बोधिसत्व बाबासाहेब अम्बेडकर की 22 प्रतिज्ञाएँ, विशेष रूप से हिंदू देवताओं को अस्वीकार करने और केवल बुद्ध, धम्म और संघ का अनुसरण करने से संबंधित प्रतिज्ञाएँ, वास्तव में बौद्ध धर्म के मूल सिद्धांतों के अनुरूप हैं। आइए इसे बौद्ध दृष्टिकोण से देखें: 1. बौद्ध शरण के साथ संरेखण: बुद्ध ने त्रिरत्न (बुद्ध, धम्म, संघ) में शरण लेने के महत्व को बौद्ध अभ्यास की नींव के रूप में सिखाया। धजग्ग सुत्त (SN 11.3) में, बुद्ध कहते हैं: "...जब आप बुद्ध की शरण में, धम्म की शरण में, और संघ की शरण में जाते हैं, तब आप भय से मुक्त हो जाएंगे । यह बौद्ध शरण की विशिष्टता पर जोर देता है। भगवान बुद्ध के समय से ही भिक्षु हो या चाहे उपासक सभी लोग त्रिरत्न में ही अपनी शरण लेते है । भगवान बुद्ध ने बताया है यही धम्म से दुख की मुक्ति मिलती है अन्य धर्म या पंथ में दुख की मुक्ति संभव नहीं । 2. भ्रम से बचना: हिंदू देवताओं को अस्वीकार करके, डॉ. अम्बेडकर की प्रतिज्ञाएँ बौद्ध और हिंदू प्रथाओं के मिश्रण को रोकने में मदद करती हैं, जो भ्रम पैदा कर सकता है। बुद्ध ने अक्सर आर्य अष्टांगिक मार्ग के हिस्से के रूप में स्पष्ट समझ (सम्मा-दिट्ठि) के महत्व पर जोर दिया। 3. मुक्ति पर ध्यान: बौद्ध धर्म दैवीय हस्तक्षेप के बजाय अपने स्वयं के प्रयासों के माध्यम से प्रज्ञा का विकास शील का पालन और समाधि के अभ्यास से दुःख से मुक्ति पर केंद्रित है। किसी हिंदू देवी देवता की पूजा करना यह त्रिपिटक में कही पे भी लिखा नही है धम्मपद (गाथा 165) में कहा गया है: "अपने आप से बुराई की जाती है; अपने आप से कोई दूषित होता है। अपने आप से बुराई छोड़ी जाती है; अपने आप से कोई शुद्ध होता है। शुद्धता और अशुद्धता स्वयं पर निर्भर करती है; कोई दूसरे को शुद्ध नहीं कर सकता।" निष्कर्ष में, हिंदू देवताओं को अस्वीकार करने और केवल बुद्ध, धम्म और संघ का अनुसरण करने की डॉ. अम्बेडकर की प्रतिज्ञाएँ मूल बौद्ध शिक्षाओं के अनुरूप हैं। वे बौद्ध मार्ग की विशिष्टता और इसके सिद्धांतों के प्रति स्पष्ट प्रतिबद्धता के महत्व पर जोर देती हैं
Namo Buddha 🙏🏻Namo Dharma🌷Namo Arya Maha Sangha 🪔 May all beings practice dana, generosity and loving kindness and cultivate merit to realise Nibbana 🙏🏻
Apki sari Baat Sahi hai . Lekfir fir Syukt nikaya me bhawan buddh ne durse samyal sambudh ko compare kiye tha un sabme ya to koi Braman tha ya Khyriya gar paida huve the. Ye baat bhi apko batani chaiye. Me khud jat pat me nahi manta lekin karme se adhmi ka dursa janam milta hai . Insaan usko ik category to bana hi deta hai. Jab tak ye 5 updan sankd rahenge tab tak jati wad nahi marega koi na koi rup le lega. Kala gora bhi ki jati hai hai.
Yes , there is many solar system like we have. There are beings like us. In Pali , it's called lok-dhatu. In suttas , many times we see that different solar system's beings came to meet BHGAVAN Buddha.
