Mother's Day Poetry || A small tribute to माँ by Deepankur Bhardwaj

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  • Опубликовано: 3 окт 2024
  • This is a small tribute to our beloved Mother by me on the occassion of Mother's day. Please listen and always be thankful to your Mother for always being there whenever you need her.
    मां ये केवल एक शब्द नहीं है ये एक शक्ति है ये भावनाओं का एक समंदर है जो कभी ममता के रूप में दिखता है तो कभी रौद्र रूप में अपने बच्चों की सुरक्षा के लिए दुष्टों के रक्त का खप्पर भरता है तो आज हम जानते है मां और मातृत्व की असीम शक्ति को। मैं दीपांकुर भारद्वाज दुनिया की हर मां को हृदय से नमन करता हूं और आप सभी को आमंत्रित करता हूं मां नामक शक्ति के अनंत स्वरूप की छोटी सी झलक को मेरी कविता के रूप में देखने के लिए।
    Jai Shree Krishna ❤️❤️❤️
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    Twitter Link : / devildeep7
    Lyrics:
    मां जीवन के भीषण जाड़े में
    मन तेरे मातृत्व की चादर ओढ़ हर्शाता है,
    तब तब तू तरुवर की छांव बनी
    जब-जब जीवन घाम बरसाता है।
    ना कभी श्रृंगार भाते तेरे लाल को
    तेरे काजल का काला टीका बड़ा सुहाता था,
    आज भी याद हवा का वो शीतल झोंका
    तेरे आंचल से जो आता था।
    तुझ संग जीने वाला हर पल
    बारंबार मैं जीना चाहता हूं,
    तेरे मातृत्व के इस अमृत को
    हर जन्म में पीना चाहता हूं।
    तुझ से ना कोई पहले है
    मेरी दुनिया तेरे बाद नहीं,
    मुझे मारकर तू खुद ना रोई हो
    ऐसा दिन कोई मुझको याद नहीं।
    तुझसे ठिठोली करना मुझको
    ना जाने क्यों इतना भाता है,
    तेरी हर डांट से मुझको
    जीने का सलीका आता है।
    तेरी मुस्कुराहट देख मेरा
    हृदय पुलकित हो जाता है,
    और तेरा एक-एक आंसू मेरा
    सीना छलनी कर जाता है।
    माना थोड़ा तुनुक मिजाज हूं
    कभी-कभी चिढ़ जाता हूं,
    अरे तेरे प्यार का भूखा लाल तेरा हूं
    वापस तेरे पास ही आता हूं।
    इस दुनिया से लड़-लड़कर
    जब मैं थककर चूर हो जाता हूं,
    मेरे नारायण का आशीर्वाद है तू
    तुझे हंसता देख मैं ऊर्जा से भर जाता हूं।
    तुझे प्रेमवश कान्हा दिखता हूं मैं
    मामूली सा मैं बंदा हूं,
    अरे तुझ में ही रब दिखता मुझको
    तुझे देख-देख मैं ज़िंदा हूं।
    तेरे दिए संस्कार ही हैं जो
    व्यक्तित्व की मेरे शान है,
    तुझसे मुझे जो चारित्र मिला है
    उस चरित्र की शक्ति पर मुझको अभिमान है।
    वैकुंठ से धरा पर मेरे लिए आया है
    मां रुक्मिणी का प्यार है तू,
    माधव ने जो मेरे लिए भेजा है
    वो अनमोल उपहार है तू।
    मां तू केवल एक शब्द नहीं
    तू करुणा की मूरत है,
    तू पावन रूप है गंगा मैया का
    तू जगदंबा की सूरत है।
    चला रही जो ब्रम्हांड अनंत को
    तू वो अद्भुत एक शक्ति है,
    कभी प्रेम है तू मैया यशोदा का
    कभी मां अनसुइया की तू भक्ति है।
    जब जब विपदा आन पड़ी लाल तेरे पर
    पहले तू उससे टकराई है,
    कभी कालिका रूप में तू प्रचंड है
    कभी ममतामई रुक्मिणी तू मेरी रखुमाई है।
    सबसे पहले तुझमें ही देखे प्रभू श्री राम थे मैने
    मां जानकी तेरे अंदर है,
    नारायण की ही भांति तू भी तो
    प्रेम का अनंत समंदर है।
    दुआ है मुरलीवाले से
    इस देह में जब तक श्वांस रहें,
    मेरी मां की गोद में सिर मेरा हो
    मेरी मैया सदा ही मेरे पास रहे।

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