बहुत बहुत धन्यवाद गुरुदेव इसी प्रकार कुर्माँचलीय पद्धति को जीवन्त बनाए रखने हेतु अन्य पूजापाठ से संबंधित छोटी छोटी अन्य जानकारियां भी हमें समय समय में बताने की कृपा करें जिससे हम जैसे अल्पज्ञों का ज्ञानवर्धन होते रहे ।
इतनी सरलता से व्यवहारिक रूप में कुशा का ब्रह्मा बनाने का विधान मैंने प्रस्तुत किया है,, इससे अधिक व्यावहारिक और सरल क्या क्या होगा थोड़ी ध्यानपूर्वक देखिए सब समझ में आ जाएगा।
तैत्तिरीय अरण्यक में यज्ञोपवीत बनाने का निर्देश किया गया है। और वेद मंत्रों को तीन काण्डों में विभाजित किया गया है। कर्मकाण्ड, उपासना काण्ड व ज्ञान काण्ड। और इन्हीं वेदों में ज्ञान, कर्म व उपासना संबंधित ९६००० मंत्र हैं। इसीलिए यज्ञोपवीत के तंतु को सर्वप्रथम ९६ बार लपेटा जाता है। और शेष ४००० मंत्र सन्यास (निर्वाण) के लिए बताए गए हैं। यज्ञोपवीत ब्रह्मा, विष्णु, शिव द्वारा रचित है। और इन्हीं के द्वारा अभिमंत्रित है। और नौ सूत्रों (तंतुओं) में नौ देवताओं ॐकार देव,अग्नि देव,भग देव, सोमदेव, पितृ देव, प्रजापति देव, वायु देव, सूर्य देव और सर्वदेव का निवास है। इसीलिए यज्ञोपवीत नौ तंतुओं के द्वारा बनाई जाती है। तीन तीन बार त्रिगुणित कर। तीन ग्रंथियों में ब्रह्मा, विष्णु, शिव का निवास होता है। और यही देवता मां गायत्री का ध्यान कर उस यज्ञोपवीत में विराजमान हो जाते हैं। और जापक की समस्त कामनाओं को पूर्ण करते हैं। श्रावणी पर्व की पावन बेला में समस्त यजुर्वेदीय उपाकर्म करने वालों को पावन पर्व एवं रक्षाबंधन की हार्दिक शुभकामनाएं। और इसी दिन मां लक्ष्मी ने राजा बलि को अपना भाई मानकर उसके दाएं हाथ में रक्षा सूत्र बांधा था। तभी से यह श्रावणी का पर्व रक्षाबंधन के नाम से जाना जाता है। तभी यह मंत्र रक्षा सूत्र बांधते हुए कहा जाता है। येन वद्धो बली राजा, दानवेन्द्रो महाबल:। तेनत्वांप्रतिबद्घनामि, रक्षेमाचल माचल:।। यदाबध्नन्दाक्षायणा हिरण्यं शतानीकाय सुमनस्यमाना: तन्मऽआबध्नामि शतशारदायायुष्मान् जरदष्टिर्यथासम्।। पंडित बसन्त बल्लभ त्रिपाठी, शास्त्री हल्द्वानी, नैनीताल उत्तराखंड
श्री राधे,, कहाँ से हैं, आप,,, यह शास्त्रीय वैदिक विधान है। विशेष करके ये कुशा व्रह्मा की पद्धति उत्तराखंड के कुर्माञ्चल कुमाँऊनी है। आप चाहें तो मुझसे वार्तालाप कर सकते हैं।
जी,,, जहॉ भी यज्ञादि, मांगलिक कार्य होंगे, वहॉ ब्रह्मा का आवाहन होगा,,, यज्ञादि, मॉगलिक कार्यों में विना व्रह्मा के कोई भी कर्म पूर्ण नहीं होता,, बहुत सौ कुशा का मतलब हा व्रह्मा है,, बहुत
गुरुदेव एक और प्रश्न था जैसे हम कलश स्थापना करते है नवरात्रि में तो नारियल कलश के मुख पर रखे या कुश के ब्रह्मा को स्थापित करे कृपया स्पष्ट करने की कृपा करे। गुरुदेव
हमारी कुर्मांचली पद्धति परंपरा के अनुसार कुर्मॉचलीय लोग कलश में कुश का ब्रह्मा ही रखते हैं,और रखना भी चाहिए। मैदानी क्षेत्रों में कुश ब्रह्मा को नहीं बनाते हैं, वे रखते भी नहीं है, इसलिए वहां नारियल रखते हैं। ब्रह्मा की उपलब्धता न हो तो नारियल रख सकते हैं।