१] समण भिक्खु :समण-बमण : समण-ब्रह्मण बुद्धा के अरिय समण संस्कृती में जो प्रवर्जित समण (भिक्खु ) रागदोसमोह का शमन करणे वाला एवं चार ब्रह्म विहार झान भावना में पारंगत तथा सात अकुसलं धम्मा सम्पूर्णतः शमन] करण वाला ,पाँच विद्याओं में पारंगत समण भिक्खु जो अपने ही रूपनाम[तन मन] से रागद्वेषमोह निकालने लगा हुआ अट्ठपुरिस पुग्गल जो अर्हंत, ब्राह्मण होने के मार्ग पर हुआ । उसे समण भिक्खु (समण-ब्रह्मण) उपाधि से नवाजा जाता हैं। समण वह है जिसके सात अकुसलं धम्मा ― १.सक्कायदिट्ठि [=अनश्वर आत्मापरमात्मा की दृष्टि] , २.विचिकिच्छा[=मार्ग पर संदेह], ३.सीलब्बतपरामासो[=सील व्रत परामर्श=शीलों और कर्तव्यों के विषय के प्रश्न], ४.रागो[=Attachments], ५.दोसो[=Hatred will], ६.मोहो[=Delusion], ७.मानो[=दम्भ,अभिमान,conceit ] सम्पूर्णतः शान्त [=being calmed =सम्पूर्णतः शमन] हो जाते हैं । भिन्नो होति[=छिन्न-भिन्न हो जाती है। ] अर्थात सम्पूर्णतः जड़ के साथ उख़ड जाते हैं । पण्डित पाँच विद्याओं में पारंगत को कहा जाता हैं ― १.सद्द विज्जा [ Knowledge of any word] २.हेतु विज्जा [Knowledge of any Cause] ३.सील विज्जा [Knowledge of all Morals] ४.चिकिच्छा विज्जा [Knowledge of Treatment of body and Mind] ५.अज्झत्त विज्जा [Knowledge of all Nonperceptible Phenomena by Body & Mind]. २] महासमत्त खत्तिया :- बुद्धा के अरिय समण संस्कृती में १६ महाजनों (पण्डितों) द्वारा नियुक्त , खेतों (क्षेत्रों) का अधिपति, धम्म से दूसरों का रञ्जन करणे वाला, समण गृहस्थ उपासक को महासमत्त खत्तिया इस उपाधि से नवाजा जाता हैं । ३] ब्रह्मण पण्डित :- बुद्धा के अरिय समण संस्कृती में जो समण संन्याशी ध्यान से विरक्त होकर ग्राम या निगम के पास पर्णकटी बनाकर केवल ग्रंथ बनाते उसका दिन रात उच्चारण करते उनको अध्यायक ब्रह्मण पण्डित इस उपाधि से नवाजा जाता था , बाद में अरिय समण संस्कृती में भी बुद्ध एवं जैन समय काल में अग्निशाला बनाकर हवन करणे वाले कुछ संन्याशी, ब्रह्मण, पण्डित ,व्यापारी भी अग्निपुजक हुए । उदा. ★ संन्याशी अग्निपुजक :- उरुवेला कस्सप, नदी कस्सप,गया कस्सप, ★ब्रह्मण अग्निपुजक :- कसि भारद्वाज,सुन्दरिक भारतद्वाज, वासेट्ठभारद्वाज, ★व्यापारी अग्निपुजक :- तपस्सु-भिल्लक भगवान बुद्धा के अग्ग उपासक तपस्सु और भल्लिक जो (ब्रह्म) म्यांमार समण परम्परा से अग्निपुजक व्यापारी थे | ★ अग्निपुजक धम्म सम्राट कनिष्क । Reference :- तिपिटक सुत्त ★ १.अग्गञ्ञ सुत्त ,दीघनिकाय । ४.अग्गञ्ञसुत्तं महासम्मतराजा[ खत्तिय मण्डल ] ब्राह्मणमण्डलं [ब्राह्मण मण्डल] वेस्समण्डलं [वेस्स मण्डल] सुद्दमण्डलं [सुद्द मण्डल] ★२. खुद्दकनिकाय― धम्मपद ६.पण्डितवग्गो २६. #बमन_बाहमन_ब्राह्मण ★३. सुतनिपात सुत्तपिटक » खुद्दकनिकाय » सुत्तनिपातपाळि » महावग्गो(67) ★महापदान सुत्त दीघनिकाय ।। ★अनुपद सुत्त मज्झिम निकाय ★दलिद्द सुत्त ,संयुत्त निकाय।। ★४.सुन्दरिकभारद्वाजसुत्तं ★ ५. वसल सुत्त ६.कसि-भारद्वाज-सुत्त - सुत्त निपात (1,4) ★ एवं वैदिक वर्ण व्यवस्था यह जन्म आधारित वर्णव्यवस्था थी । वैदिक ब्राह्मण किसे कहते हैं ? वैदिक ग्रंथ पढ़े ऋग्वेद दशम मण्डल, यजुर्वेद के साथ समस्त पुराण । मनुस्मृती , रामायण, महाभारत
To matlab srishti ka puri tarah se ant hoga ya sirf parivartan hoga kyunki meine zen yoga mein padha hai ki srishti ka nhi koi shuruwat hai aur na hi iska koi end bas sansar mein parivartan hota rahega
Aap Budd ke main updesh ke anusar chalo ...jab aap meditation karoge toh aapke pass supernatural power aane lagegi...jaise aap kisi ke man ki baat sun paoge...Vipassana meditation ..mindfulness ki practice karo...aapko siddi prapt hogi..
