सत्य न तो आंख से दिख सकता और न ही बगैर आंख के,सत्य देखने, समझने, और जानने के प्रयास से ,न दिखेगा न समझ में आयेगा और न ही जाना जा सकता,ना समझ तो हो ही इसे ईमानदारी से स्वीकार करलें, सत्य अपने आप आपमें उतर जायेगा, समझदार और बुद्धिमान तो सत्य से वंचित ही रह जाते हैं।
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सत्य न तो आंख से दिख सकता और न ही बगैर आंख के,सत्य देखने, समझने, और जानने के प्रयास से ,न दिखेगा न समझ में आयेगा और न ही जाना जा सकता,ना समझ तो हो ही इसे ईमानदारी से स्वीकार करलें, सत्य अपने आप आपमें उतर जायेगा, समझदार और बुद्धिमान तो सत्य से वंचित ही रह जाते हैं।
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