क्या मूर्ति में प्राण-प्रतिष्ठा हो सकती है? सत्यार्थ प्रकाश ग्यारहवाँ समुल्लास। आचार्य अंकित प्रभाकर
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- Опубликовано: 15 окт 2024
- नमस्ते, वेद प्रचार के लिये, संस्कृति की रक्षा के लिये जो विद्यार्थी छात्र- छात्रायें वेदाध्ययन में अपना जीवन लगा रहे हैं। उनके अध्ययन, भोजन, वस्त्र आदि के लिये धर्मवीर संस्थान की ओर से आर्ष छात्रवृत्ति योजना प्रारम्भ की जा रही है। आपमें से जो भी इस योजना के साथ जुड़ना चाहते हैं, वे
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अंकित प्रभाकर जी आप की जानकारी बहुत साधारण भाषा है जो आसानी से समझा जा सकता है पर आपसे प्रार्थना है कि मंदिरों में बैठ कर पाखंड अन्धविश्वास दूर किये बिना ये सब बंद नहीं करवा सकते हैं अतः आप सभी खुले प्रांगण में मैदान में आयोजन किया जाना चाहिए ताकि लोगों इकट्टा कर ने के लिये जगह जगह हर वार्ड में आयोजन करना होगा दयानंद सरस्वती जी सब जगह जा कर पताका गाड़ कर शास्त्रार्थ करते थे तभी लोगों को इतना बडा आर्य लोगों को इकट्ठा करके समाज बनाया 🙏🙏
जब तक लोग वेद को नहीं समझेंगे तब तकईश्वर को नहीं समझेंगे
जी भाई जी बिलकुल ❤
Eeshwar samajh (arthaat Tark) Nahin Anubhav ka Vishay hai.
Jo ved padhe aur bhed kare ,jitna gyan kahe lekin phir bhi bhagwan ko nahi pa sakate
बहुत अच्छी तरह समझ मे आया
(लेकिन कुछ लोगो को समझ मे नही आता है हजारो किलोमीटर जाते भगवान को ढूंढने के लिए अपने अंदर के भगवान को नही देखते है हो तो अविनाशी परमात्मा हमारे अंदर ही है)
वाह वाह, बहुत ही शानदार संदेश है👌आपको सादर प्रणाम 🙏
प्रभाकर जी आपने बहुत अच्छे ढंग से बताया इसके लिए बहुत बहुत धन्यवाद। आप इसी तरह जिज्ञासुओं की शंकाओं का समाधान करते रहें। पत्थर की मूर्ति मे किसी भी तरह से प्राण प्रतिष्ठा नही हो सकती। यदि पत्थर,धातु या लकडी की मूर्ति में प्रतिष्ठा हो जाती तो मृत मनुष्यों को प्राण प्रतिष्ठा (प्राण डाल कर ) करके जीवित कर लेते। घर में रखे कुत्ते, बिल्ली, चिडिया, गुड्डे, गुडियों के खिलौनो, जगह जगह नेताओं, विद्वानों के स्टेचुओं मे प्राण डालकर जीवित कर लिया जाता। जो लोग प्राण प्रतिष्ठा करते हैं वे बताएं कि क्या प्राण प्रतिष्ठा के बाद जड मूर्ति जीवित हो जाती है अर्थात् खाने पीने, बोलने, देखने, सुनने , चलने, स्वांस लेने लगती है , अगर नही तो कैसे कहा जाता है/ माना जाता है कि जड मूर्ति मे प्राण प्रतिष्ठा हो गयी।
बहुत ही सुंदर विषलेषण
बहुत बढ़िया ब्याख्या आपके द्वारा दिया गया। बिल्कुलआँखे खोलने वाली।
यही लोग बोलते हैं कि कण कण में नारायण का बास है, लेकिन जब वास पहले से है तो प्राणप्रतिष्ठा की क्या आवश्यकता 😂😂😂😂