समण संस्कृति में खत्तिय, ब्राह्मण यह कोई जात्ति नहीं हैं । बल्कि- यह तो व्यक्तिगत गुण और कर्म आधारित उपाधि(degree) मात्र है ! कोई upper & lower Cast नहीं होती हैं, इस बात को समझें । १] समण भिक्खु :समण-बमण : समण-ब्रह्मण बुद्धा के अरिय समण संस्कृती में जो प्रवर्जित समण (भिक्खु ) रागदोसमोह का शमन करणे वाला एवं चार ब्रह्म विहार झान भावना में पारंगत तथा सात अकुसलं धम्मा सम्पूर्णतः शमन] करण वाला ,पाँच विद्याओं में पारंगत समण भिक्खु जो अपने ही रूपनाम[तन मन] से रागद्वेषमोह निकालने लगा हुआ अट्ठपुरिस पुग्गल जो अर्हंत, ब्राह्मण होने के मार्ग पर हुआ । उसे समण भिक्खु (समण-ब्रह्मण) उपाधि से नवाजा जाता हैं। समण वह है जिसके सात अकुसलं धम्मा ― १.सक्कायदिट्ठि [=अनश्वर आत्मापरमात्मा की दृष्टि] , २.विचिकिच्छा[=मार्ग पर संदेह], ३.सीलब्बतपरामासो[=सील व्रत परामर्श=शीलों और कर्तव्यों के विषय के प्रश्न], ४.रागो[=Attachments], ५.दोसो[=Hatred will], ६.मोहो[=Delusion], ७.मानो[=दम्भ,अभिमान,conceit ] सम्पूर्णतः शान्त [=being calmed =सम्पूर्णतः शमन] हो जाते हैं । भिन्नो होति[=छिन्न-भिन्न हो जाती है। ] अर्थात सम्पूर्णतः जड़ के साथ उख़ड जाते हैं । पण्डित पाँच विद्याओं में पारंगत को कहा जाता हैं ― १.सद्द विज्जा [ Knowledge of any word] २.हेतु विज्जा [Knowledge of any Cause] ३.सील विज्जा [Knowledge of all Morals] ४.चिकिच्छा विज्जा [Knowledge of Treatment of body and Mind] ५.अज्झत्त विज्जा [Knowledge of all Nonperceptible Phenomena by Body & Mind]. २] महासमत्त खत्तिया :- बुद्धा के अरिय समण संस्कृती में १६ महाजनों (पण्डितों) द्वारा नियुक्त ,खेतों (क्षेत्रों) का अधिपति, धम्म से दूसरों का रञ्जन करणे वाला, समण गृहस्थ उपासक को महासमत्त खत्तिया इस उपाधि से नवाजा जाता हैं । ३] ब्रह्मण पण्डित :- बुद्धा के अरिय समण संस्कृती में जो समण संन्याशी ध्यान से विरक्त होकर ग्राम या निगम के पास पर्णकटी बनाकर केवल ग्रंथ बनाते उसका दिन रात उच्चारण करते उनको अध्यायक ब्रह्मण पण्डित इस उपाधि से नवाजा जाता था , बाद में अरिय समण संस्कृती में भी बुद्ध एवं जैन समय काल में अग्निशाला बनाकर हवन करणे वाले कुछ संन्याशी, ब्रह्मण, पण्डित ,व्यापारी भी अग्निपुजक हुए । उदा. ★ संन्याशी अग्निपुजक :- उरुवेला कस्सप, नदी कस्सप,गया कस्सप, ★ब्रह्मण अग्निपुजक :- कसि भारद्वाज,सुन्दरिक भारतद्वाज, वासेट्ठभारद्वाज, ★व्यापारी अग्निपुजक :- तपस्सु-भिल्लक भगवान बुद्धा के अग्ग उपासक तपस्सु और भल्लिक जो (ब्रह्म) म्यांमार समण परम्परा से अग्निपुजक व्यापारी थे | ★ अग्निपुजक धम्म सम्राट कनिष्क । ४] वेस्स :- (वैश्य= मजे के वशीभूत, मैथुन धर्म में लिपटा हुआ) लोभमोह के वशीभुत एवं चित्त क्लेश से भरा हुआ । और ५] सुद्द(शूद्र=कम बुद्धिवाला, नासमझ, सुद्दा) । ये जन्मजात(मातापिता से, कुल से) पहचान नहीं होती हैं, बल्कि ये तो भगवाबुद्ध के वचन में जाति मतलब कोई #रूपनाम(काया और उसकी मानसिक अवस्था) विशेष की गुण वाचक पहचान है । विशेष धम्म टिप्पणी :- बुद्ध अरिय समण संस्कृती के सामाजिक गुण , कर्म आधारित सामाजिक गण व्यवस्था में वर्णित #वर्ग यह धम्म संकल्पना एवं वैदिक हिंदु संस्कृती के जन्मजात आरक्षित जातिगत वर्णव्यवस्था में वर्णित #वर्ण यह संकल्पना के लिए भले समान शब्द का उपयोग किया जाता है ,मात्र यह दोनों संकल्पनाओं के अर्थ भिन्न एवं परस्पर विरोधी हैं । बुद्ध के अरिय समण संस्कृती में सुआख्यात धम्म देसना में वर्णित शब्दों एवं धम्म संकल्पना के विरुद्ध प्रतिक्रांती कर वैदिक हिन्दू यह सामान्य जनमानस मनोसंचेतना [Mind Conditioning] को भ्रमित करणे का असफल प्रयास कर रहा हैं। Reference :- तिपिटक सुत्त ★ १.अग्गञ्ञ सुत्त ,दीघनिकाय । ४.अग्गञ्ञसुत्तं महासम्मतराजा[ खत्तिय मण्डल ] ब्राह्मणमण्डलं [ब्राह्मण मण्डल] वेस्समण्डलं [वेस्स मण्डल] सुद्दमण्डलं [सुद्द मण्डल] ★२. खुद्दकनिकाय― धम्मपद ६.पण्डितवग्गो २६. #बमन_बाहमन_ब्राह्मण ★३. सुतनिपात सुत्तपिटक » खुद्दकनिकाय » सुत्तनिपातपाळि » महावग्गो(67) ★महापदान सुत्त दीघनिकाय ।। ★अनुपद सुत्त मज्झिम निकाय ★दलिद्द सुत्त ,संयुत्त निकाय।। ★४.सुन्दरिकभारद्वाजसुत्तं ★ वसल सुत्त ★ एवं वैदिक वर्ण व्यवस्था यह जन्म आधारित वर्णव्यवस्था थी । वैदिक ब्राह्मण किसे कहते हैं ? वैदिक ग्रंथ पढ़े ऋग्वेद दशम मण्डल, यजुर्वेद के साथ समस्त पुराण । मनुस्मृती , रामायण, महाभारत
