श्रीमद भागवतम 2.3.2-7: किसे कृष्ण की पूजा करनी चाहिए और किसे देवताओं की पूजा करनी चाहिए?

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  • Опубликовано: 6 сен 2024
  • SB 2.3.2-7: Who should worship Krishna and who should worship Demigods?
    24/12/2022 at Sridham Mayapur
    #JayapatakaSwamiHindi #Iskcon #Spirituality #Bhagvan #Bhakt #SrimadBhagvatam #RevealedScriptures #HariKatha #Krsna
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    इस आध्यात्मिक श्रीमद्भागवत प्रवचन में श्रील जयपताका स्वामी महाराज बताते हैं:
    श्रीमद्भागवतम् से हमें पता चलता है कि जिनकी भौतिक इच्छाएं हैं, उन्हें क्या करना चाहिए। हम देवी देवताओं के द्वारा अपनी इच्छा पूर्ण कर सकते हैं किंतु जन्म व मृत्यु की समस्या बनी रहेगी। यदि किसी व्यक्ति की भौतिक इच्छा हो तथा उसे भगवदधाम भी जाना है, तो उसे पूर्ण पुरुषोत्तम भगवान की पूजा करनी चाहिए।
    प्रभुपाद की पुस्तकों में हमें श्रद्धा है। इसलिए हम इसका वितरण करते हैं। हम प्रभुपाद की पुस्तकों का अध्ययन करें जिससे हमें श्रीकृष्ण व चैतन्य महाप्रभु
    की कृपा प्राप्त हो ।
    छठे स्कंद की एक कथा में नारद मुनि दक्ष प्रजापति के पुत्रों को एक कथा बताते हैं। इस कथा को सुनकर दक्ष प्रजापति के पुत्र संन्यासी हो गये। भागवतम में इस तरह की बहुत सी रोचक बाते हैं।
    एक बार शिवजी से पार्वती जी ने पूछा कि "कौन सर्वश्रेष्ठ है?" शिवजी ने विष्णु जी की पूजा सर्वश्रेष्ठ बताई और कहा कि जो तदीय है, उनकी पूजा भगवान की पूजा से श्रेष्ठ है l इसलिए हम सभी वैष्णवों की पूजा करते हैं तथा हर प्रकार के वैष्णव अपराध से बचने का प्रयास करते हैं l
    जब तक हम भौतिक जगत में हैं, हमारी कुछ भौतिक इच्छाएँ भी होंगी लेकिन अधिकतर समय कृष्ण अराधना मे लगाना चाहिए। श्रीमद् भागवतम व चैतन्य चरितामृत के अनुसार गृहस्थ तीन बार हरे कृष्ण का कीर्तन करते हैं, भगवद्गीता व श्रीमद्भागवतम पढ़ सकते हैं, विग्रह पूजा, मंदिर जाना व प्रसाद ग्रहण कर सकते हैं। यह सभी कार्य कृष्ण को केंद्र बनाकर हो सकते हैं।
    रूप गोस्वामी अपने लिए करोड़ मुख व करोड़ों कान चाहते थे भगवान नाम का श्रवण व कीर्तन करने के लिए l
    एक बार कंस ने सफेद व नीले वस्त्र में कृष्ण और बलराम को देखा जो उसे मारने आ रहे थे। लेकिन, निकट आने पर उसे ज्ञात हुआ कि वे कंस की पत्नियाँ थीं जो नीले व सफेद रंग की साड़ी पहने थीं।
    'लोग अपनी इच्छानुसार अलग अलग देवी देवताओं की पूजा करते हैं व इच्छा पूर्ति करते हैं। जो स्वयं को शरीर मानते है उनके लिए देवी देवताओं की पूजा है। जो शरीर व आत्मा के अंतर को जानते हैं, उनके लिए भगवान की पूजा बताई गई है।
    (सारांश सुप्रिया जाम्बवती देवी दासी और कांचनवर्ण गौरांगी देवी दासी द्वारा)
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