अगर प्राण प्रतिष्ठा मुरति में करते हैं तो वह वोलती क्यों नही
@@mckashyap4443 सही बात है । न बोलती न खाती,
😂😂😂
वास तो सर्वत्र है, लेकिन जैसा परब्रह्म साकार है और जैसे साकार ब्रह्म की उपासना है, वैसी निराकारवत् फैले हुए अंतर्यामी ब्रह्म की उपासना नहीं हो सकती, इसलिए उन साकार ब्रह्म की उपासना के लिए मूर्ति में प्राण प्रतिष्ठा की जाती है।
@@Athato_Brahmajijnasa
👉 ब्रह्म वा परमात्मा तो निराकार ही है, साकार नहीं। आत्मा की तरह, परमात्मा भी न जन्म लेता है, न मरता है, सदा से है और सदा रहेगा। यह दोनों ही स्वरूप से अविनाशी, नित्य हैं; इन्हें किसी ने बनाया नहीं, साकृत (साकार) नहीं किया। साकार होना तो प्राकृतिक वा भौतिक शरीरादि वस्तुओं में होता है, जो कि प्रकृति के परमाणुओं के योग से बनते हैं। इसके विपरीत आत्मा और परमात्मा दोनों अभौतिक, रचना और विनाश से पृथक्, निराकार ही हैं। अधिकतर साकार वस्तु स्थूल होते हैं और नेत्रों से दिखते हैं अथवा सूक्ष्मदर्शी यंत्रों से भी देखे जा सकते हैं। परंतु परमात्मा अणु से भी अणुतम अथवा सूक्ष्म से भी सूक्ष्मतम है, इसलिए यह अव्यक्त वा निराकार परमात्मा नेत्रों वा सूक्ष्मदर्शी यंत्रों की पकड़ में नहीं आता, परंतु ध्यानयोग रूपी आंतरिक दृष्टि से देखा जाता है।
👉 शास्त्रों में इसी निराकार सूक्ष्म ब्रह्म वा परमात्मा की उपासना और साक्षात्कार ध्यानयोग द्वारा करने बताये गये हैं -
*सूक्ष्मतां चान्ववेक्षेत योगेन परमात्मनः।* - विशुद्ध मनुस्मृति ६/६५
- (च) और (योगेन परमात्मन: सूक्ष्मताम्) योगाभ्यास से परमात्मा की सूक्ष्मता को (अवेक्षेत) प्रत्यक्ष करे।
*उच्चावचेषु भूतेषु दुर्ज्ञेयां अकृतात्मभिः। ध्यानयोगेन संपश्येद्गतिं अस्यान्तरात्मनः॥* - विशुद्ध मनुस्मृति ६/७३
- (उच्चावचेषु भूतेषु) बड़े-छोटे प्राणी-अप्राणियों के भीतर (अस्यान्तरात्मनः गतिम्) इस अन्तर्यामी परमात्मा की गति को संन्यासी (ध्यानयोगेन संपश्येत्) ध्यानयोग से सम्यक्ता देखा करे, (अकृतात्मभिः दुर्ज्ञेयाम्) जो कि अशुद्धात्माओं से जानने वा देखने के अयोग्य है।
👉 महाभारत गीताप्रेस, शांतिपर्व, अध्याय २३९ के निम्न श्लोकों में ईश्वर-प्राप्ति के लिए महर्षि व्यास द्वारा अपने पुत्र शुकदेव को योगसाधना के उपदेश का वर्णन है -
*एवं सप्तदशं देहे वृतं षोडशभिर्गुणैः। मनीषी मनसा विप्रः पश्यत्यात्मानमात्मनि ॥ १५ ॥*
- इस प्रकार बुद्धिमान् ब्राह्मण इस शरीर में पाँच इन्द्रिय, पाँच विषय, स्वभाव, चेतना, मन, प्राण, अपान और जीव - इन सोलह तत्त्वों से आवृत सत्रहवें परमात्मा का मन के द्वारा आत्मा में साक्षात्कार करता है।