एक सौ कुशों से ही ब्रह्मा बनाया जाता है। "छंदोग्य परिशिष्ट पारिजात विधान" में लिखा हुआ है। इस विडियो में जो ब्रह्मा बनाते वक्त मैं श्लोक बोल रहा हूँ, वह श्लोक 100 कुशाओं के बनने वाली ब्रह्मा का प्रमाण है। हो सकता है कहीं अन्यत्र भी ऐसा कोई भी हो, परन्तु हमारी कुर्माञ्चलीय (उत्तराखण्ड) की कुमाँऊनी पद्धति के कर्मकाण्ड में 100 कुशों के ब्रह्मा के द्वारा ही कुश का ब्रह्मा बनाया जाता है।
यज्ञ में ब्रह्मा के दो रूप होते हैं, एक प्रत्यक्ष जो यज्ञ का निरीक्षण का कार्य करते है, जिसे कार्यकारिणी प्रत्यक्ष व्रह्मा जाता है। दूसरा जो एक सौ कुशाओं से बना करके वरुण कलश में स्थापित किया जाता है। कुशा के ब्रह्मा के अभाव में कुश की पवत्री बना कर रख देते हैं।
गुरू जी के चरणों में नमन गुरू जी संध्या वंदन के बाद यदि हम पुनः अनुष्ठान के निमित्त अधिक संख्या जाप करें तो क्या पुनः शाप विमोचन उपस्थान आदि की जरूरत है।
यदि कुछ विश्राम के पश्चात हम पुन: गायत्री जाप करना चाहते हैं, तब श्राप विमोचन,उपस्थान की आवश्यकता नहीं है। हां यदि मध्याह्न संध्या के निमित्त हम गायत्री जप रहे हैं , तो फिर शापविमोचन, अघमर्षण , सूर्याघ, उपस्थान की आवश्यकता पड़ती है।
यदि हमें किसी पित्र का नाम या गोत्र मालूम न हो तो किस नाम या उच्चारण से श्राद्ध या तर्पण करना चाहिए। यदि किसी की मृत्यु यदि अधिक मास में हो तो वार्षिक श्राद्ध कब होगा
यदि किसी के गोत्र और नाम का पता न चले तो अमुक गोत्रस्यअंतरिक्ष बसु स्वरूपस्य पितु: तर्पयामि। और अधिकमास में मृत्यु होने पर अगले वर्ष उसी मास के उसी पक्ष को उसी तिथि को वार्षिक श्राद्ध होगा। अर्थात जैसे इस वर्ष आश्विन अधिक मास है, तो अगले वर्ष आश्विन मास जिस भी पक्ष, तिथि में मृत्यु हुई हो उस पक्ष उसी तिथि में वार्षिक श्राद्ध होगा।
श्री राधे, बहुत सुंदर प्रश्न। कुशा भगवान नारायण के रोम से उत्पन्न हुई है। अर्थात् भगवान श्री हरि नारायण के रोम ही कुशा हैं। जब भगवान नारायण ने सृष्टि को बनाने का विचार बनाया तो उनके नाभि से कमल को उत्पन्न किया और कमल से ब्रह्मा जी निकले ब्रह्मा जी पांच मुख के थे, झूठ बोलने के कारण उनका एक मुँख काट दिया गया। और उनको मूर्ति रूप से कुशा के व्रह्मा रूप में पूजने का वरदान दिया। दूसरा भगवान नारायण जब सुकर रूप में अवतार लिए, उन्होंने अपने शरीर को हिलाया, और हिलाते ही जो रोम गिरे वही कुश के रूप में उत्पन्न हुए। यह श्रीश्वेत वाराह कप की कथा है।
Very nice
Very nice ❤
जय श्री राधे❤
अद्भुत
Guru ji koti koti parnaam f
कुमाञ्चली पद्धति में ही सरलता मिलती है
बहुत सुंदर ढंग से समझाया है ।
अति उत्तम जानकारी धन्यवाद
Bahut badhiya Bhai sahab ji
अति उत्तम
Shree Krishna ❤ radhey radhey
Om
जय हो गुरु जी🙏
ॐ नमः नरायण
आपका आभार आचार्य जी |
प्रणाम स्वीकार करें ॥
॥ नारायण नारायण ॥
आपका बहुत बहुत धन्यवाद,,
बहुत ही सुन्दर विधि
Om narayan🎉
धन्यवाद गुरूजी 🙏
बहुत-बहुत धन्यवाद।❤❤❤
Jai ho guru ji ❤🎉
बहुत ही सुन्दर
नारायण ❤
व्यास जी प्रणाम | जानकारी देने के लिए बहुत-बहुत धन्यवाद बहुत-बहुत आभार
Narayan 🎉
Bahut sunder guru ji
Om namo
Om
Namaskaram. Thanks. Quite good information.
