Manikaran | Gurdwara Sahib | Mahadev Shiv Temple | Parvati Valley | Kasol |
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- Опубликовано: 23 ноя 2024
- Nishman Vlogs
History
समुद्र तल से छह हजार फुट की ऊँचाई पर बसे मणिकर्ण का शाब्दिक अर्थ है, कान की बाली। यहां मंदिर व गुरुद्वारे के विशाल भवनों से लगती हुई बहती है पार्वती नदी, जिसका वेग रोमांचित करने वाला होता है। नदी का पानी बर्फ के समान ठंडा है। नदी की दाहिनी ओर गर्म जल के उबलते स्रोत नदी से उलझते दिखते हैं।
बाबा नानक के चमत्कार और शेषनाग की हुंकार से जुड़ा है ये तीर्थस्थल
मणिकर्ण साहिब गुरुद्वारा किसी चमत्कारी तीर्थस्थल से कम नहीं है। आप इस बात को जान कर हैरत में पड़ जाएंगे कि इस गुरुद्वारे का पानी बर्फीली ठण्ड में भी उबलता रहता है। गुरुद्वारा मणिकर्ण साहिब गुरु नानक देव जी की यहां की यात्रा की स्मृति में बना है। कहा जाता है कि यह पहली जगह है, जहां गुरु नानक देव जी ने ध्यान लगाया था और बड़े-बड़े चमत्कार किए थे। उनके शिष्य मर्दाना को भूख लगी थी लेकिन भोजन नहीं था। इसलिए गुरु नानक जी ने उसको लंगर के लिए भोजन एकत्र करने के लिए भेजा। लोगों ने रोटियां बनाने के लिए आटा दान में दिया। सामग्री होने के बावजूद वे आग न होने के कारण भोजन पकाने में असमर्थ थे। इसके बाद गुरु नानक देव जी ने मर्दाना को एक पत्थर उठाने के लिए कहा और ऐसा करते ही वहां से गर्म पानी का एक चश्मा निकल आया। इसी चश्मेे के उबलते पानी का इस्तेमाल आज भी गुरुद्वारा में रोटी, चावल, दाल आदि पकाने के लिए किया जाता है।
हिंदू मान्यताओं के अनुसार यहां का नाम इस घाटी में देवी पार्वती के कान (कर्ण) की बाली (मणि) खो जाने से संबंधित है। भगवान शिव और देवी पार्वती इस स्थान की सुंदरता पर मोहित हो गए और उन्होंने 1100 सालों तक यहां रह कर तपस्या की थी। मां पार्वती जब नहा रही थीं, तब उनके कानों की बाली में से एक मणि पानी में जा गिरी। भगवान शिव ने अपने गणों से मणि ढूंढने को कहा लेकिन वह नहीं मिली। इससे भगवान शिव नाराज हो गए और उन्होंने अपना तीसरा नेत्र खोल दिया, जिससे माता नैनादेवी नामक शक्ति उत्पन्न हुई।
माता नैना देवी ने भगवान शिव को बताया कि उनकी मणि पाताल में शेषनाग के पास है। देवताओं द्वारा प्रार्थना करने पर शेषनाग ने मणि वापस कर दी लेकिन वह इतने नाराज हुए कि उन्होंने जोर की फुंकार भरी जिससे इस जगह पर गर्म जल की धारा फूट पड़ी। तभी से इस जगह का नाम मणिकर्ण पड़ गया।
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