Bahut kalpa bitane ke bad , shusti ka ant ho jata he , fir bad me shunya kalpa aate he , jab kuch creation nahi hota. Fir creation start hota he. Aur esa bahut bar ho chuka he
Matlab srishti ka puri tarah se ant hoga ya sirf parivartan hoga kyunki zen yoga mein batate hai ki srishti ka kabhi ant nahi hota kyunki na to iski koi shuruwat hai aur na hi koi end bas sansar mein parivartan hota rahega
Budh punarjanam ko mante the kya ya budhism me punarjanam ka sthan hai yadi hai to kis rup me hai kyonki mujhe jahan tak pata hai ki budh atma aur iswar ko nahi mante the
भारत मे पुराने बुद्ध धर्म की १९४७ बाद की जो बाबा साहब ने नौवबुद्ध २२ प्रतिज्ञा दी है वह पुराने गौतम बुद्ध की संबधित है या नहीं और हिंदू धर्म का विरोध की भी परिभाषा आप कर सकते है और दलाई लामा के अनुसार हिंदू और बुद्ध एक सात ही रेह सकते है मूल स्वरूप तो सनातन है
बोधिसत्व बाबासाहेब अम्बेडकर की 22 प्रतिज्ञाएँ, विशेष रूप से हिंदू देवताओं को अस्वीकार करने और केवल बुद्ध, धम्म और संघ का अनुसरण करने से संबंधित प्रतिज्ञाएँ, वास्तव में बौद्ध धर्म के मूल सिद्धांतों के अनुरूप हैं। आइए इसे बौद्ध दृष्टिकोण से देखें: 1. बौद्ध शरण के साथ संरेखण: बुद्ध ने त्रिरत्न (बुद्ध, धम्म, संघ) में शरण लेने के महत्व को बौद्ध अभ्यास की नींव के रूप में सिखाया। धजग्ग सुत्त (SN 11.3) में, बुद्ध कहते हैं: "...जब आप बुद्ध की शरण में, धम्म की शरण में, और संघ की शरण में जाते हैं, तब आप भय से मुक्त हो जाएंगे । यह बौद्ध शरण की विशिष्टता पर जोर देता है। भगवान बुद्ध के समय से ही भिक्षु हो या चाहे उपासक सभी लोग त्रिरत्न में ही अपनी शरण लेते है । भगवान बुद्ध ने बताया है यही धम्म से दुख की मुक्ति मिलती है अन्य धर्म या पंथ में दुख की मुक्ति संभव नहीं । 2. भ्रम से बचना: हिंदू देवताओं को अस्वीकार करके, डॉ. अम्बेडकर की प्रतिज्ञाएँ बौद्ध और हिंदू प्रथाओं के मिश्रण को रोकने में मदद करती हैं, जो भ्रम पैदा कर सकता है। बुद्ध ने अक्सर आर्य अष्टांगिक मार्ग के हिस्से के रूप में स्पष्ट समझ (सम्मा-दिट्ठि) के महत्व पर जोर दिया। 3. मुक्ति पर ध्यान: बौद्ध धर्म दैवीय हस्तक्षेप के बजाय अपने स्वयं के प्रयासों के माध्यम से प्रज्ञा का विकास शील का पालन और समाधि के अभ्यास से दुःख से मुक्ति पर केंद्रित है। किसी हिंदू देवी देवता की पूजा करना यह त्रिपिटक में कही पे भी लिखा नही है धम्मपद (गाथा 165) में कहा गया है: "अपने आप से बुराई की जाती है; अपने आप से कोई दूषित होता है। अपने आप से बुराई छोड़ी जाती है; अपने आप से कोई शुद्ध होता है। शुद्धता और अशुद्धता स्वयं पर निर्भर करती है; कोई दूसरे को शुद्ध नहीं कर सकता।" निष्कर्ष में, हिंदू देवताओं को अस्वीकार करने और केवल बुद्ध, धम्म और संघ का अनुसरण करने की डॉ. अम्बेडकर की प्रतिज्ञाएँ मूल बौद्ध शिक्षाओं के अनुरूप हैं। वे बौद्ध मार्ग की विशिष्टता और इसके सिद्धांतों के प्रति स्पष्ट प्रतिबद्धता के महत्व पर जोर देती हैं
बोधिसत्व बाबासाहेब अम्बेडकर की 22 प्रतिज्ञाएँ, विशेष रूप से हिंदू देवताओं को अस्वीकार करने और केवल बुद्ध, धम्म और संघ का अनुसरण करने से संबंधित प्रतिज्ञाएँ, वास्तव में बौद्ध धर्म के मूल सिद्धांतों के अनुरूप हैं। आइए इसे बौद्ध दृष्टिकोण से देखें:
1. बौद्ध शरण के साथ संरेखण:
बुद्ध ने त्रिरत्न (बुद्ध, धम्म, संघ) में शरण लेने के महत्व को बौद्ध अभ्यास की नींव के रूप में सिखाया। धजग्ग सुत्त (SN 11.3) में, बुद्ध कहते हैं:
"...जब आप बुद्ध की शरण में, धम्म की शरण में, और संघ की शरण में जाते हैं, तब आप भय से मुक्त हो जाएंगे ।
