कामायनी और भारत की अस्मिता राधावल्लभ त्रिपाठी की विजय बहादुर सिंह से बातचीत। Kamayani
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- Опубликовано: 29 июл 2020
- कामायनी और भारत की अस्मिता पर प्रो राधावल्लभ त्रिपाठी और विजय बहादुर सिंह की यह बातचीत साझा करते हुए बेहद खुशी हो रही है। साखी के कामायनी केंद्रित के लिए इस बातचीत को पहला कदम मानकर चलें ।साखी के कामायनी के लिए काफी कुछ सामग्री तैयार हो रही है।इस क्रम में यह बातचीत हमारा उत्साहवर्धन करती है ।इसे उपलब्ध कराने के लिए हम प्रो राधावल्लभ त्रिपाठी के आभारी हैं।
बहुत कुछ जानने और सीखने को मिला। एक नए दृष्टिकोण और साहित्य के बहुत से पहलु खोलने के लिए धन्यवाद ✨
विजयबहादुर सिंह जी भारतीय मेधा और प्रज्ञा के आचार्य हैं। जितनी गहनता से आचार्य ने प्रसाद और कामायनी को समझाया है, वह दुर्लभ है। वंदन है इस तरह के श्रद्धेय आचार्य को।
'कामायनी' के इस बहुत ही महत्त्वपूर्ण विश्लेषण के लिए आदरणीय विजयबहादुर सिंह जी को साधुवाद।
AAP dono ki baatchit kamayani ki samiksha bahut bahut sarahniy hai.🙏🙏🙏🙏🙏
दोनो ही विद्वान् अपने समय के चिन्तक है. दोनों को सुनना सच में हमारा सोभाग्य है.
बहुत ही सारगर्भित और महत्वपूर्ण चर्चा। कामायनी के प्रति दृष्टि को नया विस्तार मिला। आप दोनों विद्वजनों को मेरा नमस्कार है।
बहुत महान विमर्श।कामायनी कुव्याख्या की शिकार हुई।भारत के चित्त की और चेतना की व्याख्या है यह कृति। विजय बहादुर सिंह हमारी हिंदी जाति के अवचेतना के श्रेष्ठ प्रवक्ता और आचार्य है।यह व्यख्यान मैं हिंदी के प्रत्येक अध्यापकों से सुनने का प्रस्ताव करता हूँ।
बहुत सारगर्भित एवं नवीन दृष्टि से किया गया आकलन।
Kamayani , aansoo by jayashankar prasaad ji , is kept in my possessions since my childhood..
कामायनी पर बहुत सुंदर विश्लेषण सबसे अलग विमर्श
अद्भुत चर्चा, बहुत बहुत साधुवाद !
बहुत ही सुंदर विश्लेषण I
बहुत उपयोगी विमर्श।
बहुत ही ज्ञानवर्धक 👌
कामायनी के स्त्री पक्ष को बहुत अच्छे से उठाया।
❤❤❤
👍❤️👍
राधा ❤❤❤
अच्छा विमर्श।
विजय ❤❤❤❤
प्रोफेसर विजय बहादुर सिंह कामायनी की व्याख्या को भावुक व्याख्या की ओर ले गए हैं, दूसरे शब्दों में कहें तो यह अवसरवादी व्याख्या है। जिस चेतना को प्रोफेसर जी भारतीय चेतना कह रहे हैं वास्तव में वह ब्राह्मणवादी चेतना है जो अभिजात्य की अभिव्यक्ति है। लोक का ज्ञान होना और उसका रचना में प्रयोग होना दोनों बातों में अंतर है। 'नारी तुम केवल श्रद्धा हो विश्वास-रजत-नग पगतल में / पीयूष-स्रोत-सी बहा करो /जीवन के सुंदर समतल में'
'नारी केवल श्रद्धा हो' केवल श्रद्धा ही क्यों?
'नग पगतल में' नारी 'पगतल' में ही क्यों रहेगी।