*न ह्ययं चक्षुषा दृश्यो न च सर्वैरपीन्द्रियैः। मनसा तु प्रदीपेन महानात्मा प्रकाशते ॥ १६ ॥*
- इस परमात्मा का नेत्रों अथवा सम्पूर्ण इन्द्रियों से भी दर्शन नहीं हो सकता। यह महान् आत्मा विशुद्ध मनरूपी दीपक से ही बुद्धि में प्रकाशित होता है।
*अशब्दस्पर्शरूपं तदरसागन्धमव्ययम्। अशरीरं शरीरेषु निरीक्षेत निरिन्द्रियम् ॥ १७ ॥*
- वह आत्मतत्त्व यद्यपि शब्द, स्पर्श, रूप, रस और गन्ध से हीन, अविकारी तथा शरीर-रहित और इन्द्रियों से रहित है, तो भी शरीरों के भीतर ही इसका अनुसंधान करना चाहिये।
*अव्यक्तं सर्वदेहेषु मर्त्येषु परमाश्रितम्। योऽनुपश्यति स प्रेत्य कल्पते ब्रह्मभूयसे ॥ १८ ॥*
- जो इस विनाशशील समस्त शरीरों में अव्यक्त (निराकार/सूक्ष्म) भाव से स्थित परमेश्वर का ज्ञानमयी दृष्टि से निरन्तर दर्शन करता रहता है, वह मृत्यु के पश्चात् ब्रह्मभाव को प्राप्त होने में समर्थ हो जाता है।
Bahut satty bat he me aap se sahamat hun satyarth Parkash me sabkuch sahi he
इंसान उस प्रभु की जीती जागती मूर्ति है।इंसानों से प्यार करो उससे प्यार हो जायेगा।
बहुत ही अच्छा लगता है नमस्कार गुरुजी
इतना अच्छा तरह से वेद में लिखा है कि एक ईश्वर की पूजा करें उसका प्राण प्रतिष्ठा नही किया जा सकता है मगर आज पूरा हिंदुस्तान इस बुराई का शिकार है और और इसको शौक से करते हैं और उसको अपना बहुत बढ़ा पूज समझते हैं
क्रान्तिकारी विचार।
ओम् शांति ओ३म् सबको सादर नमस्ते जी 🕉️🚩😊🙏
जो हम देख पाते है सुन पाते है सुंघ पाते है जो हम छु पाते है स्वाद ले पाते है सोच समझ पाते है वो सब कुछ इश्वर है और जिसके द्वारा ये सब कुछ होता है वो इश्वर है
Ok
Kyon na hum maan le ki prakrity hi Ishwar hai kyonki wohi Nirakaar hai Surya se hi sarasti ka nirmaan hua uske taap se hur prani mein pran hai woh bhi Nirakaar hai baaki sub vyarth hai dharmon ki soch kewal kalpnik hai koi bhi dharm ho andhviswas se bhara pada hai dharma taran ka yahi mukhya kaaran hi jise samaj nakarta hai.
Har Har Mahadev❤
महर्षि दयानंद अमर रहे सत्यार्थ प्रकाश जिंदाबाद
अति,सुन्दर,ऐसा,ही,होना,चहिये
पाखंड वाद पर बेहतरीन प्रहार भाई 👍👍👍🙏🙏
Thank you for great knowledge
Namaste Guruji correct logic correct topic I like your answer thank u for good guidance Vande Mataram Jay Hind Jay Bharat
Namaste mahasy satya bol ne ke liye danyavad
Aacharya ji dhanywad ponga pandito ki jankari dene ke liye
अद्भुत ,वास्तव में।
ओउम्💐
सादर नमस्ते आचार्य जी👏👏
Om ATI sundar pravachan
¹
Guruji pranam
Pran Partistha ke bad , kaya murti jivit ho jati h, ya fir man hi man kush hota h.
