श्रीमद्भगवद्गीता | अध्याय 3 श्लोक 42 | जैसे हम वैसी हमारी दुनिया | आचर्य प्रशांत |

Поделиться
HTML-код
  • Опубликовано: 24 сен 2024
  • इन्द्रियाणि पराण्याहुरिन्द्रियेभ्यः परं मनः ।
    मनसस्तु परा बुद्धिर्यो बुद्धेः परतस्तु सः।।
    "हीन ही हैं मांस हड्डी
    आंख तुम्हारी खुली रहे
    चले सदा सच के पीछे
    बुद्धि प्रेम में झुकी रहे"
    #acharyaprasant
    #shrimadbhagwatgita
    #gita
    जिस कर्मकांड और धारणों को सनातन धर्म मान बैठे हैं वो है ही नही, वास्तविक सनातन धर्म तो गीता उपनिषद..है
    आचार्य प्रशान्त के द्वारा जो हम सबों को शिक्षा / दीक्षा दी जाती है उसको मैं यह पे शेयर करता है।
    अगर आप सबों को भी आचार्य प्रशान्त से जीवन जीने के बहुमूल्य उपयोगी दर्शन , श्री मद्भागवत गीता, अष्टवक्र गीता, उपनिषद सीखना है तो उनके गीता समागम सत्र से जुड़े, जीवन में आप अलग आनंद महसूस कीजिएगा।
    समागम सत्र से जुड़ने के लिए आचार्य प्रशान्त का app download करें
    play.google.co...
    Visit Site-
    acharyaprashan...

Комментарии • 1