhta he. Insan ki jarurat bhagvan ko akar deti he
पत्थर की मूर्ति
गयान् कांड के हीसाब से क्या मूर्ति पूजा सही है
मेरे मित्र कभी समाधि में गए हो तो अपने अनुभव बताए।
बनटाढार तो शंकर पन्थियो ने ही वेदों का किया, इन के बबा गौडपदा चार्य ने ही अद्वेतपंथ चलाया उसी का अनुयाई था शंकर ने किया/ पूजा तो जड की होती है ।
કણ, કણ, મા,શ્રી રામ
Eeswer Kan ken m h