Pranaam prabhuji prabhuji
सत्यमेव जयते।
गजब का का प्रश्न किया है अपने सुनकर बहुत बहुत ही जानकारी मिला आप का धन्यवाद यैसे ही ज्ञान वर्धक जानकारी इस मुर्ख समाज को देते रहिए सायद भांग का नशा उतर जाय लेकिन ये नशा बहुत ही घोट घोट कर पीला रखा है तो बहुत समय लगेगा लेकिन एक एक दिन उतरेगा जरूर क्यो की आज का पीढी शिक्छित हे
आप बाकई में सत्य की खोज में लगे हुए हैं .
Fantastic information,
आचार्य जी को प्रणाम🙏 बहुत ही सुन्दर ढंग से समझाया आपने प्राण प्रतिष्ठा के बारे में।
आचार्य जी शत शत नमन।आप सुन्दर ढ़ंग से समझाते हैं।
क्या वेद भगवान के द्वारा लिखे गये है।
Ved Gyanmykosh se Chidakaash me Paravaani VA swaran akshron me prakat hue jo Divya'drishti se Mahrishion ne Suna (shruti) aur Padha.
सुप्रभातम् शुभकामनाएं ओ३म् 🙏🏼🚩 हार्दिक धन्यवाद कृण्वनतो विश्वार्यम । जय आर्य जय आर्यव्रत । वन्देमातरम् वन्देमातरम् वन्देमातरम् ...... 🇮🇳
अति सुंदर
नमस्ते आचार्य जी
Thank you so much 🙏👌
अति उत्तम विचार sir
Bilkul sahi baat hai bhai
Guru dev g sty ktha jey ho
।। सत्यमेव जयते।। महोदय जी आपकी बात लगभग सात मिनट तक सुना जिसमें आपने अमोघ लीला प्रभु जी का तर्क प्रस्तुत किया कि नोट गवर्नर प्रधानमंत्री इतनी सत्य कथा से एक सत्य यह समझ में आ रहा है कि,,,जाकी रही भावना जैसी प्रभु मूरत देखी तिन तैसी,, अर्थात प्रभु अमोघ लीला जी ने जो तर्क प्रस्तुत किया है प्राण प्रतिष्ठा के पक्ष में वह तर्क आपने अत्यन्त सहजता से काट दिया है आगे हर कोई समझदार है जय संविधान हर हर महादेव जय श्रीराम शेष आगे की बात सुनने पर कुछ कहा जायेगा।। सत्यमेव जयते।।
बहुत अच्छा और तर्कपूर्ण ब्याख्यान
GoodNews
Jai ho Gurudev.
Outstanding sir
You are right sir
ओम्। नमस्ते अचार्य जीं जय आर्यावर्त
अध्याय 12 : भक्तियोग
श्लोक 5
क्लेशोSधिकतरस्तेषामव्यक्ता सक्तचेतसाम् |
अव्यक्ता हि गतिर्दु:खं देहवद्भिरवाप्यते || ५ ||
जिन लोगों के मन परमेश्र्वर के अव्यक्त, निराकार स्वरूप के प्रति आसक्त हैं, उनके लिए प्रगति कर पाना अत्यन्त कष्टप्रद है | देहधारियों के लिए उस क्षेत्र में प्रगति कर पाना सदैव दुष्कर होता है |
Pehle Gyan fir bhakti 😊
Bina Gyan ki bhakti Andhvishwas ko badhawa deti hai 🙏
Maharshi Dayanand Saraswati ki Jay Vaidik Dharm ki Jay
आप से निवेदन है कि वेद की रोशनी में बताएं की प्राण प्रतिष्ठा सही है
अति सुन्दर विवेचन, धन्यवाद।
प्रणाम आपको बहुत र्ताकिक सुझाव दिया🙏🙏