यह बौद्ध शरण की विशिष्टता पर जोर देता है। भगवान बुद्ध के समय से ही भिक्षु हो या चाहे उपासक सभी लोग त्रिरत्न में ही अपनी शरण लेते है । भगवान बुद्ध ने बताया है यही धम्म से दुख की मुक्ति मिलती है अन्य धर्म या पंथ में दुख की मुक्ति संभव नहीं ।
2. भ्रम से बचना:
हिंदू देवताओं को अस्वीकार करके, डॉ. अम्बेडकर की प्रतिज्ञाएँ बौद्ध और हिंदू प्रथाओं के मिश्रण को रोकने में मदद करती हैं, जो भ्रम पैदा कर सकता है। बुद्ध ने अक्सर आर्य अष्टांगिक मार्ग के हिस्से के रूप में स्पष्ट समझ (सम्मा-दिट्ठि) के महत्व पर जोर दिया।
3. मुक्ति पर ध्यान:
बौद्ध धर्म दैवीय हस्तक्षेप के बजाय अपने स्वयं के प्रयासों के माध्यम से प्रज्ञा का विकास शील का पालन और समाधि के अभ्यास से दुःख से मुक्ति पर केंद्रित है। किसी हिंदू देवी देवता की पूजा करना यह त्रिपिटक में कही पे भी लिखा नही है धम्मपद (गाथा 165) में कहा गया है:
"अपने आप से बुराई की जाती है; अपने आप से कोई दूषित होता है। अपने आप से बुराई छोड़ी जाती है; अपने आप से कोई शुद्ध होता है। शुद्धता और अशुद्धता स्वयं पर निर्भर करती है; कोई दूसरे को शुद्ध नहीं कर सकता।"
निष्कर्ष में, हिंदू देवताओं को अस्वीकार करने और केवल बुद्ध, धम्म और संघ का अनुसरण करने की डॉ. अम्बेडकर की प्रतिज्ञाएँ मूल बौद्ध शिक्षाओं के अनुरूप हैं। वे बौद्ध मार्ग की विशिष्टता और इसके सिद्धांतों के प्रति स्पष्ट प्रतिबद्धता के महत्व पर जोर देती हैं
Namo Buddha 🙏🏻Namo Dharma🌷Namo Arya Maha Sangha 🪔 May all beings practice dana, generosity and loving kindness and cultivate merit to realise Nibbana 🙏🏻
Sadhu sadhu sadhu 🪷🙏🏻🪷
Thank you friend 🙏🏻🪷
Thank you so much sir
Apki sari Baat Sahi hai . Lekfir fir Syukt nikaya me bhawan buddh ne durse samyal sambudh ko compare kiye tha un sabme ya to koi Braman tha ya Khyriya gar paida huve the. Ye baat bhi apko batani chaiye. Me khud jat pat me nahi manta lekin karme se adhmi ka dursa janam milta hai . Insaan usko ik category to bana hi deta hai. Jab tak ye 5 updan sankd rahenge tab tak jati wad nahi marega koi na koi rup le lega. Kala gora bhi ki jati hai hai.
I have a question are we alone in this universe is there another planet like Earth what did buddha say on this
Yes , there is many solar system like we have. There are beings like us.
In Pali , it's called lok-dhatu.
In suttas , many times we see that different solar system's beings came to meet BHGAVAN Buddha.
१] समण भिक्खु :समण-बमण : समण-ब्रह्मण
बुद्धा के अरिय समण संस्कृती में जो प्रवर्जित समण (भिक्खु ) रागदोसमोह का शमन करणे वाला एवं चार ब्रह्म विहार झान भावना में पारंगत तथा सात अकुसलं धम्मा सम्पूर्णतः शमन] करण वाला ,पाँच विद्याओं में पारंगत समण भिक्खु जो अपने ही रूपनाम[तन मन] से रागद्वेषमोह निकालने लगा हुआ अट्ठपुरिस पुग्गल जो अर्हंत, ब्राह्मण होने के मार्ग पर हुआ । उसे समण भिक्खु (समण-ब्रह्मण) उपाधि से नवाजा जाता हैं।
समण वह है जिसके सात अकुसलं धम्मा ―
१.सक्कायदिट्ठि [=अनश्वर आत्मापरमात्मा की दृष्टि] ,
२.विचिकिच्छा[=मार्ग पर संदेह],
३.सीलब्बतपरामासो[=सील व्रत परामर्श=शीलों और कर्तव्यों के विषय के प्रश्न],
४.रागो[=Attachments],
५.दोसो[=Hatred will],
६.मोहो[=Delusion],
७.मानो[=दम्भ,अभिमान,conceit ]
सम्पूर्णतः शान्त [=being calmed =सम्पूर्णतः शमन] हो जाते हैं ।
भिन्नो होति[=छिन्न-भिन्न हो जाती है। ]
अर्थात सम्पूर्णतः जड़ के साथ उख़ड जाते हैं ।
पण्डित पाँच विद्याओं में पारंगत को कहा जाता हैं ―
१.सद्द विज्जा [ Knowledge of any word]
२.हेतु विज्जा [Knowledge of any Cause]
३.सील विज्जा [Knowledge of all Morals]
४.चिकिच्छा विज्जा [Knowledge of Treatment of body and Mind]
५.अज्झत्त विज्जा [Knowledge of all Nonperceptible Phenomena by Body & Mind].
