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- Опубликовано: 3 окт 2024
- आज की कथा में:- राजकुमारों की शिक्षा और परीक्षा तथा एकलव्य की गुरुभक्ति
वैशम्पायनजी कहते हैं-'जनमेजय! द्रोणाचार्य भीष्मपितामह से सम्मानित होकर हस्तिनापुर में रहने लगे। भीष्म ने उन्हें धन-अन्न से भरा एक सुन्दर भवन रहने के लिये दिया। वे धृतराष्ट्र और पाण्डु के पुत्रों को शिष्यरूप में स्वीकार करके धनुर्वेद की विधि पूर्वक शिक्षा देने लगे।
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