Dhanyavaad
बहुत बहुत धनयवाद कोटी नमन
jai jai❤
Om❤
गुरु जी प्रणाम बहुत बहुत सुन्दर।
Jai❤🎉
Bahut sunder 🎉
Narayan ❤
आदरणीय श्री चरणों में दण्डवत प्रणाम कुशकाण्डिका पर भी मार्ग दर्शन करें
श्री राधे! कुश कंडिका का विधान वीडियो के रूप में प्रस्तुत कर दिया है, आप देख लीजिए
ruclips.net/video/zQEfe5Tr3TI/видео.html
गरु ji🙏🙏
अति सुन्दर त्रिपाठी जी
Superb.U teach it so easily thank u
बहुत अच्छा, कृपया इस तरह की जानकारी देते रहें।
धन्यवाद
हरहरमहादेव सुन्दर और दिव्य ज्ञान विज्ञान बहुत महत्वपूर्ण बात बधाई
गुरुजी के चरणों में मेरा कोटि कोटि प्रणाम 👏💐
पर्वतीयपरम्पराया: अद्भुतं निदर्शनम्
ruclips.net/video/zQEfe5Tr3TI/видео.html
श्लोक एवं मंत्र सब कुशा ब्रह्मा निर्माण विधि के उच्चारण में वोले जा रहे हैं,, याद हो जाएगा। मैं लिख भी दूँगा।
व्रह्मा निर्माण,,,तल्लक्षणम् विधान पारिजात (परिशिष्टे) "पञ्चाशता भवेद्ब्रह्मा तदर्द्धन तु विष्टरः । ऊर्ध्वकेशो भवेद्ब्रह्मा लम्बकेशस्तु विष्टरः॥ दक्षिणावर्तको ब्रह्मा वामावर्तस्तु विष्टरः ॥ '
जय जय
धन्यवाद आप को
Bahut sundar.pandit ji aap humko kushkandika ki vidhi ko acchi tarah se batane ki kripa kare.
जी अवश्य,, आपका धन्यवाद
ruclips.net/video/zQEfe5Tr3TI/видео.html
आप के आग्रह पर कुश कण्डिका का वीडियो लोड कर दिया है। अब आप इसे देखें शेयर करें, कमेंट करें।
बहुत बहुत धन्यवाद गुरुदेव इसी प्रकार कुर्माँचलीय पद्धति को जीवन्त बनाए रखने हेतु अन्य पूजापाठ से संबंधित छोटी छोटी अन्य जानकारियां भी हमें समय समय में बताने की कृपा करें जिससे हम जैसे अल्पज्ञों का ज्ञानवर्धन होते रहे ।
जी हॉ अपनी सनातनी वैदिक संस्कृति व परम्पराओं के लिए सदैव तत्पर रहेंगे,,, धन्यवाद
कुमाञ्चली पद्धति सरल एवं सहज रूप में है,
कुर्मांचलीय शास्त्रीय पद्धति संबंधी पूजा-पाठ गणेश पूजन ,कलश सस्थापना आदि देवताओं का पूजन का विडियो प्रस्तुत है,,
श्री राधे, मैंने कुर्माञ्चलीय पद्धति का कर्मकांड की वीडियो बनाकर इसमें डाल दी है।
Sundar...आचार्यावर सादर प्रणाम
गुरुजी व्यवहारिक करके दिखाएं किसी अवसर पर
इतनी सरलता से व्यवहारिक रूप में कुशा का ब्रह्मा बनाने का विधान मैंने प्रस्तुत किया है,, इससे अधिक व्यावहारिक और सरल क्या क्या होगा थोड़ी ध्यानपूर्वक देखिए सब समझ में आ जाएगा।
इसी चैनल पर व्यवहारिक रूप से shorts शाॅट विडियो डाउनलोड कर दिया गया है।
गुरुदेव कुमाऊनी जनेऊ बनाने की विधि भी बताइए 🙏🏼🙏🏼
मैंने अभी श्रावणी उपाकर्म कर्म के दो-तीन दिन पूर्व जनेऊ बनाने की विधि फेसबुक के द्वारा लोगों को बधाई दी थी और संक्षेप में आपको भी भेज देता हूं
