भारतीय दर्शनशास्त्र का इतिहास : अध्याय 3 - उपनिषद (1)- देवराज
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- Опубликовано: 6 фев 2025
- उपनिषदों का अध्ययन हमें भारतीय दर्शन के गहरे जड़ों से जोड़ता है। ये ग्रंथ न केवल ज्ञान की खोज का माध्यम हैं, बल्कि आत्मा और ब्रह्म के बीच के संबंध को भी उजागर करते हैं। उपनिषदों की भाषा में गहराई और काव्यात्मता है, जो सिद्धांत और अनुभव दोनों को बड़ी खूबसूरती से समेटती है। इसके अंतर्गत विद्यमान विचारधाराएं हमें बताती हैं कि मनुष्य की खोज केवल भौतिक समृद्धि तक सीमित नहीं है, बल्कि एक ऐसी आत्मिक अनुभूति की ओर अभिषिक्त हैं जो उसका वास्तविक लक्ष्य है।
कर्मकांड से परे जाकर, उपनिषद में ज्ञान की खोज की गई है। जानकार साधक अपने संज्ञान के अभ्युदय से इस संतोष को पाते हैं कि वे संसार के भौतिक आकर्षणों से मुक्त होकर मुक्ति की ओर अग्रसर हैं। ऋग्वेद और ब्राह्मणों की भौतिक भक्ति की तुलना में उपनिषदों का ज्ञान दर्शन के माध्यम से मानव के मन की गहराइयों में प्रवेश करता है। यहाँ भौतिक सिद्धांतों का नहीं, बल्कि मनोवैज्ञानिक और आध्यात्मिक दृष्टिकोण का सामना होता है।
उपनिषदों में व्यक्त विचारों की व्यापकता और विविधता ने इसे निर्णायक मान्यता दी है, लेकिन इसने साथ ही कई व्याख्याकारों में मतभेद भी उत्पन्न किए हैं। अलग-अलग उपनिषदों में भिन्न शिक्षकों के विचारों का समावेश इसे एक सामूहिक विचारधारा देता है, जहां एक ही विषय पर कई दृष्टिकोण व्यक्त किए जाते हैं। यह भिन्नता न केवल धार्मिक सिद्धांतों को जन्म देती है, बल्कि यह आम मानव अनुभव की जटिलताओं को भी दर्शाती है।
अनेक विद्वान उपनिषदों की विभिन्नता के मद्देनज़र यह बताते हैं कि असल में ज्ञान का एक अद्वितीय स्रोत होने की बजाय, यह एक गहन अनुभव यात्रा है। हर उपनिषद एक व्यक्तिगत अनुभव को बयान करते हैं, जो विभिन्न साधकों के रास्ते और विचारों से प्रभावित होता है। यह दर्शाता है कि सच्चाई की खोज में कई रास्ते हैं, और ये सभी मिलकर ज्ञान की समृद्धि में योगदान देते हैं। इस प्रकार, उपनिषद एक गहरी और मंत्रमुग्धकारी बातचीत का आरंभ करते हैं, जो अद्वितीयता और विविधता को जीवन में लेकर आती है।
उपनिषद्-साहित्य का इतिहास विशेष रूप से दार्शनिकों, शिक्षकों और विचारकों की किसी तरह की समृद्धि का प्रतीक है। इस अद्भुत ग्रंथ के लेखक शांडिल्य, याज्ञवल्क्य, और मैत्रेयी जैसे नामित ऋषि, जो विवाहित और गृहस्थ जीवन का अनुभव भी रखते थे, उनके विचारों में गहराई और विवेचना की अनूठी छाप देखने को मिलती है। यहाँ ज्ञान का संचार संवाद के रूप में स्थिति पाता है, जहाँ पति-पत्नी और पिता-पुत्र के बीच का संवाद आश्चर्यजनक रूप से ज्ञान की गहराइयों को छूता है।