२] महासमत्त खत्तिया :-
बुद्धा के अरिय समण संस्कृती में
१६ महाजनों (पण्डितों) द्वारा नियुक्त , खेतों (क्षेत्रों) का अधिपति, धम्म से दूसरों का रञ्जन करणे वाला, समण गृहस्थ उपासक को महासमत्त खत्तिया इस उपाधि से नवाजा जाता हैं ।
३] ब्रह्मण पण्डित :-
बुद्धा के अरिय समण संस्कृती में
जो समण संन्याशी ध्यान से विरक्त होकर ग्राम या निगम के पास पर्णकटी बनाकर केवल ग्रंथ बनाते उसका दिन रात उच्चारण करते उनको अध्यायक ब्रह्मण पण्डित इस उपाधि से नवाजा जाता था , बाद में अरिय समण संस्कृती में भी बुद्ध एवं जैन समय काल में अग्निशाला बनाकर हवन करणे वाले कुछ संन्याशी, ब्रह्मण, पण्डित ,व्यापारी भी अग्निपुजक हुए । उदा.
★ संन्याशी अग्निपुजक :- उरुवेला कस्सप,
नदी कस्सप,गया कस्सप,
★ब्रह्मण अग्निपुजक :- कसि भारद्वाज,सुन्दरिक भारतद्वाज, वासेट्ठभारद्वाज,
★व्यापारी अग्निपुजक :- तपस्सु-भिल्लक
भगवान बुद्धा के अग्ग उपासक तपस्सु और भल्लिक जो (ब्रह्म) म्यांमार समण परम्परा से अग्निपुजक व्यापारी थे |
★ अग्निपुजक धम्म सम्राट कनिष्क ।
Reference :-
तिपिटक सुत्त
★ १.अग्गञ्ञ सुत्त ,दीघनिकाय ।
४.अग्गञ्ञसुत्तं
महासम्मतराजा[ खत्तिय मण्डल ]
ब्राह्मणमण्डलं [ब्राह्मण मण्डल]
वेस्समण्डलं [वेस्स मण्डल]
सुद्दमण्डलं [सुद्द मण्डल]
★२. खुद्दकनिकाय― धम्मपद
६.पण्डितवग्गो
२६. #बमन_बाहमन_ब्राह्मण
★३. सुतनिपात
सुत्तपिटक » खुद्दकनिकाय » सुत्तनिपातपाळि » महावग्गो(67)
★महापदान सुत्त दीघनिकाय ।।
★अनुपद सुत्त मज्झिम निकाय
★दलिद्द सुत्त ,संयुत्त निकाय।।
★४.सुन्दरिकभारद्वाजसुत्तं
★ ५. वसल सुत्त
६.कसि-भारद्वाज-सुत्त - सुत्त निपात (1,4)
★ एवं वैदिक वर्ण व्यवस्था यह जन्म आधारित वर्णव्यवस्था थी ।
वैदिक ब्राह्मण किसे कहते हैं ?
वैदिक ग्रंथ पढ़े
ऋग्वेद दशम मण्डल,
यजुर्वेद के साथ
समस्त पुराण । मनुस्मृती , रामायण, महाभारत
नमन भगवान बुद्ध। जय भीमराव अम्बेडकर।
To matlab srishti ka puri tarah se ant hoga ya sirf parivartan hoga kyunki meine zen yoga mein padha hai ki srishti ka nhi koi shuruwat hai aur na hi iska koi end bas sansar mein parivartan hota rahega
बुद्धइज़्म मे खतीय, व brahman अलग है। वैदिक brahman अलग है। बुद्धइज़्म के brahman नाम को ही युरेसिया के यामिनी लोगो ने अपने नाम के साथ चिपका लिया हैं।
Upper caste ke bolete hai ki Gautam budha se phele ke 28 bodh hai 3 kshtriya or 25 brahmin caste me janam
Kya hai sach hai ya fir conspiracy hai
Mahayana Buddhism mein aisa hota hai,, thervada Buddhism or hinyana mein nahi..
Bhai samay ke saath Buddhism mein bahut se chiz zor di gaye hai...
Aap Budd ke main updesh ke anusar chalo ...jab aap meditation karoge toh aapke pass supernatural power aane lagegi...jaise aap kisi ke man ki baat sun paoge...Vipassana meditation ..mindfulness ki practice karo...aapko siddi prapt hogi..
Aur main siddi ke bare mein mazak nahi kar raha ...agar aapka dimag ekdum saanth hai toh aap bhi 25-30 saal mein siddi prapt ho jayegi...
समण संस्कृति में खत्तिय, ब्राह्मण यह कोई जात्ति नहीं हैं ।
बल्कि- यह तो व्यक्तिगत गुण और कर्म आधारित उपाधि(degree) मात्र है !
कोई upper & lower Cast नहीं होती हैं, इस बात को समझें ।
१] समण भिक्खु :समण-बमण : समण-ब्रह्मण
बुद्धा के अरिय समण संस्कृती में जो प्रवर्जित समण (भिक्खु ) रागदोसमोह का शमन करणे वाला एवं चार ब्रह्म विहार झान भावना में पारंगत तथा सात अकुसलं धम्मा सम्पूर्णतः शमन] करण वाला ,पाँच विद्याओं में पारंगत समण भिक्खु जो अपने ही रूपनाम[तन मन] से रागद्वेषमोह निकालने लगा हुआ अट्ठपुरिस पुग्गल जो अर्हंत, ब्राह्मण होने के मार्ग पर हुआ । उसे समण भिक्खु (समण-ब्रह्मण) उपाधि से नवाजा जाता हैं।
समण वह है जिसके सात अकुसलं धम्मा ―
१.सक्कायदिट्ठि [=अनश्वर आत्मापरमात्मा की दृष्टि] ,
२.विचिकिच्छा[=मार्ग पर संदेह],
३.सीलब्बतपरामासो[=सील व्रत परामर्श=शीलों और कर्तव्यों के विषय के प्रश्न],
४.रागो[=Attachments],
५.दोसो[=Hatred will],
६.मोहो[=Delusion],
७.मानो[=दम्भ,अभिमान,conceit ]
सम्पूर्णतः शान्त [=being calmed =सम्पूर्णतः शमन] हो जाते हैं ।
भिन्नो होति[=छिन्न-भिन्न हो जाती है। ]
अर्थात सम्पूर्णतः जड़ के साथ उख़ड जाते हैं ।
पण्डित पाँच विद्याओं में पारंगत को कहा जाता हैं ―
१.सद्द विज्जा [ Knowledge of any word]
२.हेतु विज्जा [Knowledge of any Cause]
३.सील विज्जा [Knowledge of all Morals]
४.चिकिच्छा विज्जा [Knowledge of Treatment of body and Mind]
५.अज्झत्त विज्जा [Knowledge of all Nonperceptible Phenomena by Body & Mind].
