वेद के आधार पर जानिए- मन, बुद्धि, चित्त, अहंकार एक हैं या अलग-अलग। सत्यार्थ प्रकाश। आचार्य प्रभाकर

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  • Опубликовано: 2 окт 2024
  • यत्प्रज्ञानमुत चेतो धृतिश्च यज्ज्योतिरन्तरमृतम्प्रजासु। यस्मान्नऽऋते किञ्चन कर्म क्रियते तन्मे मनः शिवसङ्कल्पमस्तु॥ यजुर्वेद 34/3
    पदार्थः - (यत्) (प्रज्ञानम्) प्रजानाति येन तद्बुद्घिस्वरूपम् (उत) अपि (चेतः) चेतति स्मरित येन तत् (धृतिः) धैर्यरूपम् (च) चकारल्लज्जादीन्यपि कर्माणि येन क्रियन्ते (यत्) (ज्योतिः) द्योतमानम् (अन्तः) अभ्यन्तरे (अमृतम्) नाशरहितम् (प्रजासु) जनेषु (यस्मात्) मनसः (नः) (ऋते) विना (किम्, चन) किञ्चिदपि (कर्म) (क्रियते) (तत्) (मे) जीवात्मनो मम (मनः) सर्वकर्मसाधनम् (शिवसङ्कल्पम्) शिवे कल्याणकरे परमात्मनि कल्प इच्छाऽस्य तत् (अस्तु) भवतु॥३॥
    भावार्थः - हे मनुष्याः! यदन्तःकरणबुद्धिचित्तमनोऽहङ्कारवृत्तित्वाच्चतुर्विधमन्तःप्रकाशं प्रजानां सर्वकर्मसाधकं नाशरहितं मनोऽस्ति, तन्न्याये सत्याचरणे च प्रवर्त्य पक्षपाताऽन्यायाऽधर्माचरणाद् यूयं निवर्त्तयत॥३॥
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