Sir very good analaise
।। सत्यमेव।। महोदय जी, आप सत्य की खोज में स्थित है और जो कुछ भी सत्य आप अपने विवेक से सत्य समझते हैं उसे समझाने का प्रयत्न करते हैं जो अच्छी बात है लेकिन जैसा कि आप स्वयं वेद से चलकर माननीय संविधान तक पहुंचे जो यह सिद्ध करता हैं कि आप इस सत्य से भली-भांति परिचित हैं कि देश संविधान से चलता है और भारत का संविधान भारत के हर नागरिक को अपनी-अपनी ईश्वरीय आस्था के अनुसार संविधान के अनुसार अपनी पूजा पाठ मनौती इत्यादि कर सकते हैं यह उचित समझा है संविधान निर्माताओं ने तभी यह व्यवस्था प्रदान करता है इसलिए किसी की ईश्वरीय आस्था का अपमान करना या फिर उपहास करना या फिर अनुचित कहना संविधान के अनुसार गैरकानूनी कृत्य है आगे हर कोई समझदार है जय संविधान हर हर महादेव जय श्रीराम।। सत्यमेव जयते।।
प्राण प्रतिष्ठा का अर्थ होता है श्रीमान जी की हम जिस किसी का भी प्राण प्रतिष्ठा कर रहे हैं उसके आदर्श को जीवंत कर रहे हैं ना की मूर्ति के अंदर हम प्राण डाल रहे हैं उसके आदर्श को जीवंत करके हम अपने अंदर आत्मसात करने की कोशिश कर रहे हैं और करना भी चाहिए जैसे आप भी दयानंद सरस्वती के आदर्शों को आत्मसात कर रहे हैं आपकी मर्जी है हमारी मर्जी है हम राम के आदर्शों को जीवंत करके अपने अंदर धारण करेंगे क्या आप दयानंद सरस्वती के चित्रों का अपमान सहेंगे प्राण तो उनमें भी नहीं है लोगों को भरमाया नहीं सही रास्ता दिखलाइए
Jay shree Ram Jay shree Ram Jay shree Ram Jay shree Ram Jay shree Ram Jay shree Ram Jay shree Ram Jay shree Ram Jay shree Ram Jay shree Ram Jay shree Ram Jay shree Ram Jay shree Ram Jay shree Ram Jay shree
आप राष्ट्र के जीवंत पुरोहित हो सकते हैं परंतु हम राष्ट्र को जागृत और जीवंत बनाए रखने वाले पुरोहित हैं
Bhaiya jabhi to hamre sath mazak chal raha hai
very nice and very very right and useful topic for all.
जय हो
Aadya Shankaracharya ke literature me
For ex.
Vivekchudamani
Aprokshanubhuti
Aatmabodh
jo avastaye sadhak ko prapta hoti hai , aisi avastaye kisi Arya Samaji sadhak ko prapta huvi hai kya ?
Aatmanubhuti pabhe
हमारे देश में सभी धार्मिक कहलाने वाले लोग एक ही सोच के हैं सभी को दान चाहिए बात चाहे कैसी ही करे
Very nice and like your aansar ( dindori vikrampur)
Namo Nameh Guru Ji
सूकशम शरीर और कारण शरीर होता है क्या? बिना साधना के सूकशम शरीर के दर्शन कराया जाता है क्या?
