धनाना धाम सेवा में

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  • Опубликовано: 3 ноя 2024

Комментарии • 13

  • @SunilDas-dk5oi
    @SunilDas-dk5oi Месяц назад +1

    😮😮😮😮😮😮😮😮😮😮😮😮

  • @rajniupadhyay4257
    @rajniupadhyay4257 2 месяца назад +1

    Sat Guru Rampal Ji Maharaj ke Jay True God

  • @RambahadurRambahadur-jk4sm
    @RambahadurRambahadur-jk4sm 3 месяца назад +1

    संत साहेब

  • @Shyokaran_das
    @Shyokaran_das Месяц назад +1

    Sat sahib ji 🙏🙏🙏

  • @himanigoswami7970
    @himanigoswami7970 Месяц назад +1

    सतभक्ति करने वाले की अकाल मृत्यु नहीं होती जो मर्यादा में रहकर साधना करता है।
    वेद में लिखा है कि पूर्ण परमात्मा मर चुके हुए साधक को भी जीवित करके 100 वर्ष तक जीने की शक्ति भी दे सकता है। संत रामपाल जी महाराज ऐसी ही सतभक्ति बताते हैं।

  • @munnalal-ui6lb
    @munnalal-ui6lb Месяц назад

    तत्वदर्शी मुक्तिदाता कितना बड़ा धूर्त है इसकी करतूतको देखो। वेदों में कवि शब्द आया है उसकी जगह कवि देव अर्थात कबीर दास किया है और कहता है कि वेदों में कबीर जी को परमात्माबताया है।😢😢

    • @RajKumarRania
      @RajKumarRania  Месяц назад

      अच्छा तो आप बतायें की वेदों में कवि का क्या अर्थ हो सकता है I
      दूसरी बात ये की संस्कृत के मूल पाठ में सिर्फ कवि नहीं है वहाँ कवीर है जिसको अनुवाद करते समय अनुवादकर्ता ने अज्ञानतावश कवि लिख दिया जिसको लोगों ने पढ़ा और सोच लिया कि अच्छा कवि के बारें में लिखा है
      इसलिये मेरे भाई एक बार दोबारा पढ़ना वेदों को ओर हाँ संस्कृत भी साथ पढ़ना मत भूलना I
      धन्यवाद ( सत साहेब जी ) 🙏🏼

    • @munnalal-ui6lb
      @munnalal-ui6lb Месяц назад

      @@RajKumarRania कवि का अर्थ तुम्हारे ही गुरु भाई ने किया था मैंने भी उसका समर्थन किया है। परमात्मा एक कवि है जो श्रुति द्वारा शास्त्र द्वारा कविता के रूप में ज्ञान प्रदर्शित करता है। लेकिन इसका मतलब कबीर ही नहीं है इसका मतलब पांच आत्माएं हैं जिन्होंने दुनिया में अखंड का पैगाम दिया उनमें कबीर जी हैं सुखदेव जी हैं सनकादिक है शिवा और विष्णु है। लेकिन इन्होंने वेदों के द्वारा नहीं दिया इन्होंने अपना ज्ञान अपनी वाणी पुराणों मेंदिया है कबीर जी ने अपने शब्दों मेंदिया है लेकिन वेदों की पहुंच गीता की पहुंच पूर्ण ब्रह्म परमात्मा का नहीं है वेद सृष्टि की सामग्री है जो निराकार साकार सृष्टि का ज्ञान रखती है पूर्ण ब्रह्म तक वेदों की गीता की पहुंच नहीं है। तो वेद कैसे कह रहे हैं कि कबीर परमात्मा का नाम है।
      वेद थके ब्रह्मा थके थक गए शेष महेश।
      गीता को जहां ग़म नहीं वह सद्गुरु का देश।।
      पूर्ण ब्रह्म सच्चिदानंद वेदों से गीता सेअलग है। इसलिए वेद पुराण ब्रह्म को सिद्ध नहीं करसकते इस बात की गवाही कबीर दास भी दे रहे हैं जो आपके ऊपर के शब्दों के द्वारा बताई है।

