राजा कर्ण को रोजाना सवा मन सोना देने वाली माँ त्रिपुर सुंदरी की प्राचीन मूर्ति जबलपुर म.प्र.

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  • Опубликовано: 6 фев 2025
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    माता त्रिपुर सुंदरी राज राजेश्वरी का मंदिर शहर से करीब 13 किमी दूर तेवर गांव में भेड़ाघाट रोड पर हथियागढ़ नामक स्थान पर स्थित है। 11वी शताब्दी में कल्चुरी राजा कर्णदेव ने इसका निर्माण कराया था।
    राजा कर्णदेव ने बनवाई थी प्रतिमा
    मंदिर के इतिहास को कल्चुरि काल से जोड़ा जाता है, जो उस समय से ही पूजित प्रतिमा है। इनके तीन रूप राजराजेश्वरी, ललिता और महामाया के माने जाते हैं। ऐसा मान्य है कि राजा कर्णदेव के सपने में आदिशक्ति का रूप मां त्रिपुरी दिखाई दी थीं। सपने में दिखी मां त्रिपुरी को स्थापित करने के लिए राजा कर्ण ने इसकी स्थापना करवाई थी।
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    मंदिर में स्थापित मूर्ति के सम्बंध में कहा जाता है कि 1985 के पूर्व इस स्थान पर एक किला था,
    माँ त्रिपुर सुंदरी मंदिर, जबलपुर, म.प्र., Tripur Sundari Mandir, Jabalpur M.P.
    कलचुरि राजवंश
    खोलते तेल की कड़ाई में कूदने पर सवा मन सोना राजा कर्ण को देती थी माँ त्रिपुर सुंदरी जबलपुर म.प्र
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    Video Created By- Anmol Kushwaha.
    Video Recording By- Bobby.
    Video Editing By- Ashish Kachhi.
    All image procured by Google images.
    जबलपुर। माता त्रिपुर सुंदरी राज राजेश्वरी का मंदिर शहर से करीब 13 किमी दूर तेवर गांव में भेड़ाघाट रोड पर हथियागढ़ नामक स्थान पर स्थित है। 11वी शताब्दी में कल्चुरी राजा कर्णदेव ने इसका निर्माण कराया था। यहाँ पर एक शिलालेख है, जिससे इसकी पुष्टि होती है। यहाँ साल भर भक्तों की आवाजाही रहती है। नवरात्र पर यहां की रौनक देखने लायक होती है। दशहरा उत्सव के दौरान भी यहां भारी भीड़ उमड़ती है।
    नवरात्र पर बड़ी संख्या में पहुंचते हैं भक्त
    माना जाता है कि मंदिर में स्थापित माता की मूर्ति भूमि से अवतरित हुई थी। यह मूर्ति केवल एक शिलाखंड के सहारे पश्चिम दिशा की ओर मुंह किए अधलेटी अवस्था में मौजूद है। त्रिपुर सुंदरी मंदिर में माता महाकाली, माता महालक्षमी और माता सरस्वती की विशाल मूर्तियां स्थापित हैं। त्रिपुर का अर्थ है तीन शहरों का समूह और सुंदरी का अर्थ होता है मनमोहक महिला। इसलिए इस स्थान को तीन शहरों की अति सुंदर देवियों का वास कहा जाता है। चूंकि यहाँ शक्ति के रूप में तीन माताएं मूर्ति रूप में विराजमान हैं, इसलिए मंदिर के नाम
    को उन देवियों की शक्ति और सामथ्र्य का प्रतीक माना गया है।
    राजा कर्णदेव ने बनवाई थी प्रतिमा
    मंदिर के इतिहास को कल्चुरि काल से जोड़ा जाता है, जो उस समय से ही पूजित प्रतिमा है। इनके तीन रूप राजराजेश्वरी, ललिता और महामाया के माने जाते हैं। ऐसा मान्य है कि राजा कर्णदेव के सपने में आदिशक्ति का रूप मां त्रिपुरी दिखाई दी थीं। सपने में दिखी मां त्रिपुरी को स्थापित करने के लिए राजा कर्ण ने इसकी स्थापना करवाई थी।
    मंदिर में स्थापित मूर्ति के सम्बंध में कहा जाता है कि 1985 के पूर्व इस स्थान पर एक किला था, जिसमें यह प्राचीन मूर्ति थी। वहां पास में ही एक गड़रिया रहता था जो मूर्ति के पास अपनी बकरियां बांधता था। मूर्ति का मुख पश्चिम दिशा की ओर था। बाद में धीरे-धीरे यहां कुछ अन्य विद्वानों का आना हुआ और मंदिर का विकास कार्य किया गया। अब भी मंदिर के ही समीप उस गड़रिया की झोपड़ी है।
    तांत्रिक पीठ था
    इतिहासविद् डॉ. आनंद सिंह राणा ने बताया, त्रिपुर सुंदरी मूर्ति को लेकर कई मान्यताएं है। त्रिपुर केंद्र तांत्रिक पीठ हुआ करता था। यहां तांत्रिक कठोर साधना कर भगवान शिव को प्रसन्न करते थे। पुराणों में दर्ज है कि मूर्ति शिव के पांच रूपों से बनी थी, जिसमें ततपुरुष, वामदेव, ईशान, अघोर और सदोजात शामिल है। यह भी दर्ज है कि त्रिपुर क्षेत्र में त्रिपुरासुर नामक राक्षस का वध हुआ था।

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