कबीर जयंती llसतगुरू की कृपा ll गुरुदेव कौ अंग ll

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  • Опубликовано: 6 сен 2024
  • कबीर जयंती
    सतगुरू की कृपा
    कबीर-वाणी को पढ़ना, समझना व गुनना हमें जीवन जीने का नया संबल प्रदान करती है। कबीर जयंती के अवसर पर सतगुरू को समर्पित 'गुरुदेव कौ अंग ' से उद्धृत कुछ साखियाँ :-
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    सतगुरू की महिमा अनंत, अनंत किया उपगार।
    लोचन अनँत उघाड़िया, अनँत दिखावनहार।।
    भावार्थ:- सतगुरू की महिमा व उनके किये उपकार से तो अनंत तक दिखाई देने लगा।
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    गुरू गोविंद तो एक है, दूजा यह आकार।
    आपा मेट जीवत मरै, तो पावै करतार।।
    भावार्थ:-गुरू( मनुष्य) और गोविंद (भगवान) तो एक ही है।एक आकार( शरीर) वाला है तो दूसरा निराकार है।अपने अहं का त्याग कर हम निराकार करतार को पा सकते हैं।
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    पासा पकड़या प्रेम का, सारी किया सरीर।
    सतगुर दावा बताइया, खेलै दास कबीर।।
    भावार्थ:- विश्वास के रास्ते प्रेम की डोर पकड़ लेने पर शरीर साधना करने वाला साधु हो जाता है।
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    सतगुरू हम सूँ रीझि करि, एक कह्या प्रसंग।
    बरस्या बादल प्रेम का भीजि गया सब अंग।।
    भावार्थ:- सतगुरु हमसे प्रसन्न होकर प्रेम रसायन दे दिये जिससे हमारा अंग-अंग पुलकित
    होने लगा।
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    पूरे सूँ परचा भया, सब दुख मेल्या दूरि।
    निर्मल किन्हीं आत्माँ ताथैं सदा हजूरि।।
    भावार्थ:- सतगुरू की कृपा से हमारी आत्मा निर्मल होकर
    परमात्मा में लीन हो गई जिससे हमारे सारे दुख
    दूर हो गये।
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    🙏जय सतगुरू🙏
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