    • @RajKumarRania
      @RajKumarRania  Месяц назад

      कवि शब्द के अर्थ के बारे में आपका उपरोक्त विवरण किस वेद से प्रमाणित है कृपया यह बताने का कष्ट करें ।
      हमारे वेदों में तो यह प्रमाण दिया गया है
      ऋग्वेद मंडल नंबर 9 सूक्त 96 मंत्र 17
      शिशुं जज्ञानं हर्यतं मृजन्ति शुम्भन्ति वह्नि मरुतो गणेन । कविर्गीर्भिः काव्येना कविः सन्त्सोमः पवित्रमत्येति रेभन् ।।
      अनुवाद : पूर्ण परमात्मा (हर्य शिशुम्) विलक्षण मनुष्य के बच्चे के रूप में (जज्ञानम जान बूझ कर प्रकट होता है तथा अपने तत्वज्ञान को (तम्) उस समय (मृजन्ति) निर्मलत के साथ (शुम्भन्ति) उच्चारण करता है। (वह्नि) प्रभु प्राप्ति की लगी विरह अग्नि वाले (मरुतः) मक्त (गणेन) समूह के लिए (काव्येना) कविताओं द्वारा कवित्व से (पवित्रम् अत्येति अत्यधिक वाणी निर्मलता के साथ (कविर गीर्भि) कविर वाणी अर्थात् कबीर वाणी द्वारा (रमन) ऊंचे स्वर से सम्बोधन करके बोलता है, (कविर् सन्त् सोमः) वह अमर पुरुष अर्थात सतपुरुष ही संत अर्थात् ऋषि रूप में स्वयं कविर्देव ही होता है। परन्तु उस परमात्मा को न पहचान कर कवि कहने लग जाते हैं। परन्तु वह पूर्ण परमात्मा ही होता है। उसका वास्तविक नाम कविर्देव है।
      भावार्थ : ऋग्वेद मण्डल नं. 9 सुक्त नं. 96 मन्त्र 16 में कहा है कि आओ पूर्ण परमात्मा के वास्तविक नाम को जाने
      इस मन्त्र 17 में उस परमात्मा का नाम व परिपूर्ण परिचय दिया है। वेद बोलने वाला ब्रह्म कह रहा है कि पूर्ण परमात्मा विलक्षण मनुष्य के बच्चों के रूप में प्रकट होकर कविर्देव अपने वास्तविक ज्ञान को अपनी कबीर बाणी के द्वारा निर्मल ज्ञान अपने हंसात्माओं अर्थात् पुण्यात्मा अनुयायियों को कविताओं, लोकोक्तियों के द्वारा सम्बोधन करके अर्थात् उच्चारण करके वर्णन करता है। इस तत्वज्ञान के अभाव से उस समय प्रकट परमात्मा को न पहचान कर केवल ऋषि व संत या कवि मान लेते हैं वह परमात्मा स्वयं भी कहता है कि मैं पूर्ण ब्रह्म हूँ परन्तु लोक वेद के आधार से परमात्मा को निराकार माने हुए प्रजाजन नहीं पहचानते जैसे गरीबदास जी महाराज ने काशी में प्रकट परमात्मा को पहचान कर उनकी महिमा कही तथा उस परमेश्वर द्वारा अपनी महिमा बताई थी उसका यथावत् वर्णन अपनी वाणी में किया :-
      गरीब, जाति हमारी जगत गुरू, परमेश्वर है पंथ। दास गरीब लिख पड़े, नाम निरंजन कंत ।।
      गरीब, हम ही अलख अल्लाह हैं, कुतुब गोस और पीर।
      गरीबदास खालिक धनी हमरा नाम कबीर ।।
      गरीब, ऐ स्वामी सृष्टा मैं, सृष्टि हमरे तीर।
      दास गरीब अघर बसूं, अविगत सत कबीर ।।
      इतना स्पष्ट करने पर भी उसे कवि या संत, भक्त या जुलाहा कहते हैं। परन्तु वह पूर्ण परमात्मा ही होता है। उसका वास्तविक नाम कविर्देव है। वह स्वयं सतपुरुष कबीर ही ऋषि या संत रूप में होता है। परन्तु तत्व ज्ञानहीन ऋषियों व संतों गुरूओं के अज्ञान सिद्धांत के आधार पर आधारित प्रजा उस समय अतिथि रूप में प्रकट परमात्मा को नहीं पहचानते क्योंकि उन अज्ञानी ऋषियों, संतों व गुरुओं में परमात्मा को निराकार बताया होता है।