तैत्तिरीय अरण्यक में यज्ञोपवीत बनाने का निर्देश किया गया है। और वेद मंत्रों को तीन काण्डों में विभाजित किया गया है। कर्मकाण्ड, उपासना काण्ड व ज्ञान काण्ड। और इन्हीं वेदों में ज्ञान, कर्म व उपासना संबंधित ९६००० मंत्र हैं। इसीलिए यज्ञोपवीत के तंतु को सर्वप्रथम ९६ बार लपेटा जाता है। और शेष ४००० मंत्र सन्यास (निर्वाण) के लिए बताए गए हैं। यज्ञोपवीत ब्रह्मा, विष्णु, शिव द्वारा रचित है। और इन्हीं के द्वारा अभिमंत्रित है। और नौ सूत्रों (तंतुओं) में नौ देवताओं ॐकार देव,अग्नि देव,भग देव, सोमदेव, पितृ देव, प्रजापति देव, वायु देव, सूर्य देव और सर्वदेव का निवास है। इसीलिए यज्ञोपवीत नौ तंतुओं के द्वारा बनाई जाती है। तीन तीन बार त्रिगुणित कर। तीन ग्रंथियों में ब्रह्मा, विष्णु, शिव का निवास होता है। और यही देवता मां गायत्री का ध्यान कर उस यज्ञोपवीत में विराजमान हो जाते हैं। और जापक की समस्त कामनाओं को पूर्ण करते हैं। श्रावणी पर्व की पावन बेला में समस्त यजुर्वेदीय उपाकर्म करने वालों को पावन पर्व एवं रक्षाबंधन की हार्दिक शुभकामनाएं। और इसी दिन मां लक्ष्मी ने राजा बलि को अपना भाई मानकर उसके दाएं हाथ में रक्षा सूत्र बांधा था। तभी से यह श्रावणी का पर्व रक्षाबंधन के नाम से जाना जाता है। तभी यह मंत्र रक्षा सूत्र बांधते हुए कहा जाता है।
येन वद्धो बली राजा, दानवेन्द्रो महाबल:। तेनत्वांप्रतिबद्घनामि, रक्षेमाचल माचल:।।
यदाबध्नन्दाक्षायणा हिरण्यं शतानीकाय सुमनस्यमाना: तन्मऽआबध्नामि शतशारदायायुष्मान् जरदष्टिर्यथासम्।।
पंडित बसन्त बल्लभ त्रिपाठी, शास्त्री
हल्द्वानी, नैनीताल उत्तराखंड
pandit g aapdaya sharadh ki vidhi bataye kripya]
आपसे करबद्ध निवेदन है कृपया श्लोक भी लिख दें ताकि हमें याद हो सके और भविष्य में हम उसका प्रयोग कर सकें
कुशा व्रह्मा वनाते हुए श्लोक का उच्चारण किया जा रहा है,,,
व्रह्मा निर्माण,,तल्लक्षणम् (परिशिष्टे) "पञ्चाशता भवेद्ब्रह्मा तदर्द्धन तु विष्टरः । ऊर्ध्वकेशो भवेद्ब्रह्मा लम्बकेशस्तु विष्टरः॥ दक्षिणावर्तको ब्रह्मा वामावर्तस्तु विष्टरः ॥" 'प्रणीय' इति सूत्रम् । '
@@ahoenix2201 आपका बहुत बहुत धन्यवाद महोदय
Good
गुरु जी हम तो इस क्षेत्र में नए हैं इसलिए कुछ भी समझ में नहीं आया। यद्यपि आप ने बहुत अच्छी तरह बताया है।
श्री राधे,, कहाँ से हैं, आप,,, यह शास्त्रीय वैदिक विधान है। विशेष करके ये कुशा व्रह्मा की पद्धति उत्तराखंड के कुर्माञ्चल कुमाँऊनी है। आप चाहें तो मुझसे वार्तालाप कर सकते हैं।
2.5ganth ka bhi to vidhan kaha gaya h
Raksha Bandhan ke din saptrishi ganth kaise lagai jati hai
व्रह्म ग्रन्थि की तरह ही ग्रन्थि होगी।
Udakshanti me यही ब्रह्मा का कलश मे आवाहन करना चाहीए क्या और कलश के बाहर सौ दर्भ रखते है वो क्या कृपया बताईए पंडितजी