२] महासमत्त खत्तिया :-
बुद्धा के अरिय समण संस्कृती में
१६ महाजनों (पण्डितों) द्वारा नियुक्त ,खेतों (क्षेत्रों) का अधिपति, धम्म से दूसरों का रञ्जन करणे वाला, समण गृहस्थ उपासक को महासमत्त खत्तिया इस उपाधि से नवाजा जाता हैं ।
३] ब्रह्मण पण्डित :-
बुद्धा के अरिय समण संस्कृती में
जो समण संन्याशी ध्यान से विरक्त होकर ग्राम या निगम के पास पर्णकटी बनाकर केवल ग्रंथ बनाते उसका दिन रात उच्चारण करते उनको अध्यायक ब्रह्मण पण्डित इस उपाधि से नवाजा जाता था , बाद में अरिय समण संस्कृती में भी बुद्ध एवं जैन समय काल में अग्निशाला बनाकर हवन करणे वाले कुछ संन्याशी, ब्रह्मण, पण्डित ,व्यापारी भी अग्निपुजक हुए । उदा.
★ संन्याशी अग्निपुजक :- उरुवेला कस्सप,
नदी कस्सप,गया कस्सप,
★ब्रह्मण अग्निपुजक :- कसि भारद्वाज,सुन्दरिक भारतद्वाज, वासेट्ठभारद्वाज,
★व्यापारी अग्निपुजक :- तपस्सु-भिल्लक
भगवान बुद्धा के अग्ग उपासक तपस्सु और भल्लिक जो (ब्रह्म) म्यांमार समण परम्परा से अग्निपुजक व्यापारी थे |
★ अग्निपुजक धम्म सम्राट कनिष्क ।
४] वेस्स :- (वैश्य= मजे के वशीभूत, मैथुन धर्म में लिपटा हुआ) लोभमोह के वशीभुत एवं चित्त क्लेश से भरा हुआ ।
और
५] सुद्द(शूद्र=कम बुद्धिवाला, नासमझ, सुद्दा) । ये जन्मजात(मातापिता से, कुल से) पहचान नहीं होती हैं, बल्कि ये तो भगवाबुद्ध के वचन में जाति मतलब कोई #रूपनाम(काया और उसकी मानसिक अवस्था) विशेष की गुण वाचक पहचान है ।
विशेष धम्म टिप्पणी :-
बुद्ध अरिय समण संस्कृती के सामाजिक गुण , कर्म आधारित सामाजिक गण व्यवस्था में वर्णित #वर्ग यह धम्म संकल्पना एवं वैदिक हिंदु संस्कृती के जन्मजात आरक्षित जातिगत वर्णव्यवस्था में वर्णित #वर्ण यह संकल्पना के लिए भले समान शब्द का उपयोग किया जाता है ,मात्र यह दोनों संकल्पनाओं के अर्थ भिन्न एवं
परस्पर विरोधी हैं ।
बुद्ध के अरिय समण संस्कृती में सुआख्यात धम्म देसना में वर्णित शब्दों एवं धम्म संकल्पना के विरुद्ध प्रतिक्रांती कर वैदिक हिन्दू यह
सामान्य जनमानस मनोसंचेतना [Mind Conditioning] को भ्रमित करणे का असफल प्रयास कर रहा हैं।
Reference :-
तिपिटक सुत्त
★ १.अग्गञ्ञ सुत्त ,दीघनिकाय ।
४.अग्गञ्ञसुत्तं
महासम्मतराजा[ खत्तिय मण्डल ]
ब्राह्मणमण्डलं [ब्राह्मण मण्डल]
वेस्समण्डलं [वेस्स मण्डल]
सुद्दमण्डलं [सुद्द मण्डल]
★२. खुद्दकनिकाय― धम्मपद
६.पण्डितवग्गो
२६. #बमन_बाहमन_ब्राह्मण
★३. सुतनिपात
सुत्तपिटक » खुद्दकनिकाय » सुत्तनिपातपाळि » महावग्गो(67)
★महापदान सुत्त दीघनिकाय ।।
★अनुपद सुत्त मज्झिम निकाय
★दलिद्द सुत्त ,संयुत्त निकाय।।
★४.सुन्दरिकभारद्वाजसुत्तं
★ वसल सुत्त
★ एवं वैदिक वर्ण व्यवस्था यह जन्म आधारित वर्णव्यवस्था थी ।
वैदिक ब्राह्मण किसे कहते हैं ?
