Jahanpanah | जहाँपनाह || Fourth Ancient City Of Delhi || By Preeti Gupta || Part-1

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  • Опубликовано: 5 окт 2024
  • Jahanpanah | जहाँपनाह || Fourth Ancient City Of Delhi || By Preeti Gupta || Part -1
    मध्यकालीन भारत में सबसे ताक़तवर सुल्तान कहे जाने वाले मुहम्मद बिन तुगलक अपने मिज़ाज़ और नीतियों से इतिहास के पन्नों में काफी बदनाम रहे हैं। मगर क्या आप जानते हैं, कि दक्षिण दिल्ली के कई इलाकों में आज भी उनकी निशानियाँ मौजूद हैं, जिनमें कस्र-ए- हज़ार सुतून यानी हज़ार खम्बों वाला महल भी शामिल है, जो आज इस शहर की शान का हिस्सा है?
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    मशहूर यायावर मुहम्मद इब्न बत्तूता अपने यात्रा-वृत्तान्त ‘रिहला” में इस महल का ज़िक्र करते हुए बताते हैं, कि यहाँ एक दावत के दौरान, सुलतान मुहम्मद ने उनको समोसे खिलाये थे। इस महल का एक हिस्सा, आज भी बिजय मंडल में देखा जा सकता है, जो तुगलक की बसाई नगरी जहाँपनाह के तहत आता है।
    चौदहवीं शताब्दी में मुहम्मद बिन तुगलक द्वारा निर्मित जहाँपनाह को दिल्ली की चौथी नगरी कहा जाता है। इसकी दीवारों में दिल्ली के पहले बसाए गए तीन नगर: लाल कोट, सीरी और तुगलकाबाद मौजूद थे।
    पहले तुगलक सुलतान गियासुद्दीन तुगलक के बड़े बेटे मुहम्मद का जन्म दिल्ली में सन 1290 में हुआ था। ये वो दौर था, जब दिल्ली के तख़्त पर पहला खिलजी सुल्तान जलालुद्दीन खिलजी बैठा था, और गियासुद्दीन उसका शाही अंगरक्षक था । सन 1296 में जलालुद्दीन की मौत के बाद, उसका भतीजा अलाउद्दीन तख़्त पर बैठा, जिसकी फ़ौज में जलाल ने अपनीं कुशलता का परचम लहराया । सन 1316 में अलाउद्दीन की मौत के बाद, आगे के सुल्तान षड्यंत्र और आपसी रंजिशों के शिकार हुए, जिस दौरान दोनों गियासुद्दीन और मुहम्मद ने दिल्ली दरबार में अपना प्रभाव इस कदर बढाया, कि आगे चलकर सन 1321 में गियासुद्दीन दिल्ली के तख्त पर बैठा, और उसने अपनी नई राजधानी तुगलकाबाद का निर्माण किया, जिसको दिल्ली का तीसरा शहर भी कहा जाता है ।
    सन 1325 में बंगाल में गियास की मौत के ठीक बाद, मुहम्मद बिन तुगलक ने गद्दी सम्भाली । फिर सन 1326-27 में तुगलकाबाद किले के ठीक बगल में आदिलाबाद किले का निर्माण हुआ, जहां से तुगलक ने जहाँपनाह का निर्माण शुरू किया, जिसकी दीवारों में तुगलकाबाद, सीरी और लाल कोट के पुराने नगरों को भी जोड़ा गया ।
    जब जहाँपनाह की दीवारें बन ही रहीं थीं, वहीँ दक्कन में तुग़लक़, अपनी सल्तनत की सीमाएं अपने सफल मुहिमों से बढ़ा रहा था । एक केन्द्रीय जगह की आवश्यकता को देखते हुए, उसने देवागिरी को नई राजधानी बनाने का फ़ैसला किया, जिसको दौलताबाद कहा गया, जिसके कारण सन 1327 में आदिलाबाद क़िले को लावारिस छोड़ा गया। मगर मंगोलों के हमलों के बढ़ते ख़तरे को देखते हुए, सन 1335 ईस्वी में आदिलाबाद क़िला को दोबारा आबाद किया गया और जहाँपनाह के निर्माण का काम फिर-से शुरू हुआ।
    तेरह द्वारों से घिरे जहाँपनाह के बारे में हमको इब्न बतूता के यात्रा-वृत्तान्त ‘रिहला’ में विस्तार से पता चलता है, जिसमें उसने दिल्ली को इस्लामी जगत के सबसे बड़े शहर का दर्जा दिया। वो ये भी कहते हैं, कि तुगलक ने एक हज़ार खम्बों के महल का निर्माण किया, जो विशाल सभागृह हुआ करता था।
    सन 1351 ईस्वी में तुगलक के निधन के बाद, उसका चचेरा भाई फ़िरोज़ शाह गद्दी पर बैठा। अपनी नयी राजधानी फिरुज़ाबाद को यमुना के उत्तरी तट पर बसाने के साथ-साथ, उसने और उसके कुछ प्रमुख दरबारियों ने जहाँपनाह में कई इमारतों, जैसे बेगमपुरी मस्जिद, खिड़की मस्जिद और लाल गुम्बद का निर्माण किया, और सीरी क्षेत्र के निवासियों के लिए हौज़ ख़ास में मौजूद तालाब का भी पुनर्निर्माण किया। सोलहवीं शताब्दी तक यहाँ कई सुल्तानों ने कुछ इमारतों जैसे साधना एन्क्लेव में मौजूद शेख अलाउद्दीन की कब्र, का भी निर्माण किया।
    आगे चलकर जहाँपनाह की दीवारें कई हमलों, जंगों और आधुनिक दिल्ली के निर्माण के दौरान क्षतिग्रस्त हुए। हालांकि, आज भी इसके खंडहर बेगमपुर गाँव, बिजय मंडल एन्क्लेव, जहाँपनाह सिटी फारेस्ट जैसे कई इलाकों में देखे जा सकते हैं, जो हमको उस सुनहरे दौर की याद दिलाते हैं...
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