सुनकर रो देता है मन ! Aacharya Vimalsagarsuriji

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  • Опубликовано: 8 май 2020
  • • भक्तिकाव्य में भर दी जान !
    • भक्तों के लिए वरदान !
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    • जो लोग अरिहंत प्रभु की प्रतिमा में साक्षात् अरिहंत के दर्शन करते हैं,
    • जो भक्तियोग के साधक हैं.
    • जिनके घर में जिनालय और जिनप्रतिमा से ही सुसंस्कारों की सरिता प्रवाहित हुई है.
    • अरिहंत प्रभु की पावन प्रतिमा के आलंबन से ही जिनका आध्यात्मिक विकास हुआ है.
    • जिन्होंने आर्ष वचनों के अनुसार इस स्थापना निक्षेप से बहुत-कुछ पाया है.
    • जिनेश्वर के नित्य पूजन से जिनका पुण्योदय हुआ है.
    • जिनमंदिर को पाकर जिनके पाप अल्प बने हैं.
    • जो रोज जिनमंदिर जाते हैं, प्रभु दर्शन करते हैं, विधि पूर्वक नवांगी और अष्टप्रकारी पूजा करते हैं, प्रक्षाल तथा अंगलूछने कर जो भावपूर्वक चैत्यवंदन व स्तुतिपाठ करते हैं, आरती और मंगल दीपक करते हैं, तीर्थयात्राएं करते हैं, ऐसे लोगों के लिए बनी है यह अद्भुत् भक्ति-रचना.
    • जिनदर्शन और जिनपूजा के बिना जो मूंह में पानी तक नहीं डालते हैं.
    • जिनको जिनालय के बिना जीवन अधूरा लगता है.
    • जीवन की ऐसी धन्यता का अनुभव करने वाले सभी श्रद्धालुओं को यह भाववाही स्तुतिगान बहुत प्रभावित करेगा.
    • कोरोना के कारण जब जिनमंदिर जाना प्रतिबंधित है, ऐसे पलों में रचा गया यह स्तुतिपाठ भक्तजनों को अत्यंत भावविभोर बनाता है.
    • इसका ध्यानपूर्वक श्रवण अरिहंत के हर सच्चे भक्त की आंखें भर देता है ! यह भावतरंगों का पुंज है.
    • इस पर बनाया गया विडियो तो सिर्फ काव्य की महत्ता को दर्शाने का प्रयत्न है.
    • श्री देवर्धि के सुहाने उपनाम से जाने जाते कविवर मुनि श्री प्रशमरतिविजयजी महाराज ने रचा है ये भक्तिकाव्य.
    • पूज्य महान् आचार्य प्रवर श्री विजय रामचंद्रसूरीश्वरजी महाराज साहब के आप प्रतिभासम्पन्न शिष्य हैं.
    • देवर्धि महाराज ने अब तक 2000 से अधिक छोटी-बड़ी भक्ति-रचनाएं देकर जिनशासन की मूर्तिपूजा की परंपरा और भक्तियोग की साधना को ऊर्जा प्रदान की है.
    • गौर करने लायक बात है कि देवर्धि महाराज जन्म से जैन नहीं, ब्राह्मण हैं. फिर भी उनके एक से बढ़कर एक रचे गये भक्तिकाव्य अरिहंत प्रभु के प्रति उनकी अटूट श्रद्धा और सम्यग्दर्शन की निर्मलता की साक्षात् प्रतीति करवाते हैं.
    • कोरोना के लॉकडाउन के बीच भी श्री अजयभाई मांडविया ने प्रस्तुत काव्य का मधुर स्वर में रेकॉर्डिंग कर इसे जानदार बना दिया है.
    - आचार्य श्री विमलसागरसूरीश्वरजी महाराज साहब
    (Nayi Soch, Sahi Disha)
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    It is a generous campaign dedicated to Lord Mahavireer's principle in the name of Revolutionary, Versatile & Vigorous Preacher Aacharya Shree Vimalsagarsuriji.
    It is Purely Sacred, Perceptional & Intellectual effort to bring one’s attention on life values ​​in the form of Religious Integrity, Social Intimacy, National Pride, Human Values, Spiritual Supremacy,
    Non Violence, Good Faith, Vegetarianism, Indian Culture, Karma Theory & much more.
    It Emphasizes on Awakening the Youth, Prospering Women Welfare, Promoting Communal Harmony, Maintaining Cultural Pride & Enhancing Jain Ideology.
    क्रांतिकारी-ओजस्वी प्रवचनकार आचार्य श्री विमलसागरसूरिजी महाराज के प्रवचन और विविध आयोजन भगवान महावीरस्वामी के सिद्धांतों को समर्पित सर्व हितकारी अभियान हैं.
    यह जैनधर्म, अध्यात्म, समाज, संस्कृति, राष्ट्रीयता, अहिंसा, नैतिकता, सुसंस्कार, शाकाहार, सद्भावना, आहार विज्ञान, कर्मवाद और मानवता की सेवा का पावन पुरुषार्थ है.
    सकारात्मक सोच, युवा जागरण, कन्या उत्कर्ष, साम्प्रदायिक सद्भाव और सांस्कृतिक गौरव इसके सार्थक माईल स्टोन हैं.

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