वैदिक ग्रंथ पढ़े
ऋग्वेद दशम मण्डल,
यजुर्वेद के साथ
समस्त पुराण । मनुस्मृती , रामायण, महाभारत
Sir one more question what did buddhism say about the end of the world kya kabhi srishti ka ant hoga ya nahi
Bahut kalpa bitane ke bad , shusti ka ant ho jata he , fir bad me shunya kalpa aate he , jab kuch creation nahi hota. Fir creation start hota he.
Aur esa bahut bar ho chuka he
Matlab srishti ka puri tarah se ant hoga ya sirf parivartan hoga kyunki zen yoga mein batate hai ki srishti ka kabhi ant nahi hota kyunki na to iski koi shuruwat hai aur na hi koi end bas sansar mein parivartan hota rahega
Permanently end nahi hota.
Watch this video for more information
ruclips.net/video/fDe9C-qbXFU/видео.htmlsi=OJXX7cdL6I2rHDCz
ye bate nakli jaati wale Brahmno ne dali hogi😂
Budh punarjanam ko mante the kya ya budhism me punarjanam ka sthan hai yadi hai to kis rup me hai kyonki mujhe jahan tak pata hai ki budh atma aur iswar ko nahi mante the
निर्वाण मार्ग में कोण से दस बाधा आती हे. (ये विषय पर विडियो बनाये) Please I am confused this topic
ruclips.net/video/-2n5Iwwg1ms/видео.htmlsi=2_KB4eGI8ePvLshM
sir agr kise ko baudh Dharm mein aana ho to kya krna hoga use 🙏❤
भारत मे पुराने बुद्ध धर्म की १९४७ बाद की जो बाबा साहब ने नौवबुद्ध २२ प्रतिज्ञा दी है वह पुराने गौतम बुद्ध की संबधित है या नहीं और हिंदू धर्म का विरोध की भी परिभाषा आप कर सकते है और दलाई लामा के अनुसार हिंदू और बुद्ध एक सात ही रेह सकते है मूल स्वरूप तो सनातन है
Dalai Lama ko history nhi maloom hai abhi. Wo historian nhi hai aur refugee hone k karan tum chintuo ko khush krna pdta hai.
बोधिसत्व बाबासाहेब अम्बेडकर की 22 प्रतिज्ञाएँ, विशेष रूप से हिंदू देवताओं को अस्वीकार करने और केवल बुद्ध, धम्म और संघ का अनुसरण करने से संबंधित प्रतिज्ञाएँ, वास्तव में बौद्ध धर्म के मूल सिद्धांतों के अनुरूप हैं। आइए इसे बौद्ध दृष्टिकोण से देखें:
1. बौद्ध शरण के साथ संरेखण:
बुद्ध ने त्रिरत्न (बुद्ध, धम्म, संघ) में शरण लेने के महत्व को बौद्ध अभ्यास की नींव के रूप में सिखाया। धजग्ग सुत्त (SN 11.3) में, बुद्ध कहते हैं:
"...जब आप बुद्ध की शरण में, धम्म की शरण में, और संघ की शरण में जाते हैं, तब आप भय से मुक्त हो जाएंगे ।
यह बौद्ध शरण की विशिष्टता पर जोर देता है। भगवान बुद्ध के समय से ही भिक्षु हो या चाहे उपासक सभी लोग त्रिरत्न में ही अपनी शरण लेते है । भगवान बुद्ध ने बताया है यही धम्म से दुख की मुक्ति मिलती है अन्य धर्म या पंथ में दुख की मुक्ति संभव नहीं ।
2. भ्रम से बचना:
हिंदू देवताओं को अस्वीकार करके, डॉ. अम्बेडकर की प्रतिज्ञाएँ बौद्ध और हिंदू प्रथाओं के मिश्रण को रोकने में मदद करती हैं, जो भ्रम पैदा कर सकता है। बुद्ध ने अक्सर आर्य अष्टांगिक मार्ग के हिस्से के रूप में स्पष्ट समझ (सम्मा-दिट्ठि) के महत्व पर जोर दिया।
3. मुक्ति पर ध्यान:
बौद्ध धर्म दैवीय हस्तक्षेप के बजाय अपने स्वयं के प्रयासों के माध्यम से प्रज्ञा का विकास शील का पालन और समाधि के अभ्यास से दुःख से मुक्ति पर केंद्रित है। किसी हिंदू देवी देवता की पूजा करना यह त्रिपिटक में कही पे भी लिखा नही है धम्मपद (गाथा 165) में कहा गया है:
"अपने आप से बुराई की जाती है; अपने आप से कोई दूषित होता है। अपने आप से बुराई छोड़ी जाती है; अपने आप से कोई शुद्ध होता है। शुद्धता और अशुद्धता स्वयं पर निर्भर करती है; कोई दूसरे को शुद्ध नहीं कर सकता।"
निष्कर्ष में, हिंदू देवताओं को अस्वीकार करने और केवल बुद्ध, धम्म और संघ का अनुसरण करने की डॉ. अम्बेडकर की प्रतिज्ञाएँ मूल बौद्ध शिक्षाओं के अनुरूप हैं। वे बौद्ध मार्ग की विशिष्टता और इसके सिद्धांतों के प्रति स्पष्ट प्रतिबद्धता के महत्व पर जोर देती हैं
सनातन शब्द की उत्पत्ति पालि भाषा से हुई है और बौद्ध धम्म को ही सनातन धर्म कहते हैं।
Aap video documentary ki trah bnaya kijiye...aise nahi bnaye...
Aur acche se boliye ...Audio achha hona chahiye ...jaise dhruv rather ki video hotai hai ..waise bnaye...