आंंखों की रोशनी कम होने के कारण एवं उपाय (causes of reduced vision & its treatment)

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  • Опубликовано: 15 окт 2024
  • अमूल्य आंखों की सुरक्षा जरुरी है जैसे-जैसे हमारी उम्र बढ़ती है, वैसे-वैसे हमारे पूरे शरीर के साथ-साथ, हमारी आँखों पर भी असर पड़ता है। उम्र बढ़ने के साथ हमारी नज़र कमजोर होने लगती है, 40 की उम्र पार करते ही, आँखों में पढ़ने का चश्मा लगना शुरू हो जाता है एवं कुछ अन्य बीमारियां आती है | बढ़ती उम्र में आंखों से संबंधित छोटी छोटी समस्याएं गंभीर रूप धारण कर सकती हे, जिन्हें समय से निदान और उपचार देकर आंखों की दृष्टि को बचाया जा सकता है। आइये जाने बढती उम्र की आँखों की तकलीफ़ एवं निदान को---
    (1) प्रेसबायोपिया (Presbyopia) - इस रोग में मुख्यतः पास की चीजें या बहुत छोटी चीजों को देखने में परेशानी आती है। यह एक सामान्य प्रक्रिया है,जिसमे आँखों की मासपेशिया (accomodation) कमज़ोर होने लगती हे और पढ़ने का चश्मा लगाना पड़ता है धीरे धीरे चश्मे का नंबर एवं उस पर निर्भरता उम्र बढ़ने के साथ बढ़ती है। लेकिन जिन लोगो को पहिले से माइनस नंबर दूर का है उनको चश्मा उतार कर नजदीक का साफ दिखता है ऐसे में प्रोग्रेसिव या बाइफोकल चश्मे या कांटेक्ट लेन्सेस भी इस्तेमाल कर सकते है | इसलिए 40 साल की उम्र आने पर ऑय टेस्ट करवाना जरुरी है |
    (२) फ्लोटर्स (Floaters) - इस बीमारी में परदे के पानी ( विट्रयौस) के पिघलने (degeneration) से आँखों के सामने छोटे- छोटे धब्बे या आकृति तेरते नजर आने लगते है। यह एक सामान्य सी बीमारी है, लेकिन कभी-कभी यह आँखों के लिए गंभीर समस्या उत्पन्न कर सकती है, जैसे - रेटिना होल या डिटैचमेंट, मुख्य रूप से जब प्रकाश की चमक भी नज़र आ रही हो । यदि अचानक ही आँखों में अलग प्रकार का या ज्यादा काले रंगीन धब्बे (स्पॉट- floters) या फिर चमक सी ( flashes) नज़र आये, तो तुरंत डॉक्टर से संपर्क करें।
    (3) मोतियाबिंद (Cataracts)- सामान्य स्वस्थ आँखों में आई लेंस, कैमरे के लेंस की तरह बिलकुल साफ़ होता है जो प्रकाश को आराम से रेटिना तक बिना किसी रुकावट के पहुंचाता है, जिससे साफ छवि का निर्माण होता है। मोतियाबिंद में लेंस उम्र के साथ धुंधला होता चला जाता है जिसेस देखने में समस्या आती है। मोतियाबिंद बेहद धीरे-धीरे होता है, आँखों में दर्द, पानी आना, और लाल हो जाने जैसी समस्याएं इसमें नहीं होती हैं मोतियाबिंद तो किसी दवाई, परहेज या चश्मे से ठीक नहीं किया जा सकता हे, मोतियाबिंद बढने की स्थिति में सर्जरी करने की आवश्यकता होती है। माइक्रो इनसिशन कैटरैक्ट सर्जरी (MICS) में 2 एमएम से भी छोटे छिद्र द्वारा मोतियाबिंद (कैटरैक्ट) की शल्य चिकित्सा (सर्जरी) को कारगर ढंग से अंजाम दिया जाता है और फोल्डेबल लेंस लगया जाता है | यह सर्जरी पूरी तरह से सुरक्षित है इसलिए डरे नहीं तुरंत ऑय सर्जन से मिले एवं मोतियाबिंद के जाँच एवं उपचार करवाए ।
    (4) ग्लूकोमा (Glaucoma)- ग्लूकोमा एक ऐसी बीमारी है, जिसमें हमारी आँखों का दबाव बढता है देखने वाली नस (ऑप्टिक नर्व) डैमेज होती हे और मरीज को पहिले साइड से फिर धीरे धीरे करके बीच से दिखना बंद हो जाता है | यह स्थिति समय के साथ और भी खराब होती चली जाती है और जो रौशनी चली जाती है वो नस सुखने की वजह से इलाज़ के बाद भी लोटकर नहीं आता, इसलिए समय पर जाँच एवं उपचार इस बीमारी की रोकथाम के लिए जरुरी है।
    (5) रेटिनल विकार (Retinal disorders)- रेटिना आँखों के पीछे एक पतला परदे जैसा होता है जो ऑप्टिक नर्व द्वारा मस्तिष्क तक प्रतिबिम्ब को भेजता है। रेटिना में किसी प्रकार की समस्या होने से देखने में समस्या होती है | बढती उम्र के साथ रेटिना पर कई तरह के रोग जैसे उम्र बढ़ने से साथ आँखों के मैक्यूला का नष्ट होना (AMD), डायबिटीक रेटिनोपैथी और रेटिनल डिटैचमेंट, एपिरेटिनल मेंब्रेन आदि शामिल है। प्रारंभिक निदान और उपचार, इन समस्यायों से छुटकारा पाने और अपनी नज़र में सुधार के लिए बहुत महत्वपूर्ण है।इसलिए बढती उम्र के साथ रेटिना की जाँच करवाकर समय रहते उपचार कर अन्धत्व से बचे |
    (6) डिजिटल स्ट्रेन याने कंप्यूटर विज़न सिंड्रोम -- कंप्यूटर, मोबाइल, टीवी से आंखों पर असर पड़ता है इसलिए आंखों को समय-समय पर आराम देना चाहिए उनसे उचित दूरी बनाये। आँखों में थकान, भारीपन, रुखापन दर्द एवं सरदर्द का मुख्य कारण हे | घंटो तक बिना ब्रेक एवं पलक झपकाए इन डीजीटल गेज्डेट्स का इस्तेमाल ना केवल शारीरिक परेशानियों बल्कि मानसिक तनाव का भी कारण है एवं बच्चो एवं यूवाओ में इसके लत के चलते गंभीर परिणाम देखे गए है | इसलिए आज ही कंप्यूटर विज़न सिंड्रोम के बारे में अपने नजदीकी ऑय डॉक्टर से संपर्क करे |
    (7) ड्राई आई या रुखापन - आँखों में रुखापन याने ड्राईनेस की समस्या बहुत कॉमन हे,बढती उम्र के साथ पोलूशन, हीट, हार्मोन, कंप्यूटर,एवं शारीरिक बीमारीया जैसे डायबिटीज, थाइराइड, कंनेक्टिव टिश्यू डिसऑर्डर आदि के चलते यह समस्या आम है, जो आँखों में जलन चुभन, चकचोंध एवं दर्द के रूप में आ सकती है | कंप्यूटर पर ए.सी. या हीटर के नीचे लगातार काम करने से यह समस्या दिन प्रतिदिन बढती चली जाती है |
    आँखों की एक्सरसाइज ,चश्मा एंड एंटी ग्लेअर स्क्रीन एवं ग्लासेज के अलावा आंखों को स्वस्थ रखने के लिए संतुलित आहार, नियमित शारीरिक व्यायाम एवं आँखों की देखभाल जरुरी है | आंखों की बिना तकलीफ़ के नियमित सालाना जाँच बहुत जरुरी है | अपनी आंखों को धूप से बचाने के लिए सनग्लासेज का इस्तेमाल करें। दिन में अपनी आँखों को कम से कम दो या तीन बार धोयें। अपनी आँखों को धूल और धूएँ से बचायें। आँखों को बीच बीच में आराम जरुर दे | आँखों की बीमारी होने पर स्वयं चिकित्सा न करें। आँखों में काजल, सुरमे का इस्तेमाल न करें। एडिक्शन से बचे धूम्रपान न करें | आंखों में कचरा, धूल का कण आदि पड़ने पर आँख को मलना नहीं चाहिए। आंखों में कोई समस्या, न हो फिर भी अन्य शारीरिक बीमारियों जैसे डायबिटीज, ब्लड प्रेशर, किडनी एवं हार्ट वाले मरीजों को आंखों का चेकअप कराना चाहिए। ग्लुकोमा मोतियाबिंद या आँखों की बीमारीयों को टाले नहीं समय पर इनका उपचार जरूरी है।

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