Dhyan mulam guru murti....yah Satya hai ya ashtya hai
आपने इस्लाम की तालीम आज दिया है इसी तरह से ईश्वर के बारे में कुरान में बतलाया गया है अगर आज सब लोग इन बातो को मन लें तो कोई मूर्ति पूजा नही करे गा।
यदि ब्राह्मण पत्थर में प्राण प्रतिष्ठा कर सकते हैं , तो अपने परिवार के दिवंगत लोगों की प्राण-प्रतिष्ठा क्यों नहीं कर पाते हैं । यदि दम है तो करके दिखाएं , अन्यथा पाखंड बंद करें ।
Aise video aap banate raho roz ek video
Very fine sirji
Sahi Vichar
पेहली तो बात कोई मंत्र में इतनी शक्ति ने कि वह प्राण प्रतिष्ठा कर दे दूसरी बात वेदों के ज्ञाता हजारों इकट्ठे हो जाए परंतु मरे हुए मानव को कोई प्राण प्रतिष्ठित नहीं कर सकता जहां फिर वेद पुराण झूठे हो गए मंत्र भी झूठे हो गए मरे हुए को कोई जीवित करके बताएं फिर माने की प्राण प्रतिष्ठा होती है
अति सुन्दर तर्क है और यथार्थ भी है
लगता है एक अलग संप्रदाय है
नही ये सही बात कर रहे है वेदो मे ऐसा ही लिखा है
' Praan tattwa ' - granth
Swami Vishanu Tirth
Narayan Kuti Sanyaas Ashram , Devas , M.P.
*
Ram Mandir Praan Pratishta
Deh Mandir Praan Jagruti
Nath Guru Parampara
praan tattwa ke sahare se chalne wali Sadhan Padhati
Kundalini yoga
Ramlal ji Siyag siddhayoga .
❤
ओम् य़ेन द्योरुग्रा पृथ्वी च दृढ़ा य़ेन स्बह स्तभितं य़ेन नाकह। यों अन्तरिक्षे रजसो बिमानह कस्मै देबाय़ हबिषा विधेम। यजु ३२/६
इस मंत्र से अनंत आकाश में ईश्वर असंख्य सूर्य चंद्र पृथ्वी नक्षत्र बनाया। यही उदाहरण दे सकते थे।
सही ज्ञान किसी के पास नहीं है बस दावे ही दावे हैं और बहस हैं l
हाँ ज्ञान विज्ञान जो भी उपलब्ध है आज मानव समाज के पास वो सच की दिशा मे उठाया गया मजबूत कदम है l
ज्ञान बिल्कुल सही हो ये जरूरी शर्त नहीं है - सच तो यह है कि गलत ज्ञान भी सही ज्ञान की तलाश मे मिलने वाला हीरा ही है l तो दुनिया गलत ज्ञान और सही ज्ञान के आधार का सहारा लेकर के ही सच के प्रकाश को पाने की दिशा मे बढ़ता है l
ज्ञानी और अज्ञानी दोनों ही ज्ञान की बात करते हैं l
आचार्य जी ओम मैं आपके पास एक वीडियो लिंकउसके बारे में अपनी राय दीजिए
Aacharya ji Sadar pranam om shanti om
ऋषि दया नन्द सरस्वती दर्शनीक नही थे । वे विचारक थे । देव -देवी ईश्वर तथा धर्म के
दर्शन नही किया था । अबतारी पुरुषो भी प्राण कर देवता पुजा अर्चना किया था ।
इसके उदाहरण है भगवान् राम ने तामिल नाडु मे
यदि मूर्ति में प्राण स्थापित किये जा सकते हैं तो मरे ब्यक्ति में पुनः प्राण क्यों नहीं डाले जाते।
Ram krishna ji aap k nam k mutabik aap ka saval gambhir nahi hai
मैने तो आज तक परमाणु,इलेक्ट्रॉन,प्रोटान भी नही देखा|
आपने नहीं देखा लेकिन किसी ने देखा समझा उपकरण कार्य कर रहे हैं प्रत्यक्ष है| जो प्रत्यक्ष का विषय है प्रत्यक्ष होगा जो अनुभव का विषय है अनुभव होगा |
मन की गति किमी/घंटा में मापने का प्रयास कैसा रहेगा?