उपनिषदों की भाषा भी अद्वितीय है, जिसमें मनोहरता और प्रसाद गुण विद्यमान हैं। इसमें जो वाणी निस्वार्थ और सरल है, वह पाठक के हृदय को आह्लादित करती है। उपनिषदों को पढ़ते समय पाठक उन विचारों के आकर्षण में खो जाता है, इसीलिए इनका अध्ययन केवल शास्त्रार्थ तक सीमित नहीं रह जाता, बल्कि ये गहरे चिंतन की प्रेरणा भी देते हैं। दृष्टांत के रूप में, दारा शिकोह द्वारा उपनिषदों का फारसी में अनुवाद तथा उनके बाद के लैटिन अनुवाद ने इन्हें यूरोप में भी प्रसिद्ध बना दिया।
शोपेनहार और गेटे जैसे दार्शनिकों ने उपनिषदों के प्रति अपनी मोहब्बत को स्पष्ट किया है। उन्होंने इन्हें अपनी आत्मा की गहराई में अनुभव किया और रात्रि में सोने से पहले इनका पठान किया। उपनिषदों का ज्ञान भारत की विविध भाषाओं में बिखरा हुआ पाया जा सकता है, जिससे यह स्पष्ट होता है कि ये केवल एक विशेष भूभाग या संस्कृति का संपत्ति नहीं हैं। हर विभिन्न भाषा में अनुवाद इनकी वैभव और महत्व का आभास कराता है।
अब जब हम कुछ महत्वपूर्ण उपनिषदों की चर्चा करें, तो वृहदारण्यक उपनिषद् का नाम सबसे पहले आता है। यह उपनिषद अद्भुत शिल्प के साथ यज्ञ का संदर्भ देता है। इसमें पुरुष को यज्ञ के अश्व के रूप में दर्शाया गया है, जहाँ उसकी संरचना द्युलोक और पृथ्वी से प्रभावित होती है। यह उपनिषद मानव जाति के आरंभ की कथा भी प्रस्तुत करता है, जिसमें आत्मा ने स्वयं को विभाजित कर मानवता का निर्माण किया। इस प्रकार, उपनिषद का दर्शन जीवन और ब्रह्म के बीच एक गहरी संबंध की पहचान करता है।
उपनिषदों का गहरा महत्व भारतीय दर्शन में अति महत्वपूर्ण है। ये न केवल आध्यात्मिक ज्ञान का भंडार हैं, बल्कि जीवन के विभिन्न पहलुओं को समझाने के लिए गूढ़ संवाद भी प्रदान करते हैं। प्रत्येक उपनिषद् में अद्वितीय कहानियाँ और शिक्षाएं हैं, जो मानवता को ज्ञान और आत्मज्ञान के मार्ग पर अग्रसरित करती हैं। इनका अध्यायों में विभाजन, अनेक विषयों का समावेश करता है, जो ब्रह्म, आत्मा, और सृष्टि के मूल तत्वों का वर्णन करते हैं।
पहले दो अध्यायों में उद्गीथ ओंकार का महत्व वर्णित है, जहाँ कुत्तों से मंत्रों का मंत्रण किया गया है। इस विद्या के माध्यम से जीवन की गहराइयों को समझने की कोशिश की जाती है। तीसरे अध्याय में सूर्य के महत्व को मधुमक्खियों के छत्ते की उपमा द्वारा प्रस्तुत किया गया है, जो हर जीव के स्थायी प्रभाव को दर्शाता है, साथ ही इस अध्याय में कृष्ण का भी उल्लेख किया गया है। उसके शिक्षा की यात्रा हमें बताती है कि ज्ञान का मार्ग कठिनाइयों से भरा होता है।
चौथे अध्याय में सत्यकाम जाबाल और उनकी माता की कथा द्वारा सत्य के महत्व को सिखाया गया है। सत्यकाम की माता का अनिश्चितता में जवाब देना जीवन के मूल्यों को दर्शाता है। लगातार प्रामाणिकता का समर्थन करते हुए ऋषि ने सत्य की महत्ता को साबित किया। पांचवे और छठे अध्याय में संवाद और शिक्षा की गहराइयों को विस्तार दिया गया है, जहाँ ब्रह्मविद्या और प्रज्ञान की महत्ता पर चर्चा हुई है। आरुणि द्वारा अपने पुत्र को ब्रह्म की पहचान समझाना इस अध्याय का मुख्य विषय है।आखिरी अध्याय इंद्र और विरोचन के कार्यक्रमों का निचोड़ है, जहां आत्म-जिज्ञासा के माध्यम से जीवन के गूढ़ रहस्यों को उजागर किया गया है।
बहुत बहुत धन्यवाद