gurudwara manikaran sahib || manikaran sahib hot water || manikaran sahib history ||

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  • Опубликовано: 10 сен 2024
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    मणिकरण गुरुद्वारा: मणिकरण साहिब गुरुद्वारा
    जब एक ही स्थान पर एक साथ दो धर्मों के पवित्र और तीर्थ स्थानों के दर्शन हों तो भला किसे नागवारा होगा। हिमाचल के कुल्लू से 35 किलोमीटर दूर और समुद्र तल से लगभग 1760 मीटर की ऊँचाई पर स्थित धर्मिक स्थल मणिकरण ,जहां हिंदुओं के भगवान शिव का प्रसिद्ध मंदिर और सिखों के धार्मिक गुरु गुरु नानकदेव की याद में बना गुरुद्वारा।
    मणिकरण की खूबसूरती का जिक्र आपको पौराणिक कथाएँ में भी मिलेगा। इसकी खूबसूरती और ख़ासियत दोनों आपको काफी आकर्षक करेंगे। मणिकर्ण अपनी खूबसूरती और धार्मिक स्थल के साथ साथ अपने गर्म पानी के चश्मों के लिए भी काफी प्रसिद्ध है। इस चश्मे के पानी में स्नान करने से जो चर्म रोग या गठिया जैसे रोगों को काफी आराम होता है।
    ऐसा माना जाता है कि यहां उपलब्ध गंधकयुक्त गर्म पानी में कुछ दिन स्नान करने से ये बीमारियां ठीक हो जाती हैं। खौलते पानी के चश्मे मणिकर्ण का विशेष आकर्षण हैं क्यों कि एक ओर जहां पार्वती नदी की ठंढी जल धारा बह रही है दूसरी ओर वहीं इतना खोलता पानी जिसमे कच्चा चावल हो या दाल सबकुछ 10 मिनट में पक जाए, सबको अचंभित करता है।
    मणिकरण गुरुद्वारा: मणिकरण साहिब गुरुद्वारा
    सिखों के धार्मिक स्थलों में यह स्थल काफी विशेष स्थान रखता है। गुरुद्वारा मणिकरण साहिब गुरु नानकदेव की यहां की यात्रा की स्मृति में बना था। जनम सखी और ज्ञानी ज्ञान सिंह द्वारा लिखी तवारीख गुरु खालसा में इस बात का उल्लेख है कि गुरु नानक ने भाई मरदाना और पंच प्यारों के साथ यहां की यात्रा की थी। कथाओं के अनुसार सिख धर्म के संस्थापक गुरु नानक देव जी अपने अनुयायी भाई मर्दाना के साथ तीसरी उदीसी के दौरान 1574 में यहां आए थे। मर्दाना को भूख लगी थी लेकिन भोजन नहीं था।
    इसलिए उसको गुरु नानक जी द्वारा लंगर के लिए भोजन एकत्र करने के लिए भेजा था। इसके बाद रोटियां बनाने के लिए लोगों ने आटा दान किया था। सामग्री होने के बावजूद वे आगे की के कारण भोजन को पकाने में असमर्थ थे। इसके बाद गुरु नानक जी ने मर्दाना को एक पत्थर उठाने के लिए कहा और ऐसा करते ही एक गर्म पानी का झरना निकल आया, इसके बाद मर्दाना ने रोटियों को गर्म पानी के झरने में डाल दिया। इसके बाद गुरु नानक जी के कहने पर मर्दाना ने भगवान से प्रार्थना की और कहा कि अगर उसकी रोटी वापस तैर कर आ गई तो वो एक रोटी भगवान को दान करेगा। जब उसने प्रार्थना की तो पकी हुई रोटी पानी पर तैरने लगी। गुरु नानक जी ने कहा कि अगर कोई भी भगवान् के नाम पर कोई दान करता है तो उसका डूबता हुआ सामान वापस तैरने लगता है।
    How did Manikarn get the name कैसे पड़ा मणिकर्ण नाम
    हिंदू मान्यताओं के अनुसार यहां का नाम इस घाटी में देवी पार्वती के कान (कर्ण) की बाली (मणि) खो जाने से संबंधित है। भगवान शिव और देवी पार्वती इस स्थान की सुंदरता पर मोहित हो गए और उन्होंने 1100 सालों तक यहां रह कर तपस्या की थी। मां पार्वती जब नहा रही थीं, तब उनके कानों की बाली में से एक मणि पानी में जा गिरी। भगवान शिव ने अपने गणों से मणि ढूंढने को कहा लेकिन वह नहीं मिली। इससे भगवान शिव नाराज हो गए और उन्होंने अपना तीसरा नेत्र खोल दिया, जिससे माता नैनादेवी नामक शक्ति उत्पन्न हुई।
    माता नैना देवी ने भगवान शिव को बताया कि उनकी मणि पाताल में शेषनाग के पास है। देवताओं द्वारा प्रार्थना करने पर शेषनाग ने मणि वापस कर दी लेकिन वह इतने नाराज हुए कि उन्होंने जोर की फुंकार भरी जिससे इस जगह पर गर्म जल की धारा फूट पड़ी। तभी से इस जगह का नाम मणिकर्ण पड़ गया।
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