जी,,, जहॉ भी यज्ञादि, मांगलिक कार्य होंगे, वहॉ ब्रह्मा का आवाहन होगा,,, यज्ञादि, मॉगलिक कार्यों में विना व्रह्मा के कोई भी कर्म पूर्ण नहीं होता,, बहुत सौ कुशा का मतलब हा व्रह्मा है,, बहुत
Dhanyavaad panditaji
जय जय जय जय 🙏🙏
पूजा होने के बाद ब्रह्मा जी को कहां रखते है अथवा विसर्जित करते है
कुशा व्रह्मा को घर में ही रखना चाहिए, प्रतिष्ठित व्रह्मा का और भी महत्व है। इसे वर्षों तक रख सकते हैं,,जब तक खण्डित न हो तब तक विसर्जित ना करें।
Kumauni saadi ki vidhi bataye
Narayan 🎉
नारायण❤
Please 50 kusha ka brahma banana sikhaye
जो कुर्मॉचलीय शास्त्रोक विधान है वह 100 कुशाओं का है,, यदि 50 का विधान मिलेगा तो अवश्य भेजूँगा,,
गुरुदेव एक और प्रश्न था जैसे हम कलश स्थापना करते है नवरात्रि में तो नारियल कलश के मुख पर रखे या कुश के ब्रह्मा को स्थापित करे कृपया स्पष्ट करने की कृपा करे। गुरुदेव
हमारी कुर्मांचली पद्धति परंपरा के अनुसार कुर्मॉचलीय लोग कलश में कुश का ब्रह्मा ही रखते हैं,और रखना भी चाहिए। मैदानी क्षेत्रों में कुश ब्रह्मा को नहीं बनाते हैं, वे रखते भी नहीं है, इसलिए वहां नारियल रखते हैं। ब्रह्मा की उपलब्धता न हो तो नारियल रख सकते हैं।
100 कुशा से ही बनाने का कोई प्रमाण है शास्त्रोंक्त... Ya इससे कम ya ज्यादा का भी बना सकते है.. 🙏🙏 nice वीडियो 🙏🙏
एक सौ कुशों से ही ब्रह्मा बनाया जाता है। "छंदोग्य परिशिष्ट पारिजात विधान" में लिखा हुआ है। इस विडियो में जो ब्रह्मा बनाते वक्त मैं श्लोक बोल रहा हूँ, वह श्लोक 100 कुशाओं के बनने वाली ब्रह्मा का प्रमाण है। हो सकता है कहीं अन्यत्र भी ऐसा कोई भी हो, परन्तु हमारी कुर्माञ्चलीय (उत्तराखण्ड) की कुमाँऊनी पद्धति के कर्मकाण्ड में 100 कुशों के ब्रह्मा के द्वारा ही कुश का ब्रह्मा बनाया जाता है।
🙏🙏🙏
Om
अवश्य यथाशीघ्र कुश कण्डिका का विधान भी वीडियो के रूप में प्रस्तुत करने का प्रयास करूंगा,,, धन्यबाद
7777777
Kushkandika video dal Diya hai,,
बहुत सुंदर आचार्य जी
प्रणाम
Om narayan
Kumauni sraadh ki vidhi bstaye
Om narayan
🙏🙏
पंडित जी प्रणाम मेरा आवश्यक प्रश्न, क्या 8 जनवरी से 13 जनवरी के बीच सगाई मंगनी हो सकती है अवश्य बताइये
हवन के दक्षिण दिशा मे जो ब्रह्मा स्थापन करते है ये वो ब्रह्मा है क्या
यज्ञ में ब्रह्मा के दो रूप होते हैं, एक प्रत्यक्ष जो यज्ञ का निरीक्षण का कार्य करते है, जिसे कार्यकारिणी प्रत्यक्ष व्रह्मा जाता है। दूसरा जो एक सौ कुशाओं से बना करके वरुण कलश में स्थापित किया जाता है। कुशा के ब्रह्मा के अभाव में कुश की पवत्री बना कर रख देते हैं।
गुरु जी प्रणाम
गुरु जीइसका किसी ग्रंथ में शास्त्रीय प्रमाण भी है क्या अगर है तो कृपया बताये 🙏
पारस्कर गृह्यसूत्र सूत्र में दक्षिण में ब्रह्मा का विधान तो दिखा परंतु अप्रत्यक्ष ब्रह्मा का विधान नहीं मिला कृपा मार्ग दर्शन करें 🙏
गुरू जी के चरणों में नमन गुरू जी संध्या वंदन के बाद यदि हम पुनः अनुष्ठान के निमित्त अधिक संख्या जाप करें तो क्या पुनः शाप विमोचन उपस्थान आदि की जरूरत है।
यदि कुछ विश्राम के पश्चात हम पुन: गायत्री जाप करना चाहते हैं, तब श्राप विमोचन,उपस्थान की आवश्यकता नहीं है। हां यदि मध्याह्न संध्या के निमित्त हम गायत्री जप रहे हैं , तो फिर शापविमोचन, अघमर्षण , सूर्याघ, उपस्थान की आवश्यकता पड़ती है।
Om
गुरुवार कलश में किस स्थान पर स्थापित किया जा सकता है
ईशान दिशा (पूर्वोत्तर) में धान्य (धान, जौ, गेहूं अन्न आदि) के ऊपर पञ्च पल्लव सहित कुश व्रह्म युक्त कलश रखकर स्थापित करें।
Kurmanchali parmpra ka koi jabab nahi
यदि हमें किसी पित्र का नाम या गोत्र मालूम न हो तो किस नाम या उच्चारण से श्राद्ध या तर्पण करना चाहिए। यदि किसी की मृत्यु यदि अधिक मास में हो तो वार्षिक श्राद्ध कब होगा
गुरु जी धन्यवाद।
यदि किसी के गोत्र और नाम का पता न चले तो अमुक गोत्रस्यअंतरिक्ष बसु स्वरूपस्य पितु: तर्पयामि। और अधिकमास में मृत्यु होने पर अगले वर्ष उसी मास के उसी पक्ष को उसी तिथि को वार्षिक श्राद्ध होगा। अर्थात जैसे इस वर्ष आश्विन अधिक मास है, तो अगले वर्ष आश्विन मास जिस भी पक्ष, तिथि में मृत्यु हुई हो उस पक्ष उसी तिथि में वार्षिक श्राद्ध होगा।
गुरु जी सादर अभिवादन । संशय व मन की जिज्ञासा को त्वतरित समाधान करने लिए।
विष्णुग्रंथि कैसे बनाये
तीन कुशा को मिलाकर ढेड़ बार घुमाकर शिखा वाहर निकालें
Guruji use samay kusa utpann hua hi nahin tha to kaise wardan dediye bhagwan mahadev ji ne ise spasht karen Maharaj ji har har Mahadev
श्री राधे, बहुत सुंदर प्रश्न। कुशा भगवान नारायण के रोम से उत्पन्न हुई है। अर्थात् भगवान श्री हरि नारायण के रोम ही कुशा हैं। जब भगवान नारायण ने सृष्टि को बनाने का विचार बनाया तो उनके नाभि से कमल को उत्पन्न किया और कमल से ब्रह्मा जी निकले ब्रह्मा जी पांच मुख के थे, झूठ बोलने के कारण उनका एक मुँख काट दिया गया। और उनको मूर्ति रूप से कुशा के व्रह्मा रूप में पूजने का वरदान दिया।
दूसरा भगवान नारायण जब सुकर रूप में अवतार लिए, उन्होंने अपने शरीर को हिलाया, और हिलाते ही जो रोम गिरे वही कुश के रूप में उत्पन्न हुए। यह श्रीश्वेत वाराह कप की कथा है।
pandit ji yeh hawan ke samay south direction mein chawal pe bhi kartey hai na ? toh badh mein chawalo ko ghar mein rakhe ya pandit ji ko deh deh ?
पंडित जी को दे देना चाहिए,, क्योंकि यह व्रह्मा का हिस्सा होता है। अगर पंडित जी उपलब्ध नहीं हों तो घर में भी रख सकते हैं।
apna contact no dijiye
कृपया आप सम्पर्क करें। व्रह्मा मिल जाएगा।
बहुत बहुत सुंदर
🙏🙏🙏
Om❤
बहुत ही सुंदर