वो शब्द गांडीवधारी है || A Poem about the most Perfect Man ever Arjun by Deepankur Bhardwaj

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  • Опубликовано: 3 окт 2024
  • This is a Poem about our beloved "Mahanayak Arjun" and many more to come because Gandivdhari Arjun's legacy is like an infinite universe.
    Jai Shree Krishna 🙏🏻❤️
    Jai Mahanayak Arjun 🙏🏻❤️
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    Lyrics:
    जब जब वो युद्ध करे
    युद्ध छोड़ भाग रहे अहंकारी हैं,
    गीता से महाभारत हर ग्रंथ में उसी का यशगान
    जिसके शंखनाद पर कांप रही
    रणभूमि सारी है,
    अधर्मियों का नाश कर कुरुक्षेत्र की मिट्टी
    रक्त से सींची उसने सारी है।
    कीर्ति अनंत जिसकी तीनों लोकों में उसी का नाद है
    वो शब्द गांडीवधारी है।
    वो शब्द गांडीवधारी है।
    शिव का शिष्य वो श्रेष्ठ कहाया
    स्वयं शिव से उसने युद्ध किया
    श्वेतवाहन का शौर्य देख
    शिव ने जिश्नू को पशुपतास्त्र दिया।
    रण में शिव संतुष्ट करे
    करुणा में गौरा मैया सा
    शत्रु समक्ष शेषनाग सी हुंकार भरे
    कभी शांत वो गंगा मैया सा।
    रण में रोमांचित करे रणचंडी
    करता जब कपिध्वज रथ की सवारी है
    कीर्ति अनंत जिसकी तीनों लोकों में उसी का नाद है
    वो शब्द गांडीवधारी है।
    वो शब्द गांडीवधारी है।
    कृष्ण का परम सखा है जो
    कृष्ण सा ही भेष है
    कृष्ण ही कहलाता है
    कृष्ण के लिए सबसे विशेष है
    पक्षियों में गरुड़ सा पवित्र वो
    नागों में मानो शेष है
    शत्रु के अधर थर थर हैं कांप रहे
    जिश्णू रणक्षेत्र में को कर रहा प्रवेश है।
    हर कला से सुशोभित वो
    धनुर्वेद में सर्वज्ञ वो
    पवित्रता में मानो अश्वमेध यज्ञ वो
    ईश्वर समक्ष भी जो तनिक ना विकारी है
    कीर्ति अनंत जिसकी तीनों लोकों में उसी का नाद है
    वो शब्द गांडीवधारी है।
    वो शब्द गांडीवधारी है।
    शकुनी के प्रपंच के उस मंच पर
    सर्पदंश सा प्रहार जो,
    अधर्म से सहमी वसुंधरा के लिए
    ईश्वर का धर्ममयी उपहार वो।
    अधर्मियों समक्ष धर्मयुद्ध में
    यमदंड जो बना खड़ा,
    पर्वत से भी विशाल वो
    गगन से भी वो है बड़ा
    श्याम वर्ण में आकाश सा अनंत वो
    धरा के मस्तक पर मानो
    रत्न ईश्वर ने कोई था जड़ा।
    रणभूमि की पवन भी मानो
    अर्जुन अर्जुन गा रही,
    कुरुक्षेत्र की माटी सदा से
    जयगान जिसका सुना रही।
    अधर्मियों का भक्षक है
    जो धर्म का पुजारी है
    कीर्ति अनंत जिसकी तीनों लोकों में उसी का नाद है
    वो शब्द गांडीवधारी है।
    वो शब्द गांडीवधारी है।
    हर शस्त्र से सशस्त्र वो
    हर युद्ध में सशक्त वो
    वीरता की परिभाषा है
    करता धर्म को अभिव्यक्त वो
    अवगुणों से विरक्त हो
    धर्मयुद्ध में रक्त वो बहा रहा
    लोभ मोह से होकर विरक्त वो
    कर्मयोगी कहा रहा।
    युद्ध में पापियों का नाश करे
    कर काली का मानो खप्पर सुहा रहा,
    समरांगण में सिंहों सा नाद कर
    अर्जुन विभत्सू कहला रहा।
    कर्मक्षेत्र कुरुक्षेत्र में अधर्म का करके अन्त
    जिस तारी वसुंधरा ये सारी है
    कीर्ति अनंत जिसकी तीनों लोकों में उसी का नाद है
    वो शब्द गांडीवधारी है।
    वो शब्द गांडीवधारी है।
    वीभत्स अग्नि सा भभक रहा
    भद्रकाली सा रण में भयंकर वो जापता,
    रणभीरुओं की भीड़ में भी
    भीषण वो युद्ध करे शंकर वो जापता
    युद्धकला देख जिसकी शत्रुओं के हृदय संग
    रणक्षेत्र का पत्ता पत्ता कांपता,
    शौर्य शुर्यवीरो का क्षीण हो जब
    शूरवीरों के शौर्य को जिश्नु
    गांडीव की नोक से है नापता।
    खांडव दहन का वो युद्ध हो
    या युद्ध हो विराट का,
    कालकेय पौलोम और निवात कवचों की
    सेना भी जिसने अकेले संहारी हैं।
    कीर्ति अनंत जिसकी तीनों लोकों में उसी का नाद है
    वो शब्द गांडीवधारी है।
    वो शब्द गांडीवधारी है।

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