परमहंस रामकृष्ण मूर्ति से बात करते थे भोजन कराते थे|
रसखान,बिन्दु ,बैजू कितना नाम गिनाएं|
योगी कथामृत (योगानंद जी) पुस्तक पढ़ें सब उत्तर मिल जायेगा | महीनों तक शव (बिना किसी भौतिक लेप आदि के)से जरा भी दुर्गन्ध नहीं आया| दो तीन बार दिल से पुरा पढ़ें| योगी कथामृत|
@@rajendramishra7423😂😂😂😂
यदि आपकी बात पूरी तरह सही है,तो वेदों में देवताओं का आवाहन करने के लिए मंत्र कहां से आए।
वेदों में एक मंत्र हैओ३म् विश्वानि देव सवितर्दुतानि परासुव यद भद्दम तनासुव यहां पर देव का अर्थ ईश्वर है संपूर्ण विश्व का देवता अर्थात ईश्वर
गुरुजी को धन्यवाद ,ईसिलिए बुध्दने मुर्ति बनानेको रोकाथा?
गायत्री परिवार के सम्बन्ध मै आप के क्या बिचार हू।
Aap khud me aanand lijiye ouron ko jane dijiye
जाकी रही भावना जैसी, प्रभु मूरत देखी तिन्ह तैसी।
Sanyog Rashi ka kya karoge Guruji
😊 बहुत अच्छा लगा
कण कण में है पर स्वामी जी को शायद ही मिला हो
Logic Sahi hai
भगवान तो अदृष्य है । मुझे उनसे कुछ लेना है अर्थात कुछ प्राप्त करना है इसिलिए मैने उनको प्रसन्न करना चाहता हुँ । इसिलिए उनको प्रसन्न करनेके लिए उनके संझनाके लिए शास्त्रमे बतए गए आकारके अनुसार मुर्ती कुदाक्र स्थापित करके उस्मे मन्त्रोके शक्तिके अनुसार उनको उस मुर्तिमे बिराजमा होनेके लिए आमन्त्रण करते है तब उस स्थुल शरीर पर हम अपना विधि अनुसार उनको पूजा आरधना करते है । इसपर आँप क्या कहसक्ते है ।
Bhai man me kalpana karna hai n ki pathar ki murti bna le a hai
@@anukumari835 तबतो पूजाभि मन्मेही किजिए !
@@yagyarajgyawali9853bhagwan ka dhyan andar hi hota n ki bahar dikhawa karo
@@yagyarajgyawali9853 aapne aap ko jaan loge to bhagwan ka anubhav ho jayega
Aachary ji pran nikale par kanha jata hai
उस ईश्वर का स्वरूप क्या है जिसने वेदों को बनाया है? 🙏
आचार्य जी एक बार साइंस जर्नी से डिबेट कर लो।
यदि अश्वमेध यज्ञ में अश्व में प्रजापति की प्रतिष्ठा की जाती है जिसका संपूर्ण वैदिक आधार हो, तो पाषाण में विष्णु की प्रतिष्ठा क्यों नहीं हो सकती?
@@Confucianism03030 पंचभूतों में प्राण निःसृत करने की शक्ति तप और मंत्र में है। है बिलकुल, हठ योग से मृत देह में भी पुनः प्राणों का समावेश हो सकता है। यह मंत्र से भी संभव है, जैसा शुक्राचार्य ने मय दानव आदि असुरों को भी मृत संजीवनी विद्या से जीवित किया था।
उसी प्रकार मंत्रों और तप के प्रभाव से मूर्ति में भी प्राण प्रसरित होतें हैं।
श्रीमद् भागवत आदि पुराणों में कालिका की मूर्ति से देवी का प्रदुर्भाव होना और जडभरत की रक्षा करने का प्रसंग मिलता है। अन्य भक्ति साहित्यों में भी भगवान जगन्नाथ और द्वारकाधीश की मूर्तियों का चलना, बोलना और भोजन करना रूप वर्णन मिलता है।
बड़े बड़े आचार्यों ने भी मूर्ति प्रतिष्ठा को स्वीकृति दी है और पांचरात्र आदि आगम भी मूर्ति पूजा और कैंकर्य सेवा का स्पष्ट और विषद वर्णन करती है।
शास्त्र के सैंकड़ों प्रमाण और अकाट्य तर्क हमारे पास है, परंतु मूर्ख नमाजी क्या समझे?
Namaste
हमारी आखे इतनी दिव्य नहीं है की हम कंन कंन मे भगवान् को देख सके
संजय और अर्जुन जैसे भगवान् दिव्य चखसु दे तो हम देख शकते है
हमारा अज्ञात मन चित्र और साकार वस्तु पकड़ शकता है इसलिए ऋषि मुनि ओ ने मूर्ति की अनमोल भेट दी है
दयानंद सरस्वती ज्ञानी और समाज सुधारक थे लेकिन भक्त नहीं
पत्थर मे भगवान् देखने के लिए भक्त हृदय चाहिए
श्री कृष्ण भगवन ने भी गोवर्धन पूजा की थी
तो क्या वो गलत थे?
हा चोक्कस कुछ पंडा ओके कारण पाखंड आ गया था
राम ने रामेश्वर शिव लिंग् की स्थापना की क्या वह गलत है
हमारी दयानंद सरस्वती जी जैसी साधना नही है की हम निराकार की उपासना कर शके
सभी जीव k G मे अभ्यास कर रहे है
जब p H D banege तब मूर्ति पूजा छोड देगे
सही कहा है.तर्क से शक्ति अनुभव नही
मिलता है.
Bhai Aastha aur tark hi to do paar hain jissae sadhak tatav ka shakshat kartae hain. Aap log Aastha to rakhtae ho tark ki avaelhna kartae ho is karan parmatma ki prapti sae door hon. OM TAT SAT.
बहुत सुन्दर लिखा भाई ने धन्यवाद
मूर्ति में कभी प्राण नहीं आ सकते हैं
Sahi kha aap ne ye apne aap bahot bade 😅gyaani samaj ke dusro ko nicha bata ke apne gyaan ka pardsan kar rahe hai😅
🙏🏻🙏🏻🙏🏻
दयानंद की तस्वीर क्यों टांगते हो क्या दयानंद तस्वीर में है ?
कुतर्क कर रहा है महामूर्ख
मूर्ति पूजा कर के अगर मन को शांति मिले फिर भी नहीं करनी चाहिए क्या प्राण प्रतिष्ठा एवं मूर्ति पूजा🙏
सादर प्रणाम 🙏कुछ वीडियो ऐसी सामने आई प्राण प्रतिष्ठा के समय मूर्ति की आंखों से पट्टी हटाने से शीशा टूट जाता है कृपया मार्गदर्शन करे जी।
शीशा अपने आप नहीं टूटता! प्राण-प्रतिष्ठा के समय बहुत कमजोर पतले शीशे का आइना पुजारी अपने दोनों हाथों से मूर्त्ति कू सामने लाता है और सूक्ष्म रूप से आइने के शीशे पर दोनों हाथों के मध्य में किञ्चित तिर्यक दबाव देता है जिसपर उपस्थित पुजारी और भक्तजन ध्यान नहीं देते। कभी भी पुजारी इस अनुष्ठान के समय एक हाथ से आइने को नहीं पकड़ता है!
Yes
सत्यार्थ प्रकाश आज हम मूर्ति पूजा करने वाले लिखते हैं कि
मूर्ति पूजा करने वाले की इज्जत पूरी दुनिया में है, जबकि
मूर्ति पूजा नहीं करने वाले की इज्जत मिट्टी में मिल गई है कोई इज्जत नहीं है ऐ बाद हमारी नयी पुस्तक की प्रथम पंक्ति है
Amerika,Briten,France jarmany to murty Puja nahi karate, is per kya kahna hai ?which are devloped countries
निराकार ब्रह्म की उपासना