कोई अर्थ नहीं | Ramdhari singh dinkar | नित जीवन के संघर्षों से | Reh jaata koi arth nahin

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  • Опубликовано: 16 окт 2024
  • nit jeevan ke sangharsho se
    रह जाता कोई अर्थ नहीं - श्री रामधारी सिंह दिनकर
    नित जीवन के संघर्षों से
    जब टूट चुका हो अन्तर्मन,
    तब सुख के मिले समन्दर का
    *रह जाता कोई अर्थ नहीं*।।
    जब फसल सूख कर जल के बिन
    तिनका -तिनका बन गिर जाये,
    फिर होने वाली वर्षा का
    रह जाता कोई अर्थ नहीं।।
    सम्बन्ध कोई भी हों लेकिन
    यदि दुःख में साथ न दें अपना,
    फिर सुख में उन सम्बन्धों का
    रह जाता कोई अर्थ नहीं।।
    छोटी-छोटी खुशियों के क्षण
    निकले जाते हैं रोज़ जहाँ,
    फिर सुख की नित्य प्रतीक्षा का
    रह जाता कोई अर्थ नहीं।।
    मन कटुवाणी से आहत हो
    भीतर तक छलनी हो जाये,
    फिर बाद कहे प्रिय वचनों का
    रह जाता कोई अर्थ नहीं।।
    सुख-साधन चाहे जितने हों
    पर काया रोगों का घर हो,
    फिर उन अगनित सुविधाओं का
    रह जाता कोई अर्थ नहीं।।
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