अपना कर्म करो, फल की चिंता ना करो।Moral Story Of Buddha। Mediation Story।
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- Опубликовано: 29 окт 2024
- अपना कर्म करो, फल की चिंता ना करो।Moral Story Of Buddha। Mediation Story। @SinghRajanKabir
नमस्कार दोस्तों, भगवान बुद्ध बताते है कि अपना कर्म करो और फल की चिंता ना करो आइए कहानी को शुरू करते हैं।
बहुत समय पहले की बात है, हिमालय की एक छोटी-सी घाटी में दो दोस्त रहते थे-बद्री और बुद्ध। दोनों का बचपन साथ बीता था और उनकी दोस्ती बहुत गहरी थी। बद्री एक मेहनती और साधारण किसान था, जो दिन-रात खेतों में काम करता और अपनी मेहनत से अपनी ज़िंदगी चलाता था। दूसरी ओर, बुद्ध स्वभाव से बहुत ही शांत और गहरे विचारों वाला व्यक्ति था। वह ध्यान और अध्यात्म में गहरी रुचि रखता था, और अपना अधिकांश समय ध्यान में व्यतीत करता था।
बद्री की ज़िंदगी उसकी मेहनत के इर्द-गिर्द घूमती थी। वह हमेशा से इस विचार में डूबा रहता था कि उसकी कड़ी मेहनत ही उसकी और उसके परिवार की भलाई का कारण है। उसके खेत हरे-भरे थे, और वह अपने काम से संतुष्ट था। लेकिन एक चीज़ जो उसे हमेशा परेशान करती थी, वह थी उसकी अस्थिरता। हर साल मौसम बदलता और फसल का नुकसान हो सकता था। कभी सूखा पड़ जाता, तो कभी बाढ़ आ जाती, और बद्री को यह डर रहता कि उसकी मेहनत कहीं बेकार न चली जाए।
वहीं, बुद्ध ने दुनिया के मोह-माया से अलग रहने का निर्णय लिया था। वह जंगल में एक छोटी सी कुटिया बनाकर ध्यान करता और जीवन के गहरे सत्य की तलाश में रहता। बुद्ध का मानना था कि असली खुशी और शांति बाहरी दुनिया में नहीं, बल्कि हमारे अंदर ही होती है। उसने अपने जीवन की कई ज़रूरतों का त्याग कर दिया था और आत्मिक शांति की तलाश में रहता था।
एक दिन बद्री ने सोचा कि वह अपने दोस्त बुद्ध से मिलकर अपने मन की कुछ बातें साझा करे। वह बुद्ध की कुटिया तक पहुंचा और देखा कि बुद्ध ध्यान में बैठा हुआ था। कुछ समय बाद जब बुद्ध ने अपनी आंखें खोलीं, तो बद्री ने कहा, “बुद्ध, तुम हमेशा ध्यान में रहते हो और किसी भी प्रकार की चिंता नहीं करते। मैं देखता हूं कि तुम ज़्यादा काम नहीं करते, फिर भी हमेशा शांत और खुश लगते हो। मैं दिन-रात मेहनत करता हूं, फिर भी हमेशा किसी न किसी चिंता में रहता हूं। मुझे समझ नहीं आता कि कैसे तुम्हें इस तरह की शांति और संतोष प्राप्त होता है।”
बुद्ध ने मुस्कुराते हुए बद्री को देखा और कहा, “दोस्त, तुम्हारी मेहनत की मैं सराहना करता हूं। लेकिन तुम्हारी बेचैनी का कारण तुम्हारा मन है, जो भविष्य और परिणामों की चिंता में डूबा रहता है। जो चीज़ें तुम्हारे नियंत्रण में नहीं हैं, उन पर तुम्हारा जोर नहीं चल सकता। अगर तुम अपनी मेहनत करते हुए खुद पर भरोसा रखो और परिणाम की चिंता छोड़ दो, तो शांति पा सकते हो।”
बद्री थोड़ा चौंका और बोला, “पर यह कैसे संभव है? अगर मैं फसल की चिंता न करूं, तो मैं कैसे जान पाऊंगा कि मेरी मेहनत सफल होगी या नहीं?”
बुद्ध ने एक गहरी सांस ली और एक छोटे से पेड़ की ओर इशारा करते हुए कहा, “देखो इस पेड़ को। यह पेड़ अपनी जगह पर खड़ा है और धरती से पोषण लेता है। जब समय आता है, तो यह फल देता है। लेकिन क्या यह पेड़ कभी इस बात की चिंता करता है कि फल कब आएंगे? नहीं, यह बस अपनी प्रकृति के अनुसार चलता है। इसी प्रकार, तुम्हारा काम मेहनत करना है, लेकिन फल की चिंता छोड़ दो।”
बद्री इस बात को समझने की कोशिश कर रहा था, लेकिन उसे अभी भी यह स्पष्ट नहीं हो रहा था कि यह व्यावहारिक रूप से कैसे किया जा सकता है। उसने बुद्ध से फिर पूछा, “लेकिन अगर मैं फल की चिंता नहीं करूंगा, तो क्या मुझे प्रेरणा मिलेगी कि मैं अपना काम अच्छे से करूं?”
बुद्ध ने मुस्कुराते हुए कहा, “प्रेरणा परिणाम से नहीं, बल्कि उस कर्म से आनी चाहिए जिसे हम करते हैं। जब तुम अपना काम पूरी लगन और ध्यान से करते हो, तो वह स्वयं में एक पूजा बन जाता है। अगर तुम यह समझ जाओ कि हर काम, चाहे वह छोटा हो या बड़ा, एक तरह से तुम्हारे जीवन का उद्देश्य है, तो तुम खुद ही प्रेरित रहोगे।”
बुद्ध ने मुस्कुराते हुए कहा, “यही जीवन का सबसे बड़ा सत्य है, बद्री। जब हम अपने जीवन के हर पल को पूरी तरह जीते हैं और परिणाम की चिंता छोड़ देते हैं, तो हम सच्ची शांति